अबतक आप पढे हैं की जानुआ की Reception Party में उसकी सारे भाईयों आये हैं सिवाये March और February को छोडके । सब मस्ती में लगे हैं पर बुढा यानी की December दुःखी होकर उदास बैठता है । उसकी बुढी बुढा का उदास चेहरा देखकर उसकी पास जाती है उसे समझाने केलिए । अब आगे............
बुढी बोलती है, सुनो तो तुम इतना उदास क्युं होते हो ? क्युं यैसा सोच रहे हो की तुम्हे सब भुल जायेगें ? में बोलती हुं यैसा कुछ भी नहीं होगा । तुम हमेशा उनको इतना खुसी देते आये हो, आज एक रोग के बजाह से वो तुम्हे भुल जायेगें ! यैसा कभी नहीं मुझे अच्छी तरहा से मालुम है । हाँ ये बात सच है की पुरी साल बर्बादी से निकलगया, मगर इसका मतलब ये नहीं की तुम जानबुझकर यैसा किये हो । सबको पता है, तभी तो उसके हल केलिए लगातार कोसीस जारी रेहती है । तुम उनको प्यार करते हो ना ? तो ये खेयाल तुम्हारे दिमाग में कैसे आता है ? में देखी हुं उनको, वो सारे खुसी तुमसे ही तो पाते हैं । अगर तुम टुट जाउगे तो उन सबको कोन सभ्मालेगा ? मेरी बात मानो ज्यादा सोचो मत, अगर उन सबको तुम्हारे जानेसे खुसी मिलता है तो तुम उन्हे खुस होने दो । क्या फरक पडता हम कितने दिन यहां रहे ? फरक तो इस बात से पडनी चाहीये की हम इतना दिनों में क्या करपाये उनके लिये । इसलिए तुम भी उनके खुसी में सामील हो । अगर दिल से खुस नहीं हो पा रहे हो तो झूठा हसी चेहरेपे लाने की कोसीस करो । क्युंकी तुम भी नहीं चाहते होगें की तुम्हारे बजाह से उनकी हीम्मत
टुटे ।
बुढा बुढी को देखता है फिर बोलता है, मुझसे नहीं हो रहा है । में झूठा हसी चेहरेपे नहीं लेपा रहा हुं । में सबको छोडके चला जाउगां इस बात पर मुझे जितना दर्द नहीं हो रहा है, उसके कई गुना दर्द मुझे इस बात का है की मेरा पुरे एक महीने के बलीदान को कोई समझ नहीं पाये । में दुःख में हसता रहा पर किसीने नहीं पुछा । सब मुझे भुल गये है । जो कभी मुझे इतने खुसी से अपनालिया करते थे, पर आज में बुढा हो गेया हुं ये सोचके मुझे घरसे निकाल रहे हैं । ओर कुछ क्षण, उसके बाद में नेहीं रहुंगां..........!
12 HOUR CLOCK........
सब मिलके खुसी मना रहे हैं और जोर् से बोल रहे हैं.........HAPPY NEW YEAR.
December और उसकी बुढी सक होगेये । बुढा रोता है, बहत् जोर् से रोता है । Party खतम, सब अपने अपने घरको लोटगये । बुढी बुढा को सभ्मालते हुये उसको निचे से उठाया और हात पकङके घर चलने केलिए बोली । बुढा बोलता है, कोन सा घर ?
बुढा गुस्से से बोला वो घर अब हमारा नहीं है । तु क्या सोच रही है में नहीं जानता हुं क्या ? सब जानती हुं में । तुझे नयी बहू जो जो कहे सब सुना हुं में । इसके बाद भी अगर तु कहेगी वो मेरा घर तो में तुझे मना नहीं करूगां । वो हमारा घर नहीं है तु क्युं नहीं समझ रही है । बच्चें तबतक बच्चें है जबतक उनके सर पर उनके हात नहीं पहुंचती है । एकबार पहुंचजाये तो वो बडे हो जाते हैं । अब वो बडे हो गये हैं । अपना काम वो खुद कर सकते हैं । उनको हमारी जरुरत अब नहीं है और नाही हमारी स्नेह, श्रद्धा की आबश्यकता है उन्हे । अब वो वही करेगें जो उनको ठीक् लगे । तो फिर यहां हमारा क्या काम् है । मुझे लगता है अब हमे यहां से जाना होगा ।
TO BE CONTINUE.........
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