Karmaa - 6 in Hindi Adventure Stories by Sushma Tiwari books and stories PDF | कर्मा - 6 - दिस इज़ वन वे रोड

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कर्मा - 6 - दिस इज़ वन वे रोड

दिस इज़ वन वे रोड...
(गतांक से आगे)

दूसरे दिन जब सिद्धार्थ चंदन के साथ कॉलेज पहुंचा तो उसका मन भटकते हुए पिछली रात में अटका हुआ था। आरती का नया अवतार देखकर वह सच में हैरान था। अब उसे मन हो रहा था कि वह बार-बार ऐसे ही पार्टियों में जाए आरती के साथ। जिंदगी कितनी मजेदार होगी। तभी चंदन ले उसकी तंद्रा तोड़ते हुए कहा

"अच्छा एक बात बता सच्ची! कोई बात तो है.. तू आजकल खोया खोया रहता है.. देख मैं जानता हूं तू आरती को पसंद करता है पर मेरे भाई क्या वह भी तुझे उतना ही पसंद करती है? पहले देख ले.. आजकल कुछ भरोसा नहीं होता.. जरूरत के हिसाब से चलते हैं रिश्ते "

" नहीं चंदन! मैं जानता हूं वह भी मुझे पसंद करती है और मैं अभी इस वक्त सिर्फ इतने से ही खुश रहना चाहता हूं कि वह मुझे पसंद करती है। और ये ना तो हमारी सेटल होने की कोई उम्र है और ना ही मैं किसी लायक हूं तो आगे की सोच भी कैसे सकता हूं कि वह मेरे साथ पूरी उम्र बिताना चाहती है? तू बता अभी हम एक कॉलेज स्टूडेंट है.. क्या है हमारे पास? भला कोई लड़की कैसे तय कर सकती है वह हमारे साथ जिंदगी बिताना चाहेंगी? "

" मतलब तू कहना चाहता है की रिश्तो का भविष्य रोजगार और पैसे तय करते हैं? "

" देख तू मान या ना मान हकीकत तो यहीं है ना.. प्यार तो जरूरी है पर उससे पहले भविष्य के सुरक्षा की गारंटी भी चेक करनी पड़ती है मेरे भाई . प्यार से पेट नहीं भरता... अभी मैं इतना जानता हूं आरती और मैं अच्छे दोस्त हैं और एक दूसरे को पसंद करते हैं.. जैसे तू मेरा दोस्त है तुझे तो मैं ताउम्र कभी नहीं छोड़ने वाला और आरती का फैसला आरती पर छोड़ दिया "

" हाय रे मेरे मजनू.. मेरे लाइफ इंश्योरेंस पॉलिसी.. चलो ठीक ही है फिलहाल पढ़ाई पर ध्यान देते हैं "
चंदन चुटकी लेता है।
तभी सिद्धार्थ की नजर अंकित और उसके दोस्तों पर पड़ती है जो कैंटीन की ओर जा रहे थे। सिद्धार्थ ने कोशिश की ताकि उनसे नजरे चुरा सके पर अंकित उन्हें देख चुका था और हाथ से रुकने का इशारा कर वहां चला आया।

" और सिद्धार्थ! कल रात मजा आया? "

सिद्धार्थ अंकित के इस सवाल से सकपका गया। बीती रात के बारे में उसने चंदन से आधा सच ही तो बताया था। चंदन सिद्धार्थ को घूरने लगा।
"असल में सिद्धार्थ तुम्हारे जाने के बाद असली पार्टी शुरू हुई थी.. तुम बहुत जल्दी निकल गए.. एक काम करो कैंटीन में आ जाओ क्योंकि मैंने तुम्हारे बारे में बिग बॉस के आदमियों से बात की है। उन्हें तुम्हारा प्रोफाइल बहुत पसंद आया। आओ बैठ कर बात करते हैं.. अरे चंदन तुम भी आओ "

चंदन घूरती हुई नजरों से सिद्धार्थ को देखता है और फिर अंकित के तरफ देख कर कहता है
" हां हां भाई क्यों नहीं.. हम भी तो जाने मिस्टर सिद्धू के कितने बड़े-बड़े कांटेक्ट्स है "

अंकित के साथ-साथ सिद्धू और चंदन कैंटीन की ओर बढ़ जाते हैं। आज प्रिया अबसेंट रहने वाली थी और आरती पता नहीं क्यों अभी तक आई नहीं थी। कैंटीन में जाकर अंकित ने एक टेबल की तरफ इशारा का किया जहां पहले से दो तीन लड़के बैठे थे। सिद्धार्थ और चंदन भी वही जाकर ज्वाइन हो जाते हैं।

" सिद्धार्थ! मैं तुम्हें बताना चाहता था तुम्हारा जो गेम प्रिडिक्शन है कमाल का है.. तुम खेलते भी अच्छा हो और उसमें कोई शक नहीं है और इसी वजह से तुम्हारा प्रेडिक्शन इतना अच्छा है.. मैंने बिग बॉस के लोगों से बात की वह चाहते हैं कि तुम अपने इस गुण का सही जगह प्रयोग करो.. और जैसा कि तुमने कल कहा था यह कानूनन सही नहीं है तो यहां मेरे पास तुम्हारे लिए एक ऑफर है.. तुम कुछ मत करो बस जैसे गेम देखते हो वैसे ही देखो.. तुम्हारा नाम इस्तेमाल नहीं होगा.. ना चेहरा.. बादशाह नाम से खेलों.. हां जरूरी प्रिडिक्शंस हमें बता दिया करो.. अगर हम हारे तो तुम्हारा कुछ नहीं जाएगा पर यार कोशिश करना ऐसा ना हो.. हा हा हा.. और अगर हम जीते तो तुम्हारा हिस्सा पक्का "

चंदन ने धीरे से सिद्धार्थ के कान में कहा

" क्या फर्क पड़ता है? क्रिकेट के टाइम पर दिन भर बैठ कर तू फालतू की प्रिडक्शन ही तो करता है.. इनको बता दिया कर अगर शेयर मिलता है तो क्या चला जाएगा भाई.. पैसे रहेंगे तो थोड़ी ऐश हो जाएगी.. वरना मेरे घरवाले तो मोबाइल रिचार्ज पर भी चार सवाल खड़े करते हैं.."
सिद्धार्थ ने चंदन को हल्के से परे झटका दिया।

" पर अंकित भाई अभी एग्जाम का समय है और डिस्ट्रैक्शन बढ़ जाएगा "

" अरे पढ़ाई का टाइम अलग है वैसे भी तो तुम उसमें से समय निकालकर मैच तो देखते ही हो.. बस मैं तुमसे हूं तुम्हारा उतना ही समय मांग रहा हूं.. आगे तुम्हारी मर्जी कोई जबरदस्ती नहीं है.. हां इतना याद रखना बिना पैसे लगाए इस गेम में किसी को जल्दी उतरने का मौका नहीं मिलता.. वह तो मैंने तुम्हारी तारीफ की है इस वजह से तुम्हें यह सुनहरा मौका मिला है.. आगे तुम देख लो तुम्हारी मर्जी "
कहकर बाकी लड़कों के साथ अंकित भी वहां से बाय कहकर चला गया।
। सिद्धार्थ सोच में पड़ गया क्या करें क्या ना करें इन सब सोच से बाहर निकल कर पहले उसने आरती को फोन लगाया। आरती ने फोन नहीं उठाया। ऐसा क्या हो गया? कहीं कल रात की वजह से कोई परेशानी तो नहीं हो गई? कहीं उसकी मां को कुछ पता तो नहीं चल गया? शायद डांट पड़ी हो.. फिर भी फोन तो उठा ही सकती है। क्लास के लिए लेट हो रहा था तो सिद्धार्थ आरती को बस एक टेक्स्ट मैसेज डाल कर छोड़ देता है
'ऑल ओके? कॉल मी बैक'
सिद्धार्थ शाम तक इंतजार करता है पर फिर भी आरती का कोई जवाब नहीं आता है। उसे थोड़ा अजीब लगता है पर वह फैसला करता है की सब्र रखेगा और आरती के जवाब का इंतजार करेगा। वैसे उसका मन तो हो रहा था कि उड़कर उसके घर पहुंच जाए यह देखने की आखिर मामला क्या है? थोड़ी देर में मोबाइल पर एक मेसेज आता है जिस पर लिखा होता है " कल बात करेंगे"
सिद्धार्थ के सांस में सांस आती है। चलो यह तो कंफर्म हुआ कि वह नाराज नहीं है। तभी उसके मोबाइल पर एक मैसेज और फ्लैश होता है यह मैसेज अंकित का था
" क्या सोचा एक बार ट्राई तो करो.. तुम्हारा कुछ नहीं जाएगा सच.. बिलिव मी "
चंदन के बार-बार प्रेशर देने पर अंकित मान जाता है। आज का मैच जो कि डे नाइट मैच था सिद्धार्थ चंदन के घर पर रहकर देखने का फैसला करता है।
" यार मेरी मम्मी मार डालेगी.. एग्जाम टाइम में तू मेरे यहां टीवी देखने आएगा "

" तो जब तू ने कहा है कि ट्राई करते हैं तो थोड़ा रिस्क भी उठा.. मौज तो हम इकट्ठे करेंगे ना.."

" तू समझता नहीं है कैसे करेंगे?"

" टेंशन मत ले कुछ जुगाड़ करता हूं "
सिद्धार्थ अंकित से अपनी प्रॉब्लम बताता है तो अंकित उसे ऑफर करता है कि वह उसके कमरे पर आ जाए जहां वो और उसके दोस्त शाम को एक साथ मैच देखने वाले हैं। सिद्धार्थ और अंकित अपने-अपने घरों से एक दूसरे के घर जाकर पढ़ाई करने का बहाना बनाकर अंकित के घर चले जाते हैं। उस शाम सिद्धार्थ सब कुछ भूल कर क्रिकेट के उस मैच में पूरी तरह डूब जाता है। उसे अपने पापा नहीं याद आते.. उसे मां नहीं याद आती.. ना ही उसे आरती का ख्याल आ रहा है.. यह नोटों का नशा भी नहीं था.. यह चंदन के कहने पर भी नहीं था.. जो भी था वह पूरी तरह से डूब चुका था। हां अंकित और उसके दोस्तों सही नाम दिया था सिद्धार्थ को बादशाह! पहले ही गेम में सारे के सारे प्रेडिक्शन सही निकले और एक भारी जीत के साथ उस कमरे में जश्न का माहौल था। एक शाम में है करीब लाख रुपए बिना कुछ किए अंकित के जेब में थे।
वाह मेरी पहली कमाई नहीं.. यह मेरी मेहनत की कमाई नहीं है इसीलिए मैं चाह कर भी मां से नहीं बता सकता.. और मैंने कोई गलत काम भी तो नहीं किया सिर्फ मैच देखा है.. अपनी प्रिडिक्शंस बताइए.. क्या होगा.. क्या नहीं होगा.. पर मैंने कोई पैसे नहीं लगाया है फिर फिर यह पैसे लेने का सही होंगे? "
चंदन ने कोनी से ठोक कर उसे विचारों से बाहर निकाला।

" चल चलते हैं "
अंकित ने कहा कि उसके जीते हुए पैसे उसे कल दे देगा। सिद्धार्थ और चंदन अपने अपने घर चले गए। अगले दिन सुबह कॉलेज के बाहरी अंकित ने अपने बैग से पैसों का बंडल निकालकर सिद्धार्थ को दे दिया। सिद्धार्थ ने पहले तो आनाकानी की तब तक चंदन ने बंडल लेकर अपने बैग में रखें।
" चल तुझे यह पाप लगता है ना.. तेरे पापों का बोझ मैं ढो लूँगा.. ठीक है?"
सिद्धार्थ ने सिर हिला दिया।

" तेरी मर्जी! वैसे भी यह पैसे मैंने तेरे कहने पर ही कमाए है तो तेरे लिए.."

"अरे वाह इतना बड़ा दिल.. आज तो पार्टी करेंगे "
वह अंदर जाकर देखते हैं कि प्रिया और आरती उनका इंतजार कर रही है। सिद्धार्थ लगभग दौड़ते हुए जाता है।
" आरती कहां थी तुम?"
"कुछ नहीं यार मॉम की तबीयत ठीक नहीं थी सांस लेने में भी तकलीफ हो रही है.. कल बस उन्हीं के पास बैठी थी.. पता नहीं कैसे क्या होगा एग्जाम भी सर पर है.. उस पर मॉम की तबीयत. मैं कैसे मैनेज करूं?"

आरती भावुक हो रही थी।

" तुम मॉम के लिए नर्स क्यों नहीं रख देती हो "

" सिद्धार्थ आर यू मैड? तुम्हें पता भी है नर्स कितना चार्ज करती है? हम नहीं अफोर्ड कर सकते.. मेरी कॉलेज का फीस.. हमारे घर का रेंट हम वही बड़ी मुश्किल अफोर्ड करते हैं और तुमने नर्स की बात कर रहे हो " आरती लगभग बिफर पड़ी।

" ठीक है ठीक है.. पर अभी जब तक एग्जाम नहीं हो जाते हैं तुम एक नर्स का इंतजाम कर लो.. पैसे.. पैसे मैं दे दूंगा"
" तुम पागल हो? मैं तुमसे पैसे लूंगी और मॉम से क्या कहूंगी.. तुम भी सच बिना सोचे ही बोलते हो "
" नहीं सच है मेरे पास पैसे है "
" अच्छा और तुम क्या कहोगे अपनी मॉम से? यह पैसे तुम किस लिए उनसे?
" मैं मॉम से पैसे नहीं ले रहा हूं.. तुम टेंशन मत लो"
चंदन से इशारा करता है और बैग से पचास हजार निकालकर आरती को दे देता है।

"इतने सारे पैसे"
आरती की आंखें फैल जाती है और वह फुसफुसाते हुए बोलती है
" आए कहां से?"

"वह तुम छोड़ दो.. समझो जैसे लॉटरी लगी और कुछ नहीं.. तुम अपनी मम्मी से बोल देना कि कोई एनजीओ संस्था है जो नर्स प्रोवाइड कराती है.. आगे हम बात कर लेंगे उनसे ताकि वह तुम्हारी मम्मी के सामने कुछ बताये।"
बीते दिनों के अंदर अंकित का प्रभाव था या जाने कौन सी काली छाया.. सिद्धार्थ अब झूठ बोलते समय लड़खड़ा नहीं रहा था।

" ठीक है.. वैसे भी मेरे पास कोई ऑप्शन नहीं है.. मैं यह पैसे लौटा दूंगी पर सच अगर मैंने कोई मदद नहीं ली तो मैं शायद एग्जाम नहीं दे पाऊंगी "
कहते हुए आरती को पैसे रख लेती है।
शाम को कॉलेज के बाद पिक्चर देखने का प्लान बनता है ताकि परीक्षाओं के पहले वह अपने दिमाग को थोड़ा हल्का रख सकें। चारों दोस्त पिक्चर देखने जाते हैं उसके। बाद खाते पीते मौज मस्ती करते हुए अपने घर को लौट जाते हैं।
घर पर मां सिद्धार्थ को देखती है उसके चेहरे पर अलग ही रौनक दिखाई देती है। वह हमेशा खुश रहने लगा है। मां को यह देखकर अच्छा लगता है पर उसकी उम्र देख कर मन ही मन डरती थी है कि कहीं कोई चक्कर ना हो। फिर भी अपनों के चेहरे पर खुशी देखने के लिए उसने अपनी जिंदगी में जाने कितने समझौते कर लिए थे तो फिर बच्चे के चेहरे की खुशी उसे बुरी कैसे लगती? आज तो और अजीब बात हुई सिद्धार्थ जब घर पर लौटा तो जसपाल घर पर ही था और सिद्धार्थ ने उससे अच्छे से बातचीत की.. अपनी पढ़ाई के बारे में और आने वाले एग्जाम के बारे में भी बताया। फिर वह सोने चला गया।
सुबह जब सिद्धार्थ कॉलेज पहुंचा तो चंदन और प्रिया पहले से ही कैंटीन में बैठे हुए थे। काफी इंतजार करने के बाद भी जब आरती नहीं आई तो सिद्धार्थ से फोन लगाया।

" आरती सब ठीक तो है?"
पर उधर से सिर्फ और सिर्फ रोने की आवाज आ रही थी। सिद्धार्थ घबरा गया

" आरती तुम कुछ बोलती क्यों नहीं?"

आरती से रोए जा रही थी।
" सिद्धार्थ.. सिद्धार्थ मॉम.....

क्रमशः

©सुषमा तिवारी