Ek Kissa Bhi Esa Tha in Hindi Fiction Stories by Suresh Pawar books and stories PDF | एक किस्सा भी ऐसा था

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एक किस्सा भी ऐसा था

ये उन दिनों की बात है जब में हवाओं से बातें किया करता था। किसी के खयालो में खोया रहता था। उसी के पीछे पागल हुआ करता था। वो होती थी तब भी उससे बातें होती थी और जब वो नही होती थी तब भी उससे बातें होती थी। कुछ कहानी ऐसी भी हुआ करती थी।

ये उस दिन की बात है जिस दिन मै उसे मिलने के लिए बैचेन था। क्युकि बहुत दिनों से मिले नही थे। सोचा उसे अचानक मिलकर चौका दूंगा। वो भी सूरत में रहती थी और मै भी सूरत में रहता था। लेकिन वो अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने वलसाड जाती थी। यानी ट्रेन में अप डाउन करती थी। मैने सोचा कि उसे वलसाड जा कर मिलुगा तो मुझे वहा देखकर बहुत खुश होगी और हम दोनों वहा घूमेंगे और साथ में टाइम स्पेंड करेंगे।

फ़िर दूसरे दिन मै सुबह जल्दी उठकर तैयार हो गया और रेल्वे स्टेशन के लिए रवाना हो गया। लेकिन उन दिनों भी और आज भी एक आदत मेरी गंधी थी बस मुझे भूलने की बीमारी हुआ करती थी। उस दिन मैं अपना पर्स घर ही भूल आया। उस समय मेरे घर से स्टेशन का रिक्षा भाड़ा कुछ १५ रू. हुआ करता था। जैसे स्टेशन आया, मै रिक्षा से उतरा और भाड़ा देने के लिए पर्स चैक किया तो पता चला कि मै तो पर्स घर पर ही भूल आया। तब मै सोच में पड़ गया कि अब क्या करे? लेकिन हमेशा मेरी जेब में छुट्टे पैसे हुआ करते थे। उस दिन भी थे। लेकिन जितना भाडा हुआ था बस उतने ही पैसे थे यानी १५ रु. । अब मैने भाड़ा तो दे दिया अब जेब में एक फूटी कौड़ी नही थी। मै सोच में पड़ गया कि अब क्या करू? मुझे उसे मिलने की बैचेनी बहुत थी। अब चाहे जो भी हो जाये उसे मिलना ही है ऐसी मेरी ज़िद थी। बहुत सोचने के बाद दिमाग लगाया कि यहाँ से बिना टिकट ट्रेन में सफर कर लेता हूँ। वैसे भी २ घंटे का तो सफ़र है। फ़िर वहा वो मिल जायेगी तो बाकी का सारा खर्चा वो देख लेगी। तभी स्टेशन पर एक वलसाड जाने वाली ट्रेन आई। मै बढ़ी हिम्मत करके उस ट्रेन में चड़ गया। ट्रेन अपने रास्ते आगे बढ़ी। जैसे ट्रेन आगे बढ़ी वैसे ही मेरी दिल की धड़कने भी तेज बढ़ने लगी। लेकिन समझ नही आ रहा था कि धड़कने उससे मिलने की खुशी में तेज हो रही है या कही टीसी से टकरा ना जाऊ उस के डर से। डर तो काफी था। वैसे सफर में टीसी नही मिला। फ़िर वलसाड स्टेशन आ गया। मै करीब ९ बजे के आसपास पहुंचा था।

अब मेरी खुशी काफी तेजी से बढ़ने लगी। मै स्टेशन पर उतरा और स्टेशन पर ही मुह धो लिया। फिर सोचा उसे कॉल करता हूँ। उसे कॉल किया लेकिन उसने फोन नही उठाया। थोड़ी देर बाद मैंने उसे फ़िर कॉल किया उसने तब भी कॉल नही उठाया। मुझे लगा जरूर अपने क्लास में होंगी तभी कॉल नही उठा रही। फ़िर थोड़ी देर उदर ही घुमा। फिर सोचा मेसेज कर देता हूँ। मैंने उसे मेसेज किया और पूछा हाई! कहा हो तुम? उसका जवाब नही आया। लेकिन कुछ देर बाद उसका मेसेज आया। गुड मॉर्निंग! मै तो घर पर हूँ। सब आजु बाजु है इसलिए कॉल नही उठाया। उसका ये जवाब सुनकर तो मै चौक गया। मै सोच में पड़ गया कि इसे तो यहाँ वलसाड में अपनी कॉलेज में होना चाहिए लेकिन ये अपने घर सूरत में क्या कर रही है? फ़िर मैंने उसे फिरसे मेसेज किया और पूछा क्यु आज कॉलेज नही गई। तो उसका जवाब आया। अरे आज कैसे कॉलेज जाऊ! आज तो सन्डे है। आज तो छुट्टी है ना। ये सुनकर मेरा तो दिल ही बैठ गया मैंने तुरंत अपने फोन में देखा तो वहा पर सच में सन्डे था। ये देखकर मेरा तो दिल ही टूट गया। मेरा तो पोपट हो गया। मुझे तो पता ही नही था उस दिन सन्डे है। फिर उसका मेसेज आया क्यु तुम कहाँ हो? मै सोचा अब इसको क्या बोलू? मैंने सोचा अगर सच बताऊंगा तो बैजती हो जायेगी। तो मैंने उसे बोला मै तो घर पर ही हूँ। अभी जस्ट उठा। उसने हसके जवाब दिया। हा हा हा हा, बहुत आलसी हो तुम यार। सुबह जल्दी उठना चाहिए। फ़िर उसका और एक मेसेज आया कि सुबह सुबह मुझे बहुत काम होते है। मै काम खत्म करके तुमसे बात करती हूँ। मेरे पास हाँ कहने के सिवाय कोई रास्ता ही नही था। मैंने उसे हाँ कहाँ और वही स्टेशन पर बैठे गया। फ़िर मै सोच में पड़ गया कि सूरत से यहाँ तो बिना टिकट के आ गया। लेकिन अब वापस जाऊ कैसे? क्या भरोसा उस बार बच गया इस बार ना बचु। मेरे पास तो एक रुपिया भी नही था। और उन दिनों डिजिटल पैमेंट सिस्टम भी नही थी और नाही मेरे पास एटीएम कार्ड था। अब तो ऐसी हालत थी कि घर तो जाना है लेकिन कैसे जाऊ? ये सबसे बड़ा सवाल था। तभी घर से फोन आया। मम्मी पूछ रही थी कि कहा है? मैंने कहा मै तो अपने दोस्त के घर हूँ। फ़िर उन्होंने कहाँ चल ठीक है। अपना जो काम है ख़तम करके घर जल्दी आ। घर के कुछ काम है वो करने है। मैंने भी ठीक है कहकर कॉल काट दिया। कुछ देर बाद वहाँ एक सूरत की और जाने वाली ट्रेन आई। मुझे मन में हो रहा थी कि इस ट्रेन में बैठू कि नही बैठू, बैठू कि नही बैठू। जैसे ही ट्रेन रवाना होने लगी मै जल्दी से उठा और फटाफट ट्रेन में चढ़ गया। मेरा नसीब तो देखो मै चढ़ा तो आखिर किस डब्बे में? रेज़रवेशन वाले डब्बे में। अब फ़िर मुसीबत गले पड़ गई। अब तो आने से ज्यादा जाने का डर लग रहा था। बैठने के लिए तो जगा नही थी। मुझे खडा ही रहना पड़ा था। कुछ देर बाद देखा तो आगे से टीसी आ रहा था। अब फ़िर से डर का माहौल छा गया था। फिर से मै सोच में पड़ गया कि अब करू तो क्या करू? फ़िर मै टीसी से बचकर ट्रेन के वॉशरूम में छुप गया। तकरीबन कुछ डेढ़ घंटे निकालने के बाद मै वॉशरूम से बाहर आया। बाहर आकर फिर वही खडा रहा। थोड़ी देर बाद उधना स्टेशन आया। मै ट्रेन से उतरा। जब स्टेशन से बाहर आया तब जाकर मुझे थोड़ी शांती मिली।

अब पैसे तो नही थे तब बहुत से लोगो को फोन लगाने के बाद मेरे एक अंकल मुझे लेने आने के लिए तैयार हुए। लेकिन तब तक मै काफी चल चुका था। स्टेशन से उधना तीन रस्ता पहुंच चुका था। फिर अंकल से मिला उन्होंने घर तक छोड़ा। मैंने कुछ ना करते हुए सीधा सो गया। थोड़ी देर बाद उठा तो कुछ मेसेज आये हुए थे। मैंने चैक किया तो उसी के मेसेज थे। लिखा था कि क्या हुआ तेरी तबियत खराब है क्या? आज सुबह से कुछ बात नही हुई। बिना बात किये ऐसा एक दिन नही जाता और आज बस सुबह ही बात हुई थी। फ़िर मैंने उसे जवाब दिया हा थोड़ी तबियत खराब थी तो आराम कर रहा था। उसका तुरंत जवाब आया। अरे तबियत खराब है! बताया भी नही। चलो कोई नही। एक काम कर शाम को घर पर आजा। तेरी तबियत ठीक कर देती हूँ। ये सुनकर मेरी ऐसी ही तबियत अच्छी हो चुकी थी। शाम तो हो चुकी थी। मै फटाफट तैयार हो गया। उसके लिए चॉकलेट खरीदी। फ़िर उसके घर गया। जाते ही वो मेरे गले से लिपट गई। सच में उसकी उस जप्पी में एक जादू सा था। जैसे ही उसने मुझे हग किया मेरी सारी तकलीफे दूर हो गई। सुबह से जो कुछ भी सहा था, जो दर्द था, जो डर था, जो कुछ भी परेशानी थी वो एक पल में दूर हो गई। सच में कुछ जादू सा हुआ था। मतलब कि सुबह से मैंने जो महेनत की थी उसका फल आखिर में मुझे मिल ही गया। लेकिन फल इतना मीठा होगा कभी सोचा ना था। एक वो दिन था और आज का ये दिन। वो कही और है और मै कही और। अब वो जादू की जप्पी मेरे नसीब कहा। लेकिन उन दिनों जो मैंने बेवकूफी की थी आज याद करके हसी आती है और साथ उसकी याद भी ताजी हो जाती है। चलो छोड़ो चलता रहता है ज़िंदगी है। "जो पहले हमेशा खुश रहेता एक दिल का हिस्सा भी ऐसा था, जो आपने मेरा सुना एक किस्सा भी ऐसा था। "


THE END