अंक - पंद्रह/१५
डॉक्टर अविनाश का उनकी प्रतिष्ठा के विरुद्ध निराधार औैर विचार-विमर्श के विरोधाभास औैर एकदम बेसिरपैर जैसे निवेदन से शेखर के भीतर के निष्क्रिय शंकास्पद विचारों ने शेषनाग के जैसे फन फैलाए। औैर डॉक्टर अविनाश की ओर से अचानक ही कोर्इ सुनियोजित षड़यंत्र का मायाजाल बिछाया हो, ऐसा कहकर को भीतर से आभास होने लगा तो अपने असली मिजाज में आते हुए बोला,
'सॉरी सर लेकिन अगर आप अभी किसी मज़ाक करने के मुड़ मेें हो तो प्लीज़ स्टॉप इट। कहां तो कितने दिन रात की बहुत सारी असहनीय मानसिक अत्याचारों से मुश्किल से गुजरकर इस स्टेज तक आए हैं। अभी हम दोनों मेें से किसी मेें भी अब कोर्इ भी सस्पेंस को डाइजेस्ट करने का स्टेमिना नहीं है। इसलिए प्लीज़ अब...'
अपने आक्रोश को काबू में लेकर शेखर आगे बोलता हुआ अटक गया।
'मुझे लग रहा है कि मेरा दिमाग फट जायेगा।'आलोक बोला।
अब शेखर संयम की सीमारेखा क्रॉस करने की तैयारी के साथ बोला,
'माफ़ कीजिए डॉक्टर अविनाश लेकिन उस आधी रात को अचानक ही आपके घर बुलाकर जब शर्तों की ढाल आगे करके अदिती को हाज़िर करने की जिस तरह कहानी रची थी उसी घड़ी से ही मेरे दिमाग में आपकी फुलप्रूफ रणनीति के लिए शंका का बीज पनप गया था। लेकिन पहली ही रात से अदिती का आलोक के प्रति सशक्त समर्पण ने शंका के उस बीज को जड़ से उखाड़ फेका था। लेकिन अब आज फ़िर से आपके इस नंगे सत्य निवेदन से तो सिर्फ़ कहानी के पात्र ही नहीं लेकिन पूरी कहानी का छेद ही उड़ गया ऐसा लगता है, सॉरी डॉक्टर।'
अभी डॉक्टर अविनाश जवाब देने जाए तभी... संजना ने हाथ के इशारे से बोलते हुए रोका और खड़ी होकर बोली..
'डॉक्टर अविनाश ने जाे कहा वाे सनातन सत्य है। औैर मै उसकी साक्षी हूं।'
ऐसे एकदम स्पष्ट औैर धमाकेदार निवेदन से एक ओर धमाका होते ही फ़िर से एक बार अति आश्चर्यचकित कर देने वाले ऐसे असंख्य अविरत प्रश्न चिन्हों की लंबी कतार आलोक औैर शेखर के चेहरे पर घूमने लगी।
'संजना अब तुम.. तुम भी अब मज़ाक करोगी? येे.. येे समय मज़ाक करने का नहीं है.. औैर तुम...'
थोड़ी देर चुप रहने के बाद.. आंखें बड़ी करके औैर आश्चर्य के साथ..
'ओह हाे हो... तो तो अब इसका मतलब ये होता है कि तुम्हें भी इस परदे के पीछे खेले जा रहे नाटक के स्क्रिप्ट के बारे में पहले से ही पता था ऐसा ही है न।' आलोक बोला।
बस इतना आलोक बोला लेकिन उसके आवाज़ में कोर्इ ठोस दृढ़ता नहीं थी। स्वर के तीव्रता पर संदेह की मजबूत पकड़ थी। पिछले काफ़ी समय से आंख मिचौली की तरह खेले जा रहे खेल के किसी नए दांवपेच के शिकार होने की सम्भावना के संकेत का अनुमान लगाते हुए फ़िर से बोला,
'अदिती, फ़िर से मेरी याददाश्त का पारा नीचे गिरकर शून्य अवकाश पैदा हो उससे पहले मेरी समझ में आए ऐसा प्रत्युत्तर दोगी? प्लीज़, औैर मेरे सामने तुम्हें झूठ बोलने की ऐसी तो क्या ज़रूरत पड़ गई? या फ़िर पहले ही दिन से किसी मास्टर प्लान गेम का मुझे हिस्सा बनाया है? कब से चल रहा है येे षड़यंत्र? किसके इशारे पर औैर क्यूं? औैर अब अभी येे क्या खेल चल रहा है कोर्इ बतायेगा मुझे? व्हाय?'
ओह.. अब मेरी समझ में आ रहा है कि तुमने अपना पता या कॉन्टेक्ट नंबर मुझे क्यूं नहीं दिया। मुझे इस तरह कष्ट देकर परेशान करने के लिए ही न? लेकिन क्या मिला तुम्हें? औैर मेरे पास क्या है भी क्या? तुमने मज़ाक में रखी हुई तुम्हारी शर्त को गंभीर ता से लक्ष्यभेद के भार के जैसे ढोकर खुद दर बदर भटकता रहा.. सर्वस्व के साथ स्व खो देने की हद तक पहुंच गया औैर तुम....? औैर तुम्हें जब मेरी हालत की गंभीरता का पता चला तो मेरे इलाज के बहाने तुम अपनी उस भूल पर परदा डालने के लिए तुम इस तरह अनजान बनकर फ़िर से एक बार तुमने अपनी शर्तों ब्रह्मास्त्र चलाया, ऐसा ही है न? व्हाय? अब मुझे शेखर के एक एक शब्द याद आ रहे है। शेखर सही था। लेकिन मैं अंधा थर।'
काफ़ी समय से मानसिक यातना सह रहे आलोक के सामने अचानक एक गहरे रहस्य जैसे हाे रहे विस्फोट से उन्मत होकर उग्रता से हताश होकर अदिती के ऊपर प्रश्नों की झड़ी बरसाते हुए अंत में बोला,
'लेकिन आज तुम्हें सब के सामने सच औैर सिर्फ़ सच बोलना ही पड़ेगा।
आलोक ने पूछे हुए बेतरतीब सवालों से अपमानित हुए जैसा अनुभव महसूस करने के बाद भी अपने गुस्से को नियंत्रण में रखकर शांत स्वर में डॉक्टर अविनाश बोले,
'आप दोनों को नहीं लग रहा कि आप दोनोंने, सिक्के के दूसरे ओर की सच्चाई औैर हकीकत को जानने की या समझने की जरा भी दरकार समझी या बिना धैर्य रखे ही सवालों से ज्यादा तो आरोप लगाए हैं?? औैर मि. आलोक औैर अभी थोड़े ही समय पहले जिस व्यक्ति को आप अपना सर्वस्व मान रहे थे उसे आपने कुछ बोलने का मौका दिए बिना ही कुछ ही क्षणों में सज़ा का हकदार ठहरा दिया।' इतना बोलकर थोड़ी देर के लिए चुप हो गए।
बाद में बोले..
'लेकिन अब तुम दोनों अपने आप को संभाल लेना क्योंकि.... नंगा सच तुम लोगों के कान के परदे चीर देगा।'
'आप लोगों सच ही सुनना है न कि क्यूं येे षड़यंत्र रचा गया? तो अब ध्यान से सच सुनो मि. आलोक औैर शेखर आप भी।'
डॉक्टर अविनाश ने अदिती की ओर इशारा किया औैर उसके साथ.. कहानी की शुरुआत हुईं....
२९ अप्रैल। ब्ल्यू मून रेस्टोरेंट।
जहां से आलोक औैर अदिती दोनों अलग हुए थे बाद में उसके बाद की घटनाक्रम का भंवर।
अदिती को अहमदाबाद एयरपोर्ट पर से सुबह की फ्लाइट में जाने का था इसलिए १:३० बजे निर्धारित समय पर पहले से बुक की हुई कार में निकलकर रवाना हो गई। अभी एयरपोर्ट पहुंचने से ३० मिनट पहले ही एयरलाइंस का मैसेज आ गया कि फ्लाईट कैंसल हाे गई है। इसलिए तुरन्त ही सोचा कि सब से पहले जाे ट्रेन मिले उसमें मुंबई चली जाऊंगी। ऑनलाइन खोजबीन करके टिकट बुक करी। स्टेशन आकर ट्रेन की सीट पर बैठकर समय देखा। सुबह के ५:३५ । सबसे पहले स्वाति को कॉल किया।
सुबह सुबह की गहरी नींद में से पलक झपक के मुश्किल से खुली आंखों को मलते मलते स्वाति ने कॉल रिसीव किया तो अदिती बोली,
'हाय.. गुड मॉर्निंग माय स्वीट स्वीट डार्लिग।' बड़ी बड़ी जम्हाइयां लेते हुए स्वाति ने पूछा। गहरी नींद में से बड़ी मुश्किल से आंख खोलकर फोन रिसीव करते हुए स्वाति बोली,
'गुड मॉर्निंग की बच्ची... येे कोर्इ टाईम है, कॉल करने क? क्यूं तुम्हारी वाे प्राइवेट.... मीटिंग खतम हो गई ऐसा?'
'हा.. हा,, हा.. ओए बस बस अब डॉन्ट बी ओवर स्मार्ट समझी। प्राइवेट मिन्स प्राइवेट समझी चम्पू। कोर्इ मिल गया था... सरे राह चलते चलते.. आलोक नाम है उसका'
'कौन आलोक?'
'वो आमने सामने मिलकर डिटेल में कहूंगी.. लिटिल इंटरेस्टिंग।'
'सुनो फ्लाइट कैंसिल हो गई है। मैं बाय ट्रेन आ रही हूं। चलो तुम सो जाओ। मैं मॉम डैड के साथ बात कर लूं ओ. के. बाय।'
मन ही मन गुस्सा होकर स्वाति फ़िर से सो गई।
कॉल कनेक्ट टु पापा विक्रम मजुमदार एट ऑस्ट्रेलिया...
'हाई पापा.. अदिती हीयर। हाऊ आर माय हीरो?'
'आई एम टोटली फीट एंड फाइन माय नोटी डार्लिग, हाऊ आर यू?'
'आई एम टु गुड एंड सो हैप्पी, पापा।'
'पापा, जस्ट कमिंग फ्रॉम बड़ौदा। फ्लाइट कैंसिल हो गई इसलिए बाय ट्रेन जा रही हूं। १२:३० बजे तक मुंबई पहुंच जाऊंगी। ममा क्या कर रही है? ममा को फोन दीजिए।'
'हाईइइईईईई.... माय स्वीट स्वीट स्वीट स्वीट ममा, कैसे हो आप?'
'सब ठीक है बस, एक तुम्हारी कमी है यहां।'
'ओए येे तो मेरा डायलॉग है ममा, सेम हीयर।'
'ममा, अब कब आ रहे हो इंडिया?'
'तुम कोई सरप्राइज दो तब।'
'ओह.. रियली? तब तो अब मुझे सही में कुछ सीरियसली सोचना पड़ेगा.. ममा समझ लो आपके लिए बीग सरप्राइज के प्लानिंग में हूं।'
'ओह.. इट्स गुड न्यूज़ फॉर अस। और कितना वेट करना है, बेटा?'
'आई थिंक ज़्यादा से ज़्यादा वन वीक।'
'आई कांट बिलीव अदिती।'
'ममा, पापा को फ़ोन दीजिए।'
'पापा मैं कल दिल्ली जाने के लिए निकल रही हूं। वहां का सब शेड्यूल प्लानिंग के मुताबिक हो गया है न?'
'ओ यस बेटा। एवरीथिंग हेज़ बीन अरेंज्ड अकॉर्डिंग टु धी कन्वर्सेशन। नथिंग टु वरी, ओ. के.'
'ओ. के. पापा बाय मिस यू।'
'ओ. के. बेटा लव यू। बाय एंड टेक केर।'
मजुमदार दंपति की संपत्ति यानि अदिती और स्वाति। ईश्वर ने दोनों बेटियों के रूप में मजुमदार परिवार को नाम, दाम, ऐश्वर्य, कीर्ति और गौरव जैसे बिन मांगे वरदान आशीर्वाद से निरंतर नवाजा था।
३० अप्रैल समय रात के ९:१५ स्वाति की अनुपस्थिति में दोपहर को घर आकर कुछ ही मिनटों में लगातार ५ घण्टे की गहरी नींद लेने के बाद, पिछली रात की यात्रा और जागने से हुई थकान से पूर्ण रूप से फ्रेश होने के लिए बाथ लेकर अभी ड्रॉईंग रूम में अाई तभी डोर बेल बजी।
डोर ओपन करते ही सामने स्वाति को देखते ही, 'माय चीकूउउउउ,,,,,,,,,,,,,,,.'
बोलकर स्वाति को अपने दोनों हाथों से जकड़कर दरवाजे पर ही थोड़ी देर खड़ी रह गई।
'ओए.. पागल मुझे अंदर तो आने दो यार। आजकल सही में तुम आतंकवादी हो गई हो।' मीठे गुस्से के साथ ड्रॉईंग में जाते जाते स्वाति बोली।
'कुबूल मेरे सरकार। तुम्हारा गुस्सा भी मुझे मोती चूर के लड्डू जैसा लगता है। मेरे लिए तुम्हारे इस गुस्से का कब से इन्तज़ार कर रही हूं मेरी डार्लिंग।'
'स्वाति देखो मैंने डिनर में तुम्हारे लिए तुम्हारी फेवरेट डीश बनाई है। ओह सॉरी... ऑर्डर करके मंगवाई है। देखो सुनो, मकाई, टोमैटो और पालख का सूप, पनीर मसूर पराठा, पनीर मखनी की सब्ज़ी, राजमा करी, मिंटी पनीर बिरियानी। अब बोलो।
'लेकिन मेरी मां, इट्स टु मच? कौन खाएगा इतना सारा यार?'
'कौन कितना खाएगा वाे इंपॉर्टेंट नहीं है, किसके साथ खाएगा वाे इंपॉर्टेंट है, समझ में आया।'
'येे खाना नहीं, मेरा प्यार है, चलो अब फटाफट फ्रेश होकर डाइनिंग टेबल पर आओ तो।'
अदिती ने सर्व करी हुई डीश में से एक के बाद एक व्यंजनों का स्वाद लेती हुई स्वाति को, अदिती बस अपलक देखती ही रही। येे देखकर स्वाति बोली, 'क्या देख रही हो?'
'स्वाति, क्या कहूं तुम्हें?
मेरी परछाईं को देखूं, या मेरे मौन की गूंज की दोष सिद्धि करूं, मेरे शितदंश के विकल्प का मूल्यांकन करूं, या फ़िर ट्रंप कार्ड जैसे मेरे आधार के पहचान कार्ड की प्रतिलिपि का कौन सी भाषा में अनुवाद करूं? सच कहूं, अगर तुम लड़का होती तो मैं तुमसे ही शादी कर लेने वाली थी।'
हा.. हा.. हा.. दोनों खूब हंसे।
'लेकिन अदिती, आई केन सी.. कुछ बदले बदले से नज़र आते है सरकार मेरे, माजरा क्या है?'
'हम्ममम.. कुछ ऐसा ही समझो।'
'यानि..?' आश्चर्य से स्वाति ने पूछा।
'मैंने तुम्हें ट्रेन में से अर्ली मॉर्निंग कॉल किया तब मैं...'
'हां, हां.. याद आया। आई थिंक तुमने किसी आलोक के नाम का ज़िक्र किया था तो.. वो क्या है उसका? इश्क वाला लव। हम्मम.. ऐसा कुछ है कि.. कुछ ऐसा आधाअधूरा आड़ातिरछा अदिती बोली।
'ओए अदिती टॉक क्लीयरली ऐसी पज़ल जैसी लैंग्वेज में मुझसे बात मत करो हां।'
'अरे यार स्वाति, मैं खुद दुविधा में फंसी हुई हूं। न इधर न उधर जैसी बात है, तो क्या कहूं? सुनो मैं सुबह दिल्ली जा रही हूं। मेरे एन. जी. ओ. के न्यू प्रोजेक्ट के लिए। करीब तीन दिन वहां रुकना पड़ेगा। वहां से आकर बाद में आराम से डीटेल्स में डिस्कस करेंगे।'
'देखो अदि, जहां तक मैं तुम्हें जितना पहचानती हूं वहां तक तुम किसके प्यार में नहीं पड़ने वाली और अगर पड़ी तो भी इतनी जल्दी भी नहीं पड़ेगी। और मेरी परमिशन के बिना तो १००% नहीं पड़ने वाली।'
'ओहो.. स्वाति खुदा से भी ज्यादा तुम खुद मुझे बहुत अच्छी तरह पहचानती हो और मुझ पर मुझसे ज्यादा तुम्हारा हक है। मैंने आलोक को क्या बोला था पता है..? कि ईश्वर मुझे पूछे कि अगले जनम में तुम्हें क्या बनना है.. तो मैं एक सेकंड की भी देरी किए बगैर बोलूंगी कि.. स्वाति की बहन।'
'ओहो.. अदि.. अब आ..लो..क.. तो कुछ विशेष बला लग रही है मुझे।'
कौन है? कहां से है? कैसा है? कुछ कहोगी अब?'
'कहूंगी सब बस थोड़ा इंतजार का मज़ा लीजिए.. सब्र का फल मीठा होता है जानी'
'हां, पर औैर ज़्यादा सब्र से तो फल भी इतने मीठे हो जायेंगे कि डायबिटीस हो जायेगा तो... हा.. हा... हा.. ओए ध्यान रखना हा.. फाइनल एप्रूवल के बाद ही तुम्हारी गाड़ी आगे चलेगी, नहीं तो...'
'स्वाति लेकिन मान लो कि शायद.. चलो जाने दो। मैं दिल्ली से आऊ तब बात।'
'क्या बात है अदि,? कहां खो गई?'
'ना स्वाति, खो जाने जैसा कुछ भी नहीं है लेकिन.. मैं भी चाह रही हूं कि फाइनल डिसीजन तुम ही लो। ज़िन्दगी में कोर्इ भी भ्रम की स्थिति हाे या चुनौतीपूर्ण डेरे पर जहां तुम या मैं दोनों कहीं न कहीं कोर्इ बाधा या दुविधा में अटकने के बाद दोनों के संतुलित मनोमंथन के बाद जाे कोर्इ संयुक्त निर्णय पर हमने जब भी सम्मति की महोर लगाई है तब हारी हुई बाज़ी को भी जीत मेें तब्दील किया है। आज शायद मैं ज़िन्दगी के ऐसे मुकाम पर हूं कि जब आज मुझे तुम्हारी सब से ज़्यादा ज़रूरत है। स्वाति आज मै खुश हूं लेकिन, पता नहीं क्यूं मुझे अंदर से कोर्इ अनजाना छुपा हुआ डर सता रहा है... मैं हमेशा के लिए कुछ खोने जा रही हूं।'
इतना बोलते हुए अदिती को थोड़ा अस्वस्थ होते देखकर स्वाति उसके गले लगकर बोली..
'अदि प्लीज़, मैंने ज़िन्दगी पहली बार तुम्हें इतना नर्वस होते देखा है। व्हाट हेप्पन यार? ऐसी कौनसी बात है जाे तुम मेरे साथ शेर करने के लिए इतना हिचकिचा रही हो? रिलैक्स।'
'ना स्वाति, ऐसा कुछ भी लेकिन पता नहीं कोर्इ अनजाना सा डर मुझे सता रहा है इसलिए ऐसा फील हाे रहा है कि.. कुछ मेरे साथ बुरा होने जा रहा है।'
'क्या अदि यार तुम भी.. चलो फॉरगेट ऑल धीस नॉनसेंस थिंकिंग। बी हैप्पी।'
'अच्छा स्वाति, ठीक है चल अब मैं मेरे दिल्ली टूर की प्रिपरेशन कर लूं क्योंकि मुझे सुबह में ही निकलना है।'
स्वाति के अदिती हमेशा से इनसिक्योर फील करती तो सामने स्वाति भी वैसा ही भाव का अनुभव करती। दोनो अरस परस एक दूसरे के पर्याय थे। दोनों एक दूसरे के अभिप्राय या परिचय किसीको भी आंख मूंदकर दे सकते थे।
१ मई समय सुबह की ६:३० की फ्लाइट में अदिती मुंबई से दिल्ली जाने के लिए रवाना हुईं।
दिल्ली एयरपोर्ट से निकलकर ठीक १०:३० बजे होटल पर अाई, चेक इन करके अपने रूम में आकर, पहले फटाफट फ्रेश हुई। इस प्रोजेक्ट को लेकर अदिती बहुत ही एक्साइट थी। प्रोजेक्ट के साथ जुड़े हुए उसके बाकी के मेम्बर्स के साथ निरंतर कॉल्स औैर मेल्स से फॉलोअप औैर इंस्ट्रक्शन देने के काम में लग गई। ऑस्ट्रेलिया से आए हुए ग्रुप के साथ १२:३० बजे मीटिंग का टाइम था तो होटल मैनेजमेंट से मीटिंग अरेंजमेंट की डीटेल्स लेने के बाद भी उसे ऐसा लगा कि कांफ्रेंस हॉल में खुद जाकर एक बार फाइनल कनफर्मेशन का ऑब्जर्वेशन कर लूं। लेकिन उससे पहले एक अच्छी सी कॉफी पीने की तीव्र इच्छा थी इसलिए ग्राउंड फ्लोर पर स्थित रेस्टोरेंट में बैठकर पीने का सोचकर १४ वे फ्लोर पर से लिफ्ट में एंटर हुई औैर ग्राउंड फ्लोर का बटन प्रेस करते ही....
एकदम से अभी कुछ समझ आए उससे पहले तो ज़ोर से बहते हुए झरने के माफिक लिफ़्ट टूटकर सीधी बेसमेंट में आकर एक ऐसे जोरों के धमाके के साथ गिरी की होटल के अंदर के लोगों मेें भूकंप या कोर्इ बॉम्ब ब्लास्ट होने जैसा डर फैल गया। जोरों की आवाज़ के साथ इमरजेंसी सायरन के आवाज़ की चीखों के बीच सीसीटीवी कंट्रोल रूम के स्टाफ औैर सिक्योरिटी गार्ड्स के काफ़िले ने बेसमेंट की ओर दौड़ लगाई।
सिर्फ़ ३ मिनिट्स मेें निरंतर सायरन के आवाज करती अत्याधुनिक इमरजेंसी इक्विपमेंट से लेस एम्बुलेंस बेसमेंट में गिरी हुई लिफ्ट के डोर के पास खड़ी हो गई लेकिन... लिफ्ट का डोर लिफ्ट मेनटेनेंस स्टाफ के बिना ओपन करना नामुमकिन था। होटल मैनेजमेंट के इंटेलिजेंट स्टाफ की तीव्र बुद्धि और विनम्र सहयोगात्मक सूझबूझ से एक सेकंड गंवाएं बिना चारों दिशाओं में दौड़कर अपनी अपनी सचोट व्यूहरचना से सिर्फ़ २० मिनिट्स मेें शहर की टॉप मोस्ट हॉस्पिटल के हाईली इमरजेंसी ट्रीटमेंट लेवल बेझ से सज्ज ऑपरेशन थियेटर तक अदिती को ले जाने में सफ़ल रहे। एक्सपर्ट डॉक्टरों की टीम बुरी तरह से इजाग्रस्त अदिती को सब से पहले हो सके उतनी जल्दी से अति गंभीर सिचुएशन में से बाहर निकालने की कोशिश कर रहे थे।
अधिक मात्रा में खून बह गया था, मल्टी ऑर्गेंस की इंजरी होते हुए भी ऐसी अधिक पीड़ा से पीड़ित परिस्थिति में भी अदिती ने डॉक्टर को इशारा करके कहने की कोशिश करी कि, मुझे काग़ज़ औैर पेन दीजिए, इसलिए जल्दी से अदिती को काग़ज़ औैर पेन दिए गए.. खून से सने हाथ से बड़ी मुश्किल से अदिती काग़ज़ पर अपना वाक्य पूरा करने जाए उससे पहले आधे लिखे हुए वाक्य के साथ अदिती पर बेहोशी छा गई औैर पेन उसके हाथ में से....
आगे अगले अंक में.....
© विजय रावल
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