अरे दौरियो बचाईयो।
स्वतंत्र कुमार सक्सेना
अरे दौरियो बचाईयो। ओ पनबेसुर।।
कक्कू का घर गिर गया था दो तीन दिन की घनघोर वर्षा का आज यह परिणाम था । सारे मोहल्ले वाले दौड़े कक्कू तथा नाईन कक्को दोनों बाहर सिर पकड़े बैठे थे।
राम किशन सोता रह गया था उसे गम्भीर चोट आई थी जल्दी ही अस्पताल भेजा गया।
दो-तीन दिन बाद रहस्य खुला यह मकान कक्कू के चाचा का था जो रियासत के समय के एक अच्छे नाई थे। रईसों की बैठकों में उठक-बैठक थी कहा जाता था कि उन्होंने धन घर में गाड़ रखा है। जनवा (ओझा) के अनुसार कक्कू ने कजली लगवाई घर का कोना-कोना खोदा गया पर धन न मला । जनवा (ओझा) के अनुसार धन सरक गया था।
जनवा के कहने पर कक्कू ने एक रात फिर पूजा दी। काले कुत्ते को डेढ़ पाव जलेबी खिलाई पोंछा पुचकारा। पर बुरा हो देवता का, रमटोले पंडित जी ने ज्यों ही उसे पकड़ा उसने उनके गाल पर पंजा मार दिया । उनकी इकलौती आंख जैसे- तैसे बची कक्कू की बांह पर काट खाया।
भागते समय कक्को की लड़की गिर पड़ी । सर से खून बहने लगा तथा मटके फूट गए। कक्को ने महाकाली का रूप धर लिया। रमटोले पंडित जी जल्दी में भागते समय नीम की जड़ से टकरा कर गिर पड़े पैर में मोच आ गई।
सुबह कक्कू अस्पताल पहुंचे । मोहल्ले वालों ने बताया- कक्कू। सरजू मोते कौ लरका कुत्ता काटे से ई मरो हतो।
कक्कू के पेट में चौदह दिन तक सुई ठूंसी जाती रही, कुछ दिन के लिए उन्होंने कान पकड़ लिए।
एक दिन कक्कू को रमचन्ना माते ने बताया- कक्कू। बड़े पोंचे भये महात्मा आए, भूतन के महावीरन पै विराजे, मोरी भैंस तो ऐसे बता दई जैसे सजीवन देख रये होवें, जां कई उतईं मिली तुम दर्शन तो करियो।
कक्कू रात को बड़ी मुश्किल से सो सके, बड़े सबेरे ही जा पहुंचे । करीब पंद्रह दिन तक कक्कू ने महाराज जी की रबड़ी और गांजे की चिलम से सेवा की। महात्मा जी कुछ पिघले बाले- बच्चा। वैसे तो अब मैं किसी गृहस्थ के घर जाता नहीं पर तू ने बहुत सेवा की प्रभु इच्छा, राम भला करे।
अत: अमावस्या की रात को महाराज जी ने पूजा की सबको चरणामृत दिया स्वयं भी ध्यान मग्न हो गए। सुबह जब कक्कू की आंख खुली तो महात्मा जी अंर्तध्यान हो गए थे। बाकी सब लोग भी खुर्राटे भर रहे थे जब कक्कू ने झंझकोरा तब उठे।
बक्से का ताला टूटा था पैजना व गजरे गायब थे। कक्को हताशा में जोर से रो पड़ी श्शाम तक हल्ला रहा कक्को उसी दिन मायके चली गईं।
कक्कू स्थान गए। पुलिस में रपट लिखाई ।हवलदार करनैल सिंह को सौ रूपए नजर किये पर फिर कभी महाराज जी प्रगट न हुए तो न हुए।
कक्कू कुछ दिन बुझे-बुझे से रहे। एक दिन लंगड़े महाराज ने उन्हें आश्वासन दे दिया कि फिकर करने की कोई जरूरत नहीं मेरी कराई पूजा कभी खाली नहीं गई वो तो तुमने कभी कही नहीं, पूजा तो मैं करदूं पर एक समस्या है एक क्वांरी कन्या की आवश्यकता पड़ेगी।
कक्कू ने झनकुआ माते की कन्या मन्टोला से मित्रता का प्रयास किया वह उनसे गाना सीखने आती थी। पर जाने देवता की क्या करनी हुई कि ठीक पूजा के एक दिन पहले मन्टोला गायब हो गई। बात ये थी कि कक्कू ने झनकुआ से कहा था मन्टो को भेज देना, वह भेज कर निश्चिंत था । पर जब रात तक न लौटी तो झनकुआ आ धमका। कक्कू बोले- नहीं आई झनकुआ ।
झनकुआ बोला --आई है ।
सारा घर देखा गया आस पड़ोस तलाशे गए तब पता चला कि कक्कू का बेटा रमसैंया भी गायब है।
मोहल्ले वालों के बीच में पड़ने से मुश्किल से कक्कू की जान बची वरना झनकुआ के भाई और बेटे कक्कू की अच्छी तरह पूरी सेवा को तैयार थे केवल झूमा-झटकी ही हो पाई।
कक्कू से ज्यादा लंगड़े महाराज की। तीसरी टांग जो उनके डंडे व टेढ़ी टांग के अलावा थी, अंगद का पांव बनी थी । बांह पर भी हल्दी चूना चढ़ा था पीठ सिंकवा रहे थे।
कक्कू जब सुबह मिलने पहुंचे तो बोले- ‘अरे मेरा शनि इस समय कुछ तेज है अब स्वयं की तो परोहताई होती नहीं वैसे मैंने बड़ों-बड़ों का शनीचर उतार दिया है।‘
वैसे झनकुआ से लंगड़े महाराज की दुश्मनी कोई नई नहीं थी। जब झनकुआ के बड़े भैया जुगुनुआ की पत्नी पाटकन के पुरा वारी भौजाई के चलाव (गौने) के तीन साल बाद तक कोई संतान न हुई तो उसने कारी बऊ को दिखाया । लुखरियां खाईं लोटन गड़रिया से बंदेज करवाया, पर जब फल प्राप्ति न हुई तो एक दिन लंगड़े महाराज की शरण में ग्रह राशि योग पूंछने आई।
महाराज ने उसे तीन दिन बाद आने को कहा- विशेश पूजा की बात है मातेन तुम बिना काऊ सें कयें आईयो।‘
महाराज ने अपनी पौर में पूजा प्रारंभ की किसी की बुरी नजर न लगे इसलिए किवाड़ लगा लिए ।
इसी तरह कई किश्तों में पूजा के समय पंद्रह लोग आ गए किवाड़ों पर ठोकरें पड़ी महाराज मंत्र जाप पर थे। कैसे बोलते ?
परंतु वे गंवार धर्म और देवता को कया जाने ?
तीन लोग छप्पर पर चढ़ कर आंगन में कूंदे मातेन तथा महाराज की मंत्रोच्चार के साथ जम कर पूजा हुई। परसू गड़रिया ने बहुत प्रयास किया पर चूंकि पूजा भंग हो गई थी।
महाराज पर देवता का श्राप पड़ा और वे महावीर जैसे हो गए। अब भी यदि कोई बच्चा या बूढ़ा उन्हें देखते ही जय टेढ़ी टांग वारे की कह कर प्रणाम करे तो वे आर्शीवचनों की अजस्न श्रंखला चालू कर देते हैं।
झनकुआ ने कक्कू की पुलिस में रिपोर्ट कर दी। लंगड़े महाराज चाह कर भी ज्यादा मदद न कर सके। कक्कू की दुकान बन्द हो गई । उन्होंने सारा फर्नीचर और औजार राम प्रसाद को बेच कर और दो बीघा खेत गिरवी रख कर रूपए इकट्ठे कर वकील साहब ने
जैसे तैसे मामला मकान की दीवाल उठा कर छप्पर डाल लें । पर कक्कू से जब वकील साहब ने कहा- मकान मकान तौ बन जै है?
उन्होंने जवाब दिया- ‘अरे वकील साहब।‘ मकान तौ बन जै है, लुगाई मायकें भग गई, लरका गैल धर गओ अब मकान कौ का करने, हम काल पीर बाबा लौं गए ते सो उनने जा ताबीज दई हमने सौ रूपैया उनकी नजर करे पांच सांई जिबाए, आज सबेरे हमजे तीस रूपैया के टिकट ल्याये लॉटरी के सो अब जा रये पीर बाबा सें फुकवा ल्यावें देखे राम चाहे तो जे ई दिना न रै हें।‘
00000
सवित्री सेवा आश्रम तहसील रोड़
डबरा (जिला-ग्वालियर) मध्यप्रदेश
9617392373