आलेख--
वर्तमान पत्रकारिता एवं उसकी चुनौतियाँ
-आर. एन. सुनगरया,
यह विषयक शीर्षक बहुत ही समसामयिक, सटीक तथा सार्थक है। पत्रकारिता के क्षेत्र में ‘’वर्तमान् पत्रकारिता एवं उसकी चुनौतियॉं’’ पर बहुत ही गम्भीरता से मंथन, मनन, चिन्तन तथा परस्पर वाद-विवाद तर्क-वितर्क आत्मावलोकन कर, पैनी दृष्टि से यह ज्ञात किया जाये कि आज पत्रकारिता किन चुनौतियों का सामना कर रही है! कहीं यह चुनौतियॉं पत्रकारिता के मूल स्वरूप, मुख्य उद्धेश्य को खण्डित तो नहीं कर रही हैं, पत्रकारिता को निगल तो नहीं रही हैं। ऐसी ही सारी बाधाओं पर विचार करने का समय आ गया है।
सम्पूर्ण दूषित होने से पूर्व हमें कुछ विशिष्ट यत्न करने होंगे। दीमग लगने के बाद चिकित्सा करना कठिन हो जाता है। भूमण्डलीयकरण के पश्चात् अति-संवेदनशील जन-संचार तंत्र में पत्रकारिता अपने अनेक नये-नये स्वरूप में हमारे जन-मानस में शामिल होकर, उसने हमें अपनी गिरफ्त में लेकर, इतना सम्मोहित कर लिया है कि हम अपनी प्रत्येक जरूरत के लिये इसी पर अवलम्बित हो गये हैं। वह जो दिखाती है, समझाती है, हमें अपने हित-अनहित, जैसे क्या खाना है, क्या पहनना है। क्या देखना है। इत्यादि-इत्यादि। हमारी पूरी जीवन पद्धति उसके अधीन हो गई है। हम अपनी तरफ से कुछ अपना आगा-पीछा सोचना ही नहीं चाहते। सबके सब भेड़ चाल की तरह बहे जा रहे हैं।
पत्रकारिता के प्रारम्भिक दौर में प्रिन्ट मीडिया यानि समाचार-पत्र ही हुआ करता था, जिसका उद्धेश्य सूचना देना, सूचना का विश्लेषण करना और सूचना पर जनमत को दिशा देना था। पाठक वगैर इसके अन्दर कर्त्तव्य-बोध को विकसित करना। सरकार की तानाशाही, कमियॉं, विसंगतियॉं, कुरीतियॉं प्रत्येक समाज विरोधी प्रवृतियों को उजागर करना तथा उनको सुधारवादी दृष्टिकोण से जोड़ना इसके साथ ही, अनेक संस्कार संस्कृति, नैतिक मूल्य, परस्पर भाई-चारा तथा हर्षोल्लास को समाज में विकसित करना। आदि-आदि।
इन सब विशिष्टताओं के कारण समाचार-पत्र विश्वसनीय होकर हर पाठक की जीवनशैली का एक अहम हिस्सा बन गया था।
समाचार-पत्र की लागत विक्रय मूल्य से बहुत अधिक होती है। मात्र विज्ञापन ही किसी समाचार पत्र की निरन्तरता को बनाए रखने का माध्यम है।
चूँकि आज विज्ञापन एक उद्धयोग के रूप में स्थापित हो चुका है, जो मुख्यत: लाभ हानि पर ध्यान देता है। अपना हित-चाहने के लिये उद्योग किसी भी हद तक जाता है। उसे समाज सेवा समाज चेतना जैसी प्रवृतियों से सरोकार नहीं रहता।
सम्भवत: यहीं से समाचार-पत्र को अकाट्य चुनौती मिली है, जिससे जूझने के लिये, अपना अस्तित्व बनाये रखने के लिये।
समझौते के कठोर धरातल पर खरा उतरता है। फिर वह विज्ञापन के लिये घुटने टेक देता है। ये सब करते-करते वर्तमान् में पत्रकारिता ने भी एक उद्योग का रूप धारण् कर लिया है।
अब विषय विशेषज्ञ सम्पादक के स्थान पर मालिक अथवा मालिक का प्रतिनिधि नियुक्त होता है, जो अपने कारोबार को नफा-नुकसान की दृष्टि से देखते हुये आगे बढ़ाता है।
पत्रकारिता की दूसरी चुनौती पैड न्यूज बनी। पर्दे के पीछे कोई भी साहूकार अपने मन मुताविक फायदे का माहौल बनाने हेतु मीडिया का उपयोग करता है। गुपचुप प्रायोजित करके।
एक और चुनौती आजकल जीवन्त दैत्य के रूप में अपना मिशन अज्ञातवास से चला रही है, कि सारे मीडिया को ही खरीदकर हाईजैक कर लो एवं उसका उपयोग करके सम्पूर्ण वातावरण ही अपने अनुकूल अपने पाले में कर लो तथा सत्तासुख का भोग करो।
ऐसी ही और अनेक दृश्य-अदृश्य चुनौतियों ने वर्तमान पत्रकारिता को बन्धक बना लिया है। इस कारण पत्रकारिता का मूल उद्धेश्य कहीं गुम हो गया है। एवं आज विशुद्ध रूप में पत्रकारिता उद्योग का स्वरूप ले चुकी है।
स्वतंत्रता के पूर्व से वर्तमान् तक पत्रकारिता ने अनेक उतार-चढ़ाव देखे हैं। पत्रकारिता का विकास उत्तरोत्तर होता रहा है। इसका प्रमुख कारण पाठक के एक बड़े वर्ग का अपने प्रिय समाचार-पत्र के सामग्री की गुणात्मकता, विविधता, विशिष्टता, रूचि, जिज्ञासा, घटनाओं, विशेष व्यक्तिओं, चर्चित स्थानों, प्राकृतिक सुन्दरता, चित्र-विचित्र वस्तुओं आदि-आदि के मानवीय एवं संवेदनात्मक पक्षों के प्रति विश्वसनीयता ही निरन्तर जुड़े रहने का आधार है।
समर्पित पाठक ही वह मंजिल है, जिस तक पहुँचने के लिये समाचार-पत्र को संचालन व प्रकाशन का नेटवर्क काम करता है। उसकी उत्सुकता बनाये रखकर, उसे (पाठक को) अवगत कराया जा सकता है कि किस तरह लागत व लाभ पूरा करने के लिये समाचार पत्र को लाचार होकर अपनी रीति-नीति में परिवर्तन करना पड़ता है एवं किस तरह लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कमजोर एवं अपने सिद्धान्त, धर्म-कर्म कर्तव्य से दिग्भ्रमित होता है।
मुख्य कड़ी पाठक ही आपका साथ देगा, तो कोई समाचार-पत्र अपने तेवर निखार सकता है। बुराईयों पर वार कर सकता है। अपने उद्धेश्य के प्रति सच्ची निष्ठा से कार्यशील रहते हुये शक्तिशाली स्तम्भ की भॉंति दृढ़ खड़ा रह सकता है।
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