Vengeance - 9 in Hindi Fiction Stories by Ashish Dalal books and stories PDF | प्रतिशोध - 9

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प्रतिशोध - 9

(९)

माफी चाहता हूं श्रेया । आज बेवजह मेरी वजह से तुम सारा दिन परेशान रही । एक्चुली मैं ऑफ व्हाइट शर्ट और ब्लू जींस पहनकर घर से निकला था लेकिन बीच रास्ते में एक कार वाले ने कीचड़ उड़ाकर मेरा शर्ट गन्दा कर दिया और मुझे वापस घर जाकर कपड़े बदलने पड़े । डोन्ट वरी ! मैं खुद कल तुम्हारी डेस्क पर आकर तुमसें मिलता हूं ।

‘यू ब्लडीफुल ।’ पत्र पढ़कर श्रेया गुस्से से तमतमा उठी । सारा दिन करण सर और परेश पर शंका करते हुए परेशान होते हुए वह ठीक से काम में अपना मन न लगा सकी और अब फिर से एक और पत्र पाकर वह झुंझला उठी । 

घर पहुंचते हुए पूरे रास्ते वह परेशान रही । सोते, जागते, खाते, उठते, बैठते वह पत्र के अलावा कुछ सोच ही नहीं पा रही थी । 

अगले दिन सुबह सुबह ही करण श्रेया की डेस्क के पास से गुजरा और उसे अन्दर अपने केबिन में आने के लिए कहते हुए केबिन में चले गए । श्रेया उनके पीछे पीछे अन्दर केबिन में दाखिल हुई ।

‘श्रेया ! क्या है ये ?’ कुछ पेपर्स श्रेया के सामने रखते हुए करण ने सख्ताई से उससे पूछा ।

‘कल जो कोटेशन मैंने बनायें थे वो है, सर ।’ श्रेया ने उन पेपर्स पर नजर डालते हुए जवाब दिया ।

‘वेरी गुड ! हमारें एक प्रोडक्ट की प्राइस क्या है श्रेया ?’ करण ने पूछा ।

‘जी ... दस हजार ।’ श्रेया समझ नहीं पा रही थी कि करण उससे इस तरह के सवाल क्यों कर रहा है ।

‘और ये वाला कोटेशन तुमनें कितने प्रोडक्ट्स का बनाया ?’ करण ने एक पेपर उसके आगे करते हुए पूछा ।

‘जी दस ।’ श्रेया ने उस पेपर पर सरसरी नजर डाली ।

‘क्या कर रही हो श्रेया ? दस हजार के दस प्रोड्क्स का कोटेशन केवल दस हजार ! अपनी सैलरी में से डिस्काउंट दे रही हो क्या ?’ करण झुंझलाते हुए बोला ।

श्रेया ने एक बार फिर से अपना बनाया हुआ कोटेशन ध्यान से देखा । 

‘सॉरी सर ! वो एक जीरो की गलती हो गई ।’ श्रेया ने कोटेशन में बतायी गई कुल कीमत पर नजर डाली और अपनी गलती स्वीकार करते हुए बोली ।

‘जीरो इटसेल्फ डज नोट हेव एनी वैल्यू बट इट बिकम्स वैल्यूएबल व्हेन पुट टू गेदर विथ एनी नम्बर । डू यू अंडरस्टेण्ड इट ?’ करण ने श्रेया की तरफ देखते हुए जोर से कहा ।

‘जी सर ।’ श्रेया ने नीची नजरें किए हुए जवाब दिया ।

‘देखो श्रेया ! तुम तकलीफ में थी तब तक तुम्हारी की गई कुछ भूलों को इग्नोर करता रहा लेकिन अब क्या है ? कल अगर तुम्हारा बनाया यह कोटेशन परेश से वेरीफाई न करवाया होता तो क्लाइंट के सामने कम्पनी की रेपुटेशन ही खराब कर दी होती तुमने ।’ करण बोले जा रहा था और श्रेया चुपचाप सुने जा रही थी ।

‘श्रेया, लाइफ में परफेक्ट कोई नहीं होता । अपनी परेशानियों के साथ लाइफ को मैनेज करना सीखों । तुम अब अगर इस तरह की गलतियां करती रही तो तुम्हारी जॉब जा सकती है ।’ करण ने श्रेया को समझाते हुए छुपे शब्दों में धमकी देते हुए कहा ।

‘सॉरी सर ! आगे से ऐसा नहीं होगा ।’ श्रेया ने कहा और करण का इशारा पाकर वह वहां से बाहर आ गई ।

अभी वह अपनी डेस्क पर आकर बैठी ही थी कि सुनीता शेखर के साथ उसके पास आई ।

‘श्रेया, शेखर तुमसे कुछ कहना चाहता है ।’ सुनीता ने श्रेया का बिगड़ा हुआ मूड देखकर उससे बात करने का जिम्मा शेखर पर डाल दिया ।

‘तो वह खुद नहीं कह सकता ? तुम्हें उसका रिप्रेजेंटेटिव बनने की क्या जरूरत है ।’ श्रेया ने पानी की बोतल का ढक्कन खोल पानी पीने लगी । तभी अचानक उसने शेखर को घूरा । उसे कल वाले पत्र में लिखी बात याद हो आयी । वह सतर्क हो गई ।

‘बोलो, क्या कहना चाहते हो ?’

‘श्रेया, वो एक्चुली हम सब मिलकर अगले संडे पिकनिक जाने का प्रोग्राम बना रहे है तो उसी सिलसिले में तुम्हारी राय जानना थी ।’ शेखर ने अपनी बात रखी ।

‘अगले संडे मैं फ्री नहीं हूं । मम्मी मनाली से उसी दिन वापस आ रही है ।’ श्रेया ने शेखर की बात टालते हुए जवाब दिया ।

‘कम ऑन श्रेया ! आंटी कोई बच्ची थोड़े ही है । चल न ! तू आएगी तो मुझे भी कंपनी रहेगी ।’ श्रेया की ना सुन सुनीता ने आग्रह किया ।

‘नहीं । मैं नहीं आ पाऊंगी ।’ श्रेया ने फिर से मना कर दिया ।

‘अब जिद न कर । हां कह दे । तू रहेगी तो माहौल बनेगा ।’ सुनीता ने फिर से उसे आग्रह किया ।

‘एक बार मना किया न ! समझ नहीं आता क्या ?’ श्रेया अचानक ही झुंझलाती हुई अपनी जगह से खड़ी हो गई और जोर से चिल्ला उठी । उसकी चीख सुनकर सबकी नजरें उस पर जा टिकी । सुनीता और शेखर श्रेया के बिगड़े हुए तेवर देखकर वहां से चले गए । श्रेया परेशान सी अपना सिर पकड़ कर अपनी जगह पर बैठ गई ।

‘गुड मार्निंग मैडम जी !’ तभी ऑफिस बॉय ने आकर उसकी डेस्क पर चाय का कप रखा । श्रेया ने अपना सिर ऊपर कर उसकी ओर देखा । जवाब में वह मुस्कुरा दिया । 

सारे दिन में छोटे मोटे काम को लेकर कोई न कोई श्रेया के पास आकर उससे बतियाता रहा । हर पुरुष कर्मचारी से बात करते हुए उसके जेहन में पत्र में लिखी गई बात घूमने लगती । हर किसी को अपनी शंका के दायरे में रखते हुए शाम तक उसकी गिनती दस तक पहुंच गई । इसी परेशानी की दशा में ऑफिस छूटने पर वह घर पहुंची लेकिन उसका मूड अभी भी उखड़ा हुआ सा ही था ।

दरवाजा खोल वह अभी घर के अन्दर जा ही रही थी कि चिन्टू दौड़कर उसके पास आकर खड़ा हो गया । श्रेया उसके मासूम चेहरे को देखकर मुस्कुरा दी ।

‘आंटी ! अब आप मुझे चाकलेट लाकर क्यों नहीं देती ?’ चिन्टू बड़ी ही हसरत से श्रेया की तरफ देख रहा था ।

‘अब तू बड़ा हो गया है चिन्टू । वैसे भी ज्यादा चाकलेट खाने से दांत खराब हो जाते है ।’ श्रेया ने उसके कोमल गालों को खींचते हुए जवाब दिया ।

‘नहीं, मैं तो अभी भी चड्डी ही पहनता हूं । तुम्हें पता है नैतिक अंकल कहते थे कि जब मैं पेण्ट पहनना शुरू करूंगा तब ही मैं बड़ा कहलाऊंगा ।’ चिन्टू ने जवाब दिया ।

उसका जवाब सुनकर श्रेया ने अपने पर्स को टटोला और उसमें पड़ी एक चाकलेट चिन्टू को देकर बोली, ‘तू चड्डी में ही अच्छा लगता है । पेण्ट पहनने जितना बड़ा कभी मत होना ।’ 

‘ठीक है आंटी ! थैंक यू ।’ कहते हुए चहककर चिन्टू वहां से भाग गया । 

चिन्टू से क्षणिक की गई बात से श्रेया का मन हल्का हो गया । जैसे ही उसने अपना पैर अन्दर रखा उसकी नजर फर्श पर पड़े एक लिफाफे पर जा टिकी । गुलाबी रंग का लिफाफा देखकर उसके मन पर अवसाद के बादल फिर से मंडराने लगे । नीचे झुककर उसने वह लिफाफा उठाया और फटाफट अन्दर जाकर सोफे पर बैठ कर धड़कते दिल से उसमे रखे पत्र को पढ़ने लगी । 

श्रेया,

आखिर तुम मुझे पहचान नहीं पाई । कोई बात नहीं । तुम भी बहुत परेशान हो गई हो । परेशानी ज्यादा बढ़ने पर इन्सान पागल भी हो जाता है पर तुम चिन्ता मत करों । मैं तुम्हें पागल नहीं होने दूंगा क्योंकि मुझसे भी अब सब्र नहीं होता । तुम कब तक अकेली रहोगी ? ऐसा करते है इस एपिसोड को अब यहीं खत्म कर देते है । रात को डोरबेल बजाऊं तो दरवाजा तो खोलोगी न ?

तुम्हारें इन्तजार में तुम्हारा आशिक ।

पत्र पढ़ते ही श्रेया के मन में एक अनजान सा डर समा गया । आज सुबह सुबह अपनी खुद की गलती की वजह से करण के सामने उसे अपमानित होना पड़ा और उस बात का रोष उसने सुनीता पर निकाला । वह इन्हीं बातों में इतना उलझ चुकी थी कि इन बातों के दायरें के बाहर कुछ सोच ही नहीं पा रही थी । मन में दबाया हुआ गुस्सा अब उसकी विवशता बन उसके दिमाग को काबू में कर रहा था । पत्र पढ़कर वह इतना ज्यादा घबरा गई कि उसने डोरबेल की स्वीच अन्दर से ही बंद कर दी । फिर भी अनजान आशंका के भय से वह सारी रात सो न सकी । 

XXXXX

अगले दो दिनों श्रेया ने गहरी उलझन में बितायें । पत्रों को लेकर पुलिस कम्प्लेन करने का मन भी बनाया उसने लेकिन फिर ऑफिस में पूछताछ के डर और खुद की बदनामी होने से वह हिम्मत न कर सकी । अपनी जिन्दगी की एक छोटी सी घटना को पुलिस तक ले जाकर उसके परिणाम का असर वह बहुत कुछ खोकर भुगत चुकी थी । वैसे भी पिछले दो दिनों से कोई पत्र न आने पर उसकी घबराहट थोड़ी से कम जरुर हुई थी और अनायस ही शुरू हुए इस सिलसिले के आप ही खत्म होने पर वह फिर से अपने काम पर ध्यान लगाने लगी थी ।

आज लंच अवर के बाद अचानक ही करण ने उसे अपने केबिन में बुलाया । श्रेया अपने काम के बारें में सोचती हुई घबराती सी अन्दर दाखिल हुई । वह अपने दिमाग पर जोर डालकर अपनी गलतियों के बारें में सोच ही रही थी कि करण उस पर आगबबूला होते हुए चिल्लाया । 

‘श्रेया, क्या है यह सब ?’ करण ने कुछ पेपर्स श्रेया के सामने फेंकते हुए पूछा ।

श्रेया ने उन पेपर्स पर नजर डाली और डरते हुए जवाब दिया, ‘सर ये इनवाइस मैंने दो दिन पहले बनाकर शाह एण्ड कंपनी को भेजी थी ।’

‘करेक्ट ! लेकिन गलत इनवाइस नहीं भेजी जाती क्लाइंट्स को । ध्यान कहां है आजकल तुम्हारा ? लगभग हर इनवाइस में एक जीरो की भूल है और वह बहुत बड़ी भूल है ।’ करण ने श्रेया को डांटते हुए कहा ।

श्रेया कुछ न बोली । वह सिर झुकाये चुपचाप करण की डांट सुनती रही । 

‘मि. शाह से सम्बन्ध अच्छे है जो उन्होंने भेजी गई इस इनवाइस की गलती की ओर ध्यान दिलाया । कोई और क्लाइंट होता तो ....’ झुंझलाते हुए करण ने अपना सिर पकड़ लिया ।

‘सॉरी सर ।’ श्रेया ने धीमे से कहा ।

‘लुक श्रेया ! ये आखरी वोर्निंग है । अब अगर तुम्हारें काम में इस तरह की गलती निकली तो नौकरी से हाथ धो बैठोगी । नाऊ गो एण्ड डू योअर वर्क ।’ करण ने गुस्से से उसे देखा ।

श्रेया चुपचाप करण की केबिन से बाहर निकल आई और अपनी डेस्क पर आकर अनमनी सी बैठ गई । तभी शेखर उसे उसकी तरफ आता हुआ दिखाई दिया । वह आज ऑफ व्हाइट शर्ट और ब्लू जींस पहने हुए था । उसके हाथ में एक बड़ा सा गुलाबी लिफाफा देखकर श्रेया सतर्क हो गई । शेखर अब तक उसके पास आकर खड़ा हो चुका था ।

‘आय एम सॉरी यार श्रेया....’ शेखर अभी कुछ बोलने जा ही रहा था कि श्रेया ने उसके गाल पर एक करारा तमाचा जड़ दिया । श्रेया की इस हरकत से शेखर सकपका गया । उसके हाथ से वह लिफाफा छूटकर नीचे गिर गया और वह अपने गाल को सहलाने लगा । फ्लोर पर बैठे हुए सारे कर्मचारी एक एककर अपनी जगह पर खड़े हो गए । सभी की नजर श्रेया और शेखर पर जा टिकी । शेखर अपमानित सा अपनी जगह पर खड़ा हुआ था । तभी श्रेया चीखी ।

‘तुम्हारी घटिया हरकतों की वजह से पिछले एक महीने से परेशान हूं मैं । अपना काम ठीक से नहीं कर पा रही हूं । तुम क्या समझते हो अकेली औरत को देखकर उसका फायदा उठा लोगे ।’ 

शेखर ने तिरछी नजरें कर अपने इर्दगिर्द देखा । वहां मौजूद सभी कर्मचारियों की नजर अब शेखर पर टिकी हुई थी ।

शोर सुनकर करण अपने केबिन से बाहर आया ।

‘ये क्या हो रहा है ? श्रेया क्यों चिल्ला रही हो ?’

‘सर, ये शेखर पिछले एक महीने से मुझे अनाम पत्र भेजकर मेरे बारें में वाहियात बातें लिखकर मुझे परेशान कर रहा था । आज रंगे हाथों पकड़ा गया । आज इसे मैं पुलिस के हवाले कर दूंगी ।’ कहते हुए श्रेया मोबाइल से एक नम्बर डॉयल करने लगी ।

‘श्रेया, ये ऑफिस है । तुम्हारा घर नहीं है । तुम दोनों अन्दर केबिन आकर बात करों ।’ करण ने श्रेया और शेखर दोनों से कहा और अपने केबिन में चला गया ।

शेखर ने गुस्से से तिलमिलाते हुए श्रेया को देखा और करण के पीछे अन्दर चला गया ।

‘बात क्या है शेखर ? श्रेया जो कह रही है सच है ?’ करण ने शेखर से पूछा ।

‘सर, वह क्या कहना चाहती है मैं खुद ही नहीं समझ पा रहा हूं ।’

‘होशियार बनने की कोशिश मत करो शेखर ।’ श्रेया ने अन्दर आते हुए शेखर को टोका और आगे बोलने लगी, ‘सर, जिस दिन से मेरा डायवोर्स हुआ उसी दिन से यह मेरे पीछे पड़ गया । लगभग रोज यह एक पत्र में बहुत ही घटिया बातें लिखकर मुझे भेज रहा है । अभी कुछ दिन पहले रात को मेरे घर आकर मेरे अकेलेपन को दूर करने की बात लिख भेजी थी इसने ।’

‘माइंड योअर लेंग्वेज श्रेया । बिना किसी सबूत के तुम मुझ पर इस तरह इल्जाम नहीं लगा सकती ।’ शेखर ने अपना बचाव किया ।

‘सबूत तो तुम आज लेकर आये हो । वो गुलाबी लिफाफा लेकर आकर सॉरी कहना और कौन सा सबूत चाहिए तुम्हें ?’ श्रेया गुस्से से बोले जा रही थी ।

‘शेखर ?’ करण ने शेखर की ओर देखा ।

‘सर, वो गुलाबी लिफाफे में तो ग्रीटिंग कार्ड है । कल अनुपमा का लास्ट वर्किंग डे है तो इस पर श्रेया के सिग्नेचर लेने लाया था । सभी ने अपनी अपनी शुभकामनायें लिख दी थी केवल श्रेया ही बाकी रह गई थी । इसे समय पर बताना रह गया था तो सॉरी कह रहा था लेकिन इसने मेरी पूरी बात सुने बिना ही मुझे चांटा मार दिया ।’ 

शेखर का जवाब सुनकर श्रेया चुप हो गई । वह समझ नहीं पा रही थी कि कैसे उसकी इस बात पर कैसे रिएक्ट करे ।  

‘श्रेया ?’ शेखर की बात सुनकर करण ने श्रेया की ओर देखा ।

‘सॉरी सर ! सॉरी शेखर ! मैंने बिना कुछ जाने बिना ओवर रिएक्ट कर दिया ।’ श्रेया ने कुछ देर चुप रहने के बाद खुद पर शर्मिंदा होते हुए कहा ।

‘यू में गो शेखर ।’ करण के कहने पर शेखर श्रेया को खा जाने वाली नजरों से घूरता हुआ बाहर निकल गया । 

‘देखो श्रेया । अगर सच में ही तुम्हें कोई परेशान कर रहा है तो तुम्हें इसकी कम्प्लेन करनी चाहिए । इस तरह बिना वजह किसी के केरेक्टर पर दोष लगाना ठीक नहीं है ।’ शेखर के केबिन से बाहर निकलते ही करण ने श्रेया को सलाह दी ।

‘जी सर ।’ श्रेया धीमे से बोली । 

‘मैं तुम पर इल्जाम नहीं लगा रहा हूं । मैं समझ सकता हूं तुम्हारी परेशानी । अभी कुछ दिन पहले भी तुमनें सुनीता को सबके सामने इस तरह जलील किया था । तुम्हें इस वक्त किसी अच्छे सायकेट्रिस्ट की जरूरत है । डॉ. मित्रा का नम्बर है यह उन्हें फोन कर अपोइन्टमेंट ले लो और कुछ दिन घर पर रहकर आराम करों । मैं आज से ही तुम्हारी लिव अप्रूव कर रहा हूं ।’ करण ने डॉ. मित्रा का नम्बर देते हुए श्रेया से आगे कहा ।   

‘आय एम ऑल राइट सर ! मुझे किसी डॉक्टर की जरूरत नहीं है ।’ श्रेया ने असहज होते हुए जवाब दिया ।

‘जिन्दगी में अक्सर अचानक से तूफान आने के बाद अक्सर परेशानी की अवस्था में इन्सान ओवर रिएक्ट करने लगता है । शायद तुम डिप्रेशन से गुजर रही हो श्रेया इस वक्त ।’ करण ने श्रेया को समझाने का यत्न किया ।

श्रेया को लगा उसके अन्दर बहुत कुछ टूट गया । वह करण की बात का जवाब दिए बिना उसके केबिन से बाहर निकल आई और किसी से बात किए बिना चुपचाप अपना पर्स अपनी डेस्क से लेकर ऑफिस से बाहर निकल गई ।

इस घटना के बाद अगले दो दिनों तक श्रेया ने अपने आपको घर में ही बंद रखा । एक समय नैतिक के ऊपर लगाये आरोप से उपजे जख्मों का दर्द वह आज खुद महसूस कर पा रही थी । अपनी जिन्दगी की पिछली बातों को याद करते हुए वह अकेले में रो पड़ी । 

दिनभर बिस्तर पर लेटे लेटे श्रेया थक गई थी । उसे कौन और क्यों इस तरह परेशान कर पागल करार देने को पीछे पड़ा है, इस रहस्य को वह समझ नहीं पा रही थी । वह इस बारें में जितना सोचती उतना और ज्यादा परेशान हो उठती । रात को भी नींद उसकी आंखों से कोसो दूर थी । आज रह रहकर उसे नैतिक की याद सता रही थी । उसकी उदासी के पलों को नैतिक अपनी बातों से पल भर में उड़ाकर उसके चेहरे पर मुस्कान बिखेर देता था । सहसा वह उठी और ड्रोअर में से डायवोर्स के बाद नैतिक का लिखा पत्र लेकर बेड पर बैठ गई । एक बार पढ़ लेने के बाद फिर से उसने वह पत्र पढ़ा और फिर टेबल पर रखी नींद की एक गोली अपने मुंह में रखकर पानी पी लिया । काफी देर तक वह छत को ताकते हुए पड़ी रही और फिर नींद की गोली की डिब्बी से खेलते हुए धीमे से बुदबुदायी, ‘कम ऑन श्रेया ! तू कर सकती है ।’