(४)
रात को वन्दना ने याद कर नैतिक की पसन्द की चीजें खाने में बनाई थी । श्रेया ने काफी दिनों से खाली पड़े फ्लावर पॉट में रजनीगंधा के फूलों के बीच दो लाल गुलाब की कलियां सजाकर डाइनिंग टेबल के बीच रख दी थी । फ्लावर डेकोरेशन श्रेया का शौक था लेकिन जिन्दगी की आपाधापी में कब उसका यह शौक पीछे छूट गया वह खुद ही नहीं जान पाई थी । आज वह बहुत खुश लग रही थी । लाईट ग्रीन कलर के सलवार पर काले रंग की चुनरी उसके ऊपर खूब फब रही थी । अपने चौड़े माथे पर उसने काले रंग की छोटी सी बिंदी लगा रखी थी । अपने बालों को उसने खुला ही रख छोड़ा था । डाइनिंग टेबल पर नैतिक श्रेया के सामने बैठा था और नैतिक के पास वन्दना बैठी हुई थी ।
‘तू तो कुछ खा ही नहीं रहा है नैतिक । पसन्द नहीं आया ?’ वन्दना ने नैतिक को चुप बैठे देखकर पूछा ।
‘खाना तो इतना बढ़िया है कि सोच रहा हूं पहले क्या खाऊं ?’ नैतिक जवाब देते हुए मुस्कुरा दिया ।
‘मक्खन लगाना तो कोई तुझसे सीखे । ये भुट्टे का चिवड़ा टेस्ट कर । श्रेया ने खास तेरे लिए बनाया है ।’ कहते हुए वन्दना ने श्रेया की ओर देखा ।
‘अच्छा ! वैसे मेरी इस तरह खातिरदारी क्यों की जा रही है आंटी ? मुझे पता नहीं क्या श्रेया मुश्किल से सब्जी रोटी बना पाती है तो ये भुट्टे का चिवड़ा ....’ कहते हुए नैतिक तिरछी नजरों से श्रेया की तरफ देखकर मुस्कुरा दिया ।
‘समय बदल गया है नैतिक । अब मैं सबकुछ बना लेती हूं ।’ श्रेया ने नैतिक की बात का जवाब मुस्कुराकर ही दिया ।
‘हां वाकई समय बदल गया है पर तुम नहीं बदली हो क्योंकि किसी को भी बना देने में तुम पहले से ही माहिर हो ।’ कहते हुए नैतिक ने चिवड़ा अपने मुंह में डाला, ‘वैसे चिवड़ा बहुत बढ़िया बनाया है तुमने ।’
‘बेटा , ये खीर भी तो खाओ ।’ वन्दना ने आग्रह किया ।
‘खा लूंगा आंटी । आप फार्मेलिटी मत कीजिये ।’ नैतिक अपनी ही धुन में बोल गया । वन्दना नैतिक को देखने लगी । श्रेया की शादी के बाद आज पहली बार वो उसे इस तरह हंसते हुए देख रही थी ।
‘सॉरी ! मैंने कुछ गलत कह दिया क्या ?’ नैतिक ने वन्दना से पूछा ।
‘नहीं बेटा ! तुम लोगों की बचपन की याद आ गई । तुम दोनों लगभग रोज ही इसी तरह इसी डाइनिंग टेबल पर खाना खाते वक्त लड़ते रहते थे और एक दूसरे को मनाते रहते थे ।’
‘बचपन तो हर किसी की लाइफ का गोल्डन पीरियड होता है आंटी । लेकिन फिर बड़े होते ही सबकुछ बदल जाता ।’ नैतिक वन्दना की बात का जवाब देते हुए कुछ उदास हो गया ।
‘बहुत कुछ बदल जाता है पर सबकुछ नहीं बेटे ।’ वन्दना ने गंभीरता से कहा ।
‘मतलब ?’
‘एक बात पूछूं तो बुरा तो नहीं मानेगा ?’ नैतिक के पूछने पर वन्दना ने उसकी कटोरी में खीर डालते हुए पूछा ।
‘बुरा मानूं तो एक थप्पड़ लगा देना । आपका अधिकार है आंटी ।’ जवाब देकर नैतिक हंस दिया ।
‘तू श्रेया को अब भी चाहता है न ?’ वन्दना ने गंभीर होते हुए पूछा ।
वन्दना का सवाल सुनकर यकायक नैतिक गंभीर हो गया और उसकी बात को टालते हुए बोला, ‘ये कैसी बात लेकर बैठ गई आंटी आप ? श्रेया और मैं अच्छे दोस्त है और हमेशा ही रहेंगे ।’
‘मुझे टालने की कोशिश मत कर । मेरी बात का जवाब दे ।’
‘आपकी बात का कोई जवाब मेरे पास हो तो दूं न !’ कहते हुए नैतिक ने श्रेया की तरफ देखा । वह अपनी नजरें नीची झुकायें चुपचाप नैतिक और वन्दना की बातें सुन रही थी ।
‘इन्सान अपनी खुद की गलतियों से ही सीखता है । बहुत कुछ बदलने के बाद अब भी कुछ तो नहीं बदला है और वह है तेरी आंखों में श्रेया को लेकर उतरती चाहत ।’
‘आप भी न आंटी । बहुत ज्यादा ही बोल्ड हो । अपने बच्चों के सामने ऐसी बातें नहीं किया करते ।’ कहते हुए नैतिक ने फिर से हंसने की कोशिश की ।
‘प्रेक्टिकल होकर जीना पड़ता है नैतिक । दो तीन दिन में श्रेया के डायवोर्स पेपर साइन हो जाएंगे ।’ वन्दना ने अपनी बात रखी ।
‘श्रेया ने कल बताया था ।’ नैतिक बोला ।
‘जो तुझे एतराज न हो तो राधिका से बात करूं तेरे और श्रेया के बारें में ।’ वन्दना ने नैतिक के सामने अपने मन की बात अंतत: रख ही दी ।
‘ये क्या कह रही है आंटी आप ?’ वन्दना की बात सुन नैतिक हड़बड़ा उठा । उसके लिए यह सवाल अभी अप्रत्याशित था ।
‘श्रेया ने मुझे सबकुछ बता दिया है । कल जो कुछ भी तुम दोनों के बीच हुआ वह महज एक इत्तफाक न था । कहीं न कहीं तुम दोनों के मन में एक दूसरे के लिए बचपन के साथ पल्लवित हुई वह चाहत अब भी मौजूद है । जिन्दगी जब एक मौका और दे रही है तो उसे पकड़ लो बेटा । मैं नहीं चाहती कि कल को तुम दोनों मिलकर कोई बड़ी गलती कर बैठों और पछताना पड़े ।’ वन्दना ने नैतिक को समझाते हुए कहा ।
‘ओफ्हो मम्मी ! ये कौन सी बात लेकर बैठ गई हो । नैतिक अनकम्फर्टेबल फील कर रहा है ।’ अब तक चुपचाप बैठी श्रेया ने वन्दना की बात पर एतराज जताते हुए कहा ।
‘मैं कुछ गलत कह रही हूं ? जिन्दगी को आसान बनाकर जिओं । बेवजह इसे काम्प्लिकेट बनाकर जीने से समस्याएं बढ़ती ही है । यह बात श्रेया मैंने तुम्हें रोहन का रिश्ता आया था तब भी समझाई थी ।’ वन्दना ने दोनों को बारी बारी देखा । नैतिक की नजरें अब श्रेया से उसके बीते हुए फैसले के बारें में जवाब पाने को उसकी ओर टिकी हुई थी ।
‘आंटी । आप अपनी जगह सही हो सकती है पर ....’
‘श्रेया डायवोर्सी है अब । यही कहना चाहते हो न ?’ नैतिक की बात अधूरी सुन वन्दना ने नैतिक का मन टटोलना चाहा । श्रेया की नजरें अब नैतिक पर टिकी हुई थी ।
‘श्रेया के संग बचपन गुजरा है । उसने मेरे संग क्रिकेट खेला है तो मैंने उसके संग लंगड़ी भी खेली है । मुझसे ज्यादा अच्छी तरह से शायद ही कोई समझ पाएं ।’ नैतिक ने जवाब दिया ।
‘कुछ बातें समय रहते सम्हाल लेना चाहिए । समय बीत जाने पर हाथ से निकल चुकी जिन्दगी वापस नहीं आती ।’
वन्दना की बात सुनकर नैतिक के मन में श्रेया को लेकर छुपी हुई आकंक्षा वापस पल्लवित होने लगी थी ।
‘आंटी ! मुझे इस बारें में सोचने के लिए थोड़ा समय चाहिए । मुझमें आपकी और श्रेया की तरह इंस्टेंट डिसीजन लेने की क्षमता नहीं है ।’ नैतिक ने कहा और हाथ धोने के लिए वॉश बेसिन की तरफ चला गया ।
‘टेक योअर टाइम बेटा ।’ कहते हुए वन्दना का चेहरा खिल उठा ।
अगले दो दिन नैतिक ने डिनर वन्दना और श्रेया के साथ ही लिया और बातों ही बातों में नैतिक और श्रेया के बीच बनी दूरी मिटने लगी । श्रेया स्वभाव से ही थोड़ी सी बिन्दास थी इसलिए अपनी पिछली सारी तकलीफें भूलकर वह नैतिक के साथ नया सफर शुरू करने के सपने संजोने लगी ।
XXXXX
नैतिक अपना फैसला ले चुका था लेकिन अपनी मम्मी को अपने इस निर्णय के साथ काफी प्रयासों के बाद भी सहमत नहीं कर पा रहा था ।
आज शाम को ऑफिस से आने के बाद राधिका चाय का कप नैतिक को थमाने के बाद वह उसके पास ही भिण्डी काटने के लिए बैठ गई ।
‘तो फिर क्या सोचा तूने ?’ राधिका फुर्ती से भिण्डी को काटे जा रही थी ।
‘किस बारें में ?’
‘नादान बनने की कोशिश मत कर । मैं श्रेया और तेरे बारें में बात कर रही हूं । वन्दना आज फिर आई थी ।’ नैतिक की बात सुनकर राधिका ने गुस्सा जताते हुए कहा ।
‘श्रेया को तो आप भी उसके बचपन से जानती है । मजाक में ही सही पर आप और वन्दना आंटी हम दोनों की शादी करवा देने की बात छेड़कर खुश होती थी तो अब ऐसा तो क्या हो गया जो आप श्रेया को इस घर की बहू नहीं बनाना चाहती ?’ नैतिक ने बचपन की बातों को याद करते हुए पूछा ।
‘समय अपना काम करता है नैतिक । यही बात तूने सालभर पहले रखी होती तो शायद मुझे कोई एतराज नहीं होता ।’
‘तो एतराज आपको उसके रोहन से डायवोर्स लेने से है ?’ राधिका का जवाब सुन नैतिक ने चाय का आखरी घूंट गले से नीचे उतारते हुए पूछा ।
‘श्रेया में सहनशक्ति की कमी है । शादी के बाद लड़की को कम से कम एक साल लगता है अपने ससुराल में एडजस्ट होने में । रोहन के संग उसकी शादी हुए अभी पूरा एक साल भी नहीं हुआ और वह उसका घर छोड़कर आ गई ।’ राधिका ने स्पष्ट किया ।
‘रोहन के संग डायवोर्स में श्रेया की कोई भूल है ही नहीं ।’
‘ताली एक हाथ से नहीं बजती । तू कौन सा उनके बीच की बातें जानकर बैठा है । कोई भी शादी टूटती है तो उसके पीछे लड़की की सहनशक्ति की कमी ही होती है ।’ राधिका ने नैतिक की बात काटते हुए उसे देखा ।
‘मम्मी । कुछ बातें ही ऐसी होती जो न कही जा सकती है न सही जा सकती है । आपको अपने बेटे की निर्णय शक्ति पर थोड़ा सा भी भरोसा है तो मैं आपको यकीन दिलाता हूं कि रोहन और श्रेया के मामले में श्रेया की सहनशक्ति नहीं वरन रोहन की नाकामयाबी जवाबदार रही है ।’
‘हं ! पैसे टके से सुखी है । खुद का बिजनेस है और क्या चाहिए ।’ नैतिक की बात सुनकर राधिका ने ताना मारते हुए कहा ।
‘पैसा ही तो सबकुछ नहीं होता न मम्मी । अच्छा एक बात बताओं, आप पापा के संग खुश नहीं थी ?’
‘कैसी बात करता है रे ! मेरी जिन्दगी की खुशी तो उनसे ही थी ।’ राधिका के चेहरे पर बिखरी हुई यादों की लकीरें उभर आई ।
‘तो समझ लो मम्मी, मेरी खुशी श्रेया से ही है ।’ नैतिक ने लाड़ से राधिका के दोनों गाल खींचते हुए कहा ।
‘अपनी बात मनवाना तो कोई तुझसे सीखे ।’ कहते हुए राधिका अपनी जगह से कटी हुई भिण्डी की थाली लेकर खड़ी हो गई ।
नैतिक ने मुस्कुराते हुए राधिका के पैर छू लिए और फिर तुरन्त ही व्हाट्सएप पर मैसेज कर श्रेया को राधिका से हुई बातों से अवगत करा दिया ।