Vengeance - 3 in Hindi Fiction Stories by Ashish Dalal books and stories PDF | प्रतिशोध - 3

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प्रतिशोध - 3

(३)

अंधेरें में दोनों कुछ देर तक आपस में लिपटकर एक दूसरे की देह की गर्माहट को अनुभव करते रहे । तभी लाईट आ गई और पूरा कमरा फिर से रोशनी से भर गया । नैतिक की पकड़ अचानक ही श्रेया पर ढ़ीली पड़ गई । 

‘आय एम सॉरी ! मैं बहक गया था ।’ कहते हुए नैतिक श्रेया से दूर हट गया ।

श्रेया अनिमेष दृष्टि से नैतिक को निहार रही थी । क्षणभर के लिये आया नैतिक का आवेग अब थम चुका था । बारिश अब रुक रूककर धीमे धीमे बरस रही थी । अचानक ही आगे बढ़कर श्रेया ने कमरे की लाईट बंद कर दी और अपनी आंखें बंद कर नैतिक के अर्ध खुले बदन से फिर से लिपट गई ।

‘जो हो रहा था हो जाने दो नैतिक । मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकती ।’ श्रेया बुदबुदाई ।

‘नहीं, श्रेया ! ये गलत है । अंधेरा कर देने से गलत काम सही नहीं हो जाता ।’ नैतिक ने अपने आपको श्रेया की पकड़ से छुड़ाने का यत्न किया लेकिन श्रेया की पकड़ उस पर जैसे बढ़ती ही जा रही थी । श्रेया पागलों की तरह नैतिक की नंगी खुली पीठ को अपनी कोमल हथेलियों से सहला रही थी । एक बार फिर से श्रेया के हाथों की गर्मी का नर्म अहसास पाकर नैतिक के ठंडे बदन में आग लगना शुरू हो गई । न चाहते हुए भी उसने श्रेया को कसकर अपनी बाहों में जकड़ लिया । श्रेया ने अब थोड़ा सा पीछे की तरफ अपने कंधे और गले वाले भाग को झुका लिया । नैतिक के तरसते होंठ अब श्रेया की लम्बी सुराहीदार गर्दन पर जाकर थम गए । श्रेया ने रोमांचित होकर नैतिक के सिर के बालों को अपने दायें हाथ से कसकर पकड़ लिया । नैतिक के होंठ धीरे धीरे श्रेया की गर्दन से फिसलते हुए नीचे की तरफ उसके वक्षस्थल की तरह जा रहे थे ।

‘आय लव यू नैतिक !’ श्रेया धीमे से लगातार बुदबुदाये जा रही थी । 

नैतिक अब पूरी तरह से मदहोश हो चुका था । जहां अभी कुछ देर पहले एक संकोच के साथ वह श्रेया के साथ खड़ा हुआ था वहीं अब वह उसमें समा जाने को उद्वेलित हो रहा था । अचानक से उसने श्रेया के खुले बालों को अपने बायें हाथ से कसकर पकड़ा और उसका चेहरा अपने चेहरे के नजदीक लाकर अपने होंठ उसके होंठ पर रख दिए । अब श्रेया की पकड़ नैतिक के बदन पर ढ़ीली पड़ गई । वह नैतिक के प्यार की आग में पिघलने के लिए पूरी तरह से मोम की गुड़िया बनकर खड़ी हुई थी । नैतिक अब उसके पूरे चेहरे को मदहोश होकर चूमे जा रहा था । तभी श्रेया ने साड़ी का पल्लू अपने कंधे से गिरा लिया । नैतिक के हाथ अब श्रेया के ब्लाउस की तरह बढ़े और वो उसके ब्लाउस के बटन खोलने लगा । लेकिन फिर अचानक ही उसने अपने हाथ पीछे खिंच लिए और श्रेया को अपने से दूर कर दिया ।

‘नैतिक !’ तेजी से चलती सांसों के साथ धीमे से श्रेया ने नैतिक का नाम पुकारा ।

नैतिक ने श्रेया की साड़ी का पल्लू उसके कंधे पर वापस डाला और कमरे की लाईट चालू कर दी । फिर वह बाथरूम की तरफ बढ़ गया और थोड़ी ही देर में पेंट पहन कर शर्ट के बटन बंद करते हुए बाहर निकलते हुए नैतिक ने ड्राइंग रूम में खड़ी श्रेया पर एक नजर डाली । श्रेया अभी भी एक अधूरे अहसास के अनुभव के साथ मोम की गुड़िया की तरह अपनी जगह पर ही खड़ी हुई थी । 

नैतिक श्रेया के नजदीक आया और बोला, ‘आय एम सॉरी श्रेया । बिना किसी हक के तुम्हारे शरीर पर मैं मेरा हक नहीं जता सकता । लेकिन हां, ये सच है... मेरा दिल अभी भी तुम्हारे लिए ही धड़कता है ।’

नैतिक की बात में श्रेया ने अपने सारे सवालों का जवाब ढूंढ लिया । उसने खिड़की के पास दीवार पर टंगी हुई उसके घर की चाबी उसके हाथ में चुपचाप रख दी और अगले ही पल नैतिक वहां से बाहर निकल गया ।

बादल गरज कर पूरी तरह से बरस चुके थे । दहलीज पर खड़े होकर नैतिक को श्रेया अंधेरे में तब तक देखने का प्रयास करती रही जब तक वह पूरी तरह से उसकी आंखों से ओझल न हो गया ।

XXXXX

श्रेया उस रात सो न सकी । नैतिक के ख्याल उसे रह रहकर आ रहे थे । राहुल का घर छोड़कर आये उसे दो महीने होने को आये थे । 

नैतिक को रोज सुबह वह ऑफिस जाते हुए हसरत भरी नजरों से देखती थी । नैतिक की नजर उस पर पड़ भी जाती तो वह अगले ही पल उससे नजरें चुराकर वहां से निकल जाता था । शाम को नैतिक से अचानक हुई मुलाकात और एकान्त के क्षणों में उसका सामीप्य पाकर वह उद्वेलित हो गई । उसने सारी रात नैतिक के विचारों में ही गुजार दी । 

सुबह डोर बेल बजते ही उसने अलसाते हुए दरवाजा खोला । बाहर खड़ी वन्दना कीचड़ से सनी हुई अपनी चप्पल दहलीज के बाहर पैर से झटकते हुए साफ करने का यत्न कर रही थी । श्रेया अपने खुले बालों को बांधते हुए दरवाजे के अन्दर खड़ी थी । वंदना उसे देखकर मुस्कुरा दी और चप्पल बाहर ही निकालकर अन्दर आ गई । 

‘अपने देश की बारिश चलकर आने जाने वालों के लिए मुसीबत है । सोसायटी के बाहर इतना कीचड़ था कि रिक्शेवाले ने अन्दर तक आने से मना कर दिया ।’ वन्दना अपने पैर धोने के लिए बाथरूम की तरफ जाते हुए बोली ।

उसकी बात सुनकर श्रेया कुछ नहीं बोली और मुस्कुरा दी । 

वंदना जैसे ही बाथरूम से बाहर निकली श्रेया ने उससे पूछा, ‘बहुत जल्दी आ गई आप मम्मी ?’ 

‘मुझे तेरी चिन्ता हो रही थी । एक तो बारिश इतनी जोर से हो रही थी और तू घर में अकेली थी ।’ श्रेया की बात सुनकर वन्दना जवाब देते हुए कीचन में चली गई ।

‘तूने अभी तक चाय नहीं पी ? अभी सोकर उठी क्या ?’ वन्दना ने चाय की पतीली गैस पर चढ़ाते हुए पूछा ।

‘रात को ठीक से नींद न आई और कुछ काम भी तो न था तो जल्दी उठकर क्या करती ।’ श्रेया कीचन के दरवाजे के पास आकर खड़ी हो गई ।

‘दीदी कैसी है ?’ तभी उसने सीमा की खबर पूछते हुए वन्दना की तरफ देखा ।

‘वह तो ठीक है । तुझे लेकर थोड़ी सी परेशान रहती है ।’ वन्दना ने चाय पत्ती उबलते हुए पानी में डालते हुए जवाब दिया ।

‘मुझे लेकर परेशान होने जैसी बात ही क्या है ?’ श्रेया साड़ी के पल्लू को अपनी ऊंगलियों के बीच लपेटते हुए कहा ।

‘अब चिन्ता तो होगी ही न ! बड़ी बहन है तेरी । रोहन से डायवोर्स लेने के बाद फिर से जिन्दगी को नए सिरे से जीने के लिए तैयार करना .... मुश्किल तो है न बेटी ।’ वन्दना ने श्रेया से कहा ।

जवाब में श्रेया कुछ नहीं बोल पाई ।

तभी वन्दना की नजर बेसिन के पास पड़ी ट्रे और उस पर रखे चाय के खाली कप पर पड़ी ।

‘कल कोई आया था क्या?’ उसने श्रेया से पूछा ।

‘हां । शाम को नैतिक आया था ।’ श्रेया ने सहजता से सच्चाई बयान कर दी ।

‘नैतिक ? तुझसे मिलने आया था ? बड़े दिनों के बाद फुर्सत मिली उसे ।’ वन्दना ने कपबोर्ड से दो कप निकाले और चाय छानते हुए कहा ।

‘मुझसे मिलने नहीं, अपने घर की चाबी लेने आया था । राधिका आंटी गांव गई है । नैतिक बारिश में पूरी तरह से भीग कर कांप रहा था । मैंनें ही आग्रह कर उसे अन्दर बुला लिया था ।’ श्रेया ने जवाब दिया ।

‘अच्छा किया । बारिश में भीगकर उसे जल्दी ही सर्दी हो जाती है । राधिका ने मुझे बताया था कि वह उसके भाई के यहां गांव जाने वाली है पर अचानक से चली जाएगी ये पता नहीं था ।’ वंदना श्रेया से बातें करते हुए बोली और दोनों ड्राइंग रूम में आकर बैठ गई ।

श्रेया वंदना की किसी बात का जवाब दिए बिना चुपचाप चाय पी रही थी । वंदना उसके चेहरे पर आते जाते भावों को पढ़ने की कोशिश कर रही थी ।

‘तू अब भी चाहती है उसे ?’ तभी वंदना ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए पूछा ।

‘अब जानकर क्या करेंगी मम्मी ? मैं उसे चाहूं या न चाहूं क्या फर्क पड़ता है । मेरे हिस्से में जो था, जितना था वह मुझे मिल चुका है ।’ थोड़ी देर चुप रहने के बाद जवाब देते हुए श्रेया के चेहरे पर उदासी छा गई ।

‘नहीं ऐसा नहीं कहते बेटी । जिंदगी का एक रास्ता बंद होने पर दूसरे हजार रास्ते खुल जाते है ।’ वंदना ने श्रेया को उदासी को दूर करने का प्रयत्न किया ।

‘मेरी जिन्दगी के तो सारे रास्ते उसी दिन बंद हो गए थे जब रोहन के साथ साथ फेरे लिए थे ।’ श्रेया की आवाज अब भी उदासी से भरी हुई थी । 

‘जिंदगी में सभी को सबकुछ अपना चाहा हुआ नहीं मिल पाता । समझौते का नाम ही तो जिंदगी है बेटी । अब भी कुछ बिगड़ा नहीं है...नैतिक अगर तैयार हो तो...’

‘नहीं मम्मी ! मुझे अब तक नैतिक से जो कुछ पाना था वो सबकुछ पा चुकी हूं । अब मेरा उस पर कोई हक नहीं है ।’ श्रेया की आवाज में अजीब सा रहस्य था ।  

‘यूं पहेलियां न बुझा । कहीं कल तुम दोनों के बीच कुछ ............।’ श्रेया की बात सुनकर वन्दना अपनी बात पूरी नहीं कर पाई ।

‘तुम जैसा सोच रही हो वैसा कुछ नहीं हुआ । उसका प्रेम अभी भी उतना ही निर्मल और निस्वार्थ है जैसा पहले था । मैं ही रास्ता भटक गई थी ।’ वन्दना की अधूरी कही बात का मर्म समझते हुए श्रेया ने जवाब दिया ।

‘वो अगर चाहता है तो उसे मना मत करना बेटी । तेरी सारी जिन्दगी का सवाल है । वैसे भी तेरी शादी होने जाने के बाद से वह उखड़ा उखड़ा सा रहने लगा था ।’ वन्दना ने श्रेया के सिर पर हाथ रखा । तभी डोरबेल बजी । श्रेया उठने लगी तो वन्दना ने इशारे से उसे बैठे रहने को कहा और खुद जाकर दरवाजा खोल दिया । उसके सामने नैतिक खड़ा था ।

‘अरे ! नैतिक तुम ? सुबह सुबह ? आओ अन्दर आओ ।’ वन्दना ने उसे अन्दर आने के लिए कहा ।

‘नहीं आंटी । अभी जल्दी में हूं । ऑफिस को लेट हो रहा हूं । कल शायद मेरा वॉलेट यहीं रह गया था । वही लेने आया था ।’ नैतिक ने जवाब दिया ।

‘खुद ही अन्दर आकर ले लो ।’ कहते हुए वन्दना उसके जवाब का इंतजार किए बिना अन्दर आ गई । उसके पीछे अन्दर ड्राइंगरूम में आकर उसकी नजर श्रेया से मिली और अगले ही पल वो सामने टेबल पर पड़ा अपना वॉलेट लेने के लिए झुका तो श्रेया ने वॉलेट लेकर उसकी तरफ बढ़ा दिया । नैतिक वॉलेट श्रेया के हाथों से लेते हुए कुछ सेकेण्ड के लिए ठिठक गया । कल रात के वाकये को यादकर वह श्रेया से अपनी नजरें नहीं मिला पा रहा था । 

नैतिक से कुछ दूरी पर खड़ी वन्दना श्रेया और नैतिक की एक दूसरे के प्रति औपचारिक झिझक को महसूस कर पा रही थी । अगले ही पल नैतिक ने वॉलेट श्रेया के हाथ से लेकर अपने पेण्ट की पीछे की पॉकेट में रख दिया और जाते हुए पीछे मुड़कर उसने एक बार फिर से श्रेया को देखा । श्रेया अभी भी अनिमेष नजरों से उसे देखे जा रही थी । अब श्रेया के चेहरे पर उसे देखकर प्यारी सी मुस्कराहट छा गई । नैतिक कल शाम की घटना को लेकर अब भी गिल्टी फील कर रहा था । नीची नजरें किए हुए वह वापस जाने को हुआ लेकिन तभी वन्दना ने उसे टोका, ‘‘नैतिक ! चाय पीकर जाना ।’ 

‘नहीं आंटी । ऑफिस को लेट हो रहा हूं ।’ नैतिक ने हड़बड़ाहट में जवाब दिया ।

‘राधिका वापस आ गई क्या ?’ 

‘मामी की तबियत कुछ ज्यादा ही खराब है । मम्मी तीन चार दिन वहीं रुकेगी ।’ वन्दना के पूछने पर नैतिक ने जवाब दिया ।

‘तो जब तक राधिका आ नहीं जाती डिनर यहीं आकर कर लेना ।’ वन्दना ने आग्रह किया ।

‘आप क्यों तकलीफ करती है । मैं बाहर खा लूंगा ।’ नैतिक ने वन्दना के प्रस्ताव को नकारते हुए जवाब दिया ।

‘अच्छा और बचपन में बिना कहे आकर रसोई में जाकर नाश्ते की डिब्बे चट कर जाता था तब मुझे तकलीफ नहीं होती थी ।’ वन्दना ने उसे भावनात्मक तरीके से मनाने का प्रयास किया ।

‘वो दिन कुछ और थे आंटी । अब बहुत कुछ बदल गया है ।’ कहते हुए नैतिक की नजरें श्रेया पर जाकर ठहर गई ।

‘बदला होगा तेरे लिए । तेरी आंटी अब भी तेरे लिए वैसी ही है । रात को मैं तेरी पसन्द की खीर बना रही हूं नारियल वाली । तू रात का खाना हमारें साथ ही खायेगा ।’ वन्दना ने पूरे अधिकार से कहा । नैतिक अब वन्दना की बात नहीं टाल पाया और उसकी तरफ देखकर मुस्कुराकर तुरंत ही घर से बाहर निकल गया ।

नैतिक के जाने के बाद वन्दना वापस श्रेया के पास आकर बैठ गई और उसे समझाने लगी ।

‘अभी जो कुछ तुम दोनों के बीच जो अनकही बातें आंखों के माध्यम से हुई उसे देखकर तो यही लगता है कि नैतिक के मन में अभी तेरे लिए सॉफ्ट कोर्नर है ।’

‘ये तुम्हारी नजरों का भ्रम है मम्मी । मैं जिंदगी की रफ्तार में आगे बीच मझदार में जाकर फंस चुकी हूं और नैतिक किनारे पर ही खड़ा रह गया है । अब वो मेरा बीता हुआ कल है ।’ श्रेया ने फिर से उदास होकर जवाब दिया ।

‘कल को पकड़कर तो नहीं रखा जा सकता लेकिन जो आज है उसे सम्हालकर आने वाले कल को संवारा जा सकता है । वो राधिका के आने तक यहीं डिनर लेगा । सम्हाल लेना अपने नैतिक को ।’ वन्दना अपनी बात कहकर वहां से खड़ी हो गई । श्रेया के मन में अब उथलपुथल चल रही थी । कल रात का वाकया अब भी उसे झकझोर कर रहा था ।