उसकी जमीन ज्ञानप्रकाश विवेक जिंदगी का तथ्य परक विष्लेषण
उसकी जमीन गजलगो ज्ञानप्रकाश विवेक की कहानियों का नया संग्रह है जो पिछले दिनों प्रकाशित हुआ है। यह उनका पांचवां कहानी संग्रह है । इसमे उनकी ताजा चौदह कहानियां संग्रहीत हैं । इनमे शामिल अंधिकंतर कहानियों का मूल स्वर संवेदना है। तथाकथित आधुनिकता की मानसिकता एवं दैनिक महानगरीय जीवन आम व्यक्ति के अंदर मौजूद संवेदना को सुखाता जा रहा है । यह बात विवेक ने बडी तल्खी के साथ महसुस की है, वे इस संवेदना को बनाये रखने के लिए ही प्रयासरत हैं । विवेक आम पाठको के लिए सीधे ढंग से कहानियां लिखते हैं, वे आडे तिरछे प्रयोग करके उसे बोझिल नही बनाते ।
संग्रह की पहली कहानी ‘‘गरीब औरत’’ में एक स्वाभिमानी मजदूर औरत का जिक्र है। जो अपने नन्हे बच्चे को जान से ज्यादा चाहती है। संपन्न दंपती उसे फुसला कर उसका बच्चा लेना चाहते हैं । तो अपनी हैसियत से ज्यादा पैसा को ठोकर मारकर वह गरीब औरत अपने लाल को सीने से भींच कर नेपथ्य में चली जाती है। प्रकारांन्तर में यह कहानी भावना और संवेदना द्वारा भौतिकता और सृमद्वि को ठुकरा देने की वकालत करती है।दूसरी कहानी कहानी केसी लगी मे एक लेखिका की कहानी है जिसके असमय दुर्घटनाग्रस्त होकर विकंलांग हो जाने पर लेखिका जब अपनी संवेदना और अभिव्यक्ति को लिखकर व्यक्त करने में असमर्थ हो जाती है । अपनी डायरी पर कुछ आडी तिरछी लकीरें खींचकर ही संतुष्ट हो जाती है । लेखिका मित्र के सामने उपस्थित हाजिर हुए एक पुरानी मित्र को लेखिका अपनी वहीं डायरी खेालकर गो...गो...गो करते हुए वह कहानी पढने का प्रयत्न करती है , और संवेदनशील लेखक उसके इसी प्रयास को अच्छी कहानी का नाम देकर एक सुखद अहसास से भर देता है।
ग्लेसियर नामक कहानी में एक चुस्त दुरूस्त अनुशासनप्रिय अफसर पागल के बहाने लेखक के कार्यालय में उस माहौल को जिवंत किया है। जो एक अधिकारी का रिटायरमंट आ जाने पर उसके मातहम लोग उसके इर्द गिर्द रचते है । पायस के मार्फत विवेक ने इस भष्ट कामचोर और चापलुस नौकरशाही पर करारी चोट की है। कहानी एक रफूगर में कष्मीर के एक भावुक रफूगर के श्शहर मे एंकाकी हो जाने की कथा कहते हुए श्शहर की आपाधापी का ज्रिक्र किया गया। युद्वरत में भारतीयों के सााथ विदेश मे दिन प्रतिदिन होने वाले अपमानजनक व्यवहारों का जिक्र है। पैसा कमाने की लालसा में लोग अपना देश संस्कृति अपनी संवेदना भुलाकर चले तो जाते हैं पर वहा रात दिन का अपमान भोगते हैं। इसके बाद भी पैसा कमाने की जुगत मे भिडे रहते हैं। वे शाति से अपना समय काटने का प्रयास करते हैं तो उन्हें निरंतर युद्व के लिए, विद्रोह के लिए भड़काया जाता है । समझदार लोग अपने आप से युद्व करते रहते हैं। विदेशी कभी भी यह स्वीकार नही कर पाते कि ब्लडी इंडियन हमारे बराबर मे बैठें, जाम्ब करें, उंचा सामान इस्तेमाल करें। नायक को बात बेबात डांटने, डपटने, थूकने और पीटने तक की निम्न स्तरीय और अपमानजनक घटना से अपना क्षोभ प्रकट करते हैं। कहानी श्सीढी मत छोड़ देना में एक ऐसे बुजुर्ग बुद्विजीवी की कहानी है। जो हर चीज की व्यवस्था मानवीय ढंग से करते दिखते हैं । जिसमें निरंतर असंवेदनशील और स्वार्थी होते जा रहे मनुष्य भवावह होते जा रहे रूपो से पाठकों का सामना होता है। तलाश कहानी मे एक मा जो अपने चार बच्चों से एक एक कर बिछुड जाती है और बेबसी में जकडी हुई रोती है व जुल्म सहती हुये उन्हे याद करती है , और उनकी तलाश में भटकती रहती है।
जीडी उर्फ गरीब दास कहानी का नायक कमजोर तबके से उपर उठा ऐसा व्यक्ति है , जो भीतर से कुण्ठित हो चुका है। वह अपने गर्दिश के दिनों के दोस्त और दुश्मन में अपनी नवधनाढयता का ढिढांरा पीटना चाहता है और इसके लिए तरह तरह के उपक्रम करता है। अजनबी से कई बार इसी कारण उसे अपमानित होना पडता है। एक बार वह अपनी बालकनी में बैठा हुआ आने जाने वालों पर फ्ब्तियां कसता रहता है और इसी श्शौक के कारण वह अपने बाप को बूढ़ा, लंगडा बैल कह देता है । सडक से चलकर जब उसका बूढ़ा पिता चलकर घर में प्रवेश करके उसके सामने खड़ा होता है, तो जीडी अवाक रह जाता है । और अपनी विद्रुपतापर लानत भेजता हुआ ।
संग्रह की अंतिम कहानी ‘‘उसकी जमीन’’ है जो कि उसी उच्च स्तर की पुरअसर कहानी है, जिसके लिए झान प्रकाश विवेक प्रसिद्व हैं । कहानी में एक कृषक से जबरन उसकी जमीन खरीदी जाती है । अपनी जमीन को वह कृषक बच्चों की तरह प्यार करता है । जब उसी जमीन को प्लाटिंग कर कालोनी बनाने की बात उसके सामने आती है, तो वह आकुल व्याकुल होकर उस जमीन के छोटे टुकडे न करने के निवेदन के साथ उसके वर्तमान मालिक के पास खडा़ होता है। नायक उस जमीन को बेचने के लिए कटिबद्व वह किसान को डंट देता है - हम प्लाट कांटे या इस पर हल चलावे , तेरा मतलब? तूने जमीन बेच दी है, हमने खरीद ली हे । ईब तु कोण से हमे सलाह देने वाला?
संग्रह में मा और मारूती वन थाउसेंड और में कहानीयों पर पाठको का ध्यान कम जाताह ै।
संग्रह की सभी कहानियो के कथ्य और कथानक अंत्यन्त सामान्य है। लेकिन प्रस्तुति बडी सशक्त है। क्या मजाल कि आप कहानी की मूल संवेदना और मुल भाव को छुए बगैर लौट तो आये। दरअसल लेखक की सफलता यही तो होती है कि उसके बंतायें बिदंु पर सबका ध्यान आकृष्ट हो जाये इस कसौटी पर विवेक पूर्णतः सफल विवेक की भाषा तो उनकी कहानियां की जान होती है। अपनी सामान्य सी बात कहने के लिए वे जाने कहा-कहा सें ढॅुढकर शब्द लाते है और वाक्यों मे ऐसे जड देते हैं कि पाठक मुग्ध होकर कई दफा उन्हे दोहराता रहता है। जैसे हमारे सामने अतीत के क्षितिज फैल जाते है। ऐसा महसूस होता है कि हम अपनी अतीत की कुनकुनी धुप पकडकर बैठे है। बच्चे अंग्ररेजी स्कूलों में और रिश्ते जैम क्लिप में लगे लूज पेपर बिखरे (जीडी उर्फ गरीब दास पृष्ठ116) यद्यपि लेखक खुद महानगर का वासी है लेकिन उसकी संवेदनाए अभी भी जिंदा है। जबकि महानगर मे रहने के लिए इस तरह की संवेदना और इस तरह की दूसरी फालतु चीजो को त्यागना एक फैशन बन गया है । इसी कारण विवेक को महानगरीय जीवन से विक्षेाभ सा हो गया । जो जब तब उनकी कहानीयो में जब तब झिलमिला उठता है । कुछ वाक्य देखिए-
महानगरीय तटस्थता आदमी को तथागत नही बनाती अपितु एक अजीब तरह की रिक्तता भर देती है। (गरीब औरत प्षठ 10) दिल्ली के साथ जुडे इसके कस्बे की मानसिकता भी कमोबश दिल्ली जैसी चालाक और दूसरे को ठगने पर अमादा है । (रफुगर 15) महानगर मे हम अपने दुख का अनुवास करते रहते हैं । अकेले मे यह भी खूब इतेफाक है कि महानगर हमे अक्सर अकेला छोड देते हं, ै भीड के जंगल में । एक शख्स ऐसा भी आता है कि एकंात बुनना और दुखी रहना , कुछ आदत और कुछ शगल बन गया है ।
विवेक की कहानीयो ंका सर्वार्धिक आष्वस्तिदायक पक्ष आदमी की संधर्ष शील जिंदगी की जिजीविषा का चित्रण करना है और उसकी सकारात्मक प्रस्तुति करना ही है। वे हारे हुए आदमी की कहानी भी लिखते हैं उसे युद्वरत की संज्ञा देते हैं । रफूगर भी उनकी कहानी में सुई की जगह कुल्हाडा लिए तत्पर मिलता है। गरीब औरत भी अपनी बात सीधी सादी साफ भाषा में कहने की हिम्मत के साथ यहां मौजूद है ।
विवेक ने भाषा की कहानी को एक दिशा दी है । पाठको को कहानी की ओर पुनः आर्किर्षत किया है तो आलोचकों को नये निकष बनाने के लिए प्रेरित किया है, लेकिन यह सब एक सीमा तक तो अच्छा लगता हैं पर जहां हर वाक्य नये प्रयोगो से भर जाता है तो विवेक की कहानी अपने ही बनाये इंद्रजाल में घिर कर रह जाती है। वे भाषा में नये प्रयोग और उपमाएं दे डालते हैं कि पाठक भ्रम में पढ़ जाता है। शायद पद्य साहित्य में यह प्रयोग उचित और संप्रेषणिय हो पर गद्य में तो कई बार ऐसे प्रयोगधर्मी वाक्य पाठक के सहज पाठ्य प्रवाह में बाधा डालते महसूस होते हैं। ऐसे अतिवादी व्योमोह से बचना चाहिए ।
संपेक्षतः कुछ कहा जाये तो हम यह कह सकते हैं कि ‘उसकी जमीन’ कहानी संग्रह की कहानियों के मार्फत तमाम पात्रों की जमीन से रूबरू कराते है। ज्ञानप्रकाश विवेक भी जमीन से भी ताल्लुक रखते हैं । अतएव संगंरह पठनीय और संग्रहणीय है।
उसकी जमीन
ज्ञानप्रकाश विवेक