dodah ka dariya ak vardaan bna abhishap - 4 in Hindi Fiction Stories by टीना सुमन books and stories PDF | दूध का दरिया एक वरदान बना अभिशाप - 4

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दूध का दरिया एक वरदान बना अभिशाप - 4

अब तक आपने पढ़ा किस तरह रणविजय मुंबई से नाहरगढ़ आता है ,और सांप से उसका सामना होता है ।
अब पढ़िए आगे-

सांप से बचने के लिए जैसे ही रणविजय है दीवार को पार कर दूसरी तरफ आता है ।
उस सुनसान जगह पर बेहोश कनक को देखकर वह और घबरा जाता है ।
"कनक तुम यहां कैसे ,कनक क्या हुआ तुम्हें ,
उठो यह मैं हूं रणविजय ।"
कनक को होश में लाने की रणविजय पूरी कोशिश करता है।
धीरे-धीरे कनक उसको होश आता है और -"मैं यहां कैसे और तुम ,तुम तो वही हो जिसमें उस दिन सापँ से मेरी जान बचाई थी और तुम यहां पर भी, आखिर में यहां आई कैसे?
जरूर तुम ही मुझे यहां लाए होंगे ,कब से मेरे पीछे पड़े हुए हो ,आखिर कौन हो तुम ।"
दोनों कुछ सोच नहीं पाते हैं तभी वह साँप वहां पर दोबारा आ जाता है ।
"कनक अभी कुछ सोचने का वक्त नहीं है भागो यहां से, वरना यह सांप हम दोनों को मार डालेगा।"
कनक बात मानकर वहां से भागने लगती है और दोनों आगे जाकर एक शीला से टकरा जाते हैं।
पास में और कोई हथियार या बचाव का सामान ना देखकर रणविजय उस शिला को वहां से उठाकर फेंकने की कोशिश करता है ।
मगर वह शीला भारी होती है ।
तभी वह कनक से कहता है -"कनक तुम भी मेरी सहायता करो ,वरना आज यह सांप हम दोनों को मार डालेगा ।"बात मानकर कनक भी रणविजय की सहायता करती है ,और दोनों उस शीला को उठा कर साँप पर फेंक देते हैं ।
तभी आकाश में बिजली चमकने लगती है कुछ भयानक सी आवाज आती है।
कनक और रणविजय दोनों डर जाते हैं॥

"रणविजय यह क्या किया तुमने ,तुम्हें उस शिला को नहीं उठाना चाहिए था ।
तुम दोनों ने यह बहुत गलत किया, अब आने वाले तूफान को कोई नहीं रोक सकता ।हे भगवान यह क्या हो गया ,आज तक जिस तूफान से सब को बचा कर रखा वही सब कुछ फिर होने वाला है "-दादाजी की आवाज सुनकर रणविजय चौक जाता है ।
"नहीं कनक यह नहीं करना चाहिए था तुम्हें ! भारी गलती कर दी तुम दोनों ने"।

अपने पिता को भी साथ देख कर कनक को आश्चर्य होता है।

तभी आसमान में काली घटाएं छा जाती है चारों ओर हाहाकार मच जाता है ।
"दादा जी आप यहां कैसे ,और यह सब क्या हो रहा है"।
" रणविजय अभी किसी भी बात का कोई वक्त नहीं है ,चलो भागो यहां से ,वरना हम सभी मारे जाएंगे।"
चारों भागते हैं और भागकर एक गुफा में छिप जाते हैं।

"आइए मालिक आइए ,आप इस तरफ आइए"।
कनक के पिता उन्हें राह दिखाते हैं और एक सुरक्षित जगह पर ले जाते हैं।
"रणविजय तुम्हें मना किया था ना मुंबई से बाहर निकलने को, आखिर तुम यहां आए क्यों।"

"दादा जी ,सॉरी मैं कनक के लिए यहां आया था, मुझे लगा कनक किसी मुसीबत में है इसलिए मैं नाहरगढ़ आया ।"
यह सुनकर कनक को आश्चर्य होता है- मगर मैं तो तुमसे अभी कल ही पहली बार मिली हूं ,फिर तुम मुझे कैसे जानते हो और तुम्हें कैसे पता कि मुझ पर कोई मुसीबत आने वाली है।"
"अरे कनक ,यह क्या कह रही हो तुम !अब तो तुम्हारे पिता को सब कुछ पता है और तुम अब झूठ क्यों बोल रही हो बताओ सब सच सच "।

"कौन सा झूठ ,तुम कहते हो मैं मुंबई गई, मगर आज तक कभी नाहरगढ़ से बाहर गई ही नहीं और जब कि तुम कह रहे हो, तब मैं अपने पिता के साथ यहीं पर थी !झूठ मैं नहीं तुम बोल रहे हो ,मगर क्यों यह मुझे पता नहीं।"

"रणविजय मेरी बात सुनो ,मुझे साफ-साफ बताओ आखिर तुम यहां क्यों आए और क्या बात हुई ?"
दादाजी रणविजय से पूरी बात जानना चाहते थे।

रणविजय ने मुंबई वाली सारी बात दादाजी और कनक के पिता को बताई कि कैसे मुंबई में रणविजय कनक दोनों मिले, क्या बातें हुई और किस तरह रणविजय मजबूर हुआ नाहरगढ़ आने के लिए ।

मतलब जब मैंने तुम्हें कल कॉल किया तुम यही थे, तुमने आखिर मुझसे झूठ क्यों बोला ।" ठाकुर भानु प्रताप लगभग चीखते हुए बोले॥
दादा जी माफ कर दीजिए मैं डर गया था

"तो तुम ही ने दूध के दरिया की दूसरी शिला को अपनी जगह से हटाया ।क्या यह सच है ।"
"आप किस शिला की बात कर रहे हैं दादाजी ,कल कनक को बचाने के लिए मैंने एक पत्थर को उठा कर फेंका था जिससे वह सांप भाग जाए कहीं वही तो ।"

"हां रणविजय वह कोई साधारण पत्थर नहीं था और आज तुम दोनों ने मिलकर फिर एक शीला को अपनी जगह से हटाया ,तुम दोनों सोच भी नहीं सकते कितना भयंकर तूफान आने वाला है और क्या होने वाला है।"
कनक अभी भी आश्चर्यचकित थी ।
"दादा जी यह सब कुछ मैंने कनक की जान बचाने के लिए किया"।
"मगर जब मैं तुम्हें पहले से जानती ही नहीं तो तुम्हें कैसे पता चला कि मुझ पर कोई मुसीबत आने वाली है।"
कनक अभी भी सब कुछ समझने की कोशिश कर रही थी।
"मुझे नहीं पता कनक तुम क्यों झूठ बोल रही हो, मगर जो भी मैंने कहा है वह सब सच है।"
तब ठाकुर भानु प्रताप कहते हैं -"जरूर कोई और बात है, तुम्हें यहां बुलाने के लिए कोई साजिश रची गई है ,कनक सच-सच बताओ क्या तुम कभी मुंबई गई हो।।"

"नहीं ठाकुर मालिक ,मैं कभी मुंबई नहीं गई ।आप पापा से पूछ सकते हैं मैं यहीं पर थी ।"
तब कनक के पिता करते हैं -"मालिक कनक सही कह रही है ,पिछले 2 महीनों से मैं कनक को अपने साथ ही रखता हूं। एक बार तब जब मैंने आपको फोन किया था उस वक्त सिर्फ 1 घंटे के लिए ,और एक आज मे ,कुछ ऐसा हुआ है जब कनक मेरी आंखों से ओझल हुई हो ।मगर जबकि छोटे साहब कह रहे हैं उस वक्त कनक मेरे साथ ही थी।"

"तो फिर गणपत यह सब उनकी ही साजिश है ,शायद वह सब फिर इतने ताकतवर हो चुके हैं ,और आज उस आखिरी शिला के बाद ,अब हम उन्हें रोक भी नहीं पाएंगे।"


रणविजय अभी भी कुछ समझ नहीं पाता है और आश्चर्य से पूछता है -"दादाजी आखिर हो क्या रहा है ,आप यहां कैसे और यह सब ,आप कनक के पिता को कैसे जानते हैं आखिर बात क्या है। अंकल आपको मालिक क्यों कह रहे हैं ।साफ-साफ बताइए दादाजी आखिर बात क्या है।"

"मालिक बता दीजिए छोटे साहब को ,अब हम ज्यादा कुछ नहीं छुपा सकते ,छोटे साहब का जानना बहुत ही जरूरी है।"
रणविजय फिर आश्चर्य से पूछता है -"दादाजी बताइए बात क्या है ,और यह सब कुछ क्या हो रहा है।"

एक गहरी सांस छोड़ते हुए ठाकुर भानु प्रताप रहस्य से पर्दा उठाते हैं --
-"बात आज की नहीं है रणविजय ,कई सौ साल पहले हमारे पूर्वज यहां नाहरगढ़ पर राज करते थे ,काफी भरा पूरा और धन-धान्य से संपन्न था यह नाहरगढ़।
आसपास के कई इलाके इसमें मिले हुए थे काफी बड़ा साम्राज्य था और यहीं पर स्थित था पूरे भारतवर्ष में प्रसिद्ध दूध का दरिया।"


आखिर क्या है दूध के दरिया की पूरी कहानी और कौन सा वरदान बना अभिशाप।
आगे क्या हुआ कहानी में जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।