रामू गन्ना लाया-5
‘ बच्चों कहाँ हो तुम ? रामू गन्ना लाया है, चूसना है क्या ? ’ दादी ने आवाज लगाई ।
‘ हाँ दादी । वह अमरूद भी लाया होगा, दादाजी ने उससे कहा था ।’
‘ हाँ बेटा, अमरूद कल खा लेना । अभी गन्ना चूस लो ।’
दोनों को आते देखकर, दादी ने घर के पिछवाड़े बने एक बड़े से आँगन में एक चारपाई बिछवा दी । सुनयना घर के इस हिस्से में पहली बार आई थी । ममा-पापा अक्सर गाँव की बात करते हुये गाँव के इस घर जिसे वे हवेली कहते थे, के बारे में बताया करते थे । वह कहते थे कि गाँव की हमारी हवेली बहुत बड़ी है । दादाजी गाँव के बड़े आदमी हैं । हवेली को उसके परदादाजी ने बनवाया था किन्तु हवेली इतनी बड़ी है वह कभी सोच ही नहीं पाई थी । बार-बार उसे यही लग रहा था कि यहाँ दादा-दादी, चाचा-चाची इतने बड़े घर में रहते हैं जबकि वह मुंबई में दो बैडरूम के छोटे से घर में रहती है ।
‘ अगर गन्ना खाना है तो तुम दोनों हाथ धोकर आओ । रोहन, जाओ दीदी के हाथ धुला दे ।’ दादी ने उन्हें निर्देश देते हुये कहा ।
‘ दीदी आओ ।’ रोहन ने उससे कहा ।
रोहन उसे आँगन के एक कोने में लेकर गया तथा बोला, ‘ दीदी यहाँ हाथ लगाओ, मैं हैंडिल को दबाता हूँ, जब पानी निकलेगा, तुम हाथ धो लेना । ’
‘ यह कैसा नल है ? ’सुनयना ने आश्चर्य से पूछा ।
‘ दीदी, यह हैंडपंप है । इसके हैंडिल को दबाओ तो इस नली से पानी निकलता है ।’ रोहन ने नल के आगे के भाग की ओर इशारा करते हुए कहा ।
सुनयना हाथ धोकर हैडिल की ओर गई तथा बोली,‘ रोहन, अब मैं चलाऊँगी, तुम हाथ धोओ ।’
सुनयना ने हैडिल को दबाया पर पानी नहीं निकला…
‘ दीदी थोड़ा और जोर लगाओ ।’
इस बार सुनयना ने थोड़ी अधिक ताकत लगाई तब पानी निकला ।
‘ आई डन इट, आई डन इट...।’ सुनयना खुशी से चिल्लाई ।
‘ क्या हुआ दीदी ?’ रोहन ने आश्चर्य से पूछा ।
‘ मैंने कहा मैंने कर लिया यानि मैं नल से पानी निकालने में सफल हो गई ।’
‘ दीदी आप अँग्रेजी में बोल रही थीं । मैं भी अभी छोटा हूँ, अँग्रेजी ठीक से नहीं बोल पाता ।’
‘ कोई बात नहीं रोहन धीरे-धीरे तुम भी सीख जाओगे ।’
‘ बच्चों क्या अभी तक हाथ नहीं धुले ?’ दादी ने आवाज लगाई ।
‘ धुल गये दादी ।’ कहते हुये वे दोनों आ गये ।
‘ यहाँ बैठ जाओ ।’ दादी ने उन दोनों को चारपाई पर बैठने का निर्देश देते हुये कहा ।
जब वे दोनों बैठ गये तो दादी ने उन्हें गन्ना छीलकर दिया तथा उन्हें निर्देश दिया कि गन्ने का चूसा हिस्सा चारपाई के पास रखी बालटी में डालना जमीन पर नहीं । दादीजी की बात मानकर सुनयना और रोहन दोनों गन्ना चूसने लगे ।
‘ दादी आप नहीं खाओगी ।’
‘ नहीं बेटा...तुम लोग खाओ ।’ कहकर दादी हाथ धोने चली गईं ।
‘ पर क्यों दादी...?’
‘ बेटा इसके रेशे मेरे दाँतों में फँस जाते हैं ।’ कहकर दादी ने पास में रखे बैग से स्वेटर निकालकर बुनना प्रारंभ कर दिया ।
‘ दादी, आप हाथ से स्वेटर बना रहीं हैं । इसमें तो बहुत समय लगता होगा किन्तु इसका डिजाइन बाजार के स्वेटर से भी अच्छा लग रहा है ।’
‘ तू हाथ का बुना स्वेटर पहनेगी !!’
‘ हाँ दादी...क्या आप मेरे लिये बनायेंगी ?’
‘ अगर तू पहनेगी तो अवश्य बना दूँगीं ।’
‘ थैंक यू दादी । आई लव यू ।’ कहकर उसने दादी के गाल पर किस किया ।
‘ मैं भी तुम दोनों को बहुत प्यार करती हूँ ।’ दादी ने उसका आशय समझते हुये दोनों के गाल थपथपाये ।
‘ दादीजी मैं हाथ धोकर आऊँ ।’ गन्ना चूसने के पश्चात् सुनयना ने दादी से कहा ।
‘ जाओ...।’
सुनयना दौड़कर गई तथा स्वयं हैंडपंप का हैडिल दबाकर हाथ धोने लगी । इस बीच रोहन आ गया उसने उसके भी हाथ धुला दिये ।
हाथ धोते-धोते एक आवाज सुनाई पड़ी…
‘ यह कैसी आवाज है ?’
‘ शालू माँ बुला रही हैं ।’ रोहन ने कहा ।
‘ शालू माँ...कौन शालू माँ ?’ सुनयना ने पूछा ।
‘ दीदी, चलिये मैं आपको उससे मिलवाता हूँ ।’
रोहन उसे आँगन के बाहर ले गया । वहाँ दो गायें बंधी हुई थीं । उनके मुँह के सामने दो गड्ढ़े बने हुये थे जिनमें घास रखी हुई थी । उसे याद आया कि उसने पढ़ा था कि गाय घास खाती है । इसका मतलब गाय के मुँह के सामने बने ये गड्ढ़े उसके खाने का बर्तन हैं । सुनयना जल्दी से अंदर गई तथा अपना मोबाइल लेकर आ गई ।
‘ दीदी, इनसे मिलो यह हमारी शालू माँ तथा यह लीला माँ ।’ रोहन ने उसके आते ही कहा ।
‘ क्या कह रहे हो ? यह तो गाय हैं ।’ सुनयना ने फोटो खींचते हुये आश्चर्य से कहा ।
‘ हाँ दीदी ये गाय हैं पर मेरी ममा कहतीं हैं कि ये भी हमारी माँ हैं क्योंकि हम इनका दूध पीते हैं । इसीलिये मैंने इनका नाम शालू माँ तथा लीला माँ रखा है । ’ कहते हुये रोहन वहीं रखी घास को उठाकर गाय को खिलाने लगा ।
‘ दीदी, आप भी खिलाओ न ।’ कहते हुये रोहन ने उसे घास दी ।
सुनयना ने मना कर दिया क्योंकि उसे डर लग रहा था । वह रोहन के पीछे खड़ी होकर उसे घास खिलाते देख रही थी । अभी वे बातें कर ही रहे थे कि ननकू हाथ में बाल्टी लेकर आ गया । वह एक जगह जहाँ लोहे का चक्का लगा था, गया वहाँ से जब वह घास उठाने लगा तो सुनयना पूछा,' अंकल यह क्या है ?'
' बेटा, यह घास काटने की मशीन है । इससे घास काटकर उसे पशुओं के खाने लायक बनाया जाता है ।'
' पर कैसे ?'
ननकू ने घास चक्के से लगी खुली पाइप में डाली तथा चक्के में लगे हैंडल को घुमाने लगा । जैसे ही चक्का घूमता । घास कटने लगती ।'
' मैं काटूँ ।' सुनयना ने आगे बढ़ते हुए कहा ।
' बहुत भारी है आप नहीं घुमा पाओगी । चोट भी लग सकती है ।'
' ओ.के.अंकल । '
ननकू ने घास उठाई तथा गाय के मुँह के सामने बने गड्ढे में घास डालकर उसने गाय के सिर पर हाथ फेरा । जब गाय घास खाने लगी तब वह उसके पिछले पैरों के नीचे बैठ गया । उसने उसके थन को धोया तथा दूध निकालने लगा । दूध को एक धार के रूप में बालटी में गिरते देखना सुनयना को बहुत अच्छा लग रहा था । थोड़ी ही देर में पूरी बाल्टी भर गई । सुनयना ने इस दृश्य को भी कैमरे में कैद कर लिया ।
‘ इतना सारा दूध !! अंकल क्या अब आप लीला माँ का भी दूध निकालेंगे ?’
‘ नहीं बेटा, आपकी लीला माँ आजकल दूध नहीं दे रही हैं ।’
‘ पर क्यों ? ’
‘ बिटिया, हर गाय कुछ दिनों बाद दूध देना बंद कर देती है । अब जब वह बच्चा देगी तब फिर से दूध देने लगेगी ।’
‘ बच्चा...।’
‘ हाँ बिटिया, अगर गाय बछड़ा देती है तो वह बैल बनता है अगर बछिया देती है तो वह गाय बनती है ।’ ननकू ने उसे समझाते हुये कहा ।
‘ अगर ‘ ही ’ तो बैल अगर ‘ शी ’ तो गाय ।’ सुनयना ने कहा ।
ननकू को आश्चर्य से अपनी ओर देखते हुये सुनयना ने कहा, ‘ मैं समझ गई अंकल...थैंक यू ।’
हर गाय थोड़े दिनों बाद दूध देना बंद कर देती है जब वह बच्चा देगी तब दूध देगी...बार-बार ननकू अंकल के शब्द उसके मनमस्तिष्क में घूम रहे थे पर क्यों ? सोचते-सोचते सुनयना के अंदर जाने लगी तभी उसकी नजर आँगन के कोने में बने एक कमरे की ओर गई ।
‘ वह किसका कमरा है ? वहाँ आग कैसे जल रही है ?’
‘ वह ननकू का कमरा है ।’ रोहन ने कहा ।
वह उस कमरे की ओर बढ़ी...
‘ कहाँ जा रही है बिटिया ? ’ दादी ने उसे ननकू के कमरे की ओर जाते हुए देखा तो पूछा ।
‘ दादीजी वह आग !!’
‘ बेटा, ननकू की पत्नी झूमा चूल्हे पर खाना बना रही है । ’
‘ चूल्हा... यह क्या होता है दादीजी ? ’
‘ रोहन, जा अपनी दीदी को चूल्हा दिखा ला । ’
वह रोहन के साथ ननकू के कमरे में गई । झूमा उन्हें देखकर उठ गई तथा अपनी साड़ी के पल्लू से अपनी आँखें पोंछते हुए आश्चर्य से पूछा, ‘ कोई काम है का बचवा ?‘
‘ आँटी, मै चूल्हा देखना चाहती हूँ । ’ सुनयना ने कमरे में घुसते ही कहा ।
‘ आव बिटिया, यही चूल्हा है । इसी पर हम खाना बनावत हैं । ’ झूमा ने चूल्हे की तरफ इशारा करते हुए कहा ।
सुनयना ने देखा कि चूल्हा यू के आकार का बना है । उसमें झूमा ने लकड़ी डालकर आग जला रखी है । उस आग में वह खाना बना रही है । चूल्हे से निकलते धुंये के कारण वह बार-बार आँखें भी पोंछ रही है ।
‘ आँटी, चूल्हे पर खाना बनाने में आपको बहुत परेशानी होती होगी । क्या आपके पास गैस नहीं है ? ’ उसे गर्मी और धुंये से परेशान होते देख चूल्हे का फोटो खींचते हुये सुनयना ने पूछा ।
‘ बिटिया हम गरीबन के पास गैस कहाँ ? ‘
‘ दीदी, अब हम कैरम खेलें ।’ उनकी बातों से बोर हो रहे रोहन ने कहा ।
‘ ठीक है, चलो ।’ सुनयना ने कहा ।
सुनयना के कानों में बार-बार झूमा के शब्द गूँज रहे थे...बिटिया, हम गरीबन के पास गैस कहाँ ? लेकिन वह क्या कर सकती है ? अभी तो वह छोटी है । छोटी है तो क्या हुआ वह दादाजी से बात करेगी । वह ननकू को गैस दिलवा देंगे, उसने मन ही मन सोचा ।
‘ दादी, हम कैरम खेलने जा रहे हैं ।’ रोहन ने दादी को देखकर उनसे इजाजत माँगी ।
‘ ठीक है बच्चों । अब अंधेरा हो रहा है । घर के अंदर ही खेलो ।’ कहकर दादी एक बड़े से शीशे के जार को हिलाने लगीं ।
‘ दादी यह आप क्या कर रही हैं ?’
‘ बेटा इसमें मैंने गोभी और गाजर का अचार डाला है । तेरे पापा को बहुत पसंद है ।’
‘ अचार...लेकिन यह बाहर क्यों रखा है ?’
‘ बेटा, अचार को धूप में रखकर ही बनाते हैं जिससे धूप की गर्मी से इसमें डाली सब्जियाँ और तेल पक जाये ।’
‘ मतलब अचार को सोलर एनर्जी से पकाया जाता है ।’ सुनयना ने कहा ।
‘ हाँ बेटा...ननकू, इस अचार के मर्तबान को अंदर उठाकर रख देना, कहीं बारिश आ गई तो खराब हो जायेगा ।’
‘ आया मालिकिन...।’
ननकू के आने पर दादी भी अंदर आ गईं तथा वे दोनों भी अंदर जाकर कैरम खेलने लगे ।
थोड़ी देर पश्चात् सुनयना पानी पीने किचन में आई तो देखा डायनिंग रूम के बगल वाले कमरे में लाइट जल रही है । वह अंदर गई उसने देखा कि ननकू एक जगह बैठा कुछ रहा है ।
‘ अंकल, आप क्या कर रहे हैं ?’ पानी पीना भूल कर सुनयना ने उसके पास जाकर पूछा ।
‘ बिटिया हम चक्की की सफाई कर रहे हैं । बड़ी मालिकिन कहे रहीं कि कल आपको नाश्ते में दलिया खाना है । दलिया खत्म हो गया है अतः हम इस चक्की पर दलिया पीसने जा रहे हैं ।’ ननकू ने कहा ।
‘ चक्की...इस पर दलिया पीसेंगे...मैं कुछ समझी नहीं । ’
‘ बिटिया यह हाथ चक्की है । आप देखो इसमें दो गोल चक्के हैं । ऊपर वाले गोल चक्के के बीच में एक छेद है तथा चक्के को घुमाने के लिये इस चक्के में एक हैंडिल भी लगा है । इस छेद में हम गेहूँ डालकर हैंडिल से घुमायेंगे तो गेहूँ के दाने पिसकर यहाँ इकट्ठे होते जायेंगे जिसे हम बाद में निकाल लेंगे ।’ चक्की की सफाई हो गई थी अतः ननकू ने चक्की के बीच में बने एक होल में एक मुट्ठी गेहूँ डालते हुये चक्की के हैंडिल को पकड़कर गोल-गोल घुमाते हुये कहा तथा पुनः एक मुट्ठी गेहूँ चक्की के होल में डाल दिया ।
सुनयना ने देखा कि जमीन से थोड़ी ऊँचाई पर एक थाल जैसे बने आकार के बीच में दो गोल चक्के एक ऊपर एक रखे हुये हैं । ऊपर के चक्के में एक होल और एक हैंडिल है । ननकू होल में गेहूँ डालकर, हैंडिल को गोल-गोल घुमा रहा है । उसने देखा कि थोड़ी ही देर में गेहूँ छोटे-छोटे भागों में टूटकर चक्की के किनारे से निकलने लगा जो थाल में गिरने लगा ।
‘ अरे वाह ! मैं चलाऊँ अंकल ।’ सुनयना ने फोटो खींचने के पश्चात् कहा ।
‘ बिटिया बहुत भारी है । आप नहीं चला पाओगी ।’
‘ कोशिश तो कर सकती हूँ ।’
‘ आओ...।’ ननकू ने हटते हुये कहा ।
सुनयना ने ननकू की तरह चक्की चलाने का प्रयत्न किया किंतु बड़ी मुश्किल से हैंडिल को घुमा पाई ।
‘ सच अंकल, चक्की बहुत भारी है ।’ कहते हुये वह हट गई ।
‘ क्या कर रही है मेरी बिटिया ? ’ उसी समय दादी ने आते हुये कहा ।
‘ दादी दलिया कैसे बनता है, देख रही थी । ननकू अंकल को देखकर मैंने भी चक्की चलाने की कोशिश की पर यह तो बहुत भारी है, मुझसे तो यह चक्की चली ही नहीं ।’ सुनयना ने निराश स्वर में कहा ।
‘ बेटा तुम अभी छोटी हो...जब बड़ी होगी तब चला लोगी ।’ दादी ने उसके सिर पर हाथ फेरते हुये कहा ।
‘ दादी आटा भी तो गेहूँ से ही बनता है वह भी क्या इसी चक्की से पीसा जाता है ?’
‘ हाँ बेटा आपकी परदादी के समय गेहूँ का आटा भी इस हाथ चक्की से पीसा जाता था पर जब से आटा पीसने की मशीन आ गईं हैं तबसे आटा मशीन पर ही पिसवाया जाने लगा है ।’
‘ मम्मी तो दलिया बाजार से मँगवातीं हैं ।’
‘ बेटा, अब बाजार में सब मिलता है । दलिया खत्म हो गया था । तुम्हें दलिया खाना था अतः मैंने ननकू से दलिया पीसने के लिये कह दिया ।’
‘ थैंक यू दादी ।’
सुधा आदेश
क्रमशः