Village in Mobile - 2 - Village side in Hindi Children Stories by Sudha Adesh books and stories PDF | मोबाइल में गाँव - 2 - गाँव की ओर

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मोबाइल में गाँव - 2 - गाँव की ओर



गाँव की ओर -2

पापा चाचा ने मिलकर सामान अपनी गाड़ी में रखा । दिल्ली से अलीगढ़ तथा अलीगढ़ से कासिमपुर का रास्ता तय करने में लगभग चार घंटे का समय लगना था । गाड़ी चलाते ही चाचा ने पूछा,‘ हमारी नन्हीं गुड़िया को ट्रेन का सफर कैसा लगा ? बोर तो नहीं हुई ।

‘ नहीं चाचाजी, मुझे तो बहुत अच्छा लगा । प्लेन में पता ही नहीं लगता है कि हमने यात्रा की है । सबसे अच्छी बात तो यह रही चाचाजी कि ट्रेन में मुझे एक बहुत अच्छी सहेली मिल गई । पता है हमने एक दूसरे का नम्बर भी ले लिया है । जब मन होगा बात कर लिया करेंगे ।’

‘ यह तो बहुत अच्छा किया । रोहन भी अपनी दीदी का बहुत इंतजार कर रहा है । वह तुम्हें देखकर बहुत खुश होगा ।’

‘ मुझे भी रोहन से बहुत सारी बातें करनी हैं । ‘ चाचा जी की बात सुनकर सुनयना ने कहा ।

गाड़ी दिल्ली की सड़कों पर दौड़ती जा रही थी तभी एक इमारत को दिखाते हुये चाचाजी ने उससे कहा,‘ बेटी देखो यह लालकिला है ।’

‘ लालकिला...यहीं पर पंद्रह अगस्त पर हमारे प्रधानमंत्री झंडा फहराते हैं ।’
‘ हाँ बेटा...।’
इसी तरह चाचा ने इंडिया गेट भी दिखाया तथा लौटते हुये दिल्ली घुमाने का वायदा किया । दिल्ली क्रास करते ही चाचा ने एक ढाबे के पास गाड़ी रोकी । चाचा ने तीन चाय का ऑर्डर किया तथा उसके लिये फ्रूटी लेकर आ गये । वे भी गाड़ी से उतरकर बाहर बैठी कुर्सियों पर बैठ गये । फ्रूटी के साथ चिप्स के पैकेट भी थे । उसने चिप्स का पैकेट खोलकर सबको दिया तथा फ्रूटी पीने लगी । तभी चाय भी आ गई । चाय नाश्ता करके वे पुनः चल दिये । खाते-पीते, बातें करते तथा इधर-उधर देखते सफर कट रहा था । शाम होने लगी थी । अचानक चाचा ने कहा कि अब हम अलीगढ़ पहुँच गये हैं । अब हमारी गाड़ी कासिमपुर की ओर मुड़ रही है...।

‘ चाचा घर पहुँचने में कितना समय लगेगा ?’

‘ लगता है थक गई है मेरी बिटिया । बस आधा घंटा में पहुँच जायेंगे...।’

‘ चाचाजी, यह धुआं कैसे निकल रहा है ?’ रास्ते में एक जगह उसने बड़ी सी इमारत तथा उसमें बनी चिमनी से धुंआ निकलता देखकर पूछा ।

‘ बेटा यह शुगर फैक्टरी है । आप और हम जो चीनी खाते हैं वह इस फैक्टरी में बनती है । ‘

‘ चाचाजी, मुझे देखना है, चीनी कैसे बनती है ?’

‘ ठीक है बेटा, मेरा एक मित्र है उससे बात करता हूँ अगर वह कुछ इंतजाम करा देगा तो तुम्हें अवश्य शुगर फैक्टरी ले जाऊँगा । बिना आज्ञा के फैक्टरी में किसी को जाने नहीं देते हैं । ‘ चाचा ने कहा ।

चाचा से आश्वासन पाकर सुनयना इधर-उधर देखने तथा सोचने लगी... यहाँ कितना खुला-खुला है । भीड़ भी अधिक नहीं है वरना दिल्ली, मुंबई में चारों ओर ऊँची-ऊँची इमारतें तथा सड़कों पर गाडियाँ ही गाडियाँ ही नजर आती हैं । अचानक सड़क के किनारे उसे बहुत से पाइप जैसी संरचनायें नजर आईं । वह फिर बालसुलभ जिज्ञासा से पूछ बैठी ।
‘ चाचाजी इतने सारे पाइप...यहाँ क्या होता है ?’ पाइप की तरफ इशारा करके उसने पूछा ।

‘ बेटा यह पावर हाउस है ।’

‘ पावर हाऊस...यह क्या होता है ?

‘ बेटा, यहाँ बिजली...इलेक्ट्रिीसिटी बनाई जाती है । ‘

‘ इलेक्ट्रिीसिटी...जिससे हमारे घर में बल्ब जलते हैं, फैन चलते हैं । ‘

‘ हाँ बेटा, यहाँ बिजली बनती है जिससे कई शहरों, अस्पतालों और कारखानों को रोशनी मिलती है ।‘

‘ लेकिन कैसे...?’ सुनयना ने पूछा ।

‘ बेटा, बिजली कई तरीके से बनाई जाती है । कोयला, तेल, नैचुरल गैस, जल, वायु या नाभिकीय ऊर्जा ( nuclear energy) से हीट ( गर्मी ) पैदा की जाती है । इस हीट से पानी को गरम कर भाप पैदा कर टरबाइन...चेम्बर में भेजा जाता है । जिसके कारण टरबाइन तेजी से घूमता है तथा अपने साथ लगे इलेक्ट्रिकल जनरेटर / आलटेरनेटर को घुमाता है जिससे बिजली पैदा होती है । इस तरह से पैदा हुई बिजली को जगह-जगह भेजा जाता है । पवनचक्कियों तथा सौर उर्जा से भी बिजली बनाई जाती है ।'

‘ अजय, इस पावर हाउस में दीपक काम करता था न ।’ पापा ने चाचा से पूछा ।

‘ हाँ भइया किन्तु पिछले वर्ष ही उसका ओबरा पावर हाउस में स्थानांतरण हो गया ।’

‘ ओह ! इस बार सोच रहा था उससे मिलूँगा ।’ पापा ने कहा ।

‘ लो घर भी आ गया ।‘ कहते हुए चाचा ने एक बड़े से घर के गेट की ओर गाड़ी मोड दी ।

गाड़ी के गेट पर पहुँचते ही एक आदमी दौड़ा-दौड़ा आया तथा गेट खोल दिया । चाचा ने घर के मुख्य द्वार के पास बने आहते में गाड़ी रोक दी । गाड़ी के रूकते ही चाचाजी ने कहा,‘ भुलई, भइया-भाभी का सामान ऊपर कमरे में रख देना ।’

‘ जी मालिक...।’ भुलई ने कहा ।

गाडी की आवाज सुनकर दादा-दादी बाहर आ गये । वे उतर ही रहे थे कि चाची का हाथ पकड़े रोहन भी बाहर आ गया । उसके नमस्ते करते ही दादा-दादी ने प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरा, वहीं चाची ने उसे एक मीठी किस्सी दी तथा रोहन से कहा, ‘ दीदी को जय करो ।’

रोहन हिलने का नाम ही नहीं ले रहा था वह चाची की साड़ी के पल्लू को पकड़े, उनके पीछे छिपकर उसे कनखियों से देख रहा था ।

‘ ननकू चाय बना देना । ‘ दादी ने आवाज लगाई ।
‘ माँ ,चाय हमने पी ली है, फ्रेश होकर सीधे खाना ही खायेंगे । ‘ पापा ने कहा ।

‘ ठीक है । भइया-भाभी, आप फ्रेश हो लो । तब तक मैं खाना लगवाती हूँ ।’ नंदिनी ने कहा ।

भुलई ने पापा-मम्मी का सामान, उनके कमरे में रखवा दिया । ममा-पापा फ्रेश हाने के लिये चले गये । वह भी ममा के साथ चली गई । सुनयना हाथ मुँह धोकर रोहन के लिये लाई चाकलेट लेकर शीघ्र ही नीचे आ गई । चाची किचन में काम कर रही थीं तथा ननकू उनकी सहायता करवा रहा था । सुनयना चाची के पास किचन में गई । अभी भी रोहन उसे देख रहा था । उसने रोहन के पास जाकर कहा…

‘ दीदी से दोस्ती करोगे ...। ’

‘ रोहन जाओ, दीदी के पास । अभी तक तुम रोज पूछ रहे थे दीदी कब आयेगी और अब तुम उससे बात ही नहीं कर रहे हो ।’ चाची ने सुनयना को देखते हुये रोहन से कहा ।

रोहन अभी भी शर्मा रहा था तथा चाची के पीछे छिपने का प्रयास कर रहा था । रोहन को अपने पास न आता देखकर, सुनयना ने अपने द्वारा लाई चाकलेट रोहन को दीं । चाकलेट लेकर रोहन डायनिंग टेबिल की कुर्सी पर जाकर बैठ गया तथा चाकलेट का रैपर खोलकर खाने लगा ।

‘ गंदी बात रोहन...तुमने दीदी को थैंक यू भी नहीं कहा और अब अकेले-अकेले ही खा रहे हो । मैंने कितनी बार कहा है कि कोई भी चीज शेयर करके खानी चाहिये ।’ चाची ने रोहन से कहा ।

‘ इटस ओ.के. चाचीजी । मैं यह सारी चाॅकलेट रोहन के लिये लाई हूँ ।’

‘ यह तो ठीक है बेटा, लेकिन इसे सिखाना तो होगा ।’

‘ थैंक यू दीदी...आप भी लो ।’ ममा को गुस्सा होते देखकर रोहन ने उसे चाकलेट देते हुये कहा ।

‘ वेलकम रोहन । ये चाकलेट आप ही खाओ । मैं आपके लिये ही चाकलेट लाई हूँ ।’ सुनयना ने उससे प्यार से कहा ।

रोहन उसके साथ धीरे-धीरे सहज होने लगा । वह रोहन के पास बैठ गई । उसने देखा कि किचन के पास बने कमरे में डायनिंग टेबिल है । उसने कुर्सियाँ गिनना प्रारंभ किया । वह बारह पर आकर अटक गई...अर्थात् एक साथ बारह लोग खाना खा सकते हैं, उसने मन ही मन सोचा ।

‘ भाभी, खाना लग गया है ।’ ममा के आते ही चाची ने कहा ।

चाची की बात सुनकर सब डायनिंग रूम में आकर अपनी-अपनी कुर्सी पर बैठ गये । चाची ने डायनिंग टेबिल पहले ही अरेंन्ज कर दी थी । सबके बैठते ही ननकू गर्मागर्म परांठे बनाकर सबको खिलाने लगा । सुनयना को सबके साथ बैठकर खाते हुये बहुत अच्छा लग रहा था ।

उस दिन काफी देर तक वे सब बैठे बातें करते रहे । दादा-दादी जब सोने के लिये जाने लगे तब सब उठे । ममा और चाची ने मिलकर किचन समेटा तथा सोने के लिये अपने-अपने कमरों में चले गये ।

सुधा आदेश

क्रमशः