" गर्मी की छुट्टी और माँ
अकेले दिन हैं कमरे में सन्नाटा गूँज रहा हैं। ना पढ़ने में मन लगता है न लिखने में ,एक विरक्ति सी होने लगी है रिश्तों को बदलते देखकर।आआजकल लड़की को मायके में आराम कराया जाता हैं कि अगले घर जाना हैं पता नही कितना काम करना पड़े। मानो जिंदगी कोई मौसम है अभी जो मौसम है उसको एंजॉय करों ।जबकि जिंदगी का हर मौसम तो एक परीक्षा हैं ।कब कैसा समय आ जाये हमको सहज रहना हैं पैनिक नही होना हैं । आजकल हर हिलस्टेशन गर्मी की छुट्टी ही नहीं सर्दियों में भी पर्यटकों से भरा रहता हैं । अपने बचपन लड़कपन के किस्से ओर छुट्टियाँ याद करने की बाहत कोशिश करती हूं तो मुड़ कर देखती हूँ तो याद आती हैं माँ और मेरी गर्मी की छुट्टिया
.जमाना अलग था ..... उन दिनों छुट्टी का मतलब था घर सम्हालना ..कुछ नया सीखना, किताबो से परहेज करना।लेकिन मैं ठहरी किताबी कीड़ा .कैसे रह सकती थी किताबो के बिना ..... मेरी सुबह अखबार के साथ होती और शाम भी होती किसी न किसी नोवल संग। .मांग कर पढना तब कभी बुरा नहीं माना जाता था , जब भी किसी मित्र रिश्तेदार के यहाँ कोई किताब दिख जाती झट से पढने के लिय मांग लिया करते थे और ना सुन ने पर बुरा भी लगता थातो भी क्या अगली बार फिर मांग लेते थे। अब माँ तो माँ होती हैं उनको लगता कि उनकी जिद्दी सी बेटी किताबे ही पढ़ती रहेगी तो ससुराल में क्या करेगी और हमारा एक ही जवाब होता ....... हमें कौन सा शादी करनी हैं, हम तो पढ़ेंगे और नौकरी करेंगे ... माँ कहती पढना या नौकरी करना अलग होता हैं पर घर का काम हर लड़की को आना चाहिए चाहे वोह खाना पकाना हो या फटे कपडे सिलना /करीने से लगाना . हम सोचते ही रहते कि इस बार यह होगा गर्मियों में . नानी के घर जायेंगे बुआ के घर जायेंगे
पर ..........दिल के अरमान आंसुओ में बह गये .......... और हमें दाखिला दिलाया गया सिलाई कढ़ाई की कक्षा में .पाजामा
सिलने से शुरुवात हुयी और जल्दी हमने फ्रॉक सलवार कमीज और थैली वाली कट से पजामी सिलना सीख लिया अब तो हमें भी मजा आने लगा इनसब में .और अब हम दो दिन में कुछ भी नया सिलकर फिर माँ के सामने जा खड़े होते कि माँ बाजार से नया कपडा लाना हैं ....अब हर दो- तीन बाद नया कपडा कहा से लाती माँ ...... हमने सोचा कि चलो अब हमारी छुट्टी होगी यहाँ से और हम फिर से सारी दोपहर 'शिवानी " के नोवेल्स पढेंगे .कब से " किस्श्नुली " पूरा नही हो रहा हैं
पर कहते हैं माँ तो माँ होती हैं ......माँ ने ताई जी और चाची जी से कहा कि जिसने जो सिलाना हो नीलिमा सिलाई सीख रही हैं इसको कपडा दे दो .......बस जी होना क्या था .हम अकेले और हमारे पास थैला भर कपडे दो दिन में इकठ्ठे हो गये .... हम माँ की तरफ कातर दृष्टि से देख रहे थे और माँ विजयी भाव से ... इस तरह उन छुट्टियों में पढ़ी पढ़ाई आज भी काम आती हैं ...