भाग 21
आपने अब तक पढ़ा कि अरविंद जी अनमोल का फोन स्विच -ऑफ होने पर घबरा कर बैंगलुरू पहुंच जाते है।
वहां अनमोल उन्हें लेकर पास के ही एक अच्छे से होटल में लेकर जाता है । वहां रूम लेकर पिता - पुत्र बैठते है ; पर अनमोल अपने पिता के सवालों से बचना चाहता है। पहले वो बोलता है,
"पापा…! आप फ्रेश हो लो तो बात करते है। जैसे
ही वो फ्रेश होकर बाथरूम से आते है और बात शुरू करना चाहते है। उन्हें ये कह कर रोक देता है कि,"पापा आप भूखे होंगे मै आपके लिए कुछ खाने के लिए लेकर आता हूं।"
अरविंद जी कहते है,
"बेटा ..! यहीं से आर्डर कर दो।"
तो ये कह कर की यहां अच्छा खाना नहीं मिलता है । अनमोल खाना लेने बाहर चला जाता है ।
अनमोल को जाते हुए अरविंद जी देखते रह गए । वो भी मन ही मन जान रहे थे कि अनमोल उनके सवालों से भाग रहा है। वरना इतना बड़ा होटल है क्या यहां अच्छा खाना नहीं मिलता होगा ?
वो बड़ी देर तक इंतजार करते रहे पर अनमोल नहीं आया। अरविंद जी वहीं होटल में ही फोन कर चाय और सैंडविच मंगवा लिया ।
खाने के बाद अनमोल का इंतजार करते - करते अरविंद जी की आंख लग गई । वो सफ़र के कारण बहुत थक गए थे । इसलिए पता ही ना चला वो सो गए ।
जब उनकी आंख खुली तो हड़बड़ा कर उठ बैठे । सामने अनमोल बैठा था। आंखे मलते हुए अरविंद जी बोले,
"बेटा..! तुम बड़ी देर लगा दिए। कहां चले गए थे ? मै इंतजार करते हुए लेट गया,और लेटे - लेटे आंखे कब लग गई पता ही नहीं चला? कब आए तुम ?"
अनमोल पापा के पास बेड पर आकर बैठ गया और बोला,
"सॉरी पापा मुझे देर हो गई। मै खाना लेकर आया तो देखा आप बड़ी प्यारी नींद में सोए हुए है;इसलिए आपको जगाना मुझे अच्छा नहीं लगा। मै बैठ कर प्रतीक्षा कर रहा था कि आप उठे तो खाना लगा दूं । "
"लगाऊं पापा खाना"? अनमोल ने पूछा।
अरविंद जी बोले,
"हां बेटा ..! लगा दे । तुझे आने में देर हुई तो मैंने सैंडविच और चाय मंगा ली थी ;पर अब फिर भूख लग
रही है।"
अनमोल ने पैकेट से खाना निकाल कर प्लेट में लगा दिया और पापा को देकर बोला,
"खाइए पापा।"
अरविंद जी ने अनमोल से कहा,
"तू भी आ ना साथ में खाते है जा हाथ धो ले और आजा। आज कितने दिन बाद मै तेरे साथ खाऊंगा।"
अनमोल ने मना कर दिया बोला," नहीं पापा मै नहीं खा सकता मै बाहर की बनी चीजें नहीं खाता क्यों की उनमें लहसुन प्याज पड़ा होता है।"
अरविंद जी भौचक्के रह गए की ये इसे क्या हो गया ! आज कल के लड़के क्या नहीं खाते ? और ये लहसुन प्याज तक नहीं खाता।
अरविंद जी भी बिना भगवान को भोग लगाए अन्न जल ग्रहण नहीं करते थे। बेहद धार्मिक होते हुए भी इन सब चीजों से उन्हें गुरेज नहीं था। पूजा पाठ धर्म - कर्म वो भी करते थे । परंतु बाहर की बनी चीजे वो खाते थे ।
पापा के लाख अनुरोध के बाद भी अनमोल ने उनके साथ भोजन नहीं किया ।
अरविंद जी ने भोजन समाप्त किया और अनमोल से बात शुरू करनी चाही। परंतु उनके कुछ कहने के पहले ही अनमोल कुछ उखड़े स्वर में बोला,
"पापा ..! क्या जरूरत थी आपको इतनी दूर आने की। मैंने कहा तो था आपसे कि' मै आऊंगा या पैसे भिजवा दूंगा पर आपसे सब्र नहीं हुआ।'
अनमोल जो कभी पिता के आगे बात भी नहीं करता था। वो इतने रूखे स्वर में उनसे बात करेगा इसका सपने में भी अरविंद जी को गुमान ना था।
वो अपने आप को संयत करते हुए बोले,
"कैसी बात करते हो बेटा ? मै क्या पैसों की खातिर इतनी दूर आया हूं.....? अरे....! तुम्हारा फोन स्विच ऑफ आ रहा था। हम सब इतना परेशान हो गए तुम्हारी कोई हल खबर ना मिलने से। तुम्हारी मां का तो रो रो कर बुरा हल था। परदेश में तुम किसी परेशानी में तो नहीं फंस गए ? इसलिए मै आया हूं ।"
अनमोल ने कहा,
"पापा..! मेरा फोन पानी में गिर गया था इसलिए स्विच ऑफ आ रहा था।"
"पर बेटा..! तुम्हे किसी दोस्त के फोन से ही हाल खबर दे देनी चाहिए थी।" अनमोल से कहा।
अब अनमोल चिढ़ सा गया और बोला,
"पापा..! हद है..! क्या मै बच्चा हूं? जो आप इतनी दूर चले आए। क्या मै खो जाता । देता ना पैसा !! अपनी खबर तब देता जब फोन ठीक हो जाता। "
अरविंद जी अनमोल के बोले शब्दों से आहत हो गए।
पर बात संभलने की गरज से अरविंद जी अनमोल को समझनेलगे,
"नहीं बेटा..! जमाना बहुत बुरा है पता नहीं कैसे - कैसे लोग है दुनिया में..? तुम भोले हो कहीं किसी समस्या में ना फंस गए हो । इसलिए घबरा कर मै आ गया।"
"मै अब कोई बच्चा नहीं हूं जो किसी मुसीबत मै पड़ जाऊ तो बिना आपकी मदद के बाहर नहीं निकल सकता। मै अब बड़ा हो गया हूं ,पापा इस बात को कब समझेगें ।"
अनमोल ने पापा को जवाब दिया ।
अरविंद जी अनमोल की बातों से बेहद आहत हो रहे थे। पर वो अपना आत्म संयम नहीं खोना चाहते थे।
अनमोल को प्यार से अपनी बात समझाई,और किसी तरह मां और दादी का वास्ता देकर घर चलने के लिए तैयार कर लिया। पहले तो अनमोल ने बहुत ना - नुकर किया पर अभी दिल में सब का प्यार बाकी था। वो पापा के साथ पन्द्रह दिन की छुट्टी लेकर घर आ गया।
अरविंद जी अचानक अनमोल को लेकर पहुंचे तो सब हत- प्रभ रह गए। वो तो सिर्फ मिलने गए थे तो अनमोल को लेकर कैसे आ गए? पर जो भी हो अनमोल का आना सब के लिए दिल को ठंडक प्रदान करने वाला अहसास दे गया।
दोनों बहने ससुराल से आ गई। घर में खूब रौनक ही गई। पर अनमोल इन सब में खुद को नहीं ढाल पा रहा था। वो सब से अलग - थलग ही रहने की कोशिश करता बहुत बुलाने पर सब के बीच जाता तो पर थोड़ी देर बाद ही कोई ना कोई बहाना बना कर वहां से हट जाता।
अरविंद जी जो कर्ज के बोझ से बेहद चिंतित थे।अपना सारा तनाव वो खुद अकेले झेल रहे थे। अनमोल से कहने में उन्हें भय लग रहा था कि कहीं को उन्हें गलत ना समझ ले कि पापा का सारा ध्यान सिर्फ उसके पैसे पर है। ऐसा भी नहीं था कि अनमोल को पिता के सर पर चढ़े कर्ज का अनुमान नहीं था। अब वो सब जान कर अनजान बन रहा था तो उसे उसकी जिम्मेदारी का अहसास कैसे कराया जाए ?
अनमोल से मिलने एक दिन रत्ना और जवाहर जी भी आए । पिछली बार जब अनमोल आया था तो उससे मिलने नहीं आ सके थे । इसलिए इस बार वो ये मौका नहीं गंवाना चाहते थे। बस सन्डे को अच्छा मौका देख की जवाहर जी ने सोचा कि अरविंद जी की भी छुट्टी रहेगी, चलो मिल आते है।
अरविंद जी अपने मित्र और अब समधी को देख प्रसन्न हो गए। खुले दिल से रत्ना और जवाहर का स्वागत किया। अंदर आने पर कुछ देर तक अनमोल जवाहर जी का अभिवादन करने नहीं आया तो अरविंद जी को खीज महसूस होने लगी। वो उठ कर अंदर आ गए और अनमोल को अपने में ही व्यस्त देख झुंझला गए बोले , "बेटा…! क्या हमने तुम्हे यही संस्कार दिया है कि घर में मेहमान आए और वो भी खास कर तुमसे मिलने, पर तुम बाहर आकर उनका अभिवादन करना भी उचित नहीं समझते ? वो तुम्हारी बहन के सास ससुर भी है। क्या तुम उन्हें थोड़ी सी इज्जत, सम्मान नहीं दे सकते ? क्या वो रोज - रोज आएंगे ?"
अनमोल सॉरी पापा कहता हुआ उठा और अरविंद जी के साथ बाहर जहां मेहमान बैठे थे आ गया ; पर उसके चेहरे के हाव - भाव से अरविंद जी को एहसास हो गया कि अनमोल को उनका इस तरह टोकना अच्छा नहीं लगा ।
बाहर ड्रॉइंग रूम में आ कर अरविंद जी ने सफाई दी कि अनमोल सो गया था इसलिए उसे आप लोगों के आने का पता नहीं चला ।
क्या हुआ जब अनमोल जवाहर जी और रत्ना से मिला ? क्या अरविंद जी को अनमोल से मदद का कोई आश्वासन मिला ?