Sulochana - 8 in Hindi Fiction Stories by Jyotsana Singh books and stories PDF | सुलोचना - 8

Featured Books
  • પ્રેમતૃષ્ણા - ભાગ 11

    “ હા ડો.અવની મલ્હોત્રા “ ખુશી બોલી .“ ઓકે , શાયદ ડો.મલ્હોત્ર...

  • આઈ વોન્ટ ટુ ટોક

    આઈ વોન્ટ ટુ ટોક- રાકેશ ઠક્કરઅભિષેક બચ્ચન પિતા અમિતાભનો અભિનય...

  • ભીતરમન - 59

    મુક્તારના જીવનમાં મારે લીધે આવેલ બદલાવ વિશે જાણીને હું ખુબ ખ...

  • ભાગવત રહસ્ય - 121

    ભાગવત રહસ્ય-૧૨૧   ધર્મ -પ્રકરણ પછી હવે -અર્થ -પ્રકરણ ચાલુ થા...

  • કૃતજ્ઞતા

      આ એ દિવસોની વાત છે જ્યારે માનવતા હજી જીવતી હતી. એક ગામમાં...

Categories
Share

सुलोचना - 8

भाग-८

सब भोग प्रसाद खाने में लगे थे सुलोचना को देख एम.के.ने रसोगुल्ला उठा कर मणि की पत्तल में रख दिया और बोला-

“मेरा कोटा पूरा हो चुका है मुँह मीठा करने का।”

सुलोचना का चेहरा ज़र्द हो गया उसने सामने रखे डोंगे से दो रसगुल्ले लिए और खाने शुरू कर दिए।

उसे ऐसे खाते देख मणि बोला-

“सुलोचना आराम से खाओ।”

तभी माँ ने उसे अपनी सखियों से मिलवाने के लिए बुलवाया वह छम-छम करती हुई उनके क़रीब जा पहुँची।

आज उसके आगे-पीछे कई चक्कर एम.के.ने लगाए पर वह हर बार उससे कतरा कर भीड़ का हिस्सा बन जाती। एम.के.चाह कर भी उससे मुख़ातिब न हो पाता।

मौक़ा मिलते ही एम.के.ने सुलोचना से पूछा-

“तुम नाराज़ हो ?”

“नहीं खुद से शर्मिंदा हूँ।”

“अरे ऐसा क्या हो गया ये सब तो आज कल कोई बड़ी बात नहीं है।”

“खुद पर अफ़सोस करती हूँ कि आप के अपने पन में मैं खुद को ख़त्म कर रही थी। आप के लिए बड़ी बात नहीं होगी हमारे गाँव में आज भी ग़लत बात ही है। गलती मेरी रही जो मैंने अपने दायरे में आप को आने की जगह दी।”

तभी मणि के दफ़्तर की मित्र मंडली वहाँ आ पहुँची उन के साथ थी एक चपल नार जिसका नाम सुनंदा था।

सुनंदा गौरवर्णी आधुनिका थी उसकी ज़ुबान भी बांग्ला कम अंग्रेज़ी ज़्यादा थी।

वह मणि की मित्र मंडली में सबकी प्रिय लग रही थी उससे सुलोचना को मिलवाते हुए मणि ने कहा-

“सुनंदा ये मेरी वाइफ़ हैं सुलु, आई मीन सुलोचना मुखर्जी।”

सुनंदा बोली-

“इट्स ओके मणि सुलु साउंड गुड।” सुलोचना की तरफ़ घूम कर बोली-

“हेलो सुलु! आई एम सुनंदा तुम्हारे हसबैंड की कलिग।”

सुलोचना उसके फ़र्राटे दार स्टाइल से कुछ अचकाचा गई कि तभी एम.के.ने बीच में खुद को इन्‌ट्रˈड्‌यूस करते हुए कहा-

“हाई मीट विथ मी माई सेल्फ़ एम.के.।”

सुनंदा उसके दिलकश अंदाज़ में अपना अंदाज़ मिलाते हुए कहा-

“सो वाट कैन आई डू फ़ॉर यू?”

और खिलखिला के हँस पड़ी।

एम.के.को वह जँच गई और वह उसके साथ अपने अन्दाज़ में बतियाने लगा। अब सुलोचना को इन सब बातों से जैसे कोई फ़र्क़ ही न पड़ रहा हो वह मणि के मुँह से अपना नाम “सुलु” सुन कर ही ख़ुश थी।

तभी मणि बोला-

“सुनंदा मेरे दादा अमेरिका रिटर्न हैं और यहाँ अपने लिए एक खूबसूरत साथी की तलाश में हैं।”

सुनंदा बोली-

“ठीक है बताइए मिस्टर एम.के.आप को कैसी संगनी चाहिए?”

एम.के.ने तपाक से कहा-

“बिलकुल आप जैसी।”

“मुश्किल है मेरी जैसी तो बस मैं ही हूँ।”

“तो आप ही विनती सुन लें।”

कह कर वह ठहाका लगा उठा सभी दोस्त इन दोनो की बात सुन हँस पड़े। सुलोचना को उन दोनो के व्यवहार से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ रहा था। वह सोच रही थी शायद ये भी इनकी दुनिया का कोई सच होगा।

रात में पंडाल में नाटक का आयोजन किया गया सभी काफ़ी रात तक पंडाल में बैठे रहे। इस बीच एम.के.और सुनंदा काफ़ी घुल-मिल गए।

सुलोचना उन दोनों का आपसी व्यवहार देख सोच रही थी वह जा कर सुनंदा की कह दे कि तनिक संभल कर रहना दादा की बातों से। तभी खेले जा रहे नाटक में नायिका, नायक से कहती है-

“तुम पुरुष तो होते ही हरजाई हो आज इस कली पर तो कल उस फूल पर।”

सुलोचना एम.के.के बारे में सोचा और खुद को अपराधी मान अपने कान पकड़ कर उमेठ लिए फिर अंधेरे में ही मणि के मुख मंडल को चूम लिया

मणि भी कहाँ तैयार था किसी इस तरह के व्यवहार के लिए वह अचानक हुए इस कार्य से हतप्रभ हो गया पर शायद कहीं उसके शुष्क मन पर भी सुलोचना के लिए अंकुर फूटने लगा था।

सुलोचना आज देर तक सोती रही तभी मणि ने उसे जागाते हुए कहा।

“आज माँ कि विदाई है और तुम सो रही हो चलो तैयार हो जाओ पंडाल चलना है।”

मणि ने उसे जगाते हुए उसके मुखड़े को बड़े ध्यान से देखा और न जाने क्या सोच कर मुस्कुरा दिया।

सुलोचना ने आलस भरी अंगड़ाई लेते हुए उसे देखा और पूछा।

“कि होलो?”

“किछु न।”

फिर थोड़ा रुक कर बोला-

“सुलु सुनंदा तुम्हारी ख़ूब तारीफ़ कर रही थी कह रही थी कि मैं भाग्यशाली हूँ जो मुझे तुम मिली।”

सुलोचना के चेहरे पर एक चमक दौड़ गई और वह बोली-

“और तुम क्या कहते हो?”

“सच कहूँ मुझे तुम्हारी कुछ बातें बहुत पसंद हैं और कुछ बिलकुल भी नहीं।”

“जो नहीं पसंद हैं वह बता दो।”

“तुम अंग्रेज़ी सीख लो फिर सबके साथ तुम भी स्टैंड कर सकोगी।”

सुलोचना ने उसके और क़रीब आते हुए कहा-

“अगर बस यही कमी है तो मैं सीख लूँगी तुम सिखा दो।”

“न मेरे पास वक्त कहाँ है? एक काम करो एम.के.दादा से सीख लो मैं कह दूँगा वह रुक जायेंगे।”

सुलोचना बिस्तर छोड़ते हुए बोली-

“न मणि मैं दादा से नहीं सीखूँगी उन्हें जाने दो।”

“न सुलु दादा रुकेंगे विसर्जन के बाद वह और सुनंदा सुंदर वन घूमने जाने वाले हैं लौट कर आएगे तब सिखा देंगे तुमको।”

सुलोचना ने पीछे से जा मणि को आलिंगनबद्ध कर कहा।

“मणि तुम्हारा सुलु बोलना मुझे बहुत भाता है। मैं तुम्हारे लिए अंग्रेज़ी भी सीख लूँगी।”

मणि उसकी बाँह पकड़ उसे सामने ले आया और बोला-

“सुलु मुझे माफ़ कर दो मुझे प्यार जताना नहीं आता।”

और उसके माथे को चूम कर बोला।

“अब जा कर तैयार हो जाओ।”

*************