भाग-७
कल से दुर्गा पूजा शुरू थी बहुत सारे इंतज़ाम कोठी पर हो रहे थे पूरे धर्मतल्ला में कोठी की पूजा सबसे बेस्ट रहती थी।
नगर पालिका से सबसे सुंदर पंडाल का प्रशस्ति पत्र पिछले आठ साल से कोठी के पंडाल को ही मिल रहा था।
इस बार भी पंडाल बनाने वाले कारीगर मद्रास से आए थे और वह मदुरै के प्रसिद्ध मीनाक्षी मंदिर जैसा पंडाल सुतली से बना रहे थे।
दोपहर जब सर चढ़ आई तब एम.के.ने अपने आलस को त्यागा और उठा कर स्नान करने चला गया।
नहाने से पहले उसने एक बार अपनी हथेली को देखा और हँस दिया फिर अपने आप को सामने शीशे में गौर से देखा और खुद के वयक्तिव पर ग़ुरूर करता हुआ कह उठा-
“एम.के.कुछ ख़ास ही अंदाज़ है तेरा तभी तो।”
फिर शावर खोल दिया शीतल जल की फुहारें उसे भिगोने लगी।
तैयार हो कोठी के लिए निकल पड़ा हर बढ़ते कदम के साथ कई तरह के विचार उसके साथ-साथ कदम उठा रहे थे।
पंडाल के पास ही सब बैठे हुए थे। एम.के.को देखते ही मणि बोला-
“कि दादा कितनी देर में आए हो बताओ बाबा और मेरी पसंद है कि माँ की मूर्ति के पीछे लाइट से चक्र लगाया जाए और माँ का कहना है शंख की छवि हो अब आप बताओ क्या होना चाहिए एक वोट से बात तय हो जाएगी।”
“चक्र यश का प्रतीक है मणि! और शंख समृद्धि का सुखद नाद है। सुख के बिना यश कहाँ फलित होता है।
शशिधर बोले-
“एम.के. ठीक कह रहा है मणि शंख राखो।”
एम.के.ने लाइट वाले पूछा-
“दोनो नहीं लग सकते क्या? अगर लग सके तो चक्र और शंख दोनों लगाओ।”
लाइट वाले ने टाइनी लाइट से चक्र बना कर उसके बीच में शंख की आकृति सफ़ेद लाइट से बनाकर माँ की प्रतिमा वाले स्थान में लगा दी।
सब प्रतिमा लेने जाने को तैयार थे।
सुलोचना कहीं नज़र न आ रही थी एम.के. ने मामी से पूछा-
“मामी, आप की बहू नहीं जाएगी क्या?”
“न एम.के. वह यहीं रुक कर माँ का स्वागत करेगी।”
शशिधर बाबू बोले-
“सुलोचना आमार लोक्खि आच्छे न एम.के. कि बूझिस तुमी।”
एम.के.ने “हाँ” में सर हिलाया और प्रतिमा लेने सब के साथ निकल गया।
रक्तजवा कुसुम, सिंदूर, शंख और मछली एक सूप में लिए द्वार पर सुलोचना माँ के स्वागत में खड़ी थी।
सुनहरे पाढ की लाल साड़ी में उसका रूप और शृंगार अपनी मोहनी छटा बिखेर रहा था।
द्वार पर उसने माँ की आरती की,शंख बजाया और सबको टीका किया
संदेश खिला कर मुख़ मीठा किया किंतु एम.के.ने मीठा खाने से माना कर दिया और सब के साथ पूजा की और तैयारी में लग गया।
श्लोक, शंख, घंटा और ढोल की मधुर ध्वनि के बीच माँ की स्थापना के साथ ही उत्सव शुरू हुआ।
पूरा पंडाल भक्तिमय और उत्साह से परिपूर्ण था।सब तरफ़ ख़ुशियाँ जैसे बिखरी पड़ती थी।
तभी एम.के. ने मामा को टसर सिल्क का कुर्ता और मामी को बहुत खूबसूरत अमेरिकन ड्रेस दे कर पूजा का प्रणाम किया और मामी से बोला-
“अमेरिका से आप की होने वाली बहू के लिये लाया था पर अभी तक कोई मिली नहीं जो आप को टक्कर दे सके और उसे मैं आप की बहू बना सकूँ तो मामी आप को भेंट कर दी।”
मामी ने उसके कान खींचते हुए कहा-
“मुझसे मसखरी करता है।”
सब हँस दिए उसने आगे बढ़ कर मणि को सुंदर सी घड़ी भेंट की और सुलोचना के क़रीब आ बोला-
“तुमको क्या दूँ मैं तुम तो खुद ही धनवान हो बस ये कुछ अपने मन के मोती हैं जो इस हार में पिरो लाया हूँ।”
मुस्कुराते हुए सुलोचना ने उसका उपहार स्वीकार किया तभी मणि अपनी घड़ी की तारीफ़ एम.के.दादा से करने लगा सब ने अपनी तरफ़ से एम.के.को भी उपहार दिया।
मामा,मामी ने सुंदर वस्त्र और अंगूठी दी मणि ने उसे बहुत भीनी सी ख़ुशबू वाला पर्फ़्यूम दिया।
सुलोचना ने अपना मोतियों का हार देख कर कहा-
“दाद ये तो वही हार है उस दिन तो आप ने बोला था कि सुंदर नहीं है।”
“बोला था क्यों कि मैं तुम्हारे लिए उपहार में लेना चाहता था तुम ले लेती तो मैं क्या लेता।”
“एखुन बुझिस तभी आप उस दिन हम को होटल में छोड़ कर ये सब लेने गए थे।”
एम.के.ज़ोर से हँस दिया और बोला-
“मणि तुम्हारी सुलोचना तो बहुत समझदार है।”
मणि भी हँस दिया और बोला-
“दादा आप के साथ का असर आ रहा है मुझे भी सुलोचना समझदार लगने लगी है।”
वह सजी-धजी सुलोचना को निहारने लगा मणि का इस तरह देखना सुलोचना को सुर्ख़ कर गया एम.के. उन दोनों के बदल रहे हाव- भाव को देख बात बदलते हुए बोला-
“सब ने मुझे गिफ़्ट दिया पर सुलु तुमने मुझे कुछ नहीं दिया।”
सुलोचना ने अपनी बड़ी-बड़ी आँखो को बंद करते हुए कहा-
“मैं तो कुछ भी नहीं लाई आप के लिए अब क्या दूँ? आप ही बोलो।”
“अच्छा मैं ही बताऊँ? ठीक है बताता हूँ तुम मेरा मुँह मीठा करा दो बस।”
सुलोचना बोली-
“बस अभी लाती हूँ रोसोगुल्ला।”
वह दौड़ती हुई कोठी के अंदर चली गई उसके पीछे एम.के.उसे आवाज़ देते हुए चल पड़ा और बोला-
“सुन तो लो सुलु।”
छोटे हाल में वह रोसोगुल्ला लिए आ ही रही थी कि एम.के.पहुँच गया वह बोली-
“लो अपना गिफ़्ट मुँह मीठा करो।”
एम.के.ने एक रसगुल्ला उसके मुँह में रखते हुए उसका आधा भाग उसके होंठों से अपने होंठों में ले लिया और बोला-
“सुलु अब मेरा मुँह मीठा हुआ मिल गाय मुझे मेरा गिफ़्ट पता है तुमको मुझे ऐसे ही मुँह मीठा करना था इस पूजा तभी उस दिन मैंने संदेश नहीं खाया था।
तुमने मुझे दुनिया का सबसे अमीर इंसान बना दिया अपने होंठों से लगा कर।”
उसने उसके हाथ में लगी रह गई चाशनी को अपने मुँह में लेते हुए उसे भरपूर निगाह से देख वह बाहर आ गया।
सुलोचना ठगी सी वहीं खड़ी रह गई उसके पूरे शरीर में कंपन होने लगा उसकी आँखो और कान से गरम लावा फूटने लगा।
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