भाग-३
एम.के. जब-तब उसकी तारीफ़ करके उसके मन को गुदगुदा देता।
वह भी शाम को क्या स्पेशल बनाए यही सोचने में दिन बिता देती। कुछ न कुछ ख़ास वह परोस ही देती जिसकी तारीफ़ एम.के.दिल खोल के करता। उसे लगता उसका बनाना सार्थक हो गया।
अब अपने वस्त्र विन्यास के वक्त वह ध्यान रखती थी कि शाम को उसे लाल या पीले रंग की ही साड़ी पहननी है।वह भी पतले जार्जेट या शिफ़ान की।
बस एक दिन बातों-बातों में ही तो कह दिया था चाय की टेबल पर एम.के.ने उसकी सास से-
“मामी आप मुझे शुरू से पीली शिफ़ान में बहुत अच्छी लगती थी। आप ने साड़ी पहननी क्यों छोड़ दी?”
मामी ने उसे आड़े हाथों लेते हुए कहा था-
“तू क्या अमेरिका में अपनी वाइफ़ को शिफ़ान पहनाएगा?”
एम.के. ने सुलोचना को देखते हुए कहा था-
“मुझे बंगाली साड़ी बहुत पसंद है वह भी सुर्ख़ लाल और चटकते पीले रंग की फिर चाहे वो शिफ़ान हो या जार्जेट।”
उसकी निगाहे अपने आस-पास पा वह पुलकित हो उठी थी। तब से ही उसकी हर शाम लाल-पीली ही रहती।
सुलोचना ने आज पीली शिफ़ान की लाल पाढ वाली साड़ी पहनी हुई थी। बाल भी ढीली सी चोटी में गुँथे हुए थे साइड में बेला का गजरा बड़े क़रीने से पिनप किया हुआ था, जो उसके क़ानो का स्पर्श उसके हिलते ही कर लेते थे।
शाम ढलने लगी थी वह अपने कमरे से नीचे जाने के लिए सीढ़ियां उतर ही रही थी कि मणि आ गया न जाने क्यों आज मणि को वह बहुत सुंदर लगी। पर आज वह अपनी जल्दी में थी उसने मणि को देखा और पूछा-
“एम.के. दादा आ गए क्या?
मणि ने कंधा उचकाते हुए कहा-
“पता नहीं मैं छोटे हाल की तरफ़ अभी नहीं गया।”
थोड़े से चिंतित स्वर में वह बोली-
“रोज़ तो अब तक आ जाते हैं कहाँ रह गए आज मैंने कुछ ख़ास बनाया है उनके लिए।”
और मणि को क्रास करते हुए सीढ़ियां उतर छोटे हाल की तरफ़ चल दी मणि सीढ़ियों पर खड़े उसे जाते हुए देखता रहा फिर कमरे में जा फ़्रेश होने लगा।
उस दिन एम.के.शाम की चाय पर नहीं आया उसे लगा उसका तैयार होना, नाश्ता बनाना सब बेकार हो गया हो।
तभी खाना लगने से पहले एम.के.की मस्ती भरी हँसी सुनाई पड़ी और वह तेज़ी से छोटे हाल में आई और उसे देखते ही खिल उठी।
एम.के. भी उससे बोला-
“अरे सुलु आज मैंने तुम्हारे हाथ का स्वादिष्ट नाश्ता मिस कर दिया।”
वह कुछ नहीं बोली बस ख़ामोश निगाहों से उसे देखती रही तभी वह उसके क़रीब आ बोला-
“कितना सुंदर शृंगार और उस पर ये उदासी अच्छी नहीं लगती सुलोचना जी अब तो ख़ुश हो जाइए मैं आ गया हूँ आप की सेवा में।”
उसकी बड़ी-बड़ी आँखों में नमी उतर आई।
और वह अपने झड़ चुके ग़जरे को बाल से हटाने लगी तभी एम.के.ने उसे इशारों से माना कर दिया उसके हाथ वहीं रुक गए। एम.के.ने अपने कान पर हाथ लगाते हुए देरी की क्षमा उससे इशारों में ही माँग ली जिससे वह मुरझाए हुए ग़जरे में भी खिल उठी।
सुबह-सुबह ही मणि उठ कर तैयार होने लगा तो सुलोचना ने पूछा-
“की होलो तूमी कोथाये जाचो की?”
“हें! ताल ते जेते होबे ओखाने दादा आमर वेट कोरचे।”
एम.के.का नाम सुनते ही वह आलस छोड़ उठ बैठी और अधीरता से बोली-
“पहले यहाँ आयेंगे क्या?”
“नहीं वहीं मिलेंगे।”
“तो ब्रेकफास्ट का इंतज़ाम कर लूँग़ी उन्हें घर लिए आना।”
हाँ का इशारा कर मणि कमरे के बाहर जाने लगा तभी उसे एम.के. की आवाज़ सुनाई दी।
“अरे मणि बाबू कितना सोते हो ताल की सारी मछली कहीं दूर नहाने चली जायेंगी फिर तुम अपनी सुंदर पत्नी का मुखड़ा ताकते रहना।”
उसकी आवाज़ सुन वह भी मणि के साथ ही बाहर आ गई उसकी अलसाई सी सूरत देख एम.के.उसे देखता ही रह गया और बोला-
“मणि भोर की रंगत सच में बिलकुल अलग होती है। तुम कितने भाग्यशाली हो रोज़ देखते हो मैंने तो आज पहली बार देखी है ऐसी अलसाई सी भोर।”
मणि बोला।
“न दादा मैं रोज़ इत्ती सुबह नहीं उठता वो तो आज आप की ख़ातिर नहीं तो इतवार को तो मेरी भोर नौ बजे होती है।”
एम.के. सुलोचना को नज़र भर के देखता रहा और सुलोचना उसकी अलसाई भोर बनी उस पर अपनी ओस की बूँद टपकाती रही।
वह दोनो तालाब के लिए निकल गए, सुलोचना वापस आ खुद को आइने में निहारने लगी और खुद से ही बोली-
“ओह! तो मैं अलसाई सी भोर हूँ।”
फिर अपनी हथेलियों से अपना मुखड़ा छुपाकर शरमा गई और स्नान के लिए चली गई।
लौटी तो क्या पहने इस उलझन ने उसे परेशान कर दिया लाल,पीला पहनने के लिए आज उसके पास की कुछ ख़ास नहीं था अंत में उसने एक आसमानी ताँत पहन ली। ब्रेकफास्ट भी उसने अपनी देख- रेख में ही बनवाया था। सासू माँ ने उसे ताँत में देखा तो बोली-
“क्या सुलोचना तुम रोज़-रोज़ साड़ी लपेट के बोर नहीं होती संडे तो फ़नडे बन कर रहा करो वही देहाती तरीक़ा तुम पाढा वाले लोगों का।”
हमेशा की तरह वह बिना कुछ बोले उन्हें उनका नींबू पानी दे कर अपने काम में लग गई तब तक वही चिर परिचित हँसी सुनाई दी और उसका दिल ज़ोर से धड़कने लगा।
मणि और एम.के. दोनो पकड़ी हुई मछलियों के साथ आज की फ़िशिंग की चर्चा में लगे हुए थे।
सासू माँ और शशि बाबू भी इंट्रेस्ट ले कर सुनने में लगे थे सुन तो वह भी रही थी पर उसे लगा आज एम.के.दादा ने उसके रूप शृंगार पर ध्यान नहीं दिया वह सोचने लगी शायद उनकी पसंद का रंग नहीं है इसी वजह से तभी उसे चुप देख एम.के.बोला-
“क्या हुआ सूलु हमारी फ़िशिंग की बात में आप को इंट्रेस्ट नहीं आया क्या?”
तपाक से सासू माँ बोल पड़ी-
“एम.के. फ़िश कैसी बनानी है उसे तो बस इस में इंट्रेस्ट है फ़िशिंग की मस्ती वो नहीं जानती।”
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