Diary :: the truth of magic beyond imagination - 4 in Hindi Fiction Stories by Swati books and stories PDF | डायरी ::कल्पना से परे जादू का सच - 4

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डायरी ::कल्पना से परे जादू का सच - 4

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"ऑलिव मुझे यहाँ से लोगों की बोलने की आवाज़ सुनाई दे रही थीं । कोई है, जो तुम्हारे पास था ?" राक्षसी ने पूछा। नहीं, तुम्हारे कान बज रहे होंगे, यहाँ कोई नहीं है। ऑलिव का ज़वाब था । राक्षसी सचमुच बेहद डरावनी लम्बे दांत और लम्बी पूँछ वाली थीं । उसने मुँह से एक फुँकार लगाई और कहा कि मेरे कान यूँ नहीं बज रहे यहाँ जो मेहमान आया है उसका पता मुझे चल ही जाएगा ।" इतना कहकर राक्षसी गायब हो गई और सभी बाहर आ ऑलिव से बातें करने लगे । "तुम उसी राजा की बेटी हों न जिसके पास वो जादूगर था?" यास्मिन का सवाल था । "हाँ, मेरे पिताजी से बहुत बड़ी गलती हों गयी थीं, जो उन्होंने अपने भाई के मरे हुए परिवार को जीवित करवाया । इस बात का पता उस जादूगर को चल गया और उसने बड़ी चालाकी से हमें धोखा देते हुए हमें अपने जादू में कैद कर दिया और ख़ुद राजगद्दी पर बैठ गया । वह कोई मामूली जादूगर नहीं है । अब राक्षस जादूगर बन चुका है ।" ऑलिव की आवाज़ में ख़ौफ़ था । "तुम्हारे परिवार के बाकी लोग कहाँ' है ?" ऋचा ने पूछा । यहाँ जंगल में जो बरगद बाबा है, वह मेरे पिता है । मेरी बहन और माँ को उस जादूगर ने अपनी कैद में रखा हुआ हैं और मेरा मंगेतर फिलिप ड्रैगन बन जादूगर का गुलाम बन चुका हैं । ऑलिव की आँखों में दर्द उतर आया । "उस आदमी का क्या हुआ जिसे जादूगर ढूँढ रहा था ? " गौरव ने पूछा ।

 

"पता नहीं क्या हुआ ? लेकिन बाबा कहते थे, "शायद वह मर चुका है, वह यहाँ से बाहर न निकल सका और उसने यही इसी जंगल में अपनी जान

दे दी ।" क्या !!! "सबके मुँह खुले के खुले रह गए और ऑलिव पूरब की ओर से रास्ता बता फिर शांत होकर बहने लगी । यास्मिन सोच रही थीं कि वक़्त गुज़रता जा रहा है । उसे यहाँ से अपने गॉंव टिम्बरली भी पहुँचना है जो ज़्यादा दूर नहीं रह गया था । वो लोग चले जा रहे थें बड़ा संभल-संभल कर कभी लगता कोई उनका पीछा कर रहा है या पेड़ों पर बैठे विचित्र पक्षी भी किसी अनहोनी का संकेत दे रहे थें, "किसने सोचा था कि टिम्बरली के इतना पास होकर भी हम सब यहाँ फँस जायेंगे । " ऋचा के मुँह से अचानक निकल गया और सब उसे देखने लगे। "क्या तुम लोग टिम्बरली जा रहे थे ?" मगर तुम लोग घूमने आये थें, उस गॉव में तुम्हारा क्या काम ?" यास्मिन ने हैरानी से पूछा । "हाँ, टिम्बरली में मेरे किसी रिश्तेदार का काफी बड़ा घर था, जिसे उसने अब फार्महाउस बना दिया है । बस वहीं रुकने का इरादा था। पर तुम क्यों इतना हैरान हो गई ? क्या तुम भी ?" तारुश ने सवाल किया। "वहाँ मेरे दादाजी का घर है । उन्होंने मुझे वहाँ से अपना सामान लाने को कहा था और मुझे जल्दी वापिस पहुँचना है। वो बड़े बीमार है और उनकी अंतिम इच्छा पूरी करने के लिए यहाँ इतनी दूर आई हूँ , मगर देखो न क्या हो गया ? कहकर यास्मिन रोने लगी। तारुश ने उसे समझाया कि वह अपने दादाजी की आखिरी इच्छा को जरूर पूरा करेंगी।

 

"मुझे बहुत भूख लगी है दोस्तों "गौरव ने देखा की सामने वाले पेड़ पर फल लगे हुए हैं । वह दौड़ा और जल्दी से फल तोड़कर खाने बैठ गया । नितिशा ने मना किया मगर उसने कहा, "एक फल से क्या होता है? कहकर गौरव ने फल खा लिया कुछ देर वह सही रहा । मगर जब सब आगे बढ़ रहे थें, तभी पीछे मुड़कर देखने पर गौरव दिखाई नहीं दिया। सब डर गए और जोर-ज़ोर से 'गौरव' 'गौरव' आवाज़ देने लगे । नितिशा ज़ोर-ज़ोर से चीखने लगी। सभी ने उसको समझाया। यास्मिन के मना करने के बाद भी पुनीत और समीर गौरव को ढूँढ़ने चले गए और अपने पीछे एक ड्रैगन को आता देख दौड़े और सभी के पास पहुँच, उन्हें भी अपने साथ लेकर एक गुफा में घुस गए। गुफा के अंदर सिर्फ अँधेरा था और एक हलकी सी रोशनी जिस तरफ से आ रही थीं उसी तरफ़ चले गए । वहाँ जाकर देखा तो गुफ़ा में भी एक जंगल था और यास्मिन को वहीं डरवाने चेहरे दिखाई दिए जो उसने अपने सपने में देखे थें ।

 

"अरे! ये कोई सपना नहीं, यह सचमुच डरावनी हक़ीक़त है। "यास्मिन ने मन ही मन सोचा। ये लोग यहाँ पर किनका पहरा दे रहे हैं ?" तारुष बोला । तभी सब वहीं पेड़ और झाडियों के पीछे छिपकर उनकी बातें सुनने लगे।