This is the weird story .. - 8 in Hindi Moral Stories by Ashish Kumar Trivedi books and stories PDF | अजीब दास्तां है ये.. - 8

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अजीब दास्तां है ये.. - 8

(8)

तमिलनाडु से उपेंद्र रेवती को बिहार ले गया। पश्चिमी चंपारण के बेतिया में उसकी बहुत सी संपत्ति थी। कुछ दिन तो रेवती को वहाँ अच्छा लगा। पर उसे इस बात की चिंता थी कि उसके मास्टर्स के एडमीशन की प्रक्रिया शुरू होने वाली होगी। उपेंद्र की क्लासेज़ का भी हर्ज़ होगा। उसने उपेंद्र से कहा कि अब उन्हें बनारस वापस लौट जाना चाहिए। उपेंद्र ने कहा कि वह जल्दी ही बनारस लौट चलेंगे।

उपेंद्र ने वापस चलने की बात कही तो थी पर उसके व्यवहार से ऐसा बिल्कुल भी नहीं लग रहा था कि वह बनारस जाने के मूड में है। एक दिन जब वह पेंटिंग के लिए सामान लेकर लौटा तो रेवती ने आश्चर्य से कहा,

"उपेंद्र इस सब की क्या ज़रूरत थी। हम बनारस वापस जा रहे हैं। वहाँ तो तुम्हारा अपना स्टूडियो है।"

उपेंद्र ने बड़ी ही लापरवाही से कहा,

"बनारस जाकर क्या करेंगे ?"

रेवती ने आश्चर्य से कहा,

"क्या करेंगे का क्या मतलब है ? तुम्हारे क्लासेज़ हैं। मुझे भी मास्टर्स में एडमीशन लेना है।"

उपेंद्र उसकी तरफ देखकर मुस्कुराया। उसे कुर्सी पर बैठाकर बोला,

"रेवती हम दोनों कलाकार हैं। हमें अपनी कला की साधना के लिए डिग्री की ज़रूरत नहीं है। यह घर कितना बड़ा है। आसपास भी कितनी शांति है। तुम भी अपने पसंदीदा तमिल गीत गुनगुनाते हुए पहले की तरह स्केच बनाओ। कुछ दिन सुकून का जीवन जिओ।"

उपेंद्र ने इतने इत्मिनान से यह बात कही कि रेवती उसका मुंह देखती रह गई। उसने कुछ कहना चाहा तो उपेंद्र ने उसके होंठों पर उंगली रखकर कहा,

"रेवती मैं कोई बहस नहीं चाहता हूँ।"

उस दिन भले ही उसने तेज़ आवाज़ में यह बात ना कही हो लेकिन उसकी आवाज़ में एक आदेश था। रेवती के लिए यह एकदम नया अनुभव था। उसने उस समय तो कुछ नहीं कहा। पर यह तय कर लिया था कि वह इस प्रकार उसके दबाव में नहीं आएगी। लेकिन इस बात के कुछ ही घंटों के बाद उपेंद्र उसके पास आया और बड़ी नर्मी के साथ बोला,

"रेवती मैंने तुमसे कुछ सख्त लहजे में बात की। इसका मुझे दुख है। मेरा मन तो अब आगे पढ़ाई करने का नहीं है। पर मैं तुम्हें नहीं रोकूँगा। तुम जो चाहे करो। मन हो तो आगे पढ़ो‌। नहीं तो नौकरी कर लो। मैं बस यह चाह रहा था कि हमारी अभी नई शादी हुई है। कुछ महीने हम दोनों सुकून से यहांँ बिता लें। इसके बाद बनारस क्या तुम जहांँ कहोगी वहांँ चलकर रहेंगे। बस कुछ दिनों के लिए मेरी बात मान लो।"

 

उपेंद्र की नर्मी से रेवती कुछ पिघल गई। फिर भी उसने अपने मन की बात कही,

"अगले साल मास्टर्स के लिए एडमीशन मिलना आसान नहीं होगा।"

"तुमको तो कोई दिक्कत नहीं होगी। अगर मास्टर्स में एडमीशन ना मिले तो फिर कोई और प्रोफेशनल कोर्स कर लेना जो तुम्हारे करियर में मदद करे।"

जिस तरह से उपेंद्र ने यह बातें कहीं थी उससे रेवती को यकीन हो गया था कि वह उसे आगे बढ़ने से नहीं रोकेगा। उसने सोचा कि वह उपेंद्र की बात मान लेती है। उसकी भी इच्छा किसी क्रिएटिव फील्ड में जाने की थी। इस समय में वह अपना मन बना सकती थी कि वह आगे क्या करे। उसने उपेंद्र की बात मान ली।

वह भी अब पहले की तरह ‌स्केच बनाती थी। संगीत का रियाज़ करती थी। कुछ पढ़ लेती थी। कुछ दिन तक तो उसे ठीक लगा लेकिन उसके बाद उसे ऊब होने लगी। उपेंद्र अपने में ही खोया रहता था। जब तक मन करता था पेंटिंग बनाता। उसके बाद घर से निकल जाता था और देर तक ना जाने कहाँ भटकता रहता था। रेवती ने कई बार शिकायत की पर उसने ध्यान नहीं दिया।

उपेंद्र के चाचा का घर कुछ ही दूर पर था। पर वह उनसे अधिक संबंध नहीं रखता था। सिर्फ एक बार रेवती को लेकर उनके पास गया था। एक दिन जब उपेंद्र पेंटिंग बनाने के बाद घूमने के लिए गया था तब एक लड़का उसके घर आया। उसने बताया कि वह उपेंद्र का कज़िन नृपेंद्र है। वह मुंबई की एक सॉफ्टवेयर कंपनी में काम करता है। कुछ दिनों के लिए घर आया हुआ है। उसे पता चला है कि उपेंद्र ने शादी कर ली है और आजकल यहीं रह रहा है। इसलिए वह मिलने चला आया। कुछ देर बैठकर वह चला गया। उपेंद्र के आने पर रेवती ने उसे बताया नृपेंद्र आया था। पर उसने कोई उत्साह नहीं दिखाया।

उसके बाद एक दिन नृपेंद्र फिर आया। इत्तेफाक से उस दिन भी उपेंद्र घर पर नहीं था। उस दिन रेवती और नृपेंद्र के बीच खूब बात हुई। उसकी स्केचबुक देखकर नृपेंद्र ने कहा कि वह एक बहुत अच्छी आर्टिस्ट है। आजकल क्रिएटिव फील्ड में कई अवसर हैं। रेवती ने कहा कि वह भी कुछ क्रिएटिव ही करना चाहती है। नृपेंद्र ने उससे कहा कि वह ग्राफिक्स डिज़ाइनिंग के लिए ट्राई करे।

उस दिन उपेंद्र के लौटने पर रेवती ने फिर बताया कि नृपेंद्र आया था। उसकी बात सुनकर उपेंद्र ने कुछ नाराज़गी से कहा,

"वह रोज़ रोज़ क्यों आता है ?"

रेवती को उसकी यह बात बहुत अजीब लगी। उसने कहा,

"कैसी बात कर रहे हो ? तुम्हारा भाई है वह।"

"कोई भी हो। मुझे किसी का बहुत अधिक आना जाना पसंद नहीं है। आइंदा वह यहाँ ना आए।"

अपनी बात कहकर उपेंद्र ऊपर अपने स्टूडियो में चला गया। रेवती स्तब्ध सी कुछ समझ नहीं पा रही थी। वह उपेंद्र के पास उसके स्टूडियो में गई। उसने उपेंद्र से कहा,

"उपेंद्र तुम ये कैसी बात कर रहे थे। घर में मेहमान तो आते ही हैं। फिर वह तो घर का सदस्य है।"

उपेंद्र अपने पेंटिंग ब्रश साफ कर रहा था। उसने रेवती को घूर कर देखा। उसके बाद अपना काम करने लगा। रेवती ने कहा,

"क्या बात है। तुम इस तरह से रिएक्ट क्यों कर रहे हो ?"

"रेवती मैं जो एक बार कह देता हूँ उस पर बहस मत किया करो।"

यह बात रेवती को अच्छी नहीं लगी। उसने भी गुस्से से कहा,

"मैंने तुमसे कब बहस की ?"

उपेंद्र ने हाथ में पकड़ा हुआ सामान ज़मीन पर ज़ोर से पटक दिया। रेवती को कंधे से पकड़ कर गुस्से से कहा,

"उस नृपेंद्र की बहुत तरफदारी कर रही हो। बात क्या है ?"

उपेंद्र ने जिस तरह से अपनी बात कही थी वह रेवती को बहुत बुरी लगी। उसने अपने आप को छुड़ाकर कहा,

"यह क्या घटियापन है ?"

उपेंद्र ने गुस्से में उसे तमाचा मार दिया। रेवती कुछ करती उससे पहले ही नीचे से आवाज़ आई। यह नृपेंद्र था। वह 'रेवती भाभी' कहकर आवाज़ लगा रहा था। उपेंद्र ने कहा,

"लो फिर आ गया। कुछ बात तो है।"

उसने रेवती को वहीं बंद कर दिया और नीचे चला गया। रेवती को नीचे से उपेंद्र के चिल्लाने की आवाज़ आ रही थी। वह नृपेंद्र से कह रहा था कि दोबारा यहाँ आने की हिम्मत मत करना। उसके बाद मेन डोर बंद करने की आवाज़ आई। रेवती उपेंद्र के आने की राह देख रही थी। पर कुछ देर होने के बाद भी जब वह नहीं आया तो वह समझ गई कि वह भी घर से बाहर निकल गया है।

आज जो कुछ भी हुआ उससे रेवती बहुत परेशान हो गई थी। उसने कभी भी नहीं सोचा था कि उपेंद्र उसके साथ ऐसा करेगा। पहले उस पर शक किया, फिर हाथ उठाया। अब उसे कमरे में बंद करके जाने कहाँ चला गया था। कमरे में अकेले बैठी वह अपने भविष्य के बारे में सोच रही थी। जो कुछ भी उपेंद्र ने किया वह माफी के लायक नहीं था। उसने तय कर लिया था कि अब चाहे जो हो जाए। वह यहांँ नहीं रहेगी।

रेवती को अकेले कमरे में बंद करीब तीन घंटे बीत गए थे। हर बीतते क्षण के साथ उसका गुस्सा बढ़ता जा रहा था। उसे नीचे कुछ आहट सुनाई पड़ी। उपेंद्र लौट आया था। उसने ज़ोर ज़ोर से उसे पुकारना शुरू किया। कुछ देर में उपेंद्र के सीढ़ियां चढ़ने की आवाज़ आई। वह दरवाज़ा खोलकर अंदर आ गया। उसके हाथ में एक प्लेट थी। उसने कहा,

"खाना खा लो।"

गुस्से में भरी रेवती शेरनी की तरह उस पर झपटी। उसका गिरेबान पकड़ कर बोली,

"यह क्या बदतमीजी है। मुझे कमरे में बंद क्यों किया था ? मुझ पर हाथ उठाने की हिम्मत कैसे की ?"

उपेंद्र ने उसे बालों से पकड़ते हुए उसका चेहरा अपने चेहरे के सामने कर कहा,

"मुझ पर हावी होने की कोशिश मत करो।"

उपेंद्र की बड़ी बड़ी आँखें गुस्से में और अधिक फैल गई थीं। रेवती उन्हें देखकर डर गईं थी। अब तक उन गहरी आँखों में जो एक रहस्य था वह खुल चुका था। आज उन आंँखों से उपेंद्र के अंदर छुपा जानवर झांकता नज़र आ रहा था।

उपेंद्र उसे उसी तरह बालों से पकड़े हुए बोला,

"मैं तुम्हें इस बात की इजाज़त नहीं दूंँगा कि तुम उसी तरह मेरे मुंह पर कालिख पोतकर भाग जाओ जैसे मेरी माँ मेरे बाप के मुंह पर कालिख पोतकर भाग गई थी।"

उसने रेवती को ज़ोर से धक्का दिया। वह ज़मीन पर गिर पड़ी। जाते हुए उपेंद्र ने कहा,

 

"खाना रखा है। मन करे तो खा लेना।"

ज़मीन पर गिरी रेवती के मन में अब गुस्से की जगह डर था। उसे उपेंद्र की वह गुस्से से लाल बड़ी बड़ी आंँखें याद आ रही थीं। उनके पीछे से झांकता हुआ जानवर उसे डरा रहा था।

रेवती समझ गई थी कि उपेंद्र किसी घाव की पीड़ा को मन में दबाए हुए है। वह घाव जो उसकी मांँ ने दिया है।

उपेंद्र ने उसे घर के ऐसे कमरे में बंद कर दिया था जो एकांत में था। उस कमरे से जुड़ा हुआ एक वॉशरूम था। रेवती को उससे बाहर आने की इजाज़त नहीं थी। दिन में तीन बार उपेंद्र खाना लेकर आता था। इसके अलावा वह कमरे में अकेली बंद रहती थी। उसका मोबाइल भी उससे छीन लिया था। कोई दस पंद्रह दिन के बाद जब उपेंद्र उसके लिए खाना लेकर आया तो रेवती ने हिम्मत करके कहा,

"उपेंद्र प्लीज़ मेरे साथ ऐसा मत करो। मैं तुम्हें बहुत प्यार करती हूँ। मैं तुम्हें कहीं छोड़कर नहीं जाऊंँगी।"

उपेंद्र हंसकर बोला,

"प्यार.... मैं पहले ही कह चुका हूंँ कि प्यार मेरे लिए एक मृगतृष्णा है। जब पास जाता हूंँ तो तपती रेत बन जाता है। तुम्हारा प्यार भी मेरे लिए तपती रेत बन गया है। तुम्हें देखकर मुझे अपनी माँ की याद आती है। उसी वक्त मेरा दिमाग खराब हो जाता है। तुम भी मेरी मांँ की तरह उस नृपेंद्र के साथ भागना चाहती थी।"

"मेरा यकीन करो उपेंद्र। मैं तो बस नृपेंद्र से इसलिए बात कर लेती थी क्योंकी वह तुम्हारा भाई है। वह भी सिर्फ दो बार इस घर में आया था। तीसरी बार तो तुमने उसे बेइज्जत करके निकाल दिया।"

"क्योंकी मैं अपने बाप की तरह गलती नहीं करना चाहता था। मेरे बाप की गलती हम दोनों पर बड़ी भारी पड़ी। मैं बारह साल का था। लोग मुझ पर और मेरे बाप पर हंसते थे। स्कूल में लड़के मुझे चिढ़ाते थे। कहते थे कि जैसे इसकी मांँ इसके बाप को छोड़कर भाग गई है। वैसे ही इसकी बीवी भी इसे छोड़कर भाग जाएगी। मैंने स्कूल जाना बंद कर दिया। एक साल तक मेरी पढ़ाई का हर्जा हुआ। उसके बाद पापा मुझे लेकर तमिलनाडु चले गए।"

रेवती समझ गई थी कि उपेंद्र की मानसिक स्थिति अच्छी नहीं है। अगर उसे इस स्थिति से बाहर आना है तो धैर्य से काम लेना होगा। उसने बड़े प्यार से कहा,

"उपेंद्र मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूंँ। मैं तो तुम्हें दुनिया की हर खुशी देना चाहती हूँ। तभी तो तुम्हारी बात मानकर मैं यहाँ रुक गई थी। मुझ पर यकीन करो। मैं कहीं नहीं जाऊंँगी।"

"मुझे तुम्हारा प्यार नहीं चाहिए। तुम्हें यहांँ बंद करके रखूँगा। तुम्हें घुटते हुए देखूँगा तो लगेगा कि मैंने अपने और अपने बाप की तकलीफों का बदला ले लिया।"

रेवती उसकी बात सुनकर सन्न रह गई। उसने कहा,

"उपेंद्र तुम्हारी माँ ने जो किया उसका बदला मुझसे क्यों ले रहे हो। मैंने तो कुछ नहीं किया।"

"तुम सब औरतें एक जैसी हो। मैं आरतों से नफ़रत करता हूँ।"

"तो फिर मुझसे शादी क्यों की थी ?"

"बदला लेने के लिए। मैं अपने आप में रहता था। कोई लड़की मुझसे बात नहीं करती थी। कॉलेज में तुम पहली लड़की थी जिससे मेरी बातचीत हुई। बस मैंने तय कर लिया था कि तुम्हें अपना बनाकर हमेशा के लिए कैद कर लूँगा। मैं तुम्हें कभी नौकरी ना करने देता। हमेशा यहीं रखता। हाँ इस तरह से कमरे में बंद करके ना रखता। पर उस नृपेंद्र की वजह से करना पड़ा।"

रेवती कांप उठी कि अब उसे इस तरह कमरे में बंद होकर रहना पड़ेगा। उसने वहाँ से भागने की कोशिश की। पर उपेंद्र के चंगुल से बच नहीं पाई। वह उसके सामने रोई गिड़गिड़ाई। पर उसे कोई फर्क नहीं पड़ा।

उस दिन के बाद उपेंद्र आता था और उसे खाना देकर चला जाता था। वह पूरी सावधानी बरतता था कि रेवती फिर से भागने की कोशिश ना कर सके। वह दिनभर कमरे में अकेली पड़ी रहती थी। अब कौन सा दिन है ? क्या समय हुआ है ? उसे कुछ भी पता नहीं चलता था। वह धीरे धीरे उस स्थिति में पहुंँच रही थी जहांँ उसका दिमागी संतुलन बिगड़ जाता। लेकिन रेवती हिम्मत नहीं हारना चाहती थी। इसलिए तीनों टाइम का खाना खाती थी। अपना मानसिक संतुलन बनाए रखने का पूरा प्रयास करती थी।

उसकी बड़ी मिन्नतें करने पर उपेंद्र ने उसे दो स्केचबुक और पेंसिल लाकर दिए थे।

उसका कमरा घर के जिस हिस्से में था वहाँ घर के किसी हिस्से की कोई आहट नहीं आती थी। उसे पता ही नहीं चलता था कि घर में कोई आता जाता भी है या नहीं। वह किसी से मदद भी नहीं मांग सकती थी।

वह इस उम्मीद पर हिम्मत बांधे हुए थी कि एक दिन वह इस कैद से आज़ाद हो जाएगी।