(3)
दो महीने बीत गए थे। मुकुल और रेवती के बीच एक दोस्ती का रिश्ता पनप चुका था। दोनों अब खुलकर एक दूसरे से बात करते थे। सिक्सथ फ्लोर के तीन फ्लैट्स अब एक परिवार की तरह थे। आजी इस परिवार की मुखिया थीं। रेवती भी अब नीली को दी कहकर पुकारती थी। दोनों बच्चों के लिए वह आंटी थी।
दोस्ती समय के साथ गहरी हो रही थी लेकिन मुकुल के मन में रेवती के लिए दोस्ती से अधिक एक भाव था। कई बार उसे ऐसा महसूस होता था कि वह रेवती के प्यार में पड़ गया है। रेवती हमेशा ही अब उसके खयालों में रहती थी। जब वह बाहर जाने के लिए तैयार होता था तो कपड़े पहनते हुए सोचता था कि यह रंग रेवती को पसंद आएगा या नहीं। उसकी कोशिश रहती थी कि रेवती की नज़र उस पर पड़े और वह उसकी तारीफ करे।
उसे लगता था कि यह उसकी ज़िंदगी का सबसे अच्छा समय चल रहा है। ऐसा सोचने का कारण सिर्फ रेवती थी। उसके आने के बाद से ही कई सालों के बाद उसने अपने लिए भी जीना शुरू किया था। इसके पहले उसे लगता था कि लाइफ एक बंधे बंधाए दायरे में चक्कर काट रही है। वह जी नहीं रहा है बल्कि एक रुटीन फॉलो कर रहा है।
उसके रुटीन में आज भी बहुत नहीं बदला था। अभी भी वह वही काम कर रहा था जो पहले करता था। पर अब उसे लगता था जैसे कि वह किसी बंद कमरे से निकल कर खुले से मैदान में आ गया हो। जैसे कि अचानक ही उसे पंख मिल गए हों और वह खुले आसमान में उड़ रहा हो।
पर इस खुशी के साथ-साथ मन के किसी कोने में दबा डर भी उसे परेशान करता था। उसे लगता था कि कहीं यह सब एक सपने की तरह बिखर तो नहीं जाएगा। अचानक आसमान में उड़ते हुए उसे फिर से जमीन पर तो नहीं उतारना पड़ेगा। यही कारण था कि वह अपने मन की बात रेवती से कहने से डर रहा था।
उसे लगता था कि यदि यह एक सपना है तो वह सदा सपने में ही जीता रहे। वैसे ही रोज़ रेवती के साथ डिनर के बाद वॉक पर जाता रहे। सोसाइटी के पार्क में उसके साथ बैठकर बातें करता रहे जैसे अभी करता है। सुख से भरा यह समय यूं ही चलता रहे।
कई सालों के बाद उसे किसी का साथ मिला था। उसने अपने मन की बात उसके साथ शेयर करना शुरू किया था। रेवती उसकी बातों को बड़े ध्यान से सुनती थी। उन पर अपनी प्रतिक्रिया देती थी। उसे सलाह देती थी। उसकी सिली बातों पर खुल कर हंस भी देती थी। उसकी वह हंसी उसे बहुत पसंद थी।
आज छुट्टी का दिन था। कल रात डिनर के बाद जब वह और रेवती वॉक पर गए थे तब बातों बातों में रेवती ने उससे कहा था कि बहुत दिनों से उसने कोई मूवी नहीं देखी है। वह इसी फ्राइडे रिलीज़ हुई फ़िल्म देखना चाहती है। यह एक लव स्टोरी है और उसे लव स्टोरीज़ बहुत पसंद हैं। उसी समय मुकुल ने प्रस्ताव रखा था कि क्यों ना कल वही फिल्म देखी जाए। रेवती मान गई थी।
मुकुल ने जब शो के टिकट बुक कराने के लिए फोन उठाया तो उसके मन में संकोच आ गया। उसे लगा कि इस तरह सिर्फ उसका और रेवती का फिल्म देखने जाना कहीं नीली को बुरा ना लगे। नीली जब भी कहीं बाहर जाती थी तो अनय को ज़रूर अपने साथ ले जाती थी। उससे भी साथ चलने को कहती थी।
अनय आज सुबह से ही नीली के घर पर था। वह भी अपना फोन लेकर नीली के घर चला गया।
दरवाज़ा खोलते ही रिया ने कहा,
"मम्मी मामा तो आ गए।"
मुकुल अंदर चला गया। किचन से नीली की आवाज़ आई,
"मैं रिया से कह रही थी कि मामा को बुला लाओ। पकौड़े बना रही थी।"
मुकुल किचन में चला गया। नीली पकौड़े तल रही थी। वह बोली,
"प्याज़ के पकौड़े हैं। तुम्हारे फेवरेट।"
"थैंक्स दी..."
कहकर उसने तश्तरी में एक पकौड़ा उठाकर खा लिया।
"यम्मी ! आउट ऑफ द वर्ल्ड !"
नीली ने कहा,
"रेवती को भी फोन कर दिया है। कुछ काम कर रही थी। आती होगी।"
मुकुल के चेहरे पर मुस्कान आ गई। नीली उसकी मुस्कान का मतलब समझ रही थी। मुकुल ने कहा,
"दी क्यों ना हम सब आज लव के लिए देखने चलें।"
"अचानक फिल्म का प्लान ? तुम तो फिल्म देखना पसंद नहीं करते। तुम बदल रहे हो आजकल।"
नीली ने उसकी तरफ मुस्कुरा कर देखा। मुकुल कुछ झेंप गया। नीली ने कहा,
"मज़ाक कर रही थी। तुम दोनों देख आओ।"
"नहीं दी अकेले क्यों ? आप लोग भी चलो ना।"
"तुम बेवजह संकोच मत किया करो। मेरा मूड नहीं है। आजी तो वैसे भी फिल्म देखना पसंद नहीं करती हैं।"
"बच्चे ?"
"तुम अपना और रेवती का टिकट बुक कराओ। बच्चे मेरे साथ मज़ा करेंगे।"
तभी घंटी बजी। दरवाज़ा खुलते ही अनय ने कहा,
"बुआ रेवती आंटी आ गईं।"
मुकुल बाहर आ गया। उसके पीछे नीली भी पकौड़ों की तश्तरी लेकर आ गई। डाइनिंग टेबल पर रखकर बोली,
"चलो सब लोग पकौड़े खाओ।"
तश्तरी रखकर वह किचन में जाने लगी। रेवती ने कहा,
"दी आप भी तो आइए।"
"बस थोड़े से बचे हैं। उन्हें तलकर आती हूँ।"
"मैं भी आपकी हेल्प करती हूँ।"
"तुम बैठो... मैं पाँच मिनट में आती हूँ।"
नीली किचन में चली गई। मुकुल ने एक प्लेट उठाकर कुछ पकौड़े रखे और आजी को पकड़ा दी। उसके बाद दूसरी प्लेट में पकौड़े रखकर रेवती को दी। उसके बाद खुद के लिए प्लेट लेते हुए बच्चों से बोला,
"तुम लोग भी पकौड़े खाओ।"
सब पकौड़े खाने लगे। कुछ देर में नीली एक ट्रे में चाय और कुछ और पकौड़े रखकर लाई। इस बार रेवती ने सबको चाय सर्व की। वह बोली,
"दी यू आर सिंपली ग्रेट। बहुत टेस्टी पकौड़े हैं।"
मुकुल ने कहा,
"दी इज़ अ वेरी गुड कुक।"
नीली सोच कर आई थी कि फिल्म वाली बात को कैसे आगे बढ़ाना है। उसने कहा,
"मुकुल तुम और रेवती फिल्म देख आओ। मेरा तो मन नहीं है।"
रेवती ने कहा,
"दी लव के लिए इज़ अ गुड मूवी।"
"हाँ... पर सच में मन नहीं है। आजी फिल्में देखती नहीं हैं। बच्चों को भी कोई खास मज़ा नहीं आएगा।"
वह बच्चों की तरफ देखकर बोली,
"इन लोगों को जाने दो। हम अपना मज़ा करेंगे। पहले मैं व्हाइट सॉस पास्ता बनाऊँगी। उसके बाद पीज़्ज़ा ऑर्डर करेंगे। बोलो ठीक है।"
नीली का प्लान बच्चों को बहुत अच्छा लगा। वो खुश हो गए। मुकुल ने रेवती की तरफ देखा। वह मुस्कुरा रही थी। मुकुल समझ गया कि वह उसके साथ जाना चाहती है। उसने अपना मोबाइल उठाया और दो टिकट बुक करा दिए।
शो का टाइम दोपहर तीन बजे का था। उससे पहले मुकुल और रेवती लंच करने के लिए एक रेस्टोरेंट में गए थे। मुकुल कुछ नर्वस था। रेवती इस बात को महसूस कर रही थी। वह भी कुछ नर्वस थी। मुकुल ने कहा,
"हम तीन महीने से एक दूसरे को जानते हैं। एक दूसरे से बातें भी करते हैं। पर आज जब एक दूसरे के साथ बाहर आए हैं तो कुछ अजीब सा लग रहा है।"
"देख रही हूँ। तुम ऐसे नर्वस हो रहे हो जैसे कॉलेज का कोई लड़का अपनी पहली डेट पर होता है।"
"नर्वस तो तुम भी लग रही हो।"
"हाँ थोड़ी नर्वस तो हूँ।"
मुकुल ने उसकी तरफ देखकर कहा,
"तो क्या यह हमारी पहली डेट है ?"
मुकुल ने महसूस किया कि उसके इस सवाल पर रेवती कुछ परेशान हो गई है। वह उसे अनकंफर्टेबल नहीं करना चाहता था। उसने बात बदलते हुए कहा,
"बताओ क्या ऑर्डर करना है ?"
"आज तुम डिसाइड करो।"
मुकुल ने वेटर को बुला कर अपने हिसाब से ऑर्डर कर दिया। रेवती ने कहा,
"तुम कुछ बता रहे थे कि एक और बड़े ईवेंट के मैनेजमेंट का चांस मिलने वाला है।"
"उम्मीद तो पूरी है कि उमेश पटेल की बेटी की इंगेजमेंट सेरिमनी का मैनेजमेंट हमारी फर्म को मिल जाएगा।"
"उमेश पटेल....यू मीन पीसी ग्रुप्स के मालिक ?"
"यस..."
"गुड गोइंग...."
उनका ऑर्डर आ गया। दोनों खाने लगे। मुकुल ने कहा,
"परसों तुम कोई गीत गुनगुना रही थी। बड़ा अच्छा लग रहा था। पर समझ नहीं आया था।"
"ओह..सेंदूरा पूवे... तमिल फिल्म का गाना है। एस जानकी का। जैसे हिंदी फिल्मों में लता जी हैं वैसे ही साउथ की फिल्मों में एस जानकी हैं। शी इज़ आल्सो माई फेवरेट।"
"तुम अच्छा गाती हो। तुमने सिंगर बनने का नहीं सोचा।"
रेवती हंसकर बोली,
"अच्छा गा लेने और प्रोफेशनल सिंगिंग में फर्क होता है।"
"तुमने तो म्यूज़िक सीखा है।"
"पर संगीत में एक से बढ़ कर एक दिग्गज हैं। दूसरी बात यह है कि संगीत मुझे खुशी देता है। लेकिन डिज़ाइनिंग मेरा पैशन है।"
कुछ देर तक दोनों बिना बात किए खाते रहे। उन दोनों के बीच बहुत सी बातें होती थीं। लेकिन कभी उन लोगों ने एक दूसरे के अतीत में झांकने का प्रयास नहीं किया था। हाँ दोनों के अंदर एक दूसरे के बारे में जानने की इच्छा ज़रूर थी।
रेवती के मन में आज की तस्वीर बस गई थी जब उसके साथ आते समय मुकुल ने अनय को अपनी छाती से कसकर लगा लिया था। उसने कहा,
"तुम अनय को बहुत चाहते हो। आज उसे गले लगाते हुए तुम बहुत इमोशनल हो गए थे।"
मुकुल ने एकदम से कोई जवाब नहीं दिया। कुछ देर तक वह सोचता रहा। उसके चेहरे के भाव बता रहे थे कि उसके मन में बहुत कुछ चल रहा है। कुछ देर बाद मुकुल ने कहा,
"बस यह समझ लो कि अनय मेरी ज़िंदगी में जीने की सबसे बड़ी वजह है। उसे छोड़कर काम पर तो जाता हूँ। लेकिन पहली बार ऐसा हुआ है कि उसे छोड़कर बाहर घूमने आया हूँ।"
"मुकुल.. अनय खुश था। डोंट वरी...दी हैं ना। ही विल हैव फन।"
"रेवती अगर दी ना होतीं तो मेरे लिए बहुत मुश्किल हो जाता। वह बहुत मदद करती हैं। अनय उनके और आजी के साथ बहुत हिला है। दी बहुत केयरिंग हैं।"
"हाँ उस दिन देखा था मैंने। मुझसे पहली बार मिली थीं पर मेरी बहुत केयर कर रही थीं। शी इज़ वेरी स्वीट।"
लंच के बाद मुकुल ने पूँछा,
"और क्या लोगी ?"
"कुछ नहीं....शो का समय हो रहा है। चलते हैं।"
बहुत समय के बाद मुकुल ने कोई बॉलीवुड फिल्म देखी थी। फिल्म में पब्लिक को एंटरटेन करने का सारा मसाला था। लव, रोमांस, मेलोड्रामा और एक्शन सब कुछ था। म्यूज़िक भी अच्छा था। फिल्म देखने के बाद मुकुल को अच्छा लग रहा था। उसे लग रहा था कि भले ही फिल्म में जो दिखाया गया वह वास्तविकता से दूर हो। लेकिन ऐसे हल्के फुल्के पल जीवन को एक स्फूर्ति दे जाते हैं। वह आज वही स्फूर्ति महसूस कर रहा था।
थिएटर से निकलने के बाद जब दोनों कार में बैठने जा रहे थे तो मुकुल ने कहा,
"रेवती...अभी तो शाम हुई है। घर चलने की जगह कहीं और चलें।"
उसके इस प्रस्ताव पर रेवती को कुछ आश्चर्य हुआ। उसे दुविधा में देखकर मुकुल ने कहा,
"अगर तुम ना चाहो तो घर चलते हैं।"
"नहीं ऐसा कुछ नहीं है। बस सोच रही थी कि चलेंगे कहाँ।"
"किसी खास जगह जाने की बात नहीं कर रहा हूँ। बस ऐसे ही कहीं चलकर बैठते हैं। कुछ बातें करते हैं।"
रेवती कुछ देर सोचने के बाद बोली,
"तो फिर मैं जहाँ कहूँ वहीं चलो।"
मुकुल कार चला रहा था और रेवती निर्देश दे रही थी। करीब आधे घंटे की ड्राइव के बाद दोनों एक छोटे से कॉफी हाउस के सामने रुके। बोर्ड पर लिखा था 'मद्रासी कॉफी'। रेवती ने कहा,
"यहाँ हम इत्मिनान से बैठकर बात भी कर सकते हैं और कैलाश अंकल का वाइलन भी सुनने को मिलेगा। साथ में मद्रासी स्टाइल की कॉफ़ी भी।"
"कैलाश अंकल कौन हैं ?"
"अंदर तो चलो। अंकल बहुत जॉली नेचर के हैं।"
कार पार्क करके मुकुल रेवती के साथ अंदर गया। एक हॉल था। उसमें किसी भी कैफ़े की तरह मेज कुर्सियां थीं पर फिर भी माहौल कुछ अलग था। सर्व करने वालोें ने लुंगी और कमीज़ पहन रखी थी। कॉफ़ी मग्स में ना देकर स्टील के छोटे से गिलास में दी जा रही थी। खाने का सामान भी केले के पत्तों में परोसा जा रहा था। रेवती उसे लेकर रिसेप्शन डेस्क पर गई। लुंगी और कमीज़ पहने एक आदमी ने हाथ जोड़कर नमस्कार किया। उसके बाद वह और रेवती तमिल में कुछ बातें करने लगे।
मुकुल को यहाँ का माहौल नया पर अच्छा लग रहा था।