UJALE KI OR - 23 in Hindi Motivational Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | उजाले की ओर - 23

Featured Books
Categories
Share

उजाले की ओर - 23

उजाले की ओर

---------------------

आ. एवं स्नेही मित्रों !

सादर ,सस्नेह सुप्रभात

जीवन की धमाचौकड़ी पूरे जीवन भर चलती रहती है|हम नाचते रहते हैं कठपुतली के समान इधर से उधर ,उधर से इधर |जीवन में कुछ न कुछ ऊँचा-नीचा होता ही रहता है |हम कब कुछ ग़लत कर बैठते हैं हमें इसका आभास भी नहीं होता,होता तब है जब हम अपने किए हुए का परिणाम देखते हैं |स्वाभाविक है, बबूल का पेड़ बोने से हमें स्वादिष्ट आम का आनन्द तो प्राप्त हो नहीं सकता किन्तु हमें यह पता ही नहीं चलता कि हमने आखिर यह बबूल का पेड़ कब बो दिया जिसका परिणाम हम आज भुगत रहे हैं | कभी कभी हमें यह भी ज्ञात नहीं होता कि हमने कब और क्या भूल की है और हम यह किसका परिणाम भुगत रहे हैं ?

वास्तव में जीवन एक भूल-भुलैया है और हम सब उसमें चक्कर पर चक्कर खाते रहते हैं|उसमें से किस प्रकार निकलें पता ही नहीं चलता | कभी-कभी तो होता यह है कि हम निकलने के स्थान पर और भी उसमें उलझते रहते हैं और हमारे जीवन में कुछ ऎसी गाँठें पड़ती जाती हैं जिनका खुलना लगभग नामुमकिन ही होता है|

हमारे जीवन में विभिन्न प्रकार के लोग आते हैं जिनसे कभी हमें अच्छा तो कभी हमें गलत व्यवहार भी प्राप्त होता है|प्रश्न यह उत्पन्न होता है कि जो लोग हमसे गलत व्यवहार करते हैं,उनसे हमें पीड़ा तो प्राप्त होती ही है,हमारा मन दुखी होता है ,उस व्यक्ति के प्रति हमारे मन में मालिन्य भी पैदा होता है |मन सोचता है कि जिस व्यक्ति के प्रति हमारा व्यवहार सदा अच्छा रहा ,जिसके प्रति हमने सदा स्नेह,प्रेम व करुणा का व्यवहार बनाए रखा उसने हमारे साथ यह सलूक क्यों किया ?मन में प्रश्न उत्पन्न होता है कि ऐसे लोगों के प्रति हमें किस प्रकार का व्यवहार करना चाहिए?हम मनुष्य हैं ,मानवीय संवेदनाओं से भरपूर! हमारा ह्रदय कभी प्रसन्न होता है तो कभी पीड़ित भी होता है |जो लोग हमसे प्रेम प्राप्त कर चुके हैं ,वे जब हमें नीच व गलत शब्दों से नवाजते हैं तो पीड़ा होनी स्वाभाविक होती है,हम या तो ऐसे लोगों को खरी-खोटी सुनते हैं अथवा उनसे दूर छिटक जाते हैं और उनके प्रति हमारे मन में कटुता समाने लगती है|किन्तु क्या हम उन लोगों के प्रति कभी करुणा से सोच पाते हैं जो हमसे दुर्व्यवहार करते हैं कि वे वास्तव में स्वयं कितने पीड़ित होंगे |जिस प्रकार से एक प्रसन्न व आनन्दित मनुष्य सबमें प्रसन्नता व आनंद का प्रसरण करता है ,उसी प्रकार दुखी और पीड़ित मनुष्य भी तो सबमें पीड़ा ही बाँट सकता है ,वह आनन्द कहाँ से बांटेगा जब उसके पास आनन्द है ही नहीं |

यदि हम धैर्य से सोचें तो पाएंगे कि ऐसे लोगों के प्रति कटुता रखकर हम कुछ सकारात्मक नहीं कर रहे हैं |यदि कोई हमें सम्मान देता है और हम उसके व्यवहार के बदले उसे सम्मान देते हैं तो हम कोई बड़ा काम नहीं करते ,बात तो तब होती है जब कोई हमारा अपमान करे और हम उसके बदले उसे सम्मान दे सकें |यह बहुत कठिन है किन्तु हमें यही तो देखना है कि हमारा धैर्य इस परीक्षा में खरा उतर पाता है अथवा नहीं ?

प्रेम व स्नेह में इतनी शक्ति है कि कोई कितना भी रूखा अथवा नाराज़ व्यक्ति क्यों न हो ,यदि उसे बारंबार प्रेम व स्नेह दिया जाए तो ऐसा हो ही नहीं सकता कि वह उस प्रेम का शीघ्र न सही ,देरी में ही सही आदर न करे|वह कभी न कभी तो सामने वाले की संवेदना को समझेगा और उसके अनुरूप व्यवहार करेगा| ऐसा नहीं हो सकता कि वह प्रेम के बदले में प्रेम न लौटाए| किन्तु यह भ्रम टूटता है और पता चलता है कि ऐसा भी संभव है कि किसी कठिन समय के आने पर प्रेम प्राप्त करने वाला व्यक्ति उस व्यक्ति से भी घृणा तथा बद्तमीज़ी करने लगता है जिससे जीवन भर उसे प्रेम प्राप्त हुआ हो | इस व्यवहार के भिन्न कारण हो सकते हैं,यह भी हो सकता है कि वह व्यक्ति स्वयं मानसिक रूप से शोचनीय व कष्टपूर्ण दशा से गुज़र रहा हो ,उसके साथ अनेक ऊबड़-खाबड़ परिस्थितियाँ हो सकती है किन्तु यहीं तो मनुष्य की परीक्षा होती है कि वह कितने धैर्य से इन परिस्थितियों का प्रत्युत्तर दे सकता है !यहीं पर उसके संस्कार व मूल चरित्र खुलकर समक्ष आता है |

यूँ जीवन बहुत सुंदर है और मन की यात्रा धरती से लेकर आकाश तक निर्विघ्न हो सकती है किन्तु कोई भी यात्रा निर्विध्न कहाँ होती है? यात्रा में समतल धरती के साथ ऊबड़-खाबड़ मार्ग भी आते हैं जिन्हें मनुष्य को स्वीकारना होता है |जीवन की इस यात्रा में भिन्न-भिन्न प्रकार के यात्री मिलते हैं जो हमें दुःख व सुख दोनों देते हैं ,उन परिस्थितियों को स्वीकारना भी तो साहस का कार्य है |यदि न स्वीकारने की ठान ली जाए तब तो इस बात का कोई प्रश्न ही नहीं है कि हमें अपनी यात्रा कैसे पूरी करनी है ?इस बात पर कोई चिन्तन अथवा कोई समाधान खोजने की आवश्यकता ही नहीं है | जैसे भी जीवन की गाड़ी चलती रहे ,उसे छोड़ देना ही उचित है |हाँ,किन्तु किसी के प्रति अपने गलत विचार रखना अथवा उसके द्वारा किए गए असहनीय कार्य अथवा बोले गए अपशब्दों का उत्तर उसकी भाषा में लौटाना सही चरित्र की पहचान नहीं है |यही समय वास्तविक धैर्य की जाँच का है और जीवन जीने के हमारे सलीके को परखने का है |

स्नेह,प्रेम की कामना कौन नहीं करता यहाँ?

धैर्य सबक देता हमें न भटके मन-आत्मा |

आइए,सब मिलकर इस तथ्य पर चिंतन करें

आप सबकी मित्र

डॉ.प्रणव भारती