स्वतंत्र सक्सेना की कहानियाँ
संपादकीय
स्वतंत्र कुमार सक्सेना की कहानियाँ को पढ़ते हुये
वेदराम प्रजापति ‘मनमस्त’
कहानी स्मृति की पोटली होती है| जो कुछ घट चुका है उसमें से काम की बातें छाँटने का सिलसिला कहानीकार के मन में निरंतर चलता रहता है| सार-तत्व को ग्रहण कर और थोथे को उड़ाते हुए सजग कहानीकार अपनी स्मृतियों को अद्यतन करता रहता है, प्रासंगिक बनाता रहता है|
स्वतंत्र ने समाज को अपने तरीके से समझा है | वे अपने आसपास पसरे यथार्थ को अपनी कहानियों के लिए चुनते हैं| समाज व्यवस्था, राज व्यवस्था और अर्थव्यवस्था की विद्रूपताओं को सामने लाने में स्वतंत्र सन्नद्ध होते हैं| राम प्रसाद, किशन और दिलीप के चरित्र हमारे लिए जाने-पहचाने हैं | ये चरित्र शासनतंत्र से असंतुष्ट हैं और संघर्षशील हैं| उन्हें पता है कि लड़ाई बड़ी कठिन है| एक तरफ पूरी सत्ता है और दूसरी तरफ एकल व्यक्ति |
अपने कथाकार की सीमाओं की खुद ही पहचान करते हुए स्वतंत्र लेखनकार्य में निरंतर लगे रहें, हमारी यही कामना है|
संपादक
कहानी
राम प्रसाद
स्वतंत्र कुमार सक्सेना
राम प्रसाद जी पूरे जोश से रचना पाठ कर रहे थे। उनकी आवाज सुरीली तो न थी पर दूर तक सुनाई दे रही थी, उस पर मेले का मंच ।
मंचों पर बात अहिंसा की घर में हर हरकत हिंसा की,
प्रतिमांएं सोने से मढ़ कर मंदिर ऊंचे ऊंचे गढ़कर,
तुम धर्म ध्वजा फहराते हो फिर क्यों रावण बन जाते हो |
बहुएं खुशियों से लाते हो फिर कैसे उन्हें जलाते हो |
तुम बात राम की करते हो रावण को मगर लजाते हो |
है बात बहुत ही चिंता की मंचों पर बात अहिंसा की |
राम प्रसाद जी वैसे तो एक शिक्षक हैं। परंतु उनके व्यक्तित्व के कई पहलू हैं।वे कवि उपन्यास कार समाज सुधारक हैं। जातिवाद के विरोधी हैं, छुआछूत से बहुत चिढ़ते हैं । उन्होंने राम के शबरी प्रसंग पर खण्ड काव्य रच कर आंचलिक प्रतियोगिता में पुरुस्कार जीता था।
-‘जब स्वयं राम शबरी के जूठे बेर खाकर अपवित्र न हुए तो तुम आदर से समर्पित चाय व मिठाई खाकर कैसे अपवित्र हो जाते हो ? सड़ी-गली अपवित्र वस्तुओं से बनी दारू पीकर कोई वामन ठाकुर अपवित्र नहीं होता ? वे तर्क देते समय उद्वेलित हो जाते । ऐसा लगता मानो साक्षात परशुराम उनमे उतर आए हों ।
उन्होंने तुलसी बाबा पर एक कहानी लिखी है जिसमें रत्नावली समाज सुधारक / सेवी गईं हैं। वे हरिजन आदिवासियों के लिए साक्षरता कक्षाएं चलाती हैं, बाबा उनका ईलाज करते हैं।कबीर पर कलम चलाना उनका सपना है पर मित्र /साथी कहतें अब कम से कम कबीर पर तो रहम करें उन्हें बख्श् दें ।
राम प्रसाद जी के एक सुपुत्र हैं सुबोध जिसने पॉलीटेकनिक में डिप्लोमा किया है। पास के नगर में राम प्रसाद जी ने दौड़ धूप कर उसे लगवा दिया है। वह काम के साथ साथ बी ई की पढ़ाई भी कर रहा है।
एक पुत्री हे विनीता जिसने वनस्पति शास्त्र् में एम. एस. सी. किया है विवाह के लिए प्रतीक्षा रत है अतः कस्बे में ही खुले एक निजी कॉलेज में बी. एड. कर रही है।
राम प्रसाद के एक मित्र हैं, श्री लाल दोनों सहपाठी रहे हैं। श्री लाल मिडिल स्कूल में अध्यापक हैं उनकी पत्नी भी कन्या हायर सेकेन्डरी स्कूल में अध्यापिका हैं। उनके एक पुत्र है सुकांत। सुकांत ने फिजिक्स में एम. एस. सी. किया है ,फिलहाल बेरोजगारी के चलते कस्बे के निजी स्कूल में अध्यापक है।विनीता व सुकांत एक ही संस्था में अध्यापक व विद्यार्थी हैं। सुकांत व सुबोध परस्पर सहपाठी रहे हैं ।सुकांत राम प्रसाद के साहित्यिक व सामाजिक कार्यक्रमों का सहायक है । कार्यक्रम के लिए स्थान तलाशना माईक की व्यवस्था लोगों को बुलाना वक्ता अतिथियों का स्वागत फूलमालाएं गीत गाना संचालन सब उसी के मत्थे रहता है। कॉलेज में वह खेल गतिविधियां संभालता है।स्वयं भी खिलाड़ी है। विद्यार्थियों को प्रेक्टिस कराना बाहर टीम ले जाना सब उसी का काम ।
एक दिन राम प्रसाद के घर के सामने मोटर साईकिल रुकी विनीता उतर कर आई पीछे पीछे सुकांत भी सामान लिए आया ।
सुकांत- ‘चाचा नमस्ते’, आगे बढ़ कर पैर छुए फिर लौट कर गया और एक मिठाई का डिब्बा ला कर दिया । बोला - चाचा! आज मेरे कॉलेज की टीम ने फुटबॉल का मैच जीता।
विनीता- ‘और टीम के ट्रेनर यही थे’
राम प्रसाद के पास एक और सज्जन बैठे थे ,राम प्रसाद ने इशारा किया- ‘मेरे बड़े भाई ।’ सुकांत ने उनके भी पैर छुए । वे पंडित राम नारायाण थे वे नगर के गण्यमान व्यक्ति गांव के सरपंच विधायक महोदय के
दाहिने हाथ बड़े किसान आढ़त व्यापारी और न जाने क्या क्या । राम नारायण ने मौन प्रश्नवाचक दुष्टि से देखा? रामप्रसाद -‘मेरे मित्र व सहपाठी श्री लाल जी के सुपुत्र हैं सुबोध के सहपाठी रहे हैं । विनीता के ई कॉलेज में पढ़ाउत, सो कभउं कभउं छोड़ जात ’।
सुकांत विदा लेकर चला गया व विनीता अंदर चली गई ।
राम नारायण-‘जे ज्यादा घरे नईं आवे ।’
राम प्रसाद-‘ काए!वो छोटे सें आऊत कैसे रोक हें ?’
राम नारायण-‘लड़का जांदा खूबसूरत स्मार्ट है,हम ने कह दई देखें रहियो। जे श्री लाल को हैं?’
राम प्रसाद -‘अरे मिडिल स्कूल में मास्टर हैं उनके घर सें भी मास्टरनी हैं । तुम्हें पसन्द होवे तो हम बुला लें वे काल ई आ जे हैं ।’
राम नारायण -‘हूँ!तुम रहन दो , तुम तो सिर्रिया गए लाली खों लरका हम ढूंढ़ हें।’
राम प्रसाद -‘दादा ! हम पै जादां कछू है नईंया। जे मोड़ा मैाड़ी पढ़ाए मकान बनाओ हतो सो लग गओ।’
राम नारायण-‘तुम बैसे ई डरा रए ,। फिर का नईया नौकरी है जमीन है।’ राम नायण जी की जमीन पर बहुत दिनो से निगाह थी उन्होंने इशारा कर दिया ।
राम नारायण -‘ कछू घर की आन मरजाद होत ई।’
आखिर राम नारायण की कोशिश् रंग लाईं । उन्होने एक दिन राम प्रसाद को बैठक में बुलाया -‘राम प्रसाद जो फोटो देखो।’फोटो में एक बांका नौजवान मुस्करा रहा था।राम प्रसाद फोटो लौटाते हुए -‘ दादा जैसी आपकी मर्जी।’
राम नारायण‘ लरका एयर फोर्स में पायलट है। यहीं मस्तूरा के रहवे वारे हैं । तुम ईं जैसे प्रोफेसर हैं बेतूल में बस गए कोठी बना लई। उनके बड़े भाई भोपाल में सेक्रटेरिएट में हैं। नेताजी के संगे गए थे सो टकरा गए । अब बोलो? लड़का बढ़िया तनखा है और ऊपर सें सब सुविधा।
राम नारायण की पत्नी भी अंदर से आकर बैठ गईं। वे चर्चा सुन कर बोलीं -‘ अरे छोटी;बहू विनीता की मां का मुंह तो सुन कर सफेद पड़ गओ। अरे फौज बारे तो बलिदान के बुकरा होत जाने कबे का हो जावे । ’
राम नारयण-‘ अरे कैसी बातें कर रईं! क सब ई के संगे एसो होत । ’
राम नारायण जी को रिश्ता बहुत पसंद था अतःबात पक्की हो गई।सुकांत आज भी विनीता को छोड़ने घर आया । उसने राम प्रसाद को नमस्ते की । राम प्रसाद उसे देखते ही बोले -‘ भैया अब ज्यादा दिन विनीता कॉलेज नहीं जा पाएगी ।’
सुकांत‘‘-क्यों?’
राम प्रसाद -‘उसकी सगाई कर रहे हैं फिर ब्याह होगा ,अपने घर जाएगी ।’
सुकांत -‘ अभी तो देर है तब तक यह सेश्न पूरा हो जाएगा ।’
राम प्रसाद -‘कुछ कह नहीं सकते।’
सुकांत-‘अरे चाचा!वह क्लास की इंटेलीजेंट स्टूडेंट है। उसका यह सेश्न पूरा हो लेने दें ।
राम प्रसाद -‘देखो क्या कह सकते हैं कब की लगन निकले ।’
सुकांत का चेहरा बुझ सा गया वह चुपचाप चला गया ।
विनीता का विवाह धूमधाम से सम्पन्न हुआ । बरातियों का जोरदार स्वागत हुआ ।बराती भी पूरे रंग में थे पहले तो बैंड वालों से ही गाने पर उलझ पड़े दो बाराती जनवासे से ही चलने की स्थिति में नहीं थे तीन बाराती सड़क पर ही लेट गए उन्हें वापिस जनवासे भेजना पड़ा । दूल्हा भी लड़खड़ा रहा था मालूम पड़ा तीन रात से जागा है अतः थका है ।
राम प्रसाद ने तीस लाख दहेज दिया साथ में कार की भी मांग थी पर राम नारायण ने मोटर साईकिल में बदलवा दी विधायक महोदय भी बीच में पड़े बहुत किच किच हुई। वैभव पुर्ण विवाह सम्पन्न हुआ। विनीता ससुराल गई।अब राम प्रसाद सफाई देते फिर रहे हैं कि समधी ने कोई मांग नहीं की थी जो दिया मन से दिया। पर वे स्वयं को कैसे समझाते समधी कैसे बात बात पर अड़ जाते थे पलट जाते थे बिगड़ जाते थे।वर पक्ष वालों की कटूक्तियां रिश्तेदारों का उपहास अब तक उनके कानों में गूंज रहा था।
विनीता ससुराल से लौटी तो प्रसन्न होने का दिखावा कर रही थी पर उसकी उदासी राम प्रसाद की आंखों से छिप न सकी कुछ दिनों बाद एक रात उनकी पत्नी ने उन्हें बताया ।
-‘ अरे सो गए क्या?’
राम प्रसाद -‘ क्या है?’
-‘विनीता ने बताया कि लड़का तो विवाह के तीन दिन पहले ही नौकरी से बरखास्त को चुका है।’
-‘क्यों?’
-‘वह ड्यूटी पर श्राब के नश् में था। अफसर ने टोका तो अंट संट बकने लगा जब अफसर ने घर जाने को कहा तो तो उलझ गया मारपीट हो गई । बहुत दिनों से जांच चल रही थी । विवाह के तीन दिन पहले आदेश् आ गया।’
राम प्रसाद -‘ यह बात उन्होंने बताई नहीं !’
पत्नी -‘ ऐंसी बातें का बताई जातीं ।’
राम प्रसाद उस रात फिर सो न सके वे सुबह बेटी से आंख नहीं मिला पा रहे थे।हाँ एक बात अच्छी हुई थी विनीता बी एड की परीक्षा दे कर गई थी । राम प्रसाद व राम नारायण तो बार बार कह रहे थे कि अब उसकी कोई जरूरत नहीं है। लगभग दो तीन माह बाद परीक्षा फल आया और वह सफल हो गई। उसी समय शिक्षकों की भर्ती का विज्ञापन निकला उसने आवेदन दिया ।वह विदुषी तो थी ही फिर साक्षात्कार में चयन समिति में राम प्रसाद के गुरु जी जो अब प्रिंसिपल हो गए थे बैठे जिन्हें उसकी राम कहानी मालूम थी अतः चयनित हो गई ।विनीता के ससुर साहब ने बहुत प्रयास किया कि उसकी प्रथम नियुक्ति बेतूल में हो पर राम नारायण जी के सम्पर्क कब काम आते अतः ग्वालियर में ही प्रथम नियुक्ति हो गई ।पहले तो पतिदेव ने बहुत उछल कूद की । हमारे यहां महिलाएं नौकरी नहीं करतीं । लड़की शादी के बाद ससुराल में ही शोभा देती है। हमारे यहां क्या कमी है। पर धीरे धीरे उनके स्वर धीमे पड़ते गए। कुछ दिन तो वे खिंचे खिंचे से रहे फिर खुद ही साथ रहने आ गए ।अब वह बहुत अच्छे पति बन गए थे। सुबह उठते ही कसरत फिर मैदान में दौड़ने जाना बच्चों को क्रिकेट सिखाने लगे। सास श्वसुर भी कुछ दिन रहने आए बड़ा ही स्नेहिल व्यवहार -‘हमें तो पता ही नहीं था यह इतना बिगड़ गया है। लेाग कितनी कोशिश् करते हैं यह पहले ही अटेम्प्ट में सिलेक्ट हो गया। बाद में जाने क्या हुआ शायद साथियों ने बिगाड़ दिया। बाद में पता चला जनाब इश्क भी फरमाते थे। उसकी दूसरी जगह शादी हो गई तो डिप्रेशन में आ गए देवदास बन गए ।
-‘ विनी अब मैं बिल्कुल ही बदल गया हूँ।तुम्हारे प्यार ने मुझे दूसरा ही जन्म दिया है।’यह कहते वह बिल्कुल ही बच्चा बन जाता । विनीता के चारों तरफ नाचते हुए कहता -‘विनी मुझे मेरी शराब मिल गई।’पर रूपेश दिन भर घर में रहता बोर होने लगा फिर आगंतुकों की निगाहें उसे अंदर तक बेध जातीं वह झुंझला उठता। उसने कहा-‘ मैं अपना फार्म देखूं ।’ देखा भी, पर विनीता साथ जाने को तैयार न थी।रूपेश गया और लौट आया ।अब उनके प्यार का प्रतीक एक गुड़िया शैरी’’उनके बीच आ गई थी । अखिर उन दोनों ने बहुत सोचा और रूपेश ने एक बंदूक की दूकान खोलने का निश्चय किया ।नगर के मुख्य चौराहे पर भव्य शो रूम खोला स्वयं विधायक महोदय ने जो अब मंत्री हो गए थे उद्घाटन किया । राम नारायण की इसमें मुख्य भूमिका रही ।बैंक से पर्याप्त पूंजी उपलब्ध हुई दूकान चलना थी चल गई ग्वालियर चम्बल संभाग का पुरुषों का मुख्य आभूषण बंदूक ही है प्रतिष्ठा का प्रतीक । पर रूपेश अपनी आमदनी से संतुष्ट न था वह जल्दी ही बड़ा व्यापारी बनना चाहता था। विनीता को कुछ करके दिखाना चाहता था। इसी समय क्षेत्र में हजरत रावत और राम बाबू गड़रिया गिरोह का आतंक फैल गया हर खाते पीते घर के होनहार चिरंजीवियों पर गिरोह के संदेश् पहंचने लगे । बंदूकों की मांग बढ़ गई। पर लायसेंस एक लम्बी प्रक्रिया थी अतःलोग अवैध हथियारों की ओर बढ़े । आगे आय के अथाह अवसर राजनैतिक संरक्षण का आ श्वासन स्वयं फौजी होने का अभिमान रूपेश् जी रुक न सके । अब सप्लाई की एक अंर्तधारा चलने लगी । वे दूर दूर तक हथियार भेजते उनके सम्पर्क बढ़ गए स्टाफ का भी विस्तार हो गया ।उन्हें अपने दलालों व ग्राहकोंका होटलों में स्वागत करना पड़ता लम्बी गुप्त चर्चा करते वे दूर दूर तक यात्रा करते ऐसे मैं लाल परी फिर से उनकी संगनी बन गई ।कभी चखने से शुरू हुई फिर रोज रोज की आदत बन गई रूपेश इसे बिजिनिस कम्पल्सन बताता ।असल में इसके शुरूर में नैतिक बंधन ढीले पड़ जाते हिचक दूर हो जाती और सौदा आगे बढ़ जाता। जाहिर है इस प्रक्रिया में वह भी खुल कर साथ देता । पर विनीता से उसके संबंध फिर से कड़वे हो गए । पहले बात रूठने मनाने तक सीमित थी फिर रोज रोज किच किच होने लगी । शारीरिक संबंधों पर असर पड़ा भावनात्मक टूटन असह्य हो गई ।
रूपेष कहता-‘ विनी !समझा करो।’
विनीता-‘मैं समझ गई हूँ।’
वह अपनी कमी धन से पूरी करता । नया बंगला खरीदा। कार आगई। फार्म हाऊस बन गया।कहीं भी जाता विनी को गहना अवश्य लाता शैरी के उपहार के अम्बार लगा दिए ।पर उसे स्वयं लगता जीवन में कुछ छूट गया है कुछ खाली हो गया है।एक दिन नशे में वह बेटी का मुंह चूमने का प्रयास कर रहा था बेटी उसे दूर कर रही थी कि विनीता ने शैरी को उठा कर गोद में ले लिया । रूपेश ने चिढ़ कर बेटी को एक कस कर चांटा मारा जो विनीता के गाल पर पड़ा । विनीता-‘अब तुम यहां तक गिर गए ।’गुस्से से काँपते रूपेश ने भी पत्नी पर चारित्रिक दोष जड़ दिया -‘मैं सब जानता हूँ अपने आप को समझती क्या है ।’ पानी सर के ऊपर से गुजर रहा था ।
रूपेश दोनों हाथों दौलत बटोर रहा था उसके बंगले में मंत्री विधायक आला अफसर दावतें करते बैठकें होतीं । वह नगर की कई सामाजिक संस्था को चंदा देता उनमें से कई संस्थाओं का सदस्य व पदाधिकारी बना।जब तब समारोहों का आयोजन किया जाता विभूतियों को सम्मानित किया जाता शाल व प्रशस्ति पत्रों से नवाजा जाता।और फिर हमारे उत्सव प्रिय देश का सबसे बड़ा उत्सव चुनाव आ गए । रूपेश जी प्रमुख चुनाव प्रबंध कर्ता बड़े भैया के मुख्य सलाहकार व सहायक थे।एक महीने तक तो चैन से शायद सांस भी नहीं ली । पर बुरा हो जनता का मंत्री जी चुनाव हार गए ।रूपेश गहन निराशा से भर उठा कुछ दिन और ज्यादा पी लोगों को गालियां देता रहता बेटी और पत्नी पर और ज्यादा गुस्सा उतारा जाता बड़े कष्ट के दिन थे।उसी समय शहर के सुप्रसिद्व सेठ का बेटा गायब हो गया अपहरण की आशंका की गई ।तीन महीने बाद हरियाणा की पुलिस आई वह अपने साथ कुछ कपड़े लाई थी जो रेल के डिब्बे में मिले एक बड़े बक्से में मिली एक लाश के थे जिसकी गला घोंट कर हत्या की गई थी वह उसी गायब लड़के के कपड़े थे। दो लड़के रवि व प्रकाश जो अंतिम समय उसके साथ थे वे भी गायब थे नगर में हड़ताल हुई सारे व्यापारी थाने पहुंचे पुलिस दबाव में थी।एक दिन पुलिस ने रूपेश के फॅार्म हाऊस पर छापा मारा तो रवि बरामद हो गया । रूपेश को ऐसा होने का अंदेशा भी न था। तीन दिन पहले प्रमेाद जो उनका दलाल व व्यापारिक साझीदार भी था उनसे बोला -‘ दादा! फॉर्म वाले घर में तीन दिन एक मेहमान ठहरेंगे चाभी दे दें। सारे शहर में अखबार बँट रहे थे पंडित रूपेश के फॉर्म हाऊस से हत्यारा पकड़ा गया । उसने कार उठाई और ग्वालियर चला गया वहाँ एक होटल में दूसरे नाम से कमरा ले लिया । बस अकेला बैठा रहता और पीता रहता । न जाने कब पिस्तौल कनपटी पर लगाई गोली दाग दी । वह तो होटल मालिक जब कमरा सुबह नहीं खुला तो आशंकित हो उठा पुलिस बुलवाई दरवाजा तोड़ा, लाश निकाली गई, लाश फूल गई थी पहिचान में नहीं आ रही थी।कपड़ों और गाड़ी के कागजात से पहिचान हुई।सभी साथी व परिचित मित्र कह रहे थे ऐसा क्यों किया अपराध से सीधा संबंध नहीं राजनैतिक संरक्षण धन की रेल पेल मूर्खता कर बैठे। पर विनीता समझ रही थी इसमें लाल परी का भी हाथ है।
विनीता के ससुराल वाले एकदम बदल गए उन्हें बहू ही हत्यारिणी लगने लगी वे उस पर आत्म हत्या को प्रेरित करने का आरोप जड़ने लगे। पुलिस में रिपोर्ट लिखने का दबाव बनाया ।उसे संपत्ति से वंचित करना चाहते थे।चरित्र पर भी लांछन लगाया कहने लगे बेटी भी रूपेष की नहीं है । ससुर ने साफ कह दिया वे बेटी व विनीता से पीछा छुड़ाना चाहते हैं।
राम प्रसाद इस मानसिक आघात से उद्वेलित हो उठे। वे बेटी से अपने को क्षमा मांगने योग्य भी नहीं पा रहे थे। विनीता ने रोज रोज की फब्तियों मौन बायकाट से तंग आकर अपने स्थानान्तरण का आवेदन दे दिया और दूर स्थानान्तरित होकर चली गई।
सुबोध(राम प्रसाद जी का बेटा)अब इंजीनियर बन गया है।उसके रिश्ते के लिए लोग आने लगे हैं। पंडित राम नारायण जी घर में विराज मान हैं-‘राम प्रसाद!देखो मंत्री जी की भानेज है सब सम्पन्न हैं मोटरें चल रहीं पेट्रोल पंप है । अच्छो ब्याह कर हें ।
राम प्रसाद-‘सुबोध से बात करेगे।’
राम नारायण-‘ तुम फिर टाँग फँसा देत। सुबोध को हमाए सामने ल्याऊ हम बात कर हें।’
राम प्रसाद -‘उससे पूंछना जरूरी है वह बालिग है।’
राम नारायण-‘ ठीक है पूंछ लेना पर हम जबान दे आए।’
सुबोध के आने पर राम प्रेसाद ने चर्चा की तो वह भड़क गया तम तमा कर बोला -‘ ताऊ जी ने विनीता की शादी कराई थी अब मेरी कराएंगे।’
राम प्रसाद -‘वह किसने देखा था कि क्या होगा ।’
सुबोध -‘आपने खूब जन्म पत्री मिलाई थी।शुभ लग्न थी।सब कुछ ठीक था।बहुत पता लगाया था जाने माने लोग हैं ।पर एक बरखाश्त शराबी निकला हमे क्या क्या नहीं भुगतना पड़ा बदनामी परेशानी बेइज्जती।’
राम प्रसाद-‘वे जबान दे आए हैं’।’
सुबोध -‘मेरी जिंदगी का प्रश्न है मैं नहीं करूंगा ।’
पर बात इतनी सरल न थी एक दिन राम नारायण सुबोध को घर पर ही मिल गए । वे बरस पड़े पर सुबोध ने स्पष्ट मना कर दिया-‘ अभी विवाह की कोई इच्छा नहीं मुझे अपना कैरियर बनाना है ।तीन चार साल तक विवाह नहीं करूंगा ।’
राम नारायण-‘ तुम दस साल न करियो। ऐसो अच्छो घर बेर बेर नहीं मिलत । बड़े आदमी मंत्री जी सें रिश्ता हो जातो ।
सुबोध-‘ आपकी बात मानने में बिल्कुल असमर्थ हूँ। अभी बिल्कुल नहीं ।’
आखिर रिश्ता नहीं हो सका।
एक दिन राम प्रसाद जब ग्वालियर गए तो सुबोध के साथ बरांडे में एक लड़की को बैठे देखा पूंछने पर बताया संस्था में साथी इंजीनियर है।जब भी राम प्रसाद सुबोध से मिलने जाते तो उसके निवास पर सुबोध के साथी मित्र मिलते पर वह लड़की अकसर मिलती । वे आशंका से भर उठे उनकी आशंका सही निकली जब एक बार ज्यादा पूंछने पर सुबोध ने तैश में झुंझला कर बक दिया-‘ हाँ वह मेरी दोस्त है।मुझे बहुत पसंद है। मैं उससे शादी करना चाहता हूँ ।
राम प्रसाद-‘वह कौन है?’
सुबोध-‘मैने बताया न साथी इंजीनियर है।’
राम प्रसाद-‘मेरा मतलब.....!!!!
सुबोध-‘हाँ हाँ मैं समझ गया वह ब्राम्हण नहीं है। सिख है पंजाबी है।’
राम प्रसाद -‘ बेटा यह शादी नहीं हो सकती । तुम जानते ही हो हम गाँव के लेाग।’
सुबोध-‘आप कहें तो शादी ही न करूं। हम विनीता की बेटी को मिल कर बड़ा करेंगे ।’
राम प्रसाद-‘बेटा उससे हमारा कोई मेल नहीं है ।’
सुबोध -‘पिता जी उससे मेरी रुचियां मिलती हैं सपने मिलते हैं स्वभाव मिलता है आदर्श मिलते हैं ।आप क्या मिलाएंगे? जन्मपत्री मिलाएंगे जाति गोत्र प्रवर मिलाएंगे दहेज की राशि पर मोलभाव करेंगे सामान की सूची मिलाएंगे मंत्री जी से छाती मिलाएंगे ।
राम प्रसाद -‘बेटा बहुत बदनामी होगी दादा कैसे भी नहीं मानेंगे।’
सुबोध -‘दादा दा दा दादा क्या हमारे जीवन के सारे फैसले दादा करेंगे? आप उनसे इतना दबते क्यों हैं?आप बताएं आप जो मानव की स्वतंत्रता की बातें करता है।जो कहता था जो तुम निर्णय लोगे वही होगा ।बताईए अब क्या कहते हैं। बोलें ?
राम प्रसाद-‘ बेटा मैं मै। मैं ....
सुबोध-‘हाँ आप! क्या वे भाषण कविताएं सब आडंबर हैं केवल लोगों को सुनाने प्रशंसा बटोरने! मुझे अधिकार देते हैं? ।’
राम प्रसाद-‘पर बेटा! परिवार की भी तो सोच लोग रूठ जाएंगे ,रिश्तेदार संबंध तोड़ लेंगे, बिरादरी में थू थू होगी, मित्र परिचित उपहास करेंगे ।’
सुबोध-‘ चाहे मेरी जिंदगी सूली पर चढ़ जाए।एक अनचाही लड़की जिसे आप मेरे मत्थे मढ़ना चाहते हैं मेरे गले पड़ जाए। खूब दहेज मिले शान से बारात चढ़े बिरादरी में नाम हो दादा मंत्री जी से छाती मिलाएं।’
राम प्रसाद -‘नहीं बेटे ! तुम भी पसंद करो और परिवार भी।’
सुबोध पिता जी! मैने पसंद कर ली है।आप की पसंद?’
राम प्रसाद -‘यह सुन कर तुम्हारी माँ भी टूट जाएगी।
सुबोध-‘ आप अपनी कहें माँ को बीच में न घसीटें।’
राम प्रसाद बेटे का यह रूप देख कर दंग रह गए उन्हें बड़ी अनिच्छा से कड़वा घूंट पीना पड़ा उनके आदर्श ने उन्हीं के गाल पर तमाचा मार दिया था। वे जब घर आए तो सोच रहे थे पत्नी यह सुन कर बहुत परेशान होगी । उन्होंने पत्नी को बताया तो वह सहजता से बोली -‘अरे!तुम काए व से उलझ परे लड़का पढ़ लिख गओ बड़ो हो गओ समझदार हो गओ अपने पाँवन ठाँड़ो हो गओ अब जब व ने अपने मन में पक्की कर लई सो व की मर्जी सो मेरी मर्जी बेटा सुखी रहे।’
राम प्रसाद-‘ और दादा बिरादरी ।’
पत्नी -‘बिरादरी घरे बैठे दादा खों बता दे वे जानें ।’
एक दिन सुबोध का फोन राम प्रसाद जी के पास आया उन्होने उठाया -‘ पिता जी मैं सुबोध बोल रहा हूँ माँ से बात करनी है उसे फोन दे दें -‘ माँ मैं कल ग्यारह बजे अपनी साथी लड़की से शादी करने जा रहा हूँ आपका आर्श्ीवाद चाहिए मैं चाहता हूँ आप और पिता जी शामिल हों क्या मुझे आपका आर्श्वााद मिलेगा । माँ आ ओगी?’
पत्नी (सुबोध की माँ)-‘बेटा मेरा आर्श्ीर्वाद है तुम देनों सुखी रहो हाँ मैशायद न आ सकूं मेरा आना तुम्हारे पिता जी पर निर्भर है हम महिलाएं बंधन में रहतीं हैं ।तुम जानते ही हो ।
पंडित राम नारायण का दिमाग खराब हो गया वे बुरी तरह बहक रह थे-‘राम प्रसाद मैं बिल्कुल नहीं जाऊंगा और तुम गए तो तुम से भी संबंध खतम । यह तुम्हारी ही उल्टी सीधी बातों का असर है। लड़का तुम जैसा ही नालायक निकला ।का जमानो आ गओ । बड़े बूढ़ो की कोऊ पूंछ नईं कोन ऊं, मान मरजाद नहीं रह गई।’
राम प्रसाद की रात बड़े ऊहा पोह में कटी वे मौन हो गए पत्नी उनका चेहरा देखती रही वे दोनो रात भर सो नहीं सके।रात बड़ी मुश्किल से कटी पर रात कितनी ही लम्बी हो सुबह तो होती ही है।
सुबह आठ नौ बजे के लगभग राम प्रसाद के मित्र व वरिष्ठ साथी राय साहब व उनके अंतरंग मित्र कवि मनमस्त कार से आए साथ में सुबोध के दो तीन मित्र भी हैं।
राय साहब-‘ रामप्रसाद जी !मुझे सुबोध का फोन से संदेश मिला आज उसकी शादी है हम लेाग जा रहे हैं क्या आप चलेगे?’
रामप्रसाद-‘राय साहब बैठें मैं मैं।’
कवि मनमस्त-‘मैं मैं तू तू गाड़ी में करेंगे जल्दी कपडे़ बदलो । आंगन में झांकते हुए -‘भाभी!जल्दी करो हमें वहां बहू बेटा ले ने ज्यादा टाईम नईंया ।’
राम प्रसाद-‘ अब क्या करें?
पत्नी मुस्कराते हुए -‘चलो ये सूट पहन लो लडक़ा के बाप हो वहाँ दूल्हा के बाप से लगो भी देखो राय साहब कैसे सज बज कर इत्र फुलेल लगा कर आए चलो जल्दी करो क्या सोच रहे।’
राम प्रसाद -‘ दादा बहुत बुरा मानेंगे ।’
पत्नी -‘अब चलो भी राय साहब जा रहे मनमस्त जा रहे हम रह जाएं दादा को छोड़ो उन्हें फिर समझ लेंगे, जल्दी करें बेटे का विवाह रोज रोज नहीं ,होगा बहू जीवन भर सोचेगी रह गई तो मैं बहू से नजरें न मिला पाऊंगी चलें ।’
जब वे सब लोग पहंचे तो विवाह संस्कार प्रारंभ ही होने जा रहा था। दूल्हे का चेहरा उदास था ।उन्हें देख कर चेहरे पर मुस्कान छा गई।
विनीता का मुकदमा घिसटते घिसटते दस वर्ष हो गए । आत्म हत्या को प्रेरित करने का आरोप तो पुलिस जांच में ही नहीं ठहर सका पर सम्पत्ति का केस चल रहा था। एक दिन जब पेशी पर गई तो जज की कुर्सी पर बैठा चेहरा पहिचाना सा लगा ध्यान से देखा तो पहिचाना वे सुकांत थे।जब पेशीसे लौट रही थी तो अरदली ने कहा साहब लंच टाइम में आपसे चेम्बर में मिलना चाहते हैं ।
सुकांत ने बताया -‘ कॉलेज की नौकरी छोड़ कर वे ग्वालियर चले गए थे, वहाँ एक वकील साहब के ंमुंशी बन गए उन्ही की सहायता से एल. एल. बी. की पढा़ई की उन्हीं के सहायक बन प्रेक्टिस करते रहै मजिस्ट्रेट का विज्ञापन निकलने पर परीक्षा दी सफल हुए अन्य विभागीय परीक्षाएं देने पर अब यहां हैं अम्मा दादा के जाने के बाद बहुत अकेला हो गया हूँ। आज तुम दिखी तो लगा कोई अपना सा मिला कैसी हो।
विनीता-‘ मैं भी बहुत अकेली हो गई हूँ।’