Prince of dreams - 4 in Hindi Fiction Stories by shelley khatri books and stories PDF | सपनों का राजकुमार - 4

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सपनों का राजकुमार - 4

भाग 4

रत्ना ऐसे कैसे चिपकी है, कुछ बोल नहीं रही। कुछ हुआ क्या? शलभ की कोई बात बुरी लगी। वे रत्ना के ऐसे चुप रहने का कारण नहीं समझ पायीं थी।

कुछ नहीं यार। कितना परेशान कर देती हैं कभी- कभी आप भी। चलिए दूध दीजिए मुझे, कहते हुए रत्ना मम्मी की गोद से उठ कर बाहर की ओर चल दी।

मम्मी भी पीछे से आने लगी, हां अब जाके यह लड़की ठीक लग रही है। इसकी चुप्पी ने तो मुझे डरा ही दिया था, उन्होंने मन ही मन कहा।

रंजन को उम्मीद थी, जिस तरह रत्ना उसके इशारे समझ वोट स्टेशन तक आ गई थी, वैसे ही वह रेस्टोरेंट में भी आ जाएगी। वह अपने दोस्त संदीप के साथ बैठकर उसकी राह देखता रह गया। दस मिनट तक जब रत्ना अपने भाई के साथ नहीं आयी तो उसने संदीप को बाहर चलने का इशारा किया। संदीप कॉफी पी रहा था। उसने कहा, तु खुद देख आ, मेरी कॉफी अभी खत्म नहीं हुई। रंजन ने बाहर आकर हर तरफ देखा रत्ना कहीं नहीं थी। वह वोट स्टेशन, बाहर का एरिया, पार्किंग, जूस कॉर्नर सब जगह देख आया, कहीं नहीं दिखी तो समझ गया, वे लोग लौट गए हैं। उसका मन डूब गया, जैसे उसकी कोई निधी खो गई हो।

चली गई यार, उसने अंदर आकर रूआंसे स्वर में संदीप से कहा।

तो क्या हुआ? उसे अपने भाई के साथ जाना ही था, कौन सा तेरे साथ तेरे घर आ जाती? पर मेरी समझ में ये बात नहीं आई कि तुने आज ही उसे देखा और एक पल में ही दिवाना कैसे हो गया? संदीप ने कॉफी खत्म करते हुए कहा।

तु नहीं समझेगा। मुझे पहली ही नजर में उसे देखकर लगा, जैसे उससे मेरा जनम जनम का रिश्ता है। बस प्यार हो गया है उससे। अब उसका घर पता करना है मुझे। क्या करती है‌, ये सब जानना है। उसे भी मुझसे प्यार ही हुआ है तभी तो वह भी मुझे ही देख रही थी। रंजन ने कहा।

सुन तु उसे ढूंढ पर मुझे घर छोड़ दे यार पहले, मम्मी ने कहा था उन्हें मुझसे जरूरी काम है और मैं तेरे चक्कर में इधर आ गया हूं। और देर करूंगा तो बहुत डांट पड़ेगी। चल जल्दी से पहुंचा दे। संदीप ने उठते हुए कहा।

बेमन से रंजन ने उसे घर छोड़ा और जिस ओर से रत्ना आते दिखी थी, उधर ही दस किमी तक के दो चक्कर लगा आया पर रत्ना नहीं दिखी। कुछ समझ में नहीं आ रहा था अब दुबारा उसे कैसे और कहां ढूंढेगा। वोट पर एक घंटे साथ बीता कर भी उसे नाम के अलावे ज्यादा कुछ पता नहीं चला रत्ना के। वह थक गया था। रात भी घिर आई थी, वह घर आ गया। खाना भी नहीं खाया और सीधे अपने कमरे में जाकर लेट गया। उसकी समझ में नहीं आ रहा था अब रत्ना को कैसे ढूंढेगा? तरह तरह के ख्याल उसके मन में आ रहे थे। अगर वह उसे दुबारा दिखी ही नहीं तो?? इतना बड़ा शहर है वह उसे कहां- कहां ढूंढेगा? उसकी इच्छा हुई झील के किनारे जाए और जोर- जोर से चिल्लाए- झील मुझे उसका पता बता दे।

अचानक उसे कुछ सुझा, बेवकूफ हूं मैं भी अब तक मुझे फेसबुक का ध्यान ही नहीं आया था, जरूर होगी वह यहां। उसने मोबाइल निकालकर फेसबुक ऑन किया और उसका नाम लिखकर सर्च करने लगा। बहुत सारे ऑप्शन रत्ना के नाम के मिले पर इनमें से वह कहीं नहीं थी। फिर उसने रत्ना नाम के साथ अलग- अलग प्रकार के सरनेम लगाकर ढूंढा, शहर के सभी फेमस कॉलेज का नाम उसके नाम के साथ डाल कर ढूंढा। सुबह के तीन बज चुके थे पर उसे अपनी रत्ना नहीं मिली। मोबाइल की बैट्री कई बार बीप बीप का साउंड कर चुकी थी। उसने मोबाइल बिस्तर के दूसरी ओर फेक दिया। वह अपना मोबाइल नंबर ही उसे दे देता किसी तरह। कुछ नहीं किया। बस देखता रह गया। उसने अपने गालों में चपत लगाई और लेट गया। धीरे- धीरे उसे नींद आ गई।

मम्मी की डांट की आवाज से नींद खुली तो देखा ग्यारह बज रहे थे। वह हड़बडा कर उठा। बाथरूम में गया तो सीधे नहाकर ही बाहर आया।

खाना दे दो मां, उसने मम्मी से कहा।

घोड़े बेच कर सोने के अलावे भी तेरे पास कोई और काम है क्या? बस खाओ और या तो आवारागर्दी करो या सो जाओ। ये नहीं होता तुझसे कि जाकर दुकान संभाले। बाप- बेटे एक से हो दोनों। गुस्से से बड़बडाती वे खाना लेकर आईं।

तुम भी तो आज स्कूल नहीं गई। वैसे ही हर समय कोई थोड़े न काम कर सकता है। उसने ढिढाई से कहा और खाने लगा।

छुट्‌टी ली है मैंने तुमलोग तो घर बाहर कहीं का काम नहीं कर सकते हो, तो मैं ही करूंगी न। और सुनो, जाकर सीधे दुकान में बैठना। उन्होंने कहा और कहीं जाने की तैयारी करने लगी।

मम्मी प्लीज, पापा है न दुकान में, मुझे अभी बहुत जरूरी काम है। पहले मैं वहीं करने जाउंगा। रंजन ने कहा और प्लेट वहीं छोड़ हाथ धोने चला गया।

प्लेट उठाकर सिंक में रख, बिल्कुल पागल कर देगा यह लड़का, न इसका पढ़ने में मन लगता है न किसी काम धंधे में क्या होगा भविष्य इस लड़के का, सोचते हुए वे घर से निकली।

रंजन सीधे संदीप के घर गया। सुन बहुत जरूरी काम है यार। मदद कर। उसने मनुहार के शब्दों में कहा।

क्या हुआ। उसका पता चल गया क्या, संदीप ने मजाक किया।

यार, पता ही तो नहीं चला, कहां- कहां ढूंढा उसे मैंने, रातभर कुछ पता नहीं चला, रंजन ने मायूस स्वर में उसे रात की घटना बताई।

अरे, इसमें निराश होने की क्या बात है नहीं होगी वह फेसबुक पर तो नहीं मिली। या फिर उसका बाहर का नाम कुछ और होगा, इसलिए रत्ना नाम से नहीं मिली। और तु जो बाइक पर चढ़कर सड़क के चक्कर लगा आया। बता, सारे घर सड़क के किनारे ही होते हैं क्या, गलियों में, कॉलोनी के अंदर नहीं हो सकते। और अगर सड़क के किनारे घर हुआ भी उसका तो रात को घर बाहर वो तेरा इंतजार करती रहती क्या, जो तु निराश हो गया है? संदीप ने कहा।

यार बात तो तेरी सही है। मैंने इस तरह से सोचा ही नहीं था। बेकार में परेशान हूं। चल अब तु ही उसे पाने का रास्ता भी बता।

शुरूआत कर कॉलोनी से। इस तरफ पहले सनराइज कॉलोनी है, फिर आगे मदन मोहन। आज सिर्फ इन दोनों की सैर कर। कॉलोनी के बाहर बाइक छोड़ और अंदर पैदल घूम। संदीप ने बताया।

वाह दोस्त क्या आइडिया दिया है, कहता हुआ रंजन अपनी बाइक पर बैठा और स्टार्ट कर ली।

अरे आगे भी तो सुन।

बाद में, कहता हुआ रंजन सर्र से निकल गया।