Break the bond - 7 in Hindi Fiction Stories by Asha sharma books and stories PDF | तोड़ के बंधन - 7

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तोड़ के बंधन - 7

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“हेल्लो मिताली! कल मैं वापस जा रहा हूँ. जाने से पहले नीतू को तुमसे मिलवाना चाहता हूँ. आज शाम आ रहे हैं हम दोनों.” मयंक का फोन था. सुनते ही मिताली चहक उठी. शाम को लगभग सात बजे मयंक अपनी पत्नी नीतू के साथ हाजिर था.

“आइये! आपका... इन्तजार था...” मिताली ने अदा से झुककर कर दरवाजा खोला और मुस्कुरा दी. पीले सलवार-कमीज में मिताली बहुत मासूम लग रही थी.

“आप कहें और हम ना आयें... ऐसे तो हालात नहीं...” मयंक ने भी उसी के अंदाज में उसका अभिवादन किया. दोनों हँस पड़े.

“नीतू! ये है मिताली. कॉलेज में हम दोनों इसी तरह गीतों के माध्यम से बातें किया करते थे. उन दिनों हमारा ये तरीका इतना पोपुलर हुआ था कि लोग हमें “गीतों वाली जोड़ी” कह कर बुलाने लगे थे.” मयंक ने मिताली का परिचय नीतू को दिया तो नीतू ने मुस्कुराकर उसे गले लगा लिया.

देर तक बातों का सिलसिला चलता रहा. साथ ही खाने-पीने का भी. कॉलेज के किस्से सुनाये गए. कई दोस्तों को याद किया गया. शादी-ब्याह, नौकरी-बच्चों से शुरू हुई बातें वैभव के जिक्र पर आकर रुक गई. बातों के प्रवाह को ब्रेक लग गया. नीतू ने उसे हर परिस्थिति में अपने साथ होने का भरोसा दिलाया और फिर रात लगभग दस बजे मयंक ने मिताली से विदा ली.

उधर मिताली के घर के सामने खड़ी अजनबी गाड़ी लोकेश के लिए उत्सुकता बनी हुई थी. वह बार-बार मिताली के घर जाकर अपनी जिज्ञासा शांत करने की हिम्मत जुटाता लेकिन हर बार संकोच की एक रेखा बीच में आ जाती और लोकेश के पाँव रुक जाते. रात बहुत ही बेचैनी से गुजरी.

“कल रात कोई खास मेहमान आये थे शायद. बहुत देर तक रुके.” दूसरे दिन जब जिज्ञासा अपने चरम पर पहुँच गई तो लोकेश से रहा नहीं गया. उसने पोर्च के रखे गमलों में पानी डालती मिताली से आखिर पूछ ही लिया.

“जी! मेरा पुराना दोस्त था. हम एक ही कॉलेज में पढ़ते थे. कॉलेज के बाद सब इधर-उधर हो गए. और संयोग देखिये तो. मिले भी तो कैसे. दो दिन पहले मेरी गाड़ी से एक व्यक्ति टकरा गया था. मैं उसे लेकर हॉस्पिटल गई, वही मयंक मुझे मिला.” मिताली ने बताया. लोकेश को लगा मानो मयंक का नाम लेते समय मिताली के चेहरे पर लाली और स्वर में खनखनाहट बढ़ गई थी. दिल में उठे दर्द की वजह को लोकेश समझ रहा था. वह भी अपने घर की तरफ लौट गया.

इन दिनों मिताली का व्यवहार लोकेश के लिए बहुत ही आहत करने वाला था. वह जब भी मिताली को फोन लगाता है, फोन बिजी ही आता है. घर आने के बाद तो लोकेश अक्सर ही उसे छत पर किसी से बतियाते हुए देखता है. शायद फोन पर दूसरी तरफ मयंक ही होता है. मिताली ने ही एक बार बताया था कि मयंक से उसकी बहुत लंबी बात चलती है.

कभी छत पर टहलते हुए तो कभी वहाँ रखे झूले पर बैठे हुए. मुस्कुराती, शरमाती मिताली की शामें अँधेरा होने तक वहीं गुजरती हैं. ये वो समय होता है जब विशु बाहर खेलने और निधि कोचिंग के लिए गई होती है. पहले इस समय को कभीकभार लोकेश हथिया लेता था लेकिन अब यह मयंक के हिस्से में चला गया.

“मयंक... मयंक... मयंक... इस मयंक ने मेरी जिंदगी में जहर घोल दिया है. मुझसे मिताली को छीन लिया है. कितनी भोली है मिताली. उसका छल नहीं समझ पा रही. वो शादीशुदा मयंक एक दिन इसे रोता हुआ छोड़कर अपनी दुनिया में वापस लौट जायेगा.” लोकेश जब फोन पर बात करती मिताली के हावभाव देखता तो कुढ़ कर रह जाता.

“तुम मिताली को लेकर इतना पजेसिव क्यों हो रह हो? अगर वो उससे बात करके खुश रहती है तो तुम्हारे पेट में दर्द क्यों हो रहा है. तुम भी तो उसकी खुशी चाहने का ही दावा करते हो ना. अब वो खुश है तो तुम क्यों दुखी हो रहे हो. क्या उसे चाहने लगे हो?” कोई अंदर से पूछता.

“एक दोस्त होने के नाते मैं उसकी फ़िक्र करता हूँ. बड़ी मुश्किल से वो आंसुओं की नदी से बाहर आई है. ये मयंक इसे फिर से रुला कर चला जायेगा तब ये बिल्कुल टूट जाएगी.” लोकेश जवाब देता.

“यानी तुम मिताली को सिर्फ अपनी दोस्त समझते हो इससे ज्यादा कुछ नहीं. हो सकता है कि जैसे तुम उसे दोस्त समझ रहे हो वैसे ही मयंक भी उसका दोस्त हो. और हो क्या है ही. वो भी बरसों पुराना. तुम्हें तो उसकी जिंदगी में आये जुम्मा-जुम्मा चार दिन हुए हैं. मिताली की दोस्ती पर तुमसे ज्यादा मयंक का अधिकार बनता है.” फिर कोई बोला.

“अगर उसे मिताली की इतनी ही फिकर है तो आता क्यों नहीं उसकी तकलीफ बांटने? क्यों उसके आंसुओं को रुमाल नहीं देता?” लोकेश के तर्क भी कम नहीं थे.

“देखते नहीं! मिताली को अब रुमाल की जरूरत ही नहीं रही. मयंक से मिलने के बाद से              कितनी खुश रहती है वो. अरे उसने सैंकड़ों मील दूर रह कर भी वो काम कर दिया जो तुम चार कदम पर रह कर नहीं कर पाए.” तर्क-वितर्क से लगातार हमले हो रहे थे. अब लोकेश को ही चुप होना पड़ा. बात सही भी थी. वह मिताली के दिल में जगह बनाने में सफल नहीं हो पाया था. उसने अपना ध्यान मिताली से हटाया और घर के भीतर आकर बेमन से टीवी चलाकर देखने लगा.

लोकेश महसूस कर रहा था कि मिताली उससे एक दूरी बनाने लगी है. बहुत जरुरी न हो तो फोन भी नहीं करती. बाहर के अपने काम भी खुद ही करने की कोशिश करती है. लोकेश ही अपने स्वाभिमान को तिलांजलि देकर कभीकभार उसे फोन कर लेता है. इस पर भी उसका व्यवहार रूखा ही होता है. हर बार लोकेश मन ही मन फोन न करने की कसम खा लेता है और हर बार मिताली का मासूम चेहरा देखते ही वो कसम टूट जाती है. हर बार यही होता है.

“मयंक आपका बहुत अच्छा दोस्त रहा होगा ना?” एक रोज लोकेश मिताली से पूछ ही बैठा. मिताली को उसका प्रश्न सुनकर हैरानी हुई.

“जी हाँ! कॉलेज के समय तो हमारी केमिस्ट्री इतनी गजब थी कि हम बिना कहे एक-दूसरे की बात समझ जाते थे.” कुछ याद करके मिताली के चेहरे पर मुस्कान थिरक उठी.

“फिर तो आप दोनों को अपने इस रिश्ते को दोस्ती से आगे बढ़ाना चाहिए था.” न चाहते हुए भी लोकेश के दिल की बात उसकी जुबान पर आ गई. उसने देखा कि उसकी बात सुनकर मिताली असहज हो गई.

“जो नहीं हुआ उस पर अब बात करने का कोई औचित्य नहीं है.” मिताली ने अप्रियता दर्शाते हुए टॉपिक बंद करने का संकेत दे दिया तो लोकेश भी समझ गया कि उसने अनजाने ही बातचीत को गलत दिशा में मोड़ दिया था.

“चलिए छोड़िए! दोस्त तो जिस मोड़ पर मिल जायें, ईश्वर का उपहार समझ कर स्वीकार कर लेना चाहिए. दुनिया में कुछ ही लोग ऐसे भाग्यशाली होंगे जिन्हें सच्चे दोस्त नसीब होते हैं. आप भी उनमें से एक हैं. अरे निधू बेटा! एक कप चाय तो पिला दे.” वातावरण को हल्का करने के इरादे से लोकेश ने जोर से हांक लगाई.

“निधि कोचिंग गई है. मैं बना कर लाती हूँ.” कहती हुई मिताली उठने को हुई.

“आप क्यों तकलीफ करती हैं. माँ बना ही रही होगी. घर जाकर ही पी लूँगा.” कहने के साथ ही लोकेश उठ खड़ा हुआ. उसे यह देखकर घोर आश्चर्य हुआ कि मिताली ने उसे औपचारिकतावश ही सही, रोकने की कोशिश तक नहीं की.

मिताली का व्यवहार लोकेश के लिए दिनोंदिन रहस्यमय होता जा रहा था. कहाँ तो उसे लगता था जैसे वह मिताली को बहुत करीब से जानने-समझने लगा है और कहाँ यह पहेली की तरह से उलझती ही जा रही है. मयंक से उसकी बढती नजदीकियां लोकेश को पल-पल बेचैन किये दे रही थी. मयंक उसके गले की हड्डी सा बन गया था जिसे न उगलते बन रहा था और ना ही निगलते.

माँ कितनी ही बार उसे इशारों-इशारों में मिताली के साथ बात आगे बढ़ाने के बारे में संकेत दे चुकी थी लेकिन वह जानबूझकर अनजान बना हुआ था. किस मुँह से बात करेगा वह मिताली से? क्या कहेगा उससे? जबकि अभी तक वह खुद अपनेआप को सहज महसूस नहीं कर पा रहा. मयंक नाम की अनदेखी दीवार उन दोनों के बीच खड़ी हुई है. कैसे उसे गिराएगा?

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