Cods - Marbles - 8 in Hindi Moral Stories by Manju Mahima books and stories PDF | कोड़ियाँ - कंचे - 8

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कोड़ियाँ - कंचे - 8

Part- 8

गरम चाय साइड टेबल पर रख गौरी सोते हुए बलदेव के पास बैठ, बालों में उँगलियाँ फिराते हुए बोली, ‘ अजी उठो,  म्हारा नंद जी का लाल ! चाय ठंड़ी हो री छै,  बोत सो लिया, आज तो हद ही कर दी, आठ बाज़ ग्या छै, चाय वालो भी दो बार आके ग्यो, म्हूँ भी सूती रे ग्यी।’

अचानक गौरी को लगा कि बलदेव ढीले से पड़े हुए हैं, वह घबरा गई, ज़ोर ज़ोर से आवाज़ देते हुए हिलाने लगी, पर जब कोई उत्तर नहीं मिला और साँस कुछ उखड़ी हुई सी लगी तो उसने कॉल बेल दबाई और घबराहट में हाथ ही हटाना भूल ही गई, उसकी आँखों के सामने अँधेरा, सा छाने लगा।

स्टाफ़ वाले दौड़ते हुए आए, प्रोफ़ेसर की हालत देख, एक लड़का डॉक्टर को बुलाने दौड़ा, डॉक्टर सा. ने जल्दी से चेक अप कर जल्दी से ऑक्सिजन सिलेंडर लाने को कहा और जल्दी ब्लड प्रेशर लेने लगे, बी.पी. काफ़ी लॉ आया, डॉक्टर ने उन्हें जल्दी से आई. सी. यू. में शिफ़्ट कर दिया.

गौरी एक कोने में खड़ी पत्थर की बुत बनी, ठगी सी खड़ी थी, समझ नहीं पा रही थी कि क्या हो रहा है? जब स्ट्रेचर पर ले जाने लगे, तभी उसने डॉक्टर सा. से पूछा, ‘ये अचानक  क्या हो गया?’

उन्होंने कहा, ‘थोड़ा बी. पी॰ कम हो गया है, उधर उनकी देखभाल अच्छी होगी।’ उन्हें तेज़ी से ले जा रहे थे, गौरी भी बदहवास सी पीछे भागी जा रही थी.

आई॰ सी. यू. में पहुँचते ही, ऑक्सीजन मास्क लगा दिया गया, ड्रिप चढ़ाई जाने लगी. इ॰सी॰जी॰के तार भी जोड़ दिए गए। गौरी, मुँह में साड़ी का पल्लू दबाए हतप्रभ सी खड़ी रह गई।

तभी डॉक्टर बंसल दिखाई दिए, उन्होंने गौरी से पूछा, आपका बेटा कहाँ है?

जी, उसे फ़ोन किया है, वह आता ही होगा, क्या होगया डॉक्टर सा इन्हें? रात को तो सब ठीक ही थे, बच्चों के साथ ख़ूब हँसी मज़ाक़ कर रहे थे।’

गौरी केवल अपनी गर्दन ही हिला पाई, लड़खड़ाते कदमों से वह आइ॰ सी. यू तक पहुँची, अंदर झाँक कर देखा, बलदेव मशीनों से घिरे हुए थे, कई लोग उन्हें घेरे हुए थे। आपस में कुछ बहस कर रहे थे, डाक्टर बंसल का चेहरा तमतमा रहा था, शायद प्रोफेसर सा. के बारे में ही यह बातचीत हो रही थी.

वह निरूपाय सी खड़ी सबके चेहरे के भाव पढ़ने की कोशिश भर कर पा रही थी। अपनी रूलाई रोकने के लिए मुँह में साड़ी के पल्ले का कोना दबा रखा था। तभी दौड़ते हुए पराग और परी आ गए, आते ही प्रश्नों की झड़ी लग गई, क्या हुआ पापा को? रात को अच्छी तरह से सोए थे या नहीं? वे कहाँ हैं? हम मिल सकते हैं या नहीं?

गौरी जो किसी न किसी तरह अभी तक अपने को संभाले बैठी थी, पराग को गले लगकर फूट पड़ी.. वह उनके किसी भी प्रश्न का ज़वाब नहीं दे पाई. परी भी माँ से लिपट रो पडी़. तभी नर्स दौड़ती हुई आई और बोली आप लोग घबराइए मत सब ठीक हो जाएगा. शोर होगा तो डॉ.सा. बाहर आ जाएंगे. आप शांत रहिए.

उधर पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार दूसरे दिन सुबह ही गायत्री जी जयपुर पहुँच चुकी थीं और विधान सभा के सत्र में विरोधी पार्टी के एक सदस्य ने उन पर जो जनता को हवेली का लालच देकर चुनाव जीतने का आरोप लगाया था, इसी के बाबत वे सीधे सी. एम. से मिलने पहुंची और उन्हें अपने स्पष्टीकरण से अवगत करवाया, जिसे सुन सी.एम्.सा. निश्चिन्त हो गए।

गायत्री जी ने अपनी वाकपटुता का परिचय देते हुए बड़ा ही अच्छा जवाब विधान सभा में दिया कि सब दंग रह गए।

उन्होंने बताया कि उन पर लगाया गया आरोप सर्वथा निर्मूल है। उन्होंने अपनी पुरखों की हवेली सरकार को शिक्षा कार्य के लिए दान दी है, ना कि रिश्वत रूप में जनता को दी है। वे चाहती तो उसे वह एक होटेल या रिज़ॉर्ट बनाकर करोड़ों रुपए कमा सकती थीं। बूँदी और जहाजपुर में कोई विशेष दूरी नहीं है और जैसा कि सब जानते हैं,  बूँदी एक ऐतिहासिक स्थल है, जिसे देखने ख़ूब विदेशी पर्यटक आते हैं। लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। गायत्री जी ने कहा, ‘मुझे वहाँ के बच्चों की पीड़ा का अहसास है, मैं कल ही वहाँ से आई हूँ.  वहाँ से तकनीकी ज्ञान प्राप्त करके बच्चे अपने पैरों पर खड़े होने में सक्षम हो गए हैं। उन लोगों के द्वारा बनाई गईं वस्तुएँ बाहर जा रही हैं, वे लोग कृषि करने के लिए कई प्रकार की मशीनें बना रहे हैं, वे कम्प्यूटर पर काम करना सीख रहे हैं। कल ही उन्होंने वार्षिक प्रदर्शनी का आयोजन किया था,  जिसका उद्घाटन मैं कर के आई हूँ।  मैं आप सभी से यह अनुरोध करूँगी कि आप एक बार वहाँ अवश्य जाकर देंखे। योग्य निदेशक प्रोफ़ेसर बलदेव के कुशल संचालन में वहाँ दो वर्ष के कम समय में ही इतनी प्रगति हो गई है, अतः मैं आपसे यह अनुरोध करूँगी कि यह मिथ्या आरोप बिलकुल निराधार है, इसलिए इसे ख़ारिज किया जाए।’

सारा हॉल तालियों से गूँज गया और सभी ने गायत्री जी का अनुमोदन किया।

गायत्री जी के आत्मविश्वास और बेबाक़ी से बोलने के ढंग ने सबको बहुत प्रभावित कर दिया।

विधान सभा से बाहर आते ही, बधाइयों का ताँता लग गया। मुख्य मंत्री ने भी गायत्री जी को बधाई देते हुए कहा, ‘आज शाम को हमने कुछ ख़ास लोगों की दावत रखी है हमारे निवास स्थान पर, अन्य महिला विधायकों को भी बुलाया है, अत: आप भी अवश्य आइएगा।’

सचिव संदीप ने कुछ समय बाद आकर गायत्री जी को गुप्त सूचना दी कि उनका नाम राज्य मंत्री के लिए सर्व सम्मति से मनोनीत किया गया है. संदीप और दक्षा के चेहरे खुशी से ऐसे चमक रहे थे, जैसे वे ही राज्य मंत्री बन गए हों.

गायत्री जी ने अविश्वास जताते हुए कहा, ‘यह अफवाह भी हो सकती है.जब तक राजकीय सूचना नहीं आ जाती तब तक हम कैसे विश्वास करें?’

संदीप ने कहा, ‘आज रात की पार्टी में सी.एम्. सा. यह घोषणा करने वाले हैं, आप देख लीजिएगा.’ कह कर दोनों चले गए.

आँखें बंदकर गायत्री लेट गई....

अज़ीब सी धुक्धुकाहट मची हुई थी दिल में. अभी भी अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था कि वह सचमुच ही राज्य मंत्री बन जाएगी. ईश्वर ने एक साथ इतनी खुशियाँ उसकी झोली में डाल दी थीं. सब कुछ एक चलचित्र की तरह हो रहा था. कल तक वह कितनी घबराई हुई थी. यह तो जय ने इतनी अच्छी स्पीच तैयार करवा दी, जिसके कारण ही संभव हो पाया.

फिर ईश्वर का धन्यवाद देते हुए सोने की कोशिश करने लगी......

डूबते-उतराते हुए उसे महसूस हुआ जैसे पीठ पर एक कंकड़ लगा, उई!! वह चिल्लाई, यह क्या? एक कांच की सुन्दर सी गोली..उठाकर देखा..वाह..कैसी सुन्दर सफ़ेद कांच की गोली, जिसमें लाल रंग की धारी बहुत ही सुन्दर लग रही थी. पीछे मुड़कर देखा कोई नहीं..यह किसने फेंकी? गायत्री इधर उधर देखने लगी..तभी दीवार के पीछे से एक दबी से हँसी की आवाज़ आई....खी..खी.. गायत्री ने वहाँ पहुँचकर देखा, ‘अरे! बल्लू तुम? उसे देख वह दोनों हाथ पीछे किए कुछ छिपाने की कोशिश करने लगा.

अपने हाथ की गोली उसे दिखाते हुए पूछा, यह तुमने फेंकीं थी? चुपचाप आँख टम्कारते हुए उसने हाँ का इशारा किया. उसे लग रहा था, गायत्री नाराज़ होगी, लेकिन वह बोली, ‘कितनी सुन्दर है, यह कहाँ से लाए बल्लू? इसे क्या कहते हैं?’ बल्लू का डर अब निकल गया, वह बड़ा अकड़कर बोला, ‘अरे! तुम्हें नहीं पता? यह कंचा है.’ आश्चर्य से गायत्री ने कहा, कंचा? इससे क्या करते हैं?’

‘इससे हम खेलते हैं, और क्या करते हैं? फिर अपनी निकर की जेब हिलाते हुए बोला, देखो मेरे पास कितनी सारे हैं. यह सब मैंने खेल में जीते हैं.’

‘इनसे कैसे खेलते है?’

अब तो बल्लू जी शेर खान हो गए, बड़ी शान से बताने लगे बीच में एक कंचा ऐसे रखते हैं, फिर दूसरा कंचा उंगुली में फंसा कर इस पर निशाना लगाते हैं..गायत्री को बड़ा मज़ा आ रहा था, खासकर उसे कंचे बहुत ही प्यारे लग रहे थे. खेल समझाने के बाद बल्लू ने पूछा, ‘खेलोगी?’ गायत्री ने खेलने की कोशिश की पर उसकी छोटी छोटी मुलायम उँगलियों से कंचा अधिक दूर जा ही नहीं पा रहा था. बल्लू ने कंचे समटते हुए कहा, इसमें खूब अभ्यास करना पड़ता है, तब निशाना लगता है.’

‘तुम्हें चाहिए ?’ उसने अपनी ज़ेब से कुछ कंचे निकालकर उसके हाथ में रख दिए...

सहमते हुए गायत्री ने कहा, ‘नहीं ये तुम्हारे जीते हुए हैं, सो तुम्ही रखो.’

खुद्दार बल्लू ने अपनी दूसरी ज़ेब से कौड़ियाँ निकाल कर कहा, ‘लो, फिर यह तुम वापस ले लो.’

ओह! क्या ये अभी तक तुम्हारे पास हैं?’

‘और क्या? तुम्हीं ने तो कसम दिलाई थी ना,’

‘हूँ, नहीं तुम इन्हें रखो, मैं कंचे ले लेती हूँ.’

‘यह हुई ना बात, अब अपना हिसाब बराबर हो गया, लेकिन अब तुम्हें भी मेरे ये कंचे संभालकर रखने होंगे. खाओ मेरी कसम ’

गायत्री का मन उन सुन्दर कंचों पर आ गया था, उसने हामी भरते हुए कहा, ‘ तुम्हारी कसम पक्का’ और अपनी उंगुली बढ़ा दी, दोनों ने अपनी उंगुली मिलाकर प्रोमिस पक्का कर लिया. गायत्री को मिल गए चमचमाते हुए सुन्दर कांच के कंचे, उसने छांटकर एक एक सब रंग के ले लिए..उसकी आँखें ख़ुशी से चमक रही थीं.

बल्लू महाराज हिदायतें दे रहे थे, तुम इनसे रोज अभ्यास करना, फिर हम खेलेंगे.’ तभी दायजी की कड़क आवाज़ सुनाई दी, ‘बाई जी राज...’ उन सुन्दर कंचों को अपनी फ्रॉक की ज़ेब में रखते हुए वह ज़ल्दी ज़ल्दी सीढियाँ उतरने लगी..फट..फट..’

तभी ज़ोर की आवाज़ सुनाई दी,’ दरवाजे पर खट ख़ट के साथ..‘मैडम’... अचकचाकर वह उठी, घड़ी देखी 5.30 बजे थे. दरवाज़े पर खटखटाहट तेज़ हो गई थी.

‘एक मिनट, खोलती हूँ, कहती हुई उठी और दरवाज़ा खोला. उसकी सहायिका चाय लिए खड़ी थी.

‘मैडम कब से खटखटा रही हूँ.’

हॉस्पिटल में हलचल मची हुई थी, गौरी ने अन्दर जाना चाहा, लेकिन वहाँ सब इतने लोग थे कि वह जा ना सकी, उसका मन था कि वह कौड़ियाँ की डिब्बी बलदेव जी के पास रख दूं, जिसका वह मज़ाक बनाया करती थी, पर इतने लोगों को देख वह परेशान हो गई. डॉ. उनकी जांच कर रहे थे, मशीन से सब जुड़ी सब नालियाँ निकाली ही थीं और आँक्सिज़न सिलेंडर ज्योंही हटाया कि उन्होंने उछलना शुरू कर दिया.

धीरे धीरे पल्स रेट गिर रही थी...अचानक मशीनों ने जवाब दे दिया...उसमें उभरती हुई आदि तिरछी लकीरें सब सीधी हो गई..डॉ. के मुँह से आह निकल गई..सभी चकित हो एक दूसरे को देखने लगे.. एक अजीब सा सन्नाटा छा गया.. एक डॉ. आगे बढ़कर अपनी आखिरी कोशिश करने लगा हार्ट पर मुक्के मारने की कि शायद कुछ हरकत आ जाए.. आखिरकार इतने प्रयत्न और जतन करने के बाद भी सुआ (तोता) पिंजरे में से निकल भागा.

कबीरदास जी ने कहा था कि मनुष्य का जीवन पानी के बुलबुले की तरह क्षणिक है, कब तक साथ है कोई पता नहीं है. यही बात इस घड़ी में सार्थक हो रही थी. धरती के सूर्यास्त के साथ साथ ही प्रोफेसर बलदेव के जीवन का सूर्य भी अस्त होगया.. गौरी, पराग, परिधि एकाएक बेसहारा से गहन अन्धकार में घिर गए. ऐसे अन्धकार में, जिसकी उन्होंने कल्पना तक नहीं की थी. गौरी के तो पैरों तले ज़मीन ही खिसक गई, वह लड़खड़ाई और गिरने को हुई कि गौरी के भाई ने संभाल लिया, बेहोश गौरी को लिटाया गया. परी, भाई पराग से एक कोमल लता की भाँती लिपट गई..सभी डॉ.बेबस से मुँह लटकाए खड़े थे. डॉ. बंसल जानते थे, अभी कुछ भी बोलना उनके लिए ठीक नहीं, इतने छोटे बच्चे पर इतनी बड़ी जिम्मेदारी आ गई है, उन्होंने बस इतना कहा बेटा, ‘man proposes and God disposes.’ ऊपर वाले के सामने हम कुछ नहीं है, हम तो केवल कोशिश ही कर सकते हैं. ‘ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे.’ यह कह वे अपने रूम की ओर चल दिए.

पराग अपने को नहीं संभाल पा रहा था, उसे डॉ. के शब्द कांटे की तरह लग रहे थे. वह झल्लाकर बोला, नहीं चाहिए मुझे पानी-वानी और पापा कहकर अंदर जाकर उनसे लिपट गया..4-5 मिनट बाद जब निश्छल शरीर में कोई हरकत नहीं हुई तो उसे कुछ भान हुआ, सही कहते थे पापा, आज आप मुझे बड़ा बनाकर चले गए..केवल दो दिन में ही आपने कितना कुछ मुझे सिखा दिया....

डॉ.सा. ने मामाजी को सारी स्थति समझाई. मामाजी डॉ. सा. की बातों से आश्वस्त होगए. डॉ. ने एक फॉर्म पर दस्तखत करवा उन्हें पार्थिव शरीर ले जाने की इज़ाजत दे दी. सूर्यास्त हो जाने के कारण दाह-संस्कार उसी दिन संभव नहीं था. अत: दूसरे दिन सुबह करने का निश्चय किया.

प्रोफेसर सा. की अंतिम यात्रा की सारी व्यवस्था विद्यार्थियों और कॉलेज स्टाफ ने संभाल ली थी. यह भी तय किया गया कि उन्हें पहले कॉलेज में दर्शनार्थ रखा जाएगा फिर उन्हें ले जाया जाएगा. घर के अन्दर की सारी व्यवस्था उनकी पड़ोसन रमा भाभी ने संभाल ली थी.

इन सब घटनाओं से बेखबर गायत्री जी तैयार होकर ठीक टाइम पर मुख्यमन्त्री निवास पर पहुँच गईं..वहाँ काफी रंगीन इंतजाम किए गए थे. दावत में भी सामिष, निरामिष दोनों ही प्रकार के व्यंजन महक रहे थे. राजस्थानी गायक और नर्तकों का भी कार्यक्रम था. पूरे जश्न की तैयारी थी. आखिर कल उनके नए मंत्रिमंडल का शपथ ग्रहण समारोह था. सभी वरिष्ठ और कनिष्ठ मंत्री वहाँ अपनी आन, बान ,शान से पूरी सजधज के साथ उपस्थित थे. सभी अपना अपना आसन ग्रहण कर चुके थे, तभी मुख्यमंत्री जी ने प्रवेश किया, सभी उठ खड़े हुए.. सबके हाथ नमस्ते की मुद्रा में जुड़ गए.. लग रहा था राजा-महाराजा तो गए पर ये नए महाराजा तो जैसे उनसे भी एक कदम आगे हैं..

सभी को बैठने का आदेश देते हुए मुख्यमंत्री जी विराजमान हो गए और माहौल की चर्चा करते हुए अपने सभी नए मंत्रियों की घोषणा कर दी. गायत्री जी को राज्य मंत्री बनाया गया और उन्हें ‘महिला और बाल विभाग’ दिया गया. सभी ने करतल ध्वनि से स्वागत किया और नए मंत्रियों को बधाई देने का सिलसिला शुरू हो गया.

पार्टी देर तक चलती रही, पर गायत्री असहज हो रही थी, अत: सबसे गुडनाईट कहकर सोने चली गईं. एक अजीब सी घबडाहट उन्हें हो रही थी, ऐसी अनुभूति उन्हें पहले कभी नहीं हुई. फिर जी मिचलाया और वे बाथरूम में भागीं. उलटी हो जाने पर जी थोड़ा हल्का हुआ. पर्स खोला इलाइची निकाली मुँह में डाली और सोने की कोशिश करने लगी. ईश्वर की प्रार्थना में उनके हाथ जुड़ गए ‘ हे! ईश्वर सब ठीक करना, ना जाने क्यों मुझे इतनी घबडाहट हो रही है.. मेरा साथ देना..’ बडबडाते हुए कब आँख मूंद गईं पता ही नहीं लगा.

कोई दरवाज़ा खटखटा रहा था, दरवाजा खोलते ही देखा, जय राजावत मुस्कुराते हुए खड़े थे. यह एक सुखद सरप्राइज था. चकित हो घड़ी देखी 7.30 बजे थे, ‘अरे! इतनी जल्दी कैसे पहुँच गए?’

जय ने अन्दर आकर दरवाजा बंद कर उसे आगोश में जकड़ते हुए कहा ‘उड़कर’.

सचिव व सहायिका भी आ गए सभी विधानसभा में जाने की तैयारी में लग गए ग्यारह बजे का समय उनके शपथ लेने का निश्चित हुआ है, सचिव ने बताया. सचिव ने एक होशियारी यह की कि सारे समाचार पत्र जिनमें प्रोफेसर बलदेव की खबर छपी थी, गायत्री की नज़रों से दूर कर दिए और उन्हें विधान सभा जाने की तैयारी में मशगूल कर दिया.