एक गांव में ज्ञानेश्वर नामक एक गरीब किसान रहता था। वह अभी कुछ जवान था इसलिए उसमें कुछ कर गुजरने का माद्दा था। उसने धनवान होने का सपना अपने जेहन में पाल रखा था। धनवान होने के लिए उसके पास कोई खास योजना नहीं थी, न तो किसी का सहारा था। गरीब तो पहले से ही था इसलिए वह जानता था कि मेहनत मजदूरी करके वह धनवान नहीं बन सकता। उसने सुन रखा था कि यदि वह किसी जिन्न को अपने वश में कर ले या किसी मायावी आदमी को पकड़ ले तो उसके सहारे वह काफी धन कमा सकता है। ऐसे ही एक दिन वह जिन्न की खोज में घर से बाहर निकल पड़ा। कई दिनों तक इधर-उधर भटकता रहा पर अपने मकसद में कामयाब नहीं हुआ।
वह समझ नहीं पा रहा था कि उसे जिन्न की प्राप्ति कैसे होगी? किसी ने उसे बताया कि यदि वह किसी सिद्ध महात्मा से मिले तो वही कोई रास्ता दिखाएंगे। एक दिन उसकी मुलाकात कुछ ऐसे साधुओं से हुई जो जंगल से साधना करके लौट रहे थे। उसने उन्हें प्रणाम किया और अपने घर बुलाकर उनकी खूब सेवा की।
जब वे लोग जाने लगे तो उसने पूछा, “हे गुरुजन, क्या आप लोग किसी सिद्ध महात्मा को जानते हैं जो मेरी सहायता कर सकें?” उसकी सेवा सत्कार से साधु लोग प्रसन्न थे अत: उनमें से एक साधु बोला,
“हां वत्स, हम एक ऐसे महात्मा को जानते हैं जो पास के जंगल में रहते हैं। तुम उनके पास चले जाओ और अपनी व्यथा सुनाओ, वे जरूर तुम्हें कोई रास्ता बताएंगे।”
इस बात से ज्ञानेश्वर बड़ा प्रसन्न हुआ।
अगले ही दिन वह उस दिशा में दौड़ पड़ा। जब वह जंगल में पहुंचा तो उसे एक आश्रम दिखाई दिया। वहां एक महात्मा अपनी लंबी-सी श्वेत दाढ़ी और जटा धारण किए अग्नि के सामने ध्यान-मग्न बैठे थे। ज्ञानेश्वर वहीं सामने समाधी लगाकर बैठ गया। महात्मा जी ने जब आंखें खोली तब काफी अंधेरा हो चुका था। रात काटने के लिए ज्ञानेश्वर ने उस महात्मा जी से आश्रय मांगा। महात्मा जी ने सहर्ष उसे अपने आश्रम में ठहरने की इजाजत दे दी। रात में भोजन करने के बाद उसने महात्मा जी के पैर दबाए, पीने के लिए दूध दिया और काफी सेवा की। दूसरे दिन भोर से ही वह महात्मा जी के कामों में हाथ बंटाने लगा। महात्मा जी साधना करने की तैयारी कर रहे थे। मौका देखकर ज्ञानेश्वर उनके पैर पकड़कर रोने रोने लगा।
“क्यों भाई क्या बात है? इस तरह रो क्यों रहे हो?” महात्मा जी ने पूछा।
“मैं एक गरीब किसान हूँ महाराज और मैं अपने कार्य सिध्दि के लिए एक जिन्न चाहता हूँ। आप कृपया मुझे किसी ऐसे जिन्न को पकड़ने की राह बताएं जो मेरी इच्छाओं की पूर्ति करे। यह मेरी हाथ जोड़कर आपसे प्रार्थना है।”
उसके सेवा-सत्कार से महात्मा जी पहले से ही बड़े प्रसन्न थे इसलिए ध्यान से उन्होंने उसकी सारी बातें सुनी और बोले,
“वत्स, चिंता मत करो और घर जाओ। तुम एक किसान हो। किसान इस लोक का सबसे बड़ा सेवक माना जाता है। अपने काम में मन लगाओ उसी से तुम्हें सुख और समाधान मिलेगा। शेष सब माया है, इस माया के चक्कर में परेशान हो जाओगे।”
महात्मा जी की बात मानकर उस दिन तो ज्ञानेश्वर वहां से लौट गया। मगर उस पर तो अमीर बनने की धुन सवार थी। वह भला कहां मानने वाला था! उसने पीछा नहीं छोड़ा। अब वह रोज उस महात्मा जी के पास जाता, उनकी सेवा करता और जिन्न प्राप्ति के लिए प्रार्थना करता। उसकी आंखें खोलने के लिए एक दिन महात्मा जी ने उसे एक मंत्र दिया और बोले,
“हे वत्स, तुम बड़े उतावले हो रहे हो इसलिए जादू का यह मंत्र मैं तुम्हें दे रहा हूँ। इसे जपते ही जिन्न तुम्हारे सामने आ जाएगा और तुम जो चाहोगे, वह वही करेगा। मगर ध्यान रहे कि जिन्न बड़े खतरनाक होते हैं। तुम यदि उसे काम नहीं बता पाए तो, वह तुम्हारी जान ले लेगा।”
मंत्र पाकर ज्ञानेश्वर बड़ा प्रसन्न हो गया। वह सोचने लगा कि धनवान बनने का यह तो आसान तरीका है। जिन्न को देने के लिए मेरे पास कई काम हैं। सारी जिंदगी मैं उसे काम दे सकता हूँ। फिर वह जंगल में अंदर की ओर गया तथा एक पत्थर पर बैठकर मंत्रोच्चार करने लगा। काफ़ी देर तक निरंतर जाप करने पर एक भीमकाय जिन्न उसके सामने प्रकट हुआ और गंभीर स्वर में बोला, “बोलो मेरे आका, मेरे लिए क्या हुक्म है? मैं एक मायावी जिन्न हूँ और आज से आपका गुलाम हूँ। अपने जादुई मंत्र से आपने मुझे अपने वश में कर लिया है। अब तुम्हें सदैव मुझे काम में लगाए रखना होगा। जिस दिन तुम्हारे पास मुझे देने के लिए कोई काम नहीं होगा, उस दिन मैं तुम्हें मारकर खा जाऊंगा।”
ज्ञानेश्वर चकित हो गया और कुछ देर तक सोचता रहा। मन ही मन वह उस महात्मा और उन साधुओं के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करता रहा। उसने कभी ऐसे किसी करिश्मा के बारे में नहीं सोचा था। तुरंत उसने अपनी सुप्त इच्छा उस जिन्न से व्यक्त की,
“जाओ, मेरे लिए एक महल बनाओ।” उस जिन्न ने अपना हाथ हवा में घुमाया और देखते ही देखते वहां एक आलीशान महल खड़ा हो गया।
“लो आपका महल तैयार हो गया है। अब अगला काम बोलो मेरे आका।”
उस महल को देखकर ज्ञानेश्वर इतना खुश हुआ कि मानों उसने आसमान छू लिया हो। कुछ देर तक वह सोचता रहा फिर जिन्न से बोला,
“मेरे लिए असीम धन, हीरे-मोती जवाहरात और सोना ले आओ।”
जिन्न ने हवा में हाथ घुमाया और बोला,
“यह लो धन, दौलत, हीरे, मोती इत्यादि सब कुछ आपके लिए हाजिर है। अब मेरे लिए आगे क्या हुक्म है मेरे आका?”
ज्ञानेश्वर ने देखा कि अचानक उसका महल हीरे, मोती, जवाहरात, सोने और चांदी से भर गया है। उसे अपनी आंखों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था इसलिए उसने धन को छूकर देखा, तब उसे भरोसा हुआ कि वह सब असली हैं। आँखें फाड़-फाड़कर वह यह सब देख रहा था। इतने जल्दी वह इतना अमीर हो जाएगा ऐसा उसने सपने में भी नहीं सोचा था। अब वह रंगीन सपने बुनने लगा। अचानक उसे आवाज सुनाई दी,
“मुझे काम दो मेरे आका और जल्दी काम दो। तुम्हें पता है कि मैं एक पल भी खाली नहीं बैठ सकता।”
ज्ञानेश्वर उस मनमोहक सपने से बाहर आया और जिन्न की ओर देखकर बोला, “हे जिन्न, तुम मेरे लिए एक सुंदर नगर का निर्माण करो, जिसका मैं राजा बन सकूँ। मेरे नगर में सुंदर-सुंदर कई महल होने चाहिए। साथ में कई मीनारें, जलाशय, रास्ते, उद्यान इत्यादि भी होने चाहिए। मैं एक बहुत बड़ा और सुंदर नगर चाहता हूँ, तुम अपना समय लो और इसका इंतजाम करो। साथ ही मेरे महल में नौकर-चाकर, सेना और सुंदर रानियां भी होनी चाहिए।”
“जो हुक्म मेरे आका।” कहकर वह जिन्न वहां से लुप्त हो गया।
ज्ञानेश्वर सोचने लगा कि अबकी बार वह जिन्न लुप्त हो गया, मतलब इस काम को वह इतनी आसानी से और जल्दी से नहीं कर पाएगा। वह उसके लिए कुछ और काम देने के बारे में सोचने लगा। उसका सोचना अभी जारी ही था कि वह जंगल वहां से गायब हो गया और वहां एक सुंदर नगर स्थापित हो गया। इस नगर में वे सारी व्यवस्थाएं थीं जो ज्ञानेश्वर चाहता था।
“यह काम भी हो गया मेरे आका, आगे बोलो मैं क्या करूं?”
आवाज सुनते ही ज्ञानेश्वर के होश उड़ गए। अब उसे भय सताने लगा कि वह उसे और क्या काम दे? जो भी काम देता, जिन्न मिनटों में कर देता है। अब उसे मायावी शक्तियों का एहसास होने लगा। आज तक तो वह सिर्फ कहानियों में ही यह सब सुनते आया था।
जिन्न बोला, “मुझे काम दो, नहीं तो मैं तुम्हें खा जाऊंगा।”
ज्ञानेश्वर परेशान हो गया। उसकी समझ में ये नहीं आ रहा था कि वह उसे क्या काम दे? अपना सिर पकड़कर वह बैठ गया। उसके दिमाग में कुछ कौंधा तथा भागते हुए उस महात्मा के पास गया तथा बोला, “हे महत्मान, मैं परेशान हो गया हूँ। मेरी जान बचाएं। उस जिन्न को देने के लिए मेरे पास अब कोई काम नहीं है।” गिड़गिड़ाते हुए उसने महात्मा जी के पांव पकड़ लिए। “महाराज, पलक झपकते ही वह सारा काम कर डालता है और अब काम न देने पर मुझे मार डालने की धमकी भी दे रहा है।”
पीछे–पीछे वह जिन्न भी वहां पहुँच गया तथा फिर से उसने काम देने के लिए कहा। उसे देखकर ज्ञानेश्वर भय से कांपने लगा और महात्मा के पैरों को जोर से पकड़कर अपने प्राणों की भीख मांगने लगा।
“महाराज कृपया मेरी जान बचाइए, मैं जानता हूँ कि आप सिद्ध महात्मा हैं। आप ही मेरी जान बचा सकते हैं। मेरी आंखें अब खुल गई हैं, मैं अमीर नहीं बनना चाहता। मुझे धन, दौलत, राज-पाठ इत्यादि कुछ भी नहीं चाहिए। मुझ पर दया करें, मैं यहीं आपके चरणों में आपकी सेवा करूंगा पर मेरी जान बचा लें।”
महात्मा जी को उस गरीब पर दया आ गई।
वे बोले, “मैंने तुम्हें पहले ही सावधान किया था पर तुमने मेरी बात नहीं मानी। तुम पर तो अमीर बनने का भूत सवार था। अब और देर मत करो उस जिन्न से कहो कि वह दिन रात उस नए नगर की चौकीदारी करे। उस नगर की सुरक्षा की जिम्मेदारी उस जिन्न को सौंप दो।”
ज्ञानेश्वर खड़ा हुआ और बोला,
“हे जिन्न, जाओ और उस नए नगर की दिन-रात रखवाली करो। इस काम में एक पल की भी कोताही बर्दाश्त नहीं की जाएगी। अभी इसी पल से नगर के चारो ओर घूम-घूमकर पहरा दो।”
“जो हुक्म मेरे आका।” कहकर वह जिन्न नगर की सुरक्षा के लिए तुरंत तैनात हो गया।
अब दिन रात वह उस महल के चारो ओर घूम-घूमकर पहरा देने लगा। इस काम में रोज उसे किसी ना किसी शत्रु या जानवर से मुकाबला करना पड़ता था। उस सुंदर नगर पर कई लोगों की वक्र दृष्टि थी। इस काम से जिन्न को एक मिनट की भी फुरसत नहीं मिलती थी। वह परेशान हो गया। कुछ दिनों तक यह सिलसिला ऐसे ही चलता रहा। एक दिन जिन्न हताश होकर बोला,
“हे मेरे आका, आज से पहले मैं कभी ऐसी मुसीबत में नहीं फंसा। इस बार आपने जो काम दिया है, वह कभी खत्म न होने वाला काम है। इस काम से मैं हैरान हो गया हूँ अत: मैं अपनी हार मानकर आपसे क्षमा मांगता हूँ। मुझे इस काम से मुक्ति दे दो। मैं स्वयं अपने आप पर बहुत शर्मिंदा हूँ।”
ज्ञानेश्वर किसान...! नहीं, नहीं राजा ज्ञानेश्वर महाराज। अब वह एक सुंदर नगर का राजा जो बन गया था। जिन्न की बात उसने अनसुनी कर दी। कुछ दिन बाद जिन्न पुन: राजा ज्ञानेश्वर जी से हाथ जोड़कर बोला,
“हे स्वामी, मैं आपसे एक समझौता करना चाहता हूँ। आप मुझे अपने उस मंत्र से मुक्त कर दें, बदले में मैंने जो कुछ भी आपको दिया है, उसे आप निश्चिंत होकर अपने पास रख लें। यदि मैं मुक्त हो जाऊंगा तो कभी लौटकर आपके पास नहीं आऊंगा, ना ही आपको कभी परेशान करूंगा।” राजा ज्ञानेश्वर ने तुरंत उसके प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया और उसे महात्मा जी की मदद से मुक्त कर दिया। जिन्न वहां से गायब हो गया। यह देखकर ज्ञानेश्वर गद्गद हो गया और महात्मा जी के पैरों पर लोटते हुए बोला, “नाथ, अब आप ही मेरे भगवान हैं। मेरा यह दूसरा जीवन आपने मुझे दिया है अत: मैं आपके चरणों में अपने आपको समर्पित करता हूँ। मुझे इस मोह-माया से मुक्ति दें। अब मैं अपने घर नहीं जाना चाहता बल्कि यहीं रहकर आपकी सेवा में जीवन व्यतीत करना चाहता हूँ।”
“उठो वत्स, तुम्हारी जगह मेरे चरणों में नहीं बल्कि उस नए नगर में है, जो आज से स्वर्ण नगरी कहलाएगी और तुम उस नगरी के नए राजा हो। जाओ, अपने नगर का कार्यभार संभालो। ये तुम्हारे पिछले जन्म के पावन कर्मों का फल है। उस जन्म में तुम एक कर्मयोगी राजा थे पर परिवार के छल कपट के कारण तुम्हारी हत्या कर दी गई थी। वह अधुरी कहानी अब पूरी होने जा रही है। पर ध्यान रहे राजन, अपनी इस नगरी में तुम गरीब, शोषित, पीड़ित, दीन-दुखियों को बसाओ तथा नेकी और सत्कर्म से राज्य करो। किसी पर अन्याय और अत्याचार मत करना। जिस दिन तुम्हारे हाथों कोई पाप कर्म घटित होगा, उस दिन ये नगरी लुप्त हो जाएगी और तुम पुन: एक सामान्य किसान बन जाओगे। जाओ राजन, अपनी जिम्मेदारी को संभालो। अब तो तुम जान ही गए हो कि कोई भी पुण्य कार्य कभी व्यर्थ नहीं जाता।”
महाराज ज्ञानेश्वर ने महात्मा जी को अपना गुरु बनाया, उनके चरण स्पर्श किए और आशीर्वाद लेकर आगे की जिम्मेदारियों को संभालने के लिए अपने नगर की ओर निकल पड़े।