"हलो मीरा कैसी हो बेटी? तुम डरना मत मै हमेशा तुम्हारे लिए यहाँ मौजूद रहूंगी……...तुम्हें कभी भी डर लगे तो तुम मुझे बेझिझक फ़ोन कर लेना"……...
मेरी नानी 'माला' हर वक़्त हमारे घर के लैंडलाइन के पास बैठी रहती और दिन मे करीब दस-बारह बार वो फ़ोन बजता और वो इन्ही शब्दों को अपनी कांपती आवाज़ मे हर बार दोहराती…… पिछले तीन महीनो से बस यही चल रहा था हमारे घर मे….
माफ़ कीजियेगा मै आपको अपना परिचय देना तो भूल ही गया….नमस्कार मेरा नाम पारस है और ये घटना मेरे खुद के साथ घटी थी जिसे मै आपके सामने रखने जाने रहा हूँ….उस वक़्त मै बंगाल मै रहा करता था अपनी बूढी नानी और माँ के साथ। मेरी नानी कभी कभी हवा मे ही बातें करने लगती थी और बात करते करते एक दम चुप हो जाती…..मेरी माँ ने मुझे बताया था की नानी को फर्स्ट स्टेज अलजाईमर है। जिसकी वजह से वो अक्सर चीजों को भूल जाती हैँ।
इसलिए वो अपने साथ एक डायरी रखने लगी थी। वक़्त के साथ उनकी बीमारी बढ़ती जा रही थी…..तब उन्होंने एक दिन हमें बताया की उनकी एक सहेली है मीरा जो उनसे उम्र मे छोटी है और वो मीरा को अपनी बेटी मानती है।
तब उन्होंने मीरा से बात करना शुरू कर दिया….पहले….दिन मे वो बस तीन से चार बार ही उस से बात करती थी लेकिन धीरे धीरे उन्होंने तो हद ही कर दी वो बात करते करते वहीँ कुर्सी पर सो जाती ना खाती ना पीती, ना किसी से बात करना बस उस फ़ोन का इंतज़ार करती रहती….नानी की तबियत काफी बिगड़ने लगी थी….लेकिन उन्होंने फ़ोन पर मीरा से बात करना बंद नहीं किया….एक रात मै नानी के पास ही खड़ा था और फ़ोन बजा….नानी ने झट से फ़ोन उठाया और कहने लगी….."बेटी मीरा तुम ठीक तो हो ना"….घर मे इतना सन्नाटा था तो उस फ़ोन मे से मीरा के चीखने और रोने की आवाज़ मै साफ सुन पा रहा था….नानी ने बात करके फ़ोन रख दिया। मुझसे रहा नहीं गया और मैंने उनसे पूछ ही लिया की आखिर ये मीरा उन्हें इतनी बार क्यों फ़ोन करती है और वो कहाँ रहती है? क्या करती है? आखिर उसकी परेशानी क्या है?.....
नानी ने मुझे देखते ही देखते रोने लगी और मुझे डर लगने लगा….वो रोते रोते बोली…"मीरा मेरी बेटी है, वो मुझे अपने पास बुला रही है….वो बहुत परेशान है….वो उसे मार डालेगा….वो उसे मार देगा पारस".....नानी की बातें सुनकर मै डर गया लेकिन उन्हें रोता देख मैंने उन्हें गले लगा लिया और अगले ही पल वो शांत हो गयीं….मेरा सर घूमने लगा था...मै वहां से जाने लगा तभी नानी ने मुझे अपने पास बुलाया और मेरे कान मै फुसफुसाते हुए बोली "कल मै उस से मिलने जाउंगी" और वो एक अजीब सी मुस्कान लिए आँखें बंद कर कर रोज़ की तरह ही वहीँ कुर्सी पर सो गई।
अगली सुबह मै उठा तो घर मे सबकी आँखें नम थी...नानी गुज़र चुकी थी….उनका अंतिम संस्कार करने के बाद मे घर आकर उनकी कुर्सी पर ही बैठ गया और मेरे दिमाग़ मे बस उनके वो शब्द ही घूम रहे थे "कल मै उस से मिलने जाउंगी….कल मै उस से मिलने जाउंगी" मेरा सर मानो दर्द से फटा जाने रहा था….मै बस वहां से सीधा भागकर अपनी माँ से लिपट कर रोने लगा…...तभी वो फ़ोन बजा...मैंने होश संभाला और उस फ़ोन की तरफ़ बढ़ा….मुझे फ़ोन उठाने मे डर लग रहा था...लेकिन फिर भी मैंने हिम्मत कर के फ़ोन उठाया….."हेलो कौन? "......
"पारस…..पारस मेरा बच्चा….मै और मीरा यहाँ बिलकुल ठीक हैँ पारस"….इतना सुनते ही मेरे हाथ से फ़ोन छूट गया और मै पीछे हट गया फ़ोन हवा मै झूलने लगा और उसमे से हसने की आवाज़ आने लगी…..भयानक हंसी….जिसे सुनकर मै पागल सा होना लगा मैंने उठकर फ़ोन काटा लेकिन वो हंसी नहीं रुकी मैंने उसे उठाकर ज़मीन पर पटक दिया….अपने पैरों से कुचला लेकिन वो हंसी बंद नहीं हुयी….मैंने ज़ब लैंडलाइन की केबल काटने की कोशिश की तब मेरी धड़कन रुक गयी उस फ़ोन मे केबल ही नहीं लगी थी...मै वहीं बेहोश होकर गिर पड़ा…..
करीब 13-14 घंटे बाद मै ज़ब होश मे आया तो मेरा शरीर बुखार से तप रहा था कमरे की रौशनी मेरी आँखों मै चुभ रही थी...मै शायद नानी के कमरे था…..मेरे आस पास कोई भी नहीं थी….उठते ही मुझे वहीं सब याद आने लगा मेरी साँसे तेज़ तेज़ चलने लगी मै उठ कर बैठा तब मेरी नज़र दादी की डायरी पर पड़ी...मैंने उसे उठाया और खोला तो उसके पहले पेज पर मीरा नाम लिखा हुआ था…..मैंने अगला पेज खोला तो मेरी चीख निकल गयी….माँ भागते हुए हुयी और उन्होंने मुझे सीने से लगा लिया और मेरे हाथ से वो डायरी लेकर एक तरफ फ़ेंक दी।
कुछ देर बाद ज़ब मैने होश संभाला तब उन्होंने मुझे बताया की पारस तुम्हारी दादी को अलजाईमर नहीं था उन्हें हैलयुसीनेशन आते थे जिसकी वजह से उन्होंने अपने मन मे ही मीरा को जन्म दे दिया और उसे अपनी बेटी मानने लगी थी।
तब मैंने उनसे पूछा की क्या उनकी डायरी मे वो टूटी गर्दन वाली औरत का भयानक सा स्केच मीरा का था……तो उन्होंने कुछ नहीं बोला बस इतना"पता नहीं शायद हो भी सकता है और नहीं भी".....इतना कहकर वो वहां से चली गयी।
मैंने उस डायरी को फिर से उठाया और पूरी डायरी देखी तो उसमे हर पन्ने पर बस वो डरावनी टूटी गर्दन वाली तस्वीरों बानी हुयी थी बिलकुल एक जैसी नापी तुली…..लेकिन उस डायरी के अंत मे एक नंबर लिखा हुआ था।
मैंने बिना वक़्त जाया किये उस डायरी को वहीँ जाला दिया….लेकिन वो नंबर मुझे आज भी याद है पर उस हादसे के बाद मेरी कभी हिम्मत ही नहीं हुयी की मै उस नंबर पर कॉल कर सकूूँ।
समाप्त
धन्यवाद।