रामायण
‘’राम’’ एक मंत्र, एक जादुई शब्द, मूर्तिमान ईश्वर, सर्वव्यापक, जो मिट्टी के कण-कण में विद्यमान है, एक कलीन राजा, सुशील राजकुमार, नील वर्ण देवता, जो विभिन्न संस्कृतियों और सभ्यताओं में अखंडता पैदा करते हुए देशभर में प्रमण करता है। रामायण, राम की कथा है,जो सर्वप्रथम 500 ईसा पूर्व वाल्मीकि द्वारा लिखी गई और संभवत: उससे पहलेऔर उसके बाद भी अनेको बार कही गई ।यह इस सरल कथा की शक्ति और अपील है, लेकिन यह एक ऐसेनायककी कहानी है जिसने अपने जीवन में बहुत सी प्रतिकूलताओं का सामना किया और आज तक भी इस कथा के समानकोई और कथा नहीं लिखी गई है। यह कथा न केवल भारत में लाखों लोगों को प्रिय है, बल्कि अब यह विश्वभर में व्यवहारिक रूप से लोकप्रिय है। सूरीनाम, फिजी, गुयाना, मारीशस आदि देशों में बहुत पहले गए । प्रवासी अपने दिलों में इस कथा को अपने साथ ले गए और जो अपनी प्यारी मातृभूमि से दूर उनके जीवन का संबल बनी। बर्मा, इंडोनेशिया, कंबोडिया, लाओस, फिलिपीन्स, थाईलैण्ड, मलेशिया और वियतनाम जैसे बहुत से एशियाई देशों ने इस कथा को अपनी –अपनी स्थानीय विशिष्टताएं देते हुए अपनाया और इसे अंतरराष्ट्रीय बनाया। देश के अंदर भी भिन्न सांस्कृतिक और मानजातीय समूहों ने बडे प्यार से इस कथा को अपनाया, इसे अपने स्थानीय सांस्कृतिक ढ़ांचे के अनुकुल बनाया। उनके वृतांतों में कतिपय घटनाओं अथवा पात्रों को उजागर किया और इस प्रकार महान रामायण परम्परा को समृद्ध बनाया। जबकि वाल्मीकी रामायण संस्कृति में हैऔर इसमें एक सलर वृतांत है, वहीं अन्य भिन्न भाषाओं में अन्य रूपांतरण है, जैसे अध्यात्म रामायण जिसकी रचना व्यास द्वारा की गई मानी जाती है, तमिल में 12वीं सदी में कवि कंबर द्वारा लिखी गई कम्बर रामायण, बंगाली में कृत्तिबोस ओझा द्वारा लिखी गई कृतिवासी रामायण आदि। लेकिन अवधी भाषा में 15वीं सदी में तुलसीदास द्वारा लिखी गई ‘’रामचरितमानस’’ सर्वाधिक लोकप्रिय रही है। तुलसी रामायण अथवा रामचरिमानस में सर्वोत्तम मानव गुणों, निष्ठा अथवा भक्ति की शक्ति और प्रचलित सामाजिक परंपराओं तथा शिष्टाचार आदि पर बल दिया गया है। इस बात पर अधिक ध्यान केन्द्रित किया गया है कि धर्मपरायण व्यक्ति किस प्रकार अपने धर्मों का पालन करता है।
वाल्मीकी द्वारा वर्णित, कथा का मूल विषय अयोध्या के राजकुमार राम की कथा है, जो मर्यादाओं का पालन करते हैं। रामायण की कथा जैसे आगे बढ़ती है उसमें बहुत से ऐसे उदाहरण है जो धैर्य और स्थितप्रज्ञता को प्रतिबिम्बित करते है। जिसमें राम ‘’मर्यादा पुरूषोत्तम राम’’ के रूप में चित्रित होते हैं।
महर्षि विश्वामित्र राम और लक्षमण को अपने शिष्यों के रूप में स्वीकार करते हैं तथा विभिन्न अस्त्र-शस्त्रों का प्रयोग करने के लिए विशेष विद्या प्रदान करते हैं। एक दिन वे मिथिला पहुंच गए। राजा जनक उनका स्वागत करने के लिए आए और वे अयोध्या के दो राजकुमारों की कांति देखकर मंत्रमुग्ध हो गए। उन्हें ‘’शिव – ध्नुष’’ दिखाया गया। जो लौह-मंजूषा में रखा हुआ था। राजा और उनकी पत्नी सुनयना ने यह घोषणा की कि वे अपनी सुपुत्री का विवाह ऐसे व्यक्ति से करेंगे जो ‘’शिव धनुष’’ पर प्रत्यंचा चढ़ाएगा। राम ने बिना किसी प्रयत्न के यह कर दिखाया । राजा जनक की खुशी की कोई सीमा न रही और उन्होंने अपनी सुंदर पुत्री, सीता का विवाह राजकुमार राम के साथ कर दिया।
राजा दशरथ राम को अयोध्या का ‘युवराज’घोषित करना अथवा उनका राज्याभिषेक करना चाहते थे। लेकिन, मंथरा रानी कैकेयी की दासी ने सोचा कि राजा दशरथ अपने निर्णय में राम की तरफदारी कर रहें हैं और उसने अपनी स्वामिनी के दिमाग में जहर भर दिया। कैकयी उसके प्रभाव में आ गई और उसने यह वर मांगा कि उसके अपने पुत्र, भरत को अयोध्या का भावी राजा बनाया जाए। उसकी दूसरी मांग यह थी कि राम को चौदह वर्षों के लिए अयोध्या से निर्वासित कियाजाए। राजा दशरथ हतप्रभ हो गए, लेकिन कैकेयी को समझाने व उसका इरादा बदलने में विफल रहे । राम अपने पिता के प्रति समर्पित थे और उन्होंने अपनी पत्नी सीता और अपने भाई लक्ष्मण को साथ लेकर अयोध्या छोड़ दी।
राम, सीता और लक्ष्मण ने चित्रकूट में आश्रय लिया। भरत तुरंत चित्रकूट पहुंच गए और राम से वापस लौटने का अनुरोध किया और राम को अपने पिता के देहान्त का दुखद समाचार भी दिया। राम चौदह वर्षों से पहले अयोध्या वापस न लौटने के अपने निर्णय पर दृढ़ थे। भरत ने राम को लकड़ी की अपनी चरण पादुका देने का अनुरोध किया,जिसे वे चौदह वर्षों तक सिंहासन पर रखेंगे।
केवट नावित था, जो लोगों को पवित्र नदी गंगा के पार ले जाता था। इसी की नाव में बैठकर राम, सीता और लक्ष्मण ने नदी पार की थी। शबरी, ऋषि मातंग की शिष्या थी, जो पम्पा सरोवर के पास झोपड़ी में रहती थी। वह वृद्ध और बीमार थी और उसकी एकमात्र इच्छा मृत्यु से पूर्व राम से मिलने की थी। वह अपनी झोपड़ी में राम को देखकर अभिभूत हो गई और उनके प्रति अपने अनाथ प्रेम के वशीभूत होकर उसने उन्हें स्वयं बेर चखने के बाद मीठे बैर खिलाएं।
बाद में, दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं के कारण, लंका के राज, रावण द्वारा बलपूर्वक सीता का हरण कर लिया गया। उनकी चीख सुनकर साहसी पक्षी ‘जटायू’ने जवाब में रथ पर सवार रावण पर आक्रमण किया, लेकिन रावण ने उसके पंख काट दिए। घायल होकर वह जमीन पर गिर पड़ा और जिंदा रहने के लिए संघर्ष करने लगा। वह इस अनर्थ के बारे में राम को बताकर मृत्यु को प्राप्त हो गया।
सीता को ढुंढ़ने के लिए हनुमान को लंका में भेजा गया। वे आकाश की ओर कूदे और लंका की तरफ उड़ गए। उन्होंने सीमा को अशोक वाटिका में देखा और वे बड़ी सतर्कता से सीता के सामने पकट हुए तथा सावधानीपूर्वक स्वयं का परिचय दिया। उन्होंने उनका विश्वास प्राप्त करने के लिए राम को अंगूठी दिखाई। सीता अभिभूत हो गईं और उनकी आंखों में खुशी के आंसू आ गए।
लंका पर विजय प्राप्त करने के बाद, राम अयोध्या वापस आ गए और उन्होंने बहुत लंबे समय तक राज किया। ‘’राम राज्य’’ के दौरान अयोध्या बहुत समृद्ध हो गई। वहां कोई दु:खी नहीं था। जनता स्वस्थ और सुखी थी। राम एक योग्य राज थे, जो न्याय और समानता में विश्वास करते थे। तुलसीदास की ‘’रामचरित मानस’’ के ‘’उत्तरकांड’’ में और ‘’भास’’ की ‘’उत्तर रामचरित’’ में कथा और आगे बढ़ती है। इसमें ऋषि वाल्मीकि के आश्रम में वन में सीता के जीवन के बारे में बताया गया है।
रामायण ‘मर्यादा पुरूषोत्तम राम’’ की कथा है, जिन्होंने धर्म के न्यायसंगत मूल्यों को कायम रखा। वह एक आदर्श राजा, विनम्र शासक, सामाजिक मूल्यों के संरक्षक और इन सबसे ऊपर एक पराक्रमी व भद्र पुरूष की कहानी है। राम कथा को अलग-अलग समय और अलग-अलग स्थानों पर अनेकों बार कहा गया है। यह एक प्रेरक, शक्दिायिनी और मंत्रमुग्ध कर देने वाली कथा है जो भविष्य में भी कहीं जाती रहेगी।
थाईलैण्ड में रामायण का प्रभाव
रामायण भगवान श्रीराम के यात्रा- पथ की कथामात्र ही नहीं, इस अनमोल कृति ने जीवन के हर पक्ष पर अपनी संवेदनशील और गहन दृष्टि डाली है और उसे सुग्राह्य रूप में वर्णित किया है। इस कालजयी महाकाव्य ने मानवीय संवेदनाओं की विभिन्न अभिव्यक्तियों से लोकमानस पर अपनी अमिट छाप छोड़ी है। रामकथा के लोकप्रिय महाकाव्य रामचरितमानस में तो भगवान श्रीराम और उनके चरित के बीच में मानस स्थित है। श्रीराम का चरित के बीच में मानस स्थित है। श्रीराम का चरित के बीच में मानस स्थित है। श्रीराम का चरित भारत की सीमा को लांघकर विभिन्न समाजों के जनजीवन में समाहित और प्रतिष्ठित हो चुका है। रामकथा एक ऐसी सहज और प्रभावोत्पादक कथा है जिसने विश्व की अनेक संस्कृतियों को प्रभावित किया है। रामकथा ने जितनी यात्राएं की है और जितनी गहराई तक विभिन्न समाजों में अपनी पहचान बनाई है, जिस सहजता से एक विशाल जनमानस को आत्मीय बनाया है, उतनी शायद ही कोई कृति बना पाई है। प्रभुत्वशाली शासक,अभिजात्य वर्ग, विद्वान और बुद्धिजीवी, मध्यवर्गीय जनमानस, अनपढ़ किसान और श्रमजीवी- समाज के सभी वर्गों के लोगों ने रामायण को अपने दैनिक जीवन में सहजता से उतारा है। कथाकारों, लेखकों, कलाकारों- सबने रामकथा को मधुर आत्मीयता से अपने सृजन में निखारा है।
भारत के पड़ोसी देश थाईलैण्ड (पूर्व नाम स्याम) में रामकथा के प्रभाव का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि वहां के चक्री राजवंश के नरेशों के नाम ही राम से संयुक्त हैं और स्याम देश की प्राचीन राजधानी का नाम भी अयुथ्या (अयोध्या ) है । विगत 13 अक्टूबर, 2016 को थाई जनता के श्रद्धास्पद और अत्यंत लोकप्रिय थाई-नरेश महाराजा भूमिबल अतुल्यतेज का लगभग 89 वर्ष की आयु में निधन हो गया। वे राम नवम के नाम से पूजित एवं समादृत थे। थाईलैंण्ड के लोग चक्री राजवंश के नरेश को विष्णु का अवतार मानते हैं।
भारत और स्याम के सांस्कृतिक संबंध सदियों पुराने हैं। सुखोथाई-काल ((1275-1350) में व्यापारियों के अलावा पुरोहितों ने भी भारत-स्याम संबंधों को प्रगाढ़ बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। राजभवनों के उत्सव और पारम्परिक प्रथाएं भारत में प्रचलित प्रथाओं के समान थीं। इनके प्रमाण आज भी विभिन्न मन्दिरों, भित्तिचित्रों, शिलालेखों आदि में उपलब्ध हैं। सुखोथाई काल के राजा राम काम्हेंग और श्री चुम मन्दिर के प्रस्तर-अभिलेखों में श्री राम का उल्लेख पाया गया है।
अयुथ्या (अयोध्या) काल (1350-1767) के मन्दिरों में रामकथा से संबंधित चित्र और मूर्तियां आदि देखने को मिलते हैं। अयुथ्या-काल के नृप यूथोंग, जो राजा रामातिबोधि प्रथम के नाम से विख्यात हैं, के शासनकाल (1350-1369) की रचनाओं में राम, सीता, रावण आदि नामों का उल्लेख है। रामकथा पर आधारित कई प्रसंग छाया-नाटिकाओं में दिखलाए जाते थे। मुखौटा-नृत्य (खोन) की संभवत: छाया नाटिकाओं के कलाकारों की देन है। संभवत: अयुथ्या –काल के राजा रामाधिपति द्वितीय (1491-1529) के शासनकाल में समुद्रमंथन से अमृत निकालने का एक कार्यक्रम आयोजित किया जाता था जिसे चक नाग डुक डम्बन कहा जाता था । आधुनिक युग में भी इस प्रभाव में कमी नहीं आई है, बल्कि भारतीय संस्कृति से प्रभावित कला, शिल्प और लेखन में निखार आया है। बैंकॉक के सुप्रसिद्ध सुवर्णभूमि विमान तल पर समुद्रमंथन की विशाल और मनोहर मूर्ति प्रतिदिन हजा़रों पर्यटकों को आकृष्ट करती है।
थाईलैण्ड में रामकथा के प्रभाव विभिन्न रूपों में दृष्टिगत होते हैं, जैसे- साहित्य, चित्रकला, स्थापत्य एवं मूर्तिकला, नृत्य-नाटिकाएं एवं अन्य लोक-प्रस्तुतियां लोककथाएं और व्यक्तियों, मार्गों आदि के नामकरण इत्यादि। थाईलैण्ड का एक विशाल जनमानस रामायण शब्द से उतना परिचित नहीं है, जितना वह रामकथा से है। थाई-इतिहासके रत्नकोशिन काल (लगभग 1781 ई. ) में रामकीर्ति,जिसे ‘रामकियेन’ कहते हैं, कि लोकप्रिय काव्य रचनाएं, कवियों ने रचीं जिन्हें जनमानस ने उत्साहपूर्वक अपने सामाजिक परिवेश में सहजता से मिला लिया। रत्नकोशिन-काल के प्रसिद्ध थाई-नरेशों- राम प्रथम से रामष्ठक तक ने कवियों से रामकियेन लिखवायीं। थाईलैंड के चक्री राजवंश के संस्थापक नरेश राम प्रथम, रामकियेन या रामकीर्ति के प्रथम रचनाकार थे। उनके पुत्र नरेश राम द्वितीय ने इस कृतिका नाट्य रूपांतरण किया जिससे यह काव्य संभ्रांत घरानों और प्रबुद्ध वर्ग के अतिरिक्त लोकमानस में काफी प्रचलित हो गया। इस काव्य में नैतिकता, सत्कर्म आदि की शिक्षा तो है ही, राज्य के कर्मचारियों के कर्तव्य का भी उल्लेख है। रामकियेन के अध्ययन से रत्नकोशिन-काल के आरम्भ में थाई-समाज की मान्यताओं और गतिविधियों का परिचय मिलता है। थाईलैंड में रामकियेनके10 से भी अधिक पाठ उपलब्ध हैं। रात्नकोशिन काल से पूर्व भी थाई समाज में रामकथा से प्रभावित कई आख्यानों पर आधारित लघु नृत्य-नाटिकाएं प्रचलित और लोकप्रिय थीं। इनके प्रदर्शनों में चमकदार रंगीन वेशभूषा और कलात्मक मुखौटों का प्रचुर प्रयोग होता था। रामकथा पर आधारित आकर्षक छाया-नृत्य(नाग्ड.तालुंग, नांगयाइ) आज भी काफी लोकप्रिय है।
रामकियेन की कथा और रामायण या रामचरितमानस की कथा में जो अंतर है, वह तत्कालीन थाई-जनमानस की प्रवृत्ति और रूचि के अनुकुल है। इसीलिये, इस कथा में कई युद्धों और दु:खद प्रसंगों की जगह सुखद आख्यान वर्णित है। कई पात्रों के नाम रामायण के पात्रों से भिन्न हैं। रामकथा अपनी यात्रा के क्रममें तत्कालिन परिवेश से इतनी घुली-मिली लगती है मानों वह तत्कालिन सयाम देश की अपनी स्वतंत्रता कथा हो। नामों का यह अंतर थाई –भाषा की ध्वनीगत विशेषताओं के कारण भी है। किन्तु उनमें भारत का सांस्कृति प्रभाव स्पष्ट दिखता है। यह इस बात का द्योतक है कि उस समय भी भारत के स्याम के साथ सांस्कृतिक और व्यापारिक संबंध मजबूत थे। रामकियेन में राजवंश, संभ्रांत वर्गएवं जनमानस की मान्यताओं और भावनाओं का जो वर्णन है, वह उनकी वीरता, उदारता, सरलता और परिष्कृत साहित्यिक अभिरूचि का परिचय देता है। थाई रामायण में कई पात्रों के नाम परिवर्तित हैं। श्री राम को फ्रा राम, सीता को सिदा,दशरथ को थोसरो, रावण को थोसकन्थ, विभीषण को फिफेक, लक्ष्मण को फ्रालाक कहा जाता है। हनुमान का हनुमान ही है। रामकियेन की कथाओं में भी अंतर है। यह अंतर रामकियेन के विभिन्न संस्करणों और उनकी लोकप्रिय प्रस्तुतियों में देखा जा सकता है। रामकियेन वाल्मीकीयरामायण का थाई –भाषा में अनुवाद नहीं है,यह थाई –भाषा में लिखी गई रामकथा जो रामायण से प्रेरित है।
रामकियेन में हनुमान जी का नाम तो वही है, पर उनका चरित्र भिन्न है और सीता-अन्वेषण की कथा में भी अंतर है। उदाहरण के लिए सीता-संधान के क्रम में वानर सेना मायन नगर पहुँची। वहां पुष्पाली(कहीं-कहीं बुस्मालि) नामक एक शापित अप्सरा ने हनुमान जी का पराक्रम देख उन्हें लंका जाने का मार्ग बतला दिया। हनुमान जी ने अप्सरा को शापमुक्त कर स्वर्ग भेज दिया और अपनी सेना के साथ उसके द्वारा बताए गए मार्ग पर आगे बढ़। वे लोग महानदी के तट पर पहुँचे। वहां हनुमानजी ने अपनी पूँछ बढ़ाकर नदी पर पुल-सा बना दिया जिस पर चढ़कर वानर नदी पार कर गये।
(नदी पार कराने के लिए हनुमान जी द्वारा पूँछ का विस्तार: वात फ्राकेइउ के भित्तिचित्र का फोटो, सौजन्य खुनअनुचा)
इस प्रकार अन्य कई कथाएं रामायण में लिखित कथाओं से भिन्न हैं।
रामकियेन एवं अन्य कृतियों में कम्बरामायण का भी काफी प्रभाव है। पर रामकथा और उसके संदेश को तत्कालीन थाई समाज की आवश्यकताओं और रूचि के अनुरूप वर्णित किया गया है। रामकियेन कथा में भगवान बुद्ध की शिक्षाओं, कर्म की महत्ता, जागत की परिवर्तनशील प्रवृत्ति तथा जातककथाओं की शैली का प्रभाव स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। हर घटना के पीछे निहित कारणों का और उनके प्रभाव का उल्लेख है।
बैंकाक के सुप्रसिद्ध एमेराल्ड (पन्ना) बुद्ध मन्दिर, जिसका स्थानीय प्रचलित नाम ग्रैंड पैलेस या वात फ्राकेइयू है, में रामायण या रामकियेन में वर्णित विभिन्न घटनाओं पर आधारित 178 भित्तिचित्र उत्कीर्ण हैं जो लाखों पर्यटकों के लिए एक मुख्य आकर्षण है। इन मोहक चित्रों में रामकियेन में वर्णित जीवन के कुछ महत्वपूर्ण सूत्रों के दर्शन होते हैं।
थाई लोकनृत्य खोन और लाखोन मूलत: रामकियेन से ही प्रेरित हैं। इन नृत्यों में मुखौटों का उपयोग होता है। खोन नृत्य पुरूषों द्वारा और लाखोन महिला कलाकारों द्वारा प्रस्तुत किया जाता है। इसमें महिलाएं ही पुरूष पात्रों की भूमिका भी निभाती हैं।थाईलैंड के लोग सदियों से यह मानते आए हैं कि रामकियेन शासक वर्ग, संभ्रांत वर्ग, प्रशासक और सैनिक से लेकर सामान्य नागरिक और उसके परिवार के हर सदस्य के लिए उत्तम जीवन जीने की व्यावहारिक शिक्षा देता है। रामकियेन में निहित बुराई पर अच्छाई के विजय का सन्देश प्रतिष्ठित खोन-नृत्यों, नाटिकाओं आदि में प्रस्तुत किया जाता है। खोन नृत्य-नाटिकाओं के विविध रूपांतर प्रचलित हैं। विभिनन स्थानों पर रामकथा से संबंधित नृत्यों की आकर्षक प्रस्तुति होती है जिन्हें देखने लाखों पर्यटक आते हैं। रामकियेन पर आधारित कथाओं का मुख-वाचन भी प्रचलित है। थाईलैंड में कई व्यक्तियों और स्थानों के नाम भी रामायण के पात्रों और रामायण में वर्णित स्थानों पर आधारित हैं। भाषा और बोली में अंतर होने के कारण कई शब्दों के उच्चारण भिन्न हो गए हैं।
रामकथा के प्रति थाईलैंड में श्रद्धा और आदर का भाव है। आधुनिक तकनीक के कलात्मक प्रयोग से रामकथा पर आधारित प्रस्तुतियों को और आकर्षक बना दिया गया है। कलाकारों की भाव-भंगिमा और उनके अभिनय को पीछे बैठे दर्शक भी आसानी से देख पाते हैं।
बैंकाक के निकट स्थित एक अन्य प्रमुख पर्यटक आकर्षण मुआंगबोरान, जिसे अंग्रेजी में एनसेंटसिटी कहहा जाता है, में रामायणवाटिका और रामायणशाला निर्मित है।
थाईलैंड के कई विश्वविद्यालयों में समय-समय पर रामकथा से संबंधित कई आयोजन किए जाते हैं जिनमें बुद्धिजीवी वर्ग, शोधकर्ता, छात्र-छात्राएं और अन्य सुधिजन भाग लेते हैं। इस प्रकार रामकथा के प्रवाह की निरंतरता बनी रहती है।
विवेकानन्द राय
महात्मा गांधी केन्द्रीय विश्वविद्यालय, बिहार