Catharsis - 3 - Final part in Hindi Moral Stories by Amita Neerav books and stories PDF | कैथार्सिस - 3 - अंतिम भाग

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कैथार्सिस - 3 - अंतिम भाग

अमिता नीरव

3

‘दिस इज आउट ऑफ एट्टिकेट्स... ’ – कहकर कर उसने अपना विरोध दर्ज किया। 

‘लाइक स्टूडेंट एंड टीचर....’ – कहकर अथर्व मुस्कुराया था। धनक ने अपनी आँखें तरेरी थी। ‘ये डिक्टेटरशिप है।‘

‘यस... ये डिक्टेटरशिप है। ये इस ट्रिप की शर्त है। अभी से लेकर यहाँ पर डिनर करने तक आप मेरी कस्टडी में हैं। और जो जो मैं कहूँगा, वही आपको करना पड़ेगा।’ – अथर्व ने कृत्रिम गंभीरता दिखाए अपनी बात कही।

‘जैसे....???’ 

‘कुछ शर्ते हैं... सबसे पहली मोबाइल अबसे बंद रहेगा। दूसरी जो मैं कहूँगा वो करना पड़ेगा, तीसरा कोई प्रतिवाद नहीं करना है, चौथे कोई सवाल नहीं पूछना है।’ – अथर्व ने बताया।

‘अरे... तुम तो जैसे डॉल को लेकर जा रहे हो... भई इंसान हूँ, सवाल उठेंगे तो पूछूँगी भी। कोई चीज अच्छी नहीं लगेगी तो कहूँगी भी...’ – धनक ने प्रतिवाद किया। 

‘याद रख लेना... बस आज नहीं पूछना।’ – अथर्व ने आलू टिक्की की प्लेट उसकी तरफ रखते हुए कहा। 

‘अजीब बात है... और ये मोबाइल बंद करने का क्या फंडा है???’

‘वो बाद में पता चलेगा... ये सब इस टूर का पैकेज है।’ – अथर्व ने कहा। वेटर चाय लेकर आ गया था। बहुत सारे दूध और तेज अदरक वाली चाय की खुश्बू आ रही थी। धनक ने जानबूझकर नाक सिकोड़ी थी। अथर्व प्यार से मुस्कुराया था। 

‘देखो यदि तुम्हें लगता है कि तुम मुझे डरा सकते हो तो भूल जाओ... मैं कराटे में ब्लैक बेल्ट हूँ।’ – धनक ने शरारत से कहा। 

‘हाहाहा.... तुम अब टू मच फिल्मी हो रही हो...’- अथर्व ने सहज होते हुए कहा।

धनक ने उसकी तरफ हाथ बढ़ाया, अथर्व ने उसे थाम लिया। दोनों फिर से कार में थे। धनक का मोबाइल बंद किया जा चुका था। उसे अथर्व डैशबोर्ड पर रख लिया था। 

बादल आसमान पर आ-जा रहे थे। कभी-कभी हल्की-हल्की फुहारें भी शुरू हो जाती थी। धनक ने पूछा ‘हम कहाँ जा रहे हैं???’

अथर्व ने उसे घूरकर देखा। 

‘अरे तो क्या ये भी नहीं जान सकती कि कहाँ जा रहे हैं???’- धनक ने अकड़कर कहा। 

‘नो क्वेश्चन मीन्स नो क्वेश्चन’ – कहकर उसने म्यूजिक सिस्टम ऑन कर दिया था। राशिद खान का तराना शुरू हुआ... तो धनक ने उसे गुस्से में देखा। अथर्व मीठा-सा मुस्कुराया। 

‘नाऊ दिस इज टॉर्चर यार... इट्स टू मच...’ – धनक ने खीझकर कहा। 

‘शट योर माउथ एंड शट योर आइज... जस्ट बी काम’ – अथर्व ने उसे बड़ों की तरह आदेश दिया। धनक ने उसे घूरकर देखा। 

‘प्लीज डू इट फॉर माय सेक....’ – उसने उसे बच्चों की तरह बहलाया था। 

धनक ने अपना सिर सीट की पुश्त पर टिका दिया था। शरीर को ढीला छोड़ दिया था। अथर्व ने खिड़की का शीशा नीचा कर दिया तो वह एकाएक फिर से तन गई। ‘खिड़की क्यों खोली??? मेरा हेयर स्टाइल खराब हो जाएगा।’ – चिढ़कर कहा।

अथर्व हँसा - ‘डोंट वरी... तुम्हें कोई नहीं देख रहा है। मैंने तुम्हें देख लिया है। जस्ट बी आउट फ्रॉम आल दिज नॉनसेंस... जस्ट फील योरसेल्फ... प्लीज’

धनक फिर से मुक्त होने लगी। उसने आँखें बंद कर ली। मिश्र खमाज में ठुमरी श्याम सुंदर बनवारी शुरू हो गई थी। धनक चुप थी... अथर्व भी डूब-उतर रहा था। वह हार-जीत के विचार से ऊपर था। वह धनक का नहीं अपनी ही परख को कसौटी पर परख रहा था। 

धनक मौन हो गई थी। उसे महसूस होने लगा था, जैसे वह कहीं और दूसरी दुनिया में चली जा रही है। शायद वह नींद और जाग्रति के बीच कहीं किसी काल्पनिक देश के सफर पर चल रही है। अथर्व ने म्यूजिक प्लेयर बंद कर दिया था। धनक अब भी वहीं कहीं थी। बारिश तेज होने लगी थी। अथर्व को गाड़ी चलाने में थोड़ी दिक्कत होने लगी थी। उसने हाईवे से गाड़ी सर्विस रोड पर उतार ली थी और एक पेड़ के नीचे ले जाकर रोक दी। 

गाड़ी रूकने से चौंककर धनक ने आँखें खोली थी। ‘क्या हुआ???’ 

‘कुछ नहीं... देखो... ’ – अथर्व ने बाहर की तरफ इशारा करके कहा था। 

‘ओह बारिश...’ – धनक ने तटस्थता से कहा था।

‘ऐसे नहीं, ऐसे कहो... ओहो बारिश!!!’ – अथर्व ने आँखें फाड़कर हाथ फैलाए और कहा।

धनक मुस्कुराई थी। ‘यार तुम तो बड़े मजेदार हो... मैं तो तुम्हें बी टाउन का शाय सा लड़का समझती थी। जो हमेशा एथिक्स-म़ॉरल-सोसायटी ब्ला-ब्ला-ब्ला के बारे में ही बातें करता हो....’ 

‘अच्छा तो इसीलिए आपने मुझे झटककर रखा हुआ था।’ – अथर्व, धनक के साथ-साथ खुद के लिए भी नया हो रहा था। जिस तरह से वह धनक से बात कर रहा था, इससे पहले उसने कभी इस तरह से किसी से बात नहीं की थी। 

वह फिर से मुस्कुराई थी... ‘भूख लग आई है यार...’

थोड़ी दूर चलकर एक रेस्टोरेंट में गाड़ी पार्क की। अथर्व ने मैन्यू कार्ड उसकी तरफ बढ़ा दिया था। ‘क्यों... तुम्हें ही डिसाइड करना है न???’ – उसने हाथ में लेते हुए पूछा था।

‘नहीं, ऐसी कोई शर्त नहीं थी, बस मैं तुम्हें अपनी पसंद का नाश्ता करवाना चाहता था। यू नो आय जस्ट हेट दैट लो कैल फूड... या आई मीन यू मस्ट अवेयर अबाउट योर हेल्थ, बट समटाइम्स दिल को तनहा भी छोड़ दो...’ – अथर्व ने मस्ती में कहा था।

‘व्हाट दिल को... ???’ 

‘लीव दिस... तुम नॉन हिंदी वालों के साथ कम्युनिकेशन करने में यही दिक्कत है...’ – अथर्व ने उसे चिढ़ाया था। उसने भी समझा और झूठ-मूट का गुस्सा दिखाया। 

 

गाड़ी ने फिर से रफ्तार पकड़ी थी। पहली बार धनक को ध्यान आया कि आखिर हम जा कहाँ रहे हैं??? उसने कहा ‘यह तो महाबलेश्वर का रास्ता है।’

अथर्व मुस्कुराया था ‘वेरी इंटेलिजेंट...’

‘वेरी फनी, महाबलेश्वर में जाकर मुझे खोजा जाएगा मीन्स’ – धनक ने फिर से चिढ़ाया।

‘अभी हम इसको डिस्कस नहीं कर रहे हैं।’ – अथर्व ने कहा। 

‘लेकिन महाबलेश्वर में क्या है यार ऐसा...???’

‘मुझे नहीं लगता कि जहाँ मैं तुम्हें ले जा रहा हूँ, वहाँ तुम कभी गई होगी। क्योंकि पूरे महाबलेश्वर के टूर पैकेजेस में कहीं भी उस जगह का नाम नहीं है।’ – अथर्व ने जैसे उसे चेलैंज किया था।

‘ओ कम ऑन... इस जगह को मैंने पूरा घूमा है। तुम जहाँ कहो वहाँ ले जा सकती हूँ तुम्हें।’- धनक ने चिढ़ाया
‘लेट्स सी...’ – अथर्व ने बात वहीं खत्म कर दी। 

‘पहुँच गए...’ थोड़ी देर बाद अथर्व ने गाड़ी रोकते हुए कहा।

‘ऊँ हूँ... ये तो मैप्रो गार्डन है... और इसके लिए इतना सस्पेंस क्रिएट किया गया था।’ – धनक ने थोड़ा खीझकर कहा। 

अथर्व मुस्कुराया...  उसने मैप्रो गार्डन के पार्किंग में अपनी गाड़ी पार्क की। हाथ बढ़ाया तो धनक ने उसे थाम लिया। अब उत्सुकता उसकी आँखों में थीं। बादल फिर से घिरने लगे थे। धनक ने सिर उठाकर आसमान की ओर देखा था। अथर्व ने उसकी असुरक्षा को समझा था। ‘भीग जाओगी, तो मर नहीं जाओगी...’ – कहकर खिलखिलाया था। 

धनक ने उसकी पीठकर पर धौल जमाई थी। दोनों ने सड़क पार की थी और सामने के बड़े से गेट के भीतर चले आए थे। इंट्री फीस चुकाई तो धनक ने बाहर जाकर बोर्ड देखा... गुरेघर...

‘मैप्रो गार्डन तो आते ही रहते हैं.... कभी देखा नहीं इस जगह को। कोई है भी नहीं यहाँ।’ – धनक ने सरेंडर करते हुए कहा।

‘तो हार मान ली...’ – अथर्व ने चिढ़ाया।

वह मुस्कुराई थी।

जंगल-सा ही फैला हुआ था। बड़े दरवाजे के सामने ही जंगल-सा फैला हुआ था। दाहिने हाथ की तरफ से एक सँकरी पगडंडी थी, जो ऊपर की ओर जाते हुए नजर आ रही थी। वहाँ कोई नहीं था। अथर्व उस पगडंडी की तरफ उसे लेकर जा रहा था। उसने अथर्व को रोकते हुए कहा ‘यार यहाँ तो कोई भी नहीं है, डर नहीं लग रहा है तुम्हें???’

‘नहीं... डर खुले में नहीं होता है। दूसरे जब कोई है ही नहीं तो फिर डर किससे...???’ –अथर्व ने पूछा। ‘डोंट वरी...चलो’ तब तक बाहर सड़क से गुजरते वाहनों का शोर सुनाई दे रहा था। जैसे-जैसे दोनों ऊपर बढ़े, वैसे-वैसे बाहर से आने वाला शोर कम होते-होते बंद हो गया।

‘यार ये तो एकदम ही सुनसान है...’ – धनक ने कहा तो। अथर्व ने उससे कहा – ‘कुछ देर चुप रह सकती हो...एकदम... जस्ट फील दीस साइलेंस, हर्ड दीस।’ धनक थोड़ा सकुचा गई। 

जैसे-जैसे पगडंडी ऊपर की तरफ जा रही थी वैसे-वैसे शांति घनी और गाढ़ी होती जा रही थी। दोनों के साँसों की ही आहट सुनाई दे रही थी, बस। चढ़ाई की तरफ बढ़ते-बढ़ते दोनों थकने लगे थे, धनक ने अथर्व का हाथ पकड़कर रोक लिया था। ‘थक गई...’ अथर्व ठहर गया। पगडंडी के किनारे पड़े बड़े से पत्थर पर धनक बैठ गई। 

अथर्व उसे छोड़कर थोड़ा आगे चलने लगा था। धनक ने चाहा था कि उसे रोक ले, फिर सोचा अभी कहेगा, थोड़ी देर चुप नहीं रह सकती। उसने कुछ देर गहरी-गहरी साँसें ली। वह सहज हो चली थी। उसका डर, संदेह और संकोच सब मिट गया था। अभय होकर उसने अपने आसपास को टोहा था। कई तरह की अनजान झाड़ियों और फूलों से घिरी थी, पगडंडी ऊपर की तरफ जा रही थी। जहाँ वह बैठी थी वहाँ जैसे झाड़ियों की गुफा-सी बनी थी। धूप पत्तियों के बीच में से छनकर उतर रही थी। 

इतनी शांति थी कि उसे अपनी साँसे तो ठीक दिल की धड़कन तक सुनाई पड़ने लगी थी। एकबारगी उसने अपना मोबाइल टोहा था, याद आया वह तो अथर्व ने उससे ले लिया था। पहली बार उसे मन बहुत हल्का और मुक्त महसूस हुआ। पहली बार वह बिना मोबाइल फोन के कहीँ सुनसान में यूँ अकेले थी। यह संयोग पहली ही बार हुआ कि कोई उसके साथ आया तो है, लेकिन उसे उसने यूँ अकेले छोड़ दिया है। पहली ही बार उसने खुद को यूँ अकेले निरूद्देश्य पाया। उसके पास खुद को बहलाने का कोई साधन नहीं था। अजीब यूँ भी लगा कि उसे उसकी जरूरत ही नहीं लगी। मोबाइल फोन एकबारगी याद आया, फिर उसकी जरूरत ही नहीं लगी। अथर्व उसके साथ आया, लेकिन उसे उसकी भी याद नहीं आई। 

उसे अच्छा लगने लगा। धूप के पैटर्न, पत्तों की सरसराहट, कभी-कभी पंछियों की आवाज इतनी नीरव शांति और आसपास उड़ती तितलियाँ, बादलों के आने से बार-बार दिन का रंग बदलना और बदले हुए रंग में पेड़-पत्तियों-फूलों को देखना... सब कुछ बड़ा अद्भुत लग रहा था। उसने एक गहरी साँस ली। उसे अच्छा लगा, और दो चार गहरी साँसें ली...उसे कुछ अलग-सा अनुभव हुआ। आँखें बंद कर ली थी उसने। भूल गई थी, कौन है, कहाँ से आई, क्यों और कहाँ आई, किसके साथ और कैसे आई... यहाँ क्या कर रही है, वह क्या करती है। ऐसा उसे कभी पहले महसूस नहीं हुआ था... पहली बार उसे कुछ अजीब... नहीं बहुत अजीब-सा लग रहा था। वह समझ नहीं पाई कि उसे क्या हो रहा है, लेकिन अचानक वह चीखी और जोर-जोर से रोने लगी। 

बहुत रो चुकने के बाद वह शांत हो गई। वह एकदम खुद को धुला हुआ महसूस करने लगी। आसमान में बादल गड़गड़ाने लगे। उसने सिर उठाकर देखा। खुद को टटोला, उसे न बारिश से डर लग रहा है, न इस निचाट एकांत से... उसने पाया कि वह कहीं नहीं है, न सुदूर भविष्य में, न हाल के अतीत में शायद आज में भी नहीं। वह सब भूल गई अपने होने को भी। उसने आँखें बंद कर ली। फुहारें शुरू हो गई थी। तब भी उसने आँखें नहीं खोली। बारिश मध्यम हुई तो उसने खडे होकर अपना चेहरा आकाश की तरफ कर लिया, आँखें अब भी बंद थी। जाने कैसे और किस वजह से आँसू बहने लगे थे। लेकिन इस बार आँसुओं में आवेग नहीं था, न झरने की तरह का शोर था न नदी की कल-कल थी। बस झील-सी शांति थी। 

बारिश तेज होने लगी तब भी वह वैसे ही निश्चल खड़ी थी, अथर्व तेजी से नीचे आया था। उसने धनक को ऐसे देखा तो एकाएक उसके मन में न जाने क्या-क्या उमड़ा और उसने धनक को बाँहों में घेर लिया। उसने आँखें खोली, अथर्व की छाती से सिर टिकाकर रोने लगी। अथर्व जोर से हँसा था। 

धनक ने चिढ़कर उसे धक्का दे दिया। धक्के से दूर गए अथर्व ने खिलखिलाते हुए कहा – मैंने कहा था न कि तुम अपनी धनक नहीं हो, अथर्व की कल्पना वाली धनक हो... मेरी वाली धनक को आज मैंने ढूंढ निकाला है, अब बोलो

धनक ने भरी आँखों से उसे देखा और दौड़कर उसके गले लग गई थी। 

बारिश तेज हो गई थी। 

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