yah kitab kyon padhi ? in Hindi Motivational Stories by Neelima Sharrma Nivia books and stories PDF | यह किताब क्यों पढ़ी ?

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यह किताब क्यों पढ़ी ?

समय बहुत जल्दी बदल जाता है। आज एक फ़ोन के भीतर बच्चों बड़ो बूढ़ों ओर महिलाओ के लिए सारी दुनिया है । कोई सूचना चाहिए बस ...ओके गूगल कहकर प्रश्न कर दो ,गूगल बाबा की बिटिया तुरंत जवाब देती है। आज बच्चे क्या पढ़े क्या न पढ़े की कोई सीमारेखा नही है अपितु क्या देखे क्या न देखगे के कोई अवरोध भी नही है । आज माता पिता जान ही नहीं पाते उनके बच्चे कैसा साहित्य पढ़ रहे है ।कैसी मूवी देख रहे है । आइये अपने बचपन की बात बताये......

छह कमरों वाले एक बड़े से घर में लाल ईंटो वाला बड़ा सा आँगन हुआ करता था , अनुशासन प्रिय पापा कानूनगो की पोस्ट पर थे , सुबह ९ बजे घर से जाते और शाम को छह बजेतहसील से घर आजाते । वो ज़माना पिता से डर वाला जमाना था दोस्ती वाला नहीं। पिता के सामने सिर झुका कर कम से कम बोलना आदर का सूचक माना जाता था । उनके आते ही घर का वातावरण बदल जाता , कोई ऊँचे स्वर में बात न करता , सब भाई - बहन अपनी किताबे खोल कर पढने लगते या बहाना ही करने लगते पढने का , माँ अंगीठी जलाकर शाम का खाना बनाती और जो बेटी फ्री नजर आती उसको फुल्के बनाने होते थे | अक्सर मेरी बड़ी बहन ही पकड़ में आती और सारा काम संभाल लेती और मैं तब हमारेपूर्वज खोलकर बीस बार पढ़ी हुयी कहानी एक बार फिर से पढ़ती की मुझसे अंगीठी पर खाना नही बनता। बेटियों का काम मुख्यतः घर का कामकाज करना और सीखना होता था । आखिरकार उन्होंने विवाह बाद पति का घर ही तो सम्हालना हैं। पढ़लिख कौन सा जॉब करनी हैं । बस उतने तक पढ़लिख लें जब तक कोई अच्छा रिश्ता न आजाये। ऐसे ही दिन गुजर रहे थे ।किताबी कीड़ा मैं दिन भर किताबें पढ़ती ओर शाम होते ही घर की छत पर हवा खाने पहुँच जाती । घर का काम क्या होता है अभी अपनी बुद्धि में ऐसा ज्ञान आया ही नहीं था ।

|ऐसी ही किसी एक गर्मी की शाम माँ ने पापा से शिकायत की

"यह नीली जब देखो किताबो में सर दिए रहती हैं कभी घर के कामो में दिलचस्पी नही लेती"
तब पापा मेरे कमरे में आये मेरी
किताबो वाली अलमारी की तरफ सरसरी नजर डाली और उनको वहां नजर आइ मनोहर कहानियाँ और धीमें से उठा लिया। हिंदी शिक्षक से निबंध पढ़ने का नाटक करती मैं सिर झुकाये उनकी तरफ पीठ करके बैठी थी लेकिन उनकी दृष्टि मुझे पीठ से भी भेद रही थी।
पलक झपकते ही एक सन्नाटेदार थप्पड़ मेरे सर पर लगा और पापा बोले

"अभी १३ साल की उम्र हैं तेरी और किताबे देखो अलमारी में ...क्या इसलिये किताबो में घुसी रहती हो, कल से माँ के साथ घर के काम में हेल्प करोगी , और हाँ इस बार एग्जाम में अगर 60 %से कम नंबर आये तो पढाई छुड़ाकर
घर बैठा दूंगा .

पढ़ाई छूटना मतलब किताबों का छूट जाना । हाथ घबराहट से एकदम भीग गए। नहीं ,मैँकिताबो बिना नही राहसकूँगी ।


मेरे लिये उनकी यह धमकी काफी थी और उसके बाद जो पढने में मन लगाया कभी 60% से कम नंबर नही आये ।

मुझे आज तक पढना पसंद हैं कुछ भी चाहिए चाहे अखबार हो या पत्रिका और मुझे नही याद कि उस दिन के बाद कभी मैंने कभी मनोहर कहानिया पढ़ी होगी