ashao ke naye mahal-mahesh katare sugam in Hindi Book Reviews by राज बोहरे books and stories PDF | आशाओं के नए महल-महेश कटारे सुगम

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आशाओं के नए महल-महेश कटारे सुगम

महेश कटारे सुगम का ग़ज़ल संग्रह

खरी बात कहती गजल :आशाओं के नए महल

रश्मि प्रकाशन लखनऊ

महेश कटारे सुगम का ग़ज़ल संग्रह आशाओं के नए महल रश्मि प्रकाशन लखनऊ से प्रकाशित हुआ है। सुगम का नाम पिछले कुछ वर्षों से आम आदमी के पैरोकार ग़ज़लगो के रूप में बहुत तेजी से उभर कर आया है । गजल कर बुंदेली रूप बुंदेली गजल के वे बहुत प्रतिष्ठित हस्ताक्षर है। जनजीवन तक गहरी पैठ, प्रशासन और राजनीति के गहरे अनुशीलन तथा श्रम मूलक समाज से जुड़ाव के कारण सुगम की ग़ज़ल समाज के अंतिम व्यक्ति के पक्ष में उसके सुख-दुख का कथन करते बयान की तरह उठ कर आती है। प्रस्तुत संग्रह का सबसे बड़ा व पुख्ता पक्ष इस संग्रह की भूमिका है, हिंदी के गंभीर आलोचक व गीतकार डॉक्टर के बी एल पांडे ने हमारे समय का यथार्थ शीर्षक से लिखी इस भूमिका में सुगम की गजलों के कथ्य को वैश्विक कविता और हिंदी के प्रतिनिधि कवियों की कविता के साथ अलग-अलग कसौटी पर कसने के बाद बहुत श्रेष्ठ कविता ठहराया है। श्री पांडेय का यह बहुत निष्पक्ष व बौद्धिक प्रयास है। सुगम की ग़ज़ल के विविध पक्षों में सामाजिक यथार्थ, वैचारिक पक्ष और श्रम समाज की पीड़ा उभरती है।
पहली ग़ज़ल में एक यथार्थ बताते हुए लवे लिखते हैं देखने को तो प्यार हमारे घर में हैं । लेकिन एक दीवार हमारे घर में है इसका कारण बताते हुए वे एक और ग़ज़ल में लिखते हैं आपस वाला प्यार सिखाना भूल गए ।जात पात का जहर मिटाना भूल गए (पृष्ठ 19) वर्तमान की स्थिति से असंतुष्ट हो कर जात पात के जहर पर वे लिखते हैं क्या बदला है बोलो सत्तर साल में ।फंसे हुए हैं हम जात पात के जंजाल में (पृष्ठ 23) अपनी बड़ी बड़ी उपलब्धि की गप हांकते राजनीतिज्ञों को आईना दिखाता कवि लिखता है अचानक खौफ उग आया मेरी खुशहाल बस्ती में ।न जाने क्या हुआ देखो तुम्हारी सरपरस्ती में (पृष्ठ 22) इससे भी आगे बढ़कर नीति नियंता को खुला आईना दिखाते कहते हैं दिल में अपने रखी है लूटपाट की तहरीरें। लेकिन घर में टांग रखे हैं राम कृष्ण की तस्वीरें (पृष्ठ 23) देश की नीति व तंत्र पर चिंतित होकर वे लिखते हैं लोकतंत्र बीमार दिखाई देता है सिसक रहा लाचार दिखाई देता है (26) समाज में भीतर भीतर क्रांति की संभावना तलाशते हुए लिखते हैं वह बेजुबा माहौल में शामिल हमारी चीख है । गौर करिएगा जरा यह मामला बारीक है, चंद लोगों में सिमट कर रह गई दौलत यहां , हर तरफ है मुफलिसी इस बात की तस्दीक है (पृष्ठ27) चापलूसी करते लोगो को वे फटकारते हैं क्या रखा है यार तुम्हारी बातों में। कोरी जय जयकार तुम्हारी बातों में (67)ऐसे ही लोगों को एक बार फिर बताते हैं ले शब्दों के बाण निकल कर आए हैं! पृथ्वीराज चौहान निकल कर आए हैं (71) इसी के साथ वे देश के सैनिकों को सलाम लिखते हैं सरहद पर जो सैनिक रहते उन्हें सलाम भूख प्यास कष्टों को सहते उन्हें सलाम (102) सुगम की गजल हर वर्ग की ग़ज़ल हैं , वह हर आदमी के लिए लिखते हैं। उनकी कलम देश की सेवा को समर्पित व्यक्तियों को सलाम भी करती हैं तो देश के नियति नियंताओ को भी आईना दिखाती हैं। उनकी बात भी करती हैं जो आम आदमीहै। उम्दा गज़लों का यह सँग्रह बहुत दिनों तक पढ़ा जाएगा और इस पर विचार कर इस सँग्रह को याद किया जाएगा।