राजू भैया को हर समय खेलना बहुत पसंद था।वैसे तो नाम उनका राजकुमार था लेकिन कभी-कभी राजा और अधिकतर उन्हें सब राजू भैया ही बोलते थे।
राजू भैया खेलने में ही अपना पूरा समय बिताते थे ,मम्मी जब भी राजू को नहाने को कहतीं वह बिना मन के नहा तो लेते लेकिन तुरंत फिर खेलने चले जाते और फिर गंदे होकर ही घर लौटते थे।
मम्मी बहुत ही परेशान रहती थीं।कुछ समझ में नहीं आता था।
राजू खेलने जाते थे तो सभी बच्चे स्कूल जा चुके होते थे।राजू गंदगी और मिट्टी में खेलते रहते थे ।
एक दिन राजू ने देखा सामने थोड़ी दूरी पर बिल्ली जा रही थी ,राजू भैया बिल्ली के पास जाकर बोले——बिल्ली मौसी,बिल्ली मौसी तुम मेरे साथ खेलो ना.........
बिल्ली मौसी ने राजू की ओर ध्यान से देखा,और कहा——नहीं,नहीं राजू मैं आपके साथ नहीं खेल सकती तुम बहुत गंदे हो रहे हो ,लगता है कितने दिन से तुम नहाये नहीं हो मेरे छोटे-छोटे बच्चे भी है ,वह भी नहीं खेलेंगे उनके बाल गंदे हो जायेंगे ।
बिल्ली मौसी के मना करने पर राजू वहाँ से दूसरी जगह पर चले गये।
राजू भैया दूसरे स्थान पर जाकर देखने लगे कोई खेलने वाला मिल जाये तो आनंद आ जाये ।राजू भैया ने देखा एक
चिड़िया चीं चीं करके खेल रही थी।
राजू ने चिड़िया से कहा——चिड़िया रानी तुम मेरे साथ खेलो मुझे तुम्हारे साथ खेलना है।चिड़िया ने राजू भैया को बड़े ध्यान से देखा और बोली— नहीं ,नहीं मैं नहीं खेलूँगी,मेरे पंख गंदे हो जायेंगे ,आप गंदे हो आप नहाते भी नहीं हो यह कहकर चिड़िया चली गई ।
अब राजू भैया देखने लगे कोई मेरे साथ खेलने वाला मिल जाये तभी एक सफ़ेद छोटा पप्पी खेल रहा था । राजू भैया बोले——पप्पी मेरे साथ खेलो ,पप्पी ने राजू को देखा और कहा—नहीं-नहीं राजू भैया मैं आपके साथ नहीं खेल सकता मेरे बाल गंदे हो जायेंगे।
राजू भैया फिर देखने लगे खेलने के लिए कोई मिल जाये।
तभी सायंकाल स्कूल से लौटने वाले बालक,घर आकर खेलने के लिए निकले तो राजू भैया उनके पास पहुँचे भैया हमें भी अपने साथ खेलने दो, वह बोले— नहीं,नहीं हम आपके साथ नहीं खेलेंगे आप गंदे रहते हो ।
विद्यालय भी नहीं जाते सफ़ाई का ध्यान नहीं रखते ,यह सुनकर राजू भैया घर गये और अपनी मम्मी से बोले——मैं कल से विद्यालय जाऊँगा ।
अगले दिन राजू भैया सुबह जल्दी उठे और दैनिक क्रिया से निवृत्त होकर ,मंजन किया नहाने चले गये ।विद्यालय वेष पहना बालों को सवॉरा मोज़े जूते पहन कर अल्पाहार लिया ।विद्यालय के लिए टिफ़िन लेकर चले गये ।वहॉं मन लगाकर पढ़ाई की और घर आकर ,कपड़े बदल कर खेलने गये।सभी साथी मिलजुल कर खेल कर समय से अपने घर आकर गृहकार्य करके दैनिक कार्य किये।
राजू भैया को अब समझ आ गया था कि सफ़ाई रखना बहुत ही आवश्यक है और पढ़ना भी आवश्यक है।
अब प्रतिदिन राजू भैया विद्यालय जाने लगे ,स्वच्छता से रहते हुए अपने दैनिक कार्य करते हुए अपने साथियों के साथ मौज-मस्ती करते हुए खेलते ।
घर परिवार के साथ सभी लोगों के प्रिय हो गये ।
आशा सारस्वत