Insaaniyat - EK dharm - 14 in Hindi Fiction Stories by राज कुमार कांदु books and stories PDF | इंसानियत - एक धर्म - 14

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इंसानियत - एक धर्म - 14

अस्पताल से कचहरी की तरफ बढ़ रही राखी के मन में विचित्र सा अंतर्द्वंद चल रहा था । बेचैनी स्पष्ट रूप से उसके चेहरे पर झलक रही थी । ‘ पता नहीं क्या होगा असलम का ? ‘ यही विचार उसे बेचैन किये हुए थी । तेज गति से चल रही ऑटो भी उसे काफी धीमी से चलती हुई प्रतीत हो रही थी । वह जल्द से जल्द राजन अंकल से मिलकर उनसे असलम की रिहाई सुनिश्चित कर लेना चाहती थी । लगभग पंद्रह मिनट बाद ही वह वकिल राजन पंडित के दफ्तर में बैठ उनसे एक ही बात का रट लगाए जा रही थी और वकिल साहब उसकी मनोदशा को भांपते हुए उसे समझाने का असफल प्रयास कर रहे थे । और राखी थी कि किसी जिद्दी छोटे बच्चे की तरह वकिल साहब से एक ही बात कुबूल करवाना चाह रही थी । आखिर विवश पंडित जी ने उसे आश्वस्त करते हुए कुछ फाइलें हाथ में पकड़ी और दफ्तर से बाहर की तरफ बढ़ गए । दरवाजे की तरफ बढ़ते हुए उन्होंने राखी को अपने पीछे आने का पहले ही ईशारा कर दिया था ।
दफ्तर से बाहर निकल कर वकिल साहब अपनी कार की तरफ बढ़ गए । राखी उनके पीछे ही थी । कार में बैठकर वकिल साहब ने गाड़ी आगे बढ़ा दी । हैरान परेशान राखी चुपचाप गाड़ी में बैठी वकिल साहब को तन्मयता से गाड़ी चलाते हुए देखती रही । आखिर वह कब तक धैर्य रखती । आखिर उसके सब्र का पैमाना उसकी जुबान के रास्ते छलक ही पड़ा ” आप मुझे कहाँ ले जा रहे हैं अंकल ? और मेरी बात का कुछ जवाब क्यों नहीं दे रहे ? “
सामने नजरें जमाये हुए ही अपने होठों पर मधुर मुस्कान लाते हुए पंडित जी ने जवाब दिया ” अब तुमने सही सवाल किया है बेटा ? पहले तो तुमको यह बता दूं कि बिना सोचे समझे किसी परिचित के साथ भी उसकी गाड़ी में नहीं बैठना चाहिए । जो तुम अब पुछ रही हो वह गाड़ी में बैठने से पहले पुछना चाहिए था । वैसे हम लोग रामपुर पुलिस स्टेशन चल रहे हैं जहां असलम को हिरासत में रखा गया है । उसका मुकदमा लड़ने के लिए एक बार उससे मिलना तो जरूरी ही है । “
झेंपते हुए राखी खिड़की से बाहर की तरफ देखने लगी ।
कुछ देर बाद वकिल साहब की गाड़ी रामपुर पुलिस स्टेशन के बाहर रुकी और राखी के संग वकिल साहब पुलिस स्टेशन के अंदर दाखिल हुए ।
थानाध्यक्ष के कमरे की ओर बढ़ते हुए वकिल साहब को थाने में एक हवलदार ने रोका और उनसे मिलने की वजह पूछी । वकिल साहब अभी कुछ कह भी नहीं पाए थे कि राखी ने जवाब दिया ” दरोगा पांडेय जी कहाँ मिलेंगे ? “
उस हवलदार ने बाएं कोने में एक कमरे की तरफ ईशारा कर दिया ।
कमरे के दरवाजे पर पहुंच कर वकिल साहब थोड़ा ठिठके लेकिन राखी को तो जैसे सब्र ही नहीं था बिना इजाजत कमरे में प्रवेश करते हुए दरोगा पांडेयजी को पुकारा ” अंकल ! “
अपनी कुर्सी पर बैठे किसी फाइल में खोए दरोगा पांडेय जी ने आवाज सुनकर दरवाजे की दिशा में देखा और राखी को देखकर मुस्कुराते हुए बोले ” हां बेटा ! आओ ! “
पांडेय जी के ईशारे पर कमरे में प्रवेश करते हुए पंडित जी और राखी उनके सामने रखी कुर्सियों पर बैठ गए । पांडेय जी की सवालिया निगाहें अब भी वकिल साहब के चेहरे पर जमी हुई थीं ।
” कहिए क्या काम है ? मेरे पास भी अब वक्त ज्यादा नहीं बचा है । आरोपियों को अदालत में पेश करने का समय नजदीक आ गया है । “
” मैं भी उसी सिलसिले में आपसे मिलने आया हूँ । दरअसल असलम नाम को जो आरोपी आपकी हिरासत में है मैं उसका वकिल हूँ और इसी लिए उससे मिलना भी चाहता हूँ । ” वकिल साहब ने सफेद झूठ बोलते हुए अपना दांव चला । उन्हें अच्छी तरह पता था कि इतने गंभीर इल्जाम के आरोपी से मिलने की इजाजत सबको नहीं मिलती । वो असलम के वकील तो थे लेकिन बिना उसकी इजाजत और वकालतनामे पर हस्ताक्षर किए बिना वो कानूनन अधिकृत नहीं थे । बिना एक पल की भी देर किए दरोगा पांडेय जी तुरंत अपनी कुर्सी से उठ खड़े हुए और बाहर की तरफ बढ़ते हुए बोले ” हां ! आप मिल सकते हैं । चलिए आपको उससे मिलवा दूँ । ” वकिल साहब और राखी भी तत्परता से उठते हुए दरोगा पांडेय जी के पीछे लपके । लेकिन कमरे से बाहर निकल कर दरोगा जी सामने ही बैठे एक हवलदार से उन्हें असलम से मिलवाने के लिए कहकर खुद थाने की इमारत से बाहर की तरफ बढ़ गए ।
हवलदार उन्हें उस इमारत की पहली मंजिल पर स्थित हवालात में ले गया जहां एक कमरे में सींखचों के पीछे कई अन्य कैदियों के बीच असलम भी फर्श पर ही बैठा हुआ था । नजदीक जाकर उस हवलदार ने असलम को आवाज लगाई ” असलम भाई ! ये वकिल साहब तुमसे मिलने आये हैं । लो बात कर लो । ” फिर वकिल साहब की तरफ मुड़ते हुए बोला ” दस मिनट हैं साहब आपके पास । बात कर लीजिए । “
उसकी तरफ कोई ध्यान दिए बिना वकिल साहब असलम की तरफ देखने लगे । वकिल साहब के साथ ही आयी राखी पर नजर पड़ते ही असलम उठ खड़ा हुआ और आकर सींखचों के पीछे खड़ा हो गया । उसका भाव विहीन चेहरा देख राखी का मन तड़प उठा ” असलम भाई ! आखिर इतनी क्या जल्दी थी आपको गुनाह अपने सिर लेने की ? असली गुनहगार तो मैं ही हूँ इस पूरे प्रकरण में । “
” नहीं ! नहीं ! बहन ! गुनाह तुम्हारा कैसे हो सकता है ? गुनाहगार तो वह था जो अल्लाह को प्यारा हो गया । मुझे पूरा यकीन है उसे अल्लाह भी माफ नहीं करेगा और दोजख की आग उसका इन्तजार कर रही होगी । उसके गुनाहों ने इंसानियत के साथ साथ वर्दी को भी गुनहगार बना दिया था । लेकिन मुझे फख्र है अपने आप पर ‘ अपने ईमान पर और अब अपनी जिंदगी पर जिसने एक गुनाहगार को उसके सही अंजाम तक पहुंचा कर अपनी जिंदगी इंसानियत की खातिर दांव पर लगा दिया । अब अगर कानून मुझे फांसी की सजा भी सुना दे तो मैं बड़े फख्र से अल्लाह की आंखों में आंखें डाल कर उनसे रूबरू हो सकूंगा । “
राखी को खामोश रहने का ईशारा करते हुए वकिल साहब ने अब मोर्चा संभाला ” असलम ! मैं वकिल राजन पंडित राखी के निवेदन पर तुम्हारा मुकदमा लड़ना चाहता हूं । क्या तुम्हारी इजाजत है ? अगर हां है तो इस कागज़ पर अपने हस्ताक्षर कर दो । ” कहते हुए वकिल साहब ने एक कागज और कलम सींखचों के बीच से असलम की तरफ बढ़ाया ।
उनकी बात पर कोई ध्यान नहीं देते हुए असलम एक फीकी हंसी हंसते हुए बोल पड़ा ” क्यों इस नादान भोली लड़की की बातों में आकर अपना वक्त बरबाद कर रहे हो वकिल साहब ! मैं कानून का सिपाही हूँ और अच्छी तरह जानता हूँ कि यह केस शीशे की तरह साफ है जिसमें मेरे बचने की कोई गुंजाइश नहीं । अगर आप चाहते हो कि मैं झूठ बोलकर अपने आपको बचा लूंगा तो माफ करिएगा वकिल साहब ! न मैंने पहले कभी झूठ बोला है और न आगे कभी झूठ बोलना चाहूंगा । क्या इस हाल में भी आप यह मुकदमा लड़ना चाहेंगे ? ” कहते हुए असलम ने वकिल साहब की तरफ सवालिया नजरों से देखा । वकिल साहब ने मुस्कुराते हुए उसे आश्वस्त किया ” तुम बेफिक्र रहो असलम ! तुहें झूठ बोलने पर मैं विवश नहीं करूंगा । लेकिन तुम मेरी बात का समर्थन हां या ना में जवाब देकर तो कर ही सकते हो न ? देखो ! अभी तुम्हारे सामने पूरी जिंदगी पड़ी है । कुछ अपने बारे में भी सोचो । खुदकुशी करना कोई समझदारी नहीं है । अब और न सोचो और इस कागज़ पर सही कर दो । ” वकिल साहब की बातों को सुनने के बाद असलम कुछ गंभीर से नजर आया और उनके हाथ से कागज लेते हुए बोला ” वकिल साहब ! झूठ बोलने की इजाजत मेरा जमीर मुझे नहीं देगा फिर भी मैं आपको पूरा सहयोग करने की कोशिश करूंगा । मैं जानता हूँ इस बेदम मुकदमे में आपके करने के लिए कुछ भी नहीं बचा है फिर भी अगर आपकी तमन्ना ही है यह मुकदमा लड़ने और हारने की तो मैं क्या कर सकता हूँ ? लाइये कहाँ सही करना है ? “
कहने के बाद असलम ने कागज को पलट कर देखते हुए उसपर हस्ताक्षर कर कागज वकिल साहब की तरफ बढ़ा दिया ।