आँखों देखी,कानों सुनी in Hindi Children Stories by SAMIR GANGULY books and stories PDF | आँखों देखी,कानों सुनी

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आँखों देखी,कानों सुनी


पहले गजब हुआ.

और फिर हुआ हंगामा.

नैना जोशी का स्कूल में अध्यापिका के रूप में पहला दिन. कक्षा 3 में पहली क्लास.

पता नहीं कैसे उसका हाथ उस लड़की पल्लवी के कान तक पहुंच गया.

क्या उसने उसका कान खींचा? या मरोड़ा? एक या दोनों कान?

तो फिर पल्लवी के दोनों कान कैसे लटक आए? ऐसा कहां होता है कि कान खीचों और कान लंबे हो जाए?

मगर यहां तो ऐसा ही हुआ.

दीपा के दोनों कान फैलकर हाथी के कान की तरह नीचे लटक गए.

फिर तो पूरी क्लास में हंगामा हो गया. पल्लवी जोर-जोर से रोने लगी..

एक दूसरी लड़की ने शोर मचा दिया, ‘‘ हाय...हाय. मैम ने इत्ती जोर से पल्लवी के कान खींचे कि कान नीचे तक लटक गए.’’

नैना जोशी हक्का-बक्का! ऐसा कैसे हो गया? बात पूरे स्कूल में फैल गई. हेड मिस्ट्रेस और तमाम अध्यापिकाएं आ गई. तुरंत डॉक्टर को बुलाया गया. डॉक्टर भी हैरान. उन्होंने कान को छूकर उलट-पुलट कर पल्लवी से पूछा, ‘‘ दर्द हो रहा है!’’

पल्लवी ने इन्कार में सर हिलाया.

मगर वो अब भी दोनों हाथों से कान छिपाए रोए जा रही थी.

उसके घर में खबर दी गई थी, सो थोड़ी ही देर में उसके पिता भी आ पहुंचे.

और यहां नैना जोशी को दूसरा झटका लगा.

पल्लवी के पिता उसके मकान मालिक निकले. जहां वह कल शाम को ही पहुंची थी.

नया शहर. अपने घर से सौ किलोमीटर दूर. कल उसका पूरे परिवार से ज़्यादा परिचय नहीं हुआ था. बस पल्लवी का भाई रात का खाना दे गया था.

बेटी के लंबे कान देखकर पल्लवी के पिता की हालत अजीब हो गई. वे कातर नजरों से सबकी तरफ देखने लगे.

हेड मिस्ट्रेस ने कहा, ‘‘ नैथानी जी, आप पल्लवी को घर ले जाइए. तुरंत किसी बड़े डॉक्टर को दिखाइए.’’

और फिर वे नैना जोशी की तरफ देखते हुए बोली, ‘‘ और मिस जोशी आप भी घर जाइए. जब तक हम दोबारा न बुलाएं, आपको स्कूल आने की ज़रूरत नहीं है.’’

एकाएक पल्लवी अपने कानों को जोर-जोर से खींचने लगी.

हेड मिस्ट्रेस ने घबरा कर पूछा, ‘‘ क्या बात है पल्लवी?’’

पल्लवी बेचैनी से बोली, ‘‘ मैम, मुझे अजीब सी आवाजें सुनायी दे रही है.’’

हेडमिस्ट्रेस, ‘‘ कैसी आवाजें?’’

पल्लवी , ‘‘ दूर से कई-कई आवाजें. और एक आवाज में आपका नाम लेकर बात हो रही है.’’

हेडमिस्ट्रेस, ‘‘ मेरा नाम, कौन है, क्या कह रहा है?’’

पल्लवी, ‘‘ मैम, शिक्षा विभाग का एक अधिकारी, कह रहा है कि आपको फ़ोन करके बताएं कि हमारे स्कूल का 20 लाख का ग्रांट मंजूर हो गया है.’’

‘‘ क्या?’’ हेडमिस्ट्रेस सहित वहां मौजूद सभी अध्यापिकाएं एक साथ बोल उठीं.

और अगले ही पल हेडमिस्ट्रेस का मोबाइल बज उठा. शिक्षा विभाग से ही फ़ोन आया था.

पल्लवी अपने पापा का हाथ पकड़ कर बोली, ‘‘ चलो पापा घर चलें.’’

वे निकल पड़े. पीछे-पीछे नैना जोशी भी.

थोड़ी दूर वे तीनो चुपचाप चलते रहे. फिर पल्लवी अपने कानों को ढकते हुए बोली, ‘‘ पापा मुझे तुरंत पुलिस स्टेशन ले चलो. कुछ खतरनाक सुनाई दे रहा है.’’

अगले पांच मिनट में वे पुलिस स्टेशन में थे. वहां पल्लवी ने इंस्पेक्टर साहब से कहा, ‘‘ अंकल दिल्ली जाने वाली बस नं. 7712 में बम रखा गया है. आखिरी सीट के नीचे. जल्दी कुछ कीजिए.’’

इंस्पेक्टर ने चौंक कर पूछा, ‘‘ तुम्हें कैसे मालूम?’’

इस बार पल्लवी के पिता बोले, ‘‘ साहब जी, वे सब बाद में पूछना, पहले कार्रवाई कीजिए. कहीं देर न हो जाएं.’’

और अगले ही पल एक जीप उन्हें लेकर बस अड्‍डे की तरफ बढ़ी जा रही थी.

अगले दस मिनट बड़े रोमांचक थे. इंस्पेक्टर साहब ने बैग रखते वक्त ही एक आतंकवादी का धर दबोचा था.

इंस्पेक्टर हैरान. बस स्टैण्ड की पब्लिक हैरान. पल्लवी, उसके पिता और नैना जोशी भी हैरान.

इंस्पेक्टर पल्लवी की पीठ थपथपाकर उसे बधाई देना चाहते ही थे कि पल्लवी उन्हें रोकते हुए बोली, ‘‘ अंकल, आपका तो सस्पेंड होने का लेटर चल पड़ा है आज. कोई एनकाउंटर वाला मामला था ना?’’

इंस्पेक्टर को अब कोई संदेह नहीं रहा, वे बोलों, ‘‘ बेटी तुम्हें कोई शक्ति मिली है, जो दूर की आवाज सुन पा रही हो. हां, मुझे एक गलत मामले में फंसा कर सस्पेंड किया जा रहा है. मगर ये मामला मुझे बचा लेगा.’’

नैना जोशी तब से पल्लवी की ओर से देखे जा रही थी. इस बार धीरे से बोली,‘‘ पल्लवी मुझे बहुत दुख है, मगर मैंने जान बूझकर कुछ नहीं किया. मैं तो सिर्फ़ तुम्हारे कान की बाली को छूना चाहती थी.’’

पल्लवी हल्के से मुस्कराकर बोली, ‘‘ मैं जानती हूं मैम! चलो जो होता है अच्छे के लिए होता हैं... शायद कान धीरे-धीरे नॉर्मल हो रहा है’’

पल्लवी के पिता भी हां में हां मिलाते हुए बोला, ‘‘ बेटी, क्या अब भी कुछ सुनाई दे रहा है?’’

पल्लवी गौर से कुछ सुनने का प्रयास करते हुए कुछ पल चुप रही और फिर अचानक जोश में आते हुए बोली, ‘‘ मैम, आपके घर में आपके डैडी आपका नाम लेकर कुछ कह रहे हैं.’’

नैनी जोशी का दिल जोर से धड़क उठा, वह बोली, ‘‘अच्छा या बुरा?’’

पल्लवी खुशी से बोली, ‘‘ बहुत अच्छा! आपको आज ही यहां से जाना होगा.’’

नैना जोशी, ‘‘ जाना होगा? नई नौकरी छोड़कर क्यों?’’

पल्लवी ‘‘ क्योंकि आपकी नई नौकरी लग गई है. अभी- अभी कूरियर वाला आपकी बैंक की नौकरी का पत्र दे गया है. आपके पिताजी आपकी मां को वही बता रहे हैं.’’

नैना जोशी ने पल्लवी को गले लगा लिया.

यह बात बिल्कुल उसके घर के बाहर ही हुई.

इधर कानों-कान यह घटना इतनी तेजी से फैली कि पूरा इलाका पल्लवी के घर के बाहर जमा होने लगा.

हर कोई धक्का-मुक्की कर पल्लवी के कान देखना चाहता था. उसका फोटो खींचना चाहता था. और बिहारी मौसी से सब्र नहीं हुआ तो पूछ ही लिया, ‘‘ पल्लवी कुछ नया सुनाई दिया?’’

पल्लवी तुरंत बोली, ‘‘ हां मौसी , हनुमान मंदिर में सबको छ: छ: लड्‍डू बंट रहे हैं. मोतीचूर के’’

यह सुनना था कि सारी भीड़ मंदिर की तरफ दौड़ पड़ी.

मां ने पूछा, ‘‘सच या झूठ?’’

पल्लवी बोली, ‘‘शुद्ध झूठ मां!’’

-मगर क्यों?

-क्योंकि इतनी भीड़ के शोर में मैं कुछ सुन ही नहीं पा रही हूं. इस झूठ के बाद अब कोई नहीं आएगा. और मैं आराम से सो पाऊंगी.

उस दिन इसके बाद भी पल्लवी को कई आवाजें सुनाई देती रही.फिर धीरे-धीरे आवाजें बंद हो गई. और वह गहरी नींद में सो गई. सुबह जागी तो कान बिल्कुल सामान्य हो चुके थे. उसे थोड़ा समय लगा यह तय करने में कि उसने सपना देखा या यह सब सच था.

इधर नैना जोशी लौटने की तैयारी कर रही थी. आईने के सामने आकर ईयररिंग पहनते-पहनते अचानक उसके हाथ रूक गए. अगर इन्हीं हाथों के छूने से उसके भी कान लंबे हो जाए तो?