Kaisa ye ishq hai - 37 in Hindi Fiction Stories by Apoorva Singh books and stories PDF | कैसा ये इश्क़ है.... - (भाग 37)

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कैसा ये इश्क़ है.... - (भाग 37)

अर्पिता एकैडमी के लिए निकल जाती है।और कुछ ही देर में एकैडमी पहुंच जाती है।जहां दरवाजे पर उसकी मुलाकात प्रशान्त से हो जाती है।

प्रशान्त :- आ गयी तुम।मैं यहां दरवाजे पर खड़ा हो तुम्हारा ही इंतजार कर रहा था।

अर्पिता :- सॉरी, थोड़ा इंतजार करना पड़ा!
प्रशान्त :- इट्स ओके अप्पू!चले अंदर, अब।

अर्पिता :- हम्म।दोनो अंदर अपनी अपनी क्लास के लिए पहुंच जाते हैं।जहां अर्पिता पूर्वी की क्लास अटैंड करती है और प्रशान्त दूसरी ओर जाकर क्लास लेने लगता है

एक क्लास पूर्ण हो जाती है।अर्पिता और प्रशांत इंस्ट्रूमेंट रूम में एक बार फिर मिलते हैं।

अर्पिता :- प्रशान्त जी।कुछ कहना था हमे आपसे?

प्रशांत :- हाँ तो कहो न? मैने तुम्हे बोलने से कब रोका है।

अर्पिता :- वो हमें घर जाना है?
प्रशान्त :- घर!जल्दी काहे?

अर्पिता :- वो हम नही बता सकते!प्लीज हमे घर ले चलिए? तेज तर्रार अर्पिता भोली और मासूम सी सूरत बना कहती है जिसे देख प्रशान्त उससे कहते है ठीक है तुम अपना बैग लेकर आओ,निकलते हैं।

ये सुन अर्पिता खुश होते हुए प्रशान्त से कहती है थैंक यू, थैंक यू, बड़ा वाला थैंक यू...!

उसे इतना खुश देख प्रशांत मुस्कुराने लगते हैं और रविश से बात करने वहां से चले जाते हैं।

वहीं अर्पिता सभी वाद्य यंत्रों को यथा स्थान रखती है और अपना बैग ले नीचे दरवाजे पर प्रशांत का इंतजार करने लगती है।

कुछ ही मिनटों में प्रशान्त जी आ जाते हैं।तो वो उनके साथ घर के लिए निकल आती है।रास्ते मे आते हुए वो फिर से सोच में डूब जाती है।प्रशान्त बार बार बाइक के मिरर से उसे देखते हैं उसे सोच में डूबा हुआ देख परेशान हो जाते हैं।

प्रशान्त :- अप्पू! कोई बात है जो तुम्हे परेशान कर रही है बताओ मुझे क्या समस्या है?

अर्पिता :- न जाने कैसे ये हर बार समझते है तुरंत पूछ लेते हैं हमे कोई समस्या है कि नही।अब हम इन्हें क्या बताए कि हमे क्या परेशानी है।अगर बता दिया तो कहीं ऐसा न हो कि ये रूम पर ही नही जाएं अगर ऐसा हुआ तो श्रुति और परम् जी दोनो ही हम पर प्रश्नों की बरसात कर देंगे।क्या कहे हम इनसे।।

मैंने कुछ पूछा तुमसे अप्पू।क्या परेशानी है जिसकी वजह से तुम इतनी परेशान हो।प्रशान्त ने दोबारा अर्पिता से पूछा।जिसे सुन अर्पिता कहती है कोई समस्या नही है हमें।वो तो बस ऐसे ही मां पापा के बारे में सोचने लगे थे।

उसकी बात सुन प्रशान्त मन् ही मन कहते है ऐसी कौन सी परेशानी है तुम्हारे सामने जो मुझसे झूठ बोलना पड़ा।अब मैं ज्यादा पूछ भी नही सकता बताना होगा तुम्हे तो खुद से ही बताओगी।

प्रशान्त का कोई जवाब न पाकर अर्पिता कहती है वैसे आपने अपने जन्मदिवस की पार्टी नही दी।हम जान सकते है काहे?

प्रशान्त :- अब पार्टी का तो मैं कुछ कह नही सकता हां अगर ट्रीट लेना चाहो तो कहो।अभी हम परिवर्तन चौक पर है और यहां शिखा मेहरा जी का एक फेमस रेस्टॉरेंट है वहां की हर चीज लाजवाब है।

अर्पिता (मुस्कुराते हुए) :- नही।आज नही ये ट्रीट आगे के लिए उधार रही।।

प्रशान्त :- ओके डन अप्पू।कुछ ही देर में दोनो अपने घर के सामने पहुँच जाते हैं।जहां प्रशान्त की नजर ऊपर फ्लोर पर पड़ती है वहां अंधेरा देख वो कहते है क्या बात है आज अभी तक रूम पर अंधेरा है।श्रुति और परम आये नही है क्या।या फिर कहीं गए हुए हैं।

अर्पिता :- अब ये तो हमे पता नही।काहे कि हम तो पहले ही यहां से निकल गए थे।

प्रशान्त :- ओके।।अंदर चल कर देखते हैं कहते हुए अर्पिता और प्रशान्त दोनो घर के अंदर जाते हैं।जहां उन्हें नीचे फ्लोर पर ताला लगा मिलता है।

प्रशान्त :- लगता है अंकल आँटी कहीं गए हुए हैं।तभी यहां ताला लगा हुआ है।।

अर्पिता :- हां!शायद।

अर्पिता डरते हुए प्रशान्त के पीछे पीछे चल रही है।न जाने अब क्या होगा।कहीं हमारी पोल पट्टी न खुल जाए।सोचते सोचते उसके चेहरे पर पसीना आने लगता है।प्रशान्त और अर्पिता दोनो दरवाजे के सामने पहुंचते है।तभी अर्पिता के दिमाग मे एक आइडिया आता है और वो फटाक से अपने सिर को दुपट्टे से ढंक लेती है।और अपनी स्लीपर तथा हैंड बैग वहीं नीचे आँटी के बाथरूम में छुपा देती है।तथा वहीं रखी हुई आँटी की स्लीपर पहन वो फुर्ती से प्रशान्त के पीछे आ जाती है।।दोनो सीढ़िया चढ़ते हुए ऊपर पहुंचते है।जहां प्रशान्त के आने की आहट सुन वहां मौजूद सदस्य हैप्पी बर्थडे प्रशान्त! कहते हुए लाइट ऑन करते है।।

इस अचानक मिले सरप्राइज से प्रशान्त हड़बड़ाने के साथ साथ हैरान हो जाते है।वो अपने सामने देखते है तो राधु,प्रेम,स्नेहा सुमित (आर्य, स्नेहा सुमित का दो वर्ष का स्वीट सा बेबी) चित्रा, त्रिशा परम् किरण श्रुति, आरव, सात्विक, शोभा, शीला नृपेंद्र और उसके पिता को देख शॉक्ड हो जाता है और वो सबसे पहले मुड़ कर अर्पिता की ओर देखता है जो घूंघट निकाले उसके पीछे खड़ी है।ये देख वो समझ जाता है कि अर्पिता भी इसमें शामिल है।वो आगे बढ़ मुस्कुराते हुए सभी को थैंक्स कहते है।और अपने माँ पापा,तथा शीला और नृपेंद्र जी के चरण स्पर्श करते है।सभी उसे दीर्घायु होने का आशीष देते हैं।

अर्पिता भी पीछे चली आती है।तो सभी हैरानी से उसे देखने लगते है।ये देख प्रशांत आगे बढ़ सबसे कहते है ये श्रुति की दोस्त है आशी।मुझे नीचे मिल गयी थी तो मैं इसे साथ ही ले आया।

अर्पिता सबको हाथ जोड़ नमस्ते करती है।वहीं प्रशान्त आंखों से तुरंत ही श्रुति की ओर इशारा करते है जिसे समझ श्रुति तुरंत अर्पिता के पास बढ़ कहती है थैंक गॉड आशी तुम आ गयी।तुम्हारे ये खड़ूस पति(सात्विक की ओर इशारा कर) मेरे इतना कहने पर तुम्हे यहां ले आये।नही तो मैं तो ये सोच सोच कर परेशान हो रही थी कि तुम्हे इतनी देर क्यों लग रही है।

ओह अच्छा।वहीं प्रशान्त के मन मे तो श्रुति की इस बात से आग ही लग गयी।वो घूरते हुए श्रुति को देखते है तो परम् हंस पड़ते है और आगे बढ़ प्रशान्त के पास आ उसके गले लगते हुए कहते है हैप्पी बर्थडे भाई।और धीमे से उसके कान में कहते है, भाई अब कुछ तो बोलना ही था न श्रुति को जो समझ आया वो बोल दिया।अब ये सोचो कि उसका झूठ पकड़ा न जाये।।काहे की अर्पिता के गले मे न ही मंगलसूत्र है और न ही पैरो में वो ब्याह की निशानी।जो हर महिला के पैर में होती है।शुक्र है कि अभी तक किसी की नजर उसके पैरों की ओर नही गयी।सब उसके घूंघट को लेकर ही सोच में पड़े हैं।

कहते हुए परम अलग होता है और आगे बढ़ कर नीचे जाता है फटाक से घर की बिजली का मेन स्विच बंद कर देता है।जिस कारण ऊपर और नीचे लाइट चली जाती है।मौके का फायदा उठा प्रशान्त अर्पिता के कानो में जाकर कहते है जो हुआ सो हुआ अब जाकर फटाक से अपने पैरों में मोजे पहन आओ।नही तो आज बड़ा कांड हो जाना है।

जी हम अभी आते है कहते हुए अर्पिता कमरे में चली जाती है।

प्रशान्त (तेज आवाज में) :- छोटे देखियो जरा ये लाइट गयी काहे है।अपने ही घर की गई है बाकी जगह तो आ रही है।

परम् :- हां।भाई मैं देख ही रहा हूँ।कह लाइट ऑन कर देता है।और सबके पास चला आता है।

आशी को वहां न देख राधु कहती है ये आशी कहाँ चली गयी।अभी तो यहीं थी।

वो..भाभी अप्पू नही आशी मेरे कमरे में गयी है फ्रेश होने..!श्रुति ने हड़बड़ाते हुए कहा।

उसके चेहरे के हावभाव देख राधु उसके पास आती है और धीमे से कहती है, "श्रुति आप हमारे साथ चलिए हमें आपसे कुछ चर्चा करनी है"! राधु की बात सुन श्रुति कातर निगाहों से प्रशांत की ओर देखती है तो प्रशान्त उसे अपनी पलके झपका सब ठीक होगा आश्वासन देते है।परम् ये सब नोटिस कर रहा होता है वो तुरंत ही राधु के पास आकर कहता है,
अरे अरे, आप कहाँ श्रुति के साथ जाकर बचने की प्लानिंग कर रही है अब घर मे कोई पार्टी हो और उसकी शुरुआत आपसे न हो ये बात कुछ हजम नही हो रही।

तो प्लीज कुछ कहिये और पार्टी शुरू करिए।तब तक प्रशान्त भाई भी तैयार होकर आ जाते हैं।कह परम राधिका को ले जाकर आगे खड़ा कर देता है।
राधिका एक बार चोरी से प्रेम की ओर देखती है जो गर्दन हिला आंखों के इशारे से उसे अपनी परफॉर्मन्स शुरू करने के लिये कहते हैं।और खुद भी आकर उसे जॉइन कर लेते हैं।ये देख शोभा प्रेम से कहती है, ध्यान से प्रेम ज्यादा तेज तेज मत करना नही तो राधु को परेशानी हो सकती है।

प्रेम :- हां मां!मैं ध्यान रखूंगा।कहते हुए प्रेम और राधिका एक प्यारे से सांग को गुनगुनाते हुए थोड़ा बहुत डांस करना शुरू कर देते हैं।वहीं प्रशान्त अंदर चला जाते है तो श्रुति भी उसके पीछे अपने कमरे में जाती है जहां अर्पिता नाराजगी में इधर से उधर घूम रही होती है।

श्रुति को देख वो उसके पास जाती है और कहती है, " वो सब क्या था श्रुति? तुमने इतना बड़ा झूठ काहे बोला।अरे थोड़ा तो दिमाग लगाया होता अगर चित्रा जी अपना मुंह खोल देती तो क्या होता सब के सब सवालों से घिर जाते और फिर हमारा क्या होता? हम क्या कहते सब से!हम छिप कर काहे रह रहे हैं?अब तुमने जो रायता फैलाया है उसे बटोरे कैसे हम।तुम्हे कोई और बहाना नही मिला।मन तो कर रहा है कि अभी हम तुम्हे....ई ई ई ..कहते हुए वो एक तरफ़ जाकर बैठ जाती है।

श्रुति अपने कबर्ड में से मोजे निकाल उसे देती है और कहती है मुझसे गलती हो गयी मानती हूं लेकीन् अब कुछ भी नही किया जा सकता तो अब तुम बस ये मोजे पहन लो और कोशिश करना कि तुम्हारा ये घूंघट उतरे नही।।और इस झूठ के लिए सॉरी।अब जो मुझे उस समय समझ आया मैंने कहा।अब बस चित्रा जी कुछ न कहे।।

सात्विक के बारे में उन्हें पता न हो ये हो नही सकता वो जरूर पूछेंगी तुमसे या सात्विक से।हमसे नही पूछेंगी काहे कि हमारे बारे में उन्हें कुछ नही पता सिवाय इसके कि हम तुम्हारी दोस्त हैं।और आज तो वो भी नही जानती कि आशी कौन है।।अर्पिता सोचते हए श्रुति से कहती है और मोजे पहन वहां से बाहर निकल सात्विक के पास आकर खड़ी हो जाती है।
हां अप्पू बात तो तुम्हारी सही है।कहते हुए पीछे पीछे वो भी चली आती है।वहीं सात्विक हैरान परेशान कभी अर्पिता की ओर देखता है तो कभी श्रुति की ओर।उसे देख श्रुति उसके पास आकर कहती है प्लीज आज मेरे इस झूठ में मेरा साथ देदो।बाकी बाद का मैं सम्हाल लुंगी।

सात्विक के मन मे श्रुति की इस बात से खुशी के लड्डू फूटने लगते हैं।वो मन ही मन कहता है झूठ ही सही कम से कम अर्पिता जी को अपना कहने का अधिकार तो मिला।

चित्रा त्रिशा के साथ व्यस्त होती है इसीलिए वो श्रुति और सात्विक की बातों की ओर ध्यान् नही देती है।कुछ ही देर में प्रशांत तैयार हो बाहर सबके पास आ जाते हैं।प्रशान्त को आया देख त्रिशा दौड़ती हुई चाचू चाचू कह उसके पास चली आती है।ये देख प्रेम और राधिका अपनी परफॉर्मेस समाप्त कर शोभा और शीला के पास आकर खड़े हो जाते हैं।

स्नेहा फ्रिज से केक ले आती है और उसे डेकोरेटिव टेबल पर निकाल कर रख देती है।सबके कहने पर प्रशान्त केक कट करते है तो सभी तालियों के साथ बर्थडे सांग गाते हुए उसे विश् करने लगते हैं।सभी बड़ो का आशीष ले प्रशान्त जैसे ही फ्री होते है तो सुमित परम् प्रेम तीनो भाई मिल कर उसे घेर लेते है और हैप्पी बर्थडे प्रशान्त..!कहते हुए उसे केक से सजा देते हैं।जब अच्छी तरह सजा देते है तब वो तीनो उससे अलग हट जाते है और जैसे ही घरवाले उसे देखते है सबकी हंसी छूट जाती है।प्रशान्त कुछ नही कहते बस एक केक का टुकड़ा उठा वहां से अंदर रसोई की ओर चले जाते है और प्लेट में निकाल फ्रिज में रखते हुए कहते है।ये तुम्हारे लिये अप्पू।अभी तो तुम खाने से रही।लेकिन मैं चाहता हूं मेरे इस बर्थडे को तुम स्पेशल बनाओ।।काश तुम कुछ ऐसा करो जो ये मेरे लिए यादगार बन जाये।और केक साफ कर वहां से बाहर चले आते हैं।

बाहर आकर वो अप्पू को सात्विक के साथ खड़ा देख मन ही मन कुढ़ जाते है और एक बार फिर तीखी नजरो से श्रुति की ओर देखते है तथा शीला और शोभा के पास जा खड़े हो जाते हैं।परम जो लगातार प्रशान्त पर नजरे रखे हुए था ये देख मुस्कुराते हुए मन ही मन कहता है, "लफ्जो से जो बयां की जा सके जरूरी नही वही मोहब्बत हो कभी कभी आंखे भी वो सब कह जाती है जो लफ्ज़ से कहा नही जा सकता" और इस समय मुझे सब साफ दिख रहा है।परम् को मुस्कुराते हुए देख किरण उससे धीमे से कहती है किस बात पर मन ही मन खुश हुआ जा रहा है।

परम् : कुछ नही बस ऐसे ही प्रशांत भाई को देख रहा था।।

किरण : ओके।।
परम : वैसे आज तुम कल से ज्यादा अच्छी लग रही हो।कह वहां से खिसक जाता है।और सुमित तथा स्नेहा के पास आ खड़ा हो जाता है।और किरण के मुख पर एक प्यारी सी मुस्कान आ जाती है।

परम् :- क्या बात है आप दोनों यूँ चोरी चुपके बचे हुए खड़े हैं।अब प्रशान्त भाई के लिए पार्टी और आप लोगो ने कोई कांड नही किया।नॉट फेयर।आप लोग जाओ आर्य को मैं देख लूंगा।।

स्नेहा मुस्कुराते हुए : देवर जी।वही तो मैं सोच रही थी कि अब तक आप आये क्यों नही।।

परम मुस्कुरा कर नौटंकी करते हुए : हाय।मेरा इतना इंतजार।पहले पता होता तो किरण को वहीं छोड़ यहीं पहले आ जाता।।आखिर भाभी हो इंतजार नही कराना चाहिए।।

बस छोटे..नही तो कान खींचने पड़ेंगे तुम्हारे।इस बार सुमित ने कहा तिस पर स्नेहा कहती है,आप फिर बीच मे बोले..कितनी बार कहा है कि देवर और भाभी के बीच मे आप न पड़ा कीजिये।।चलिए परे हटिए कहते हुए स्नेहा परम् को साथ ले आगे आ जाती है।जहां परम् और वो एक खूबसूरत नोकझोंक वाली प्रस्तुति शुरू करते है जिसे सुमित जॉइन कर लेता है और परम् किरण को आगे ला उसके साथ कुछ अच्छे पल चुरा लेता है।अर्पिता सभी का ध्यान रखते हुए आवश्यक चीजे उपलब्ध कराती है।जिसे देख शोभा और राधु उससे इम्प्रेस हो जाते हैं।धीरे धीरे पार्टी खत्म हो जाती है तो अर्पिता सात्विक के साथ नीचे आती है उसे यूँ सात्विक के साथ जाता देख प्रशांत गुस्से में अपनी मुट्ठी भींचते है और मुंह फेर पलट जाते हैं।इस समय उन्हें बहुत बुरा लग रहा है।वहीं राधु को घुटन महसूस होने पर ताजी हवा के लिए शोभा राधु को बालकनी में ले आती है।

प्रशान्त : अब इतनी रात को तुम सात्विक के साथ जाओगी।यानी आज तुम यहाँ नही होगी।क्यों हुआ ये।श्रुति भी न कैसा बहाना बनाया अब मेरी अप्पू को बाहर किसी और के पास रुकना पड़ेगा।भले ही उसका दोस्त हो लेकिन फिर भी..नही मुझे कुछ भी कर के उसे रोकना ही पड़ेगा।कहीं ऐसा न हो आज वो कुछ देर के लिए जाए और इन फ्यूचर हमेशा के लिए..नही नही..ये लड़कीं भी न।सोच वो।आगे बढ़ता है तो परम् मुस्कुराते हुए तुरंत उसके आगे आ कहते है आप कहाँ बचते हुए जा रहे है माना कि पार्टी खत्म हो गयी है लेकिन फिर भी आपकी प्रस्तुति तो बाकी है सो प्लीज...अब आप कुछ गाइये,सुनाइये।।

ओह गॉड..कहते हुए प्रशांत बेमन से मुस्कुराते हुए गुनगुनाना शुरू करते है।

वहीं अर्पिता और सात्विक दोनो बाहर आते है तो सात्विक अपनी बाइक उठा कर पैदल ही अर्पिता के पास आ जाता है।

अर्पिता :- सात्विक।।सॉरी लेकिन हम नही बैठ सकते।कह पैदल ही चलने लगती है।अर्पिता को इस तरह जाता हुआ देख(बालकनी से) शोभा राधु से कहती है इन दोनों के बीच जो दिख रहा है वैसा कुछ नही है।

राधु :- हां मां।हमे भी ऐसा ही लग रहा है।अर्पिता और सात्विक दोनो ही।आंखों से ओझल हो जाते है।एवम कुछ ही आगे आ बैठ अर्पिता एक बेंच पर जाकर बैठ जाती है।उसे बैठा देख सात्विक भी बाइक खड़ी कर उसके पास वहीं बैठ जाता है।

अर्पिता : सात्विक हमारी वजह से आप परेशान मत होइए।हमारे साथ जो भी घट रहा है वो हमारी किस्मत है आप काहे सफ़र कर रहे है इस कारण।

सात्विक : काहे कि हम अच्छे दोस्त है अर्पिता।और एक दोस्त ही दूसरे दोस्त के काम आता है।मानता हूं मैं तुम्हे अपने घर नही ले जा सकता लेकिन इस तरह यहां अकेले भी नही छोड़ सकता।उस पर सर्दी की रात्रि को।

सात्विक की बात सुन अर्पिता उससे कहती है लेकिन हमारे कारण कहीं तुम्हारे पेरेंट्स न सवाल जवाब करने लगे।।जो हमे बिल्कुल नही भायेगा।।

ओह हो।अब सभी की समस्याओं का क्या तुमने ही ठेका ले रखा है हां।जो होगा मैं देख लूंगा और सम्हाल लूंगा फिलहाल तुम बस चुपचाप शांति से बैठो।

वहीं घर मे प्रशांत का मन नही रम रहा होता है वो बेमन से मुस्कुराते हुए प्रस्तुति पूर्ण करता है।उसकी प्रस्तुति पूरी होते ही सभी तीनो को बाय बोल वहां से निकल जाते हैं।रात के बारह बजने जा रहे है सात्विक और अर्पिता दोनो स्ट्रीट लाइट में कुछ दूरी बना बेंच पर बैठे हुए हैं।थकान के कारण अर्पिता नींद में आ जाती है और झुकते झुकते सात्विक के कंधे पर सिर टिका सो जाती है।उसके चेहरे पर बाल गिर आते है।

शोभा शीला राधिका प्रेम नृपेंद्र सभी गाड़ी से वहां गुजरते है और उनकी नजर सात्विक और अर्पिता पर पड़ती है।लेकिन बालो की वजह से वो उसे पहचान नही पाते हैं।राधिका और शोभा एक दूसरे की ओर मुस्कुराते हुए देखती है तथा उन दोनों की ओर देखने लगती है।स्नेहा सुमित चित्रा त्रिशा आर्य ये सभी दूसरी गाड़ी से इन्हें देखते हुए निकलते है।

रूम पर प्रशान्त बैचेनी से हॉल में चहकदमी करने लगते हैं।उस समय उन्हें बहुत गुस्सा आ रहा है लेकिन जैसे तैसे खुद को कंट्रोल किये इधर से उधर घूमते हुए अपना गुस्सा शांत करने की कोशिश कर रहे है...

क्रमशः ...