Pachhyataap - 11 in Hindi Fiction Stories by Ruchi Dixit books and stories PDF | पश्चाताप. - 11

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पश्चाताप. - 11

लगभग दो घण्टे के पश्चात शशिकान्त की माँ की आँखें बाबू के रोने के साथ ही खुल जाती हैं | बाबू जब बहुत कोशिशों के बाद भी चुप न हुआ तो वह पूर्णिमा को देने का विचार कर जैसे ही पूर्णिमा के कमरे की तरफ बढ़ती है कि , अचानक ठिठक कर, अरे नही! ऐसे कैसे दे दूँ ! बिना उसका निर्णय जाने | तभी बाबू के रोने की आवाज तेज हो जाती है | बाबू की चित्कारे शशिकान्त की माँ के हृदय को द्रवित कर देती है,और वह अपने ही अन्तरमन मे चल रहे अन्तरद्वन्द से हार मान लेती है | अरे नही! यह मै क्या कर रही हूँ, एक बेटे को उसकी माँ से अलग "जयन्ती यह गलत है |"अपने आपसे ही सवाल जवाब करती वह पूर्णिमा के कमरे तक पहुँच जाती है | पूर्णिमा को कमरे मे न पाकर पहले तो आश्चर्य मे पड़ इधर उधर नज़र घुमातीं हैं, फिर घर के सारे हिस्से मे आवाजे मारती हुई " पूर्णिमा! पूर्णिमा! , पूर्णिमा के न मिलने पर वह शशिकान्त के पास फोन कर सारी बात बताती हैं |शशिकान्त, " अम्मा! आपने पूर्णिमा को कुछ कहाँ है? शशिकान्त की माँ, मै? मैने तो उससे कभी कुछ न कहा | हाँ ! बाबू के प्रति लापरवाही मुझसे बर्दाश्त न है , और पुष्कर बता रहा था कि, पूर्णिमा के दो बच्चे पहले से ही हैं? हाँ अम्मा! | अम्मा, तूने मुझसे यह बात क्यों छुपाई ? अम्मा आपको बता देता तो क्या आप शादी के लिए तैयार होते | अम्मा, कभी न! | शशिकान्त, अम्मा पूर्णिमा बहुत अच्छी लड़की है | अम्मा, "लड़की न कह ! दो बच्चो की अम्मा !और देख रही हूँ उसकी अच्छाई, और आज तू भी देख ले |" ऐसी औरतें किसी की सगी न होती | मुन्ना! तुझमे क्या कमी थी रे ! , देखने मे तू किसी से कम न है, अच्छा कमा रहा था, इतने रिश्ते तेरे लिए देख डाले तुझे बस बही दुआजू ही पसन्द आई? माँ पूर्णिमा के लिए कोई गलत शब्द उपयोग न करें | अरे मै उसे गाली दे रही हूँ ? जो है वही तो कहायेगी | अच्छा अम्मा रखता हूँ , फोन पर पता करता हूँ वह अपने घर ही गई होगी | इतना कह शशिकान्त फोन काट कर पूर्णिमा के घर फोन करता है | उधर फोन पर मुकुल , जीजा जी नमस्ते! कैसे हैं आप और दी? क्या कहा मुकुल ? पूर्णिमा घर नही पहुँची? मुकुल थोड़ा आश्चर्य से दी यहाँ? क्या हुआ जीजा जी खुलकर बतायें? छुट्टियाँ खत्म होने की वजह से मै पूर्णिमा को गाँव मे माँ के पास छोड़ शहर वापस आ गया था | कल फोन पर पता चला पूर्णिमा वहाँ से चली गई, हो सकता है माँ ने ही कुछ कहाँ हो | मुकुल , और बाबू? शशिकान्त, बाबू गाँव मे माँ के पास ही है| हो सकता है वह रास्ते मे हो जैसे ही आये मुझे तुरन्त बताना | जी जीजा जी ! जरूर! | मुकुल के चेहरे पर परेशानी साफ झलक रही थी जिसे , उसने फोन काटने के दस मिनट बाद ही एक हाथ मे सब्जी का थैला और दूसरे मे पूर्णिमा के बच्चों के हाथ थामे पिताजी के घर मे दाखिल होने पर छिपाने की कोशिश करता है | जिसमे वह उनकी थकान और बच्चों मे ध्यान लगे होने की वजह से सफल हुआ | पिताजी के सोफे पर बैठने से पहले ही मुकुल पानी का ग्लास आगे बढ़ाते हुए "पिताजी पानी ! " एक साँस मे ही ग्लास खत्म करते हुए , "अभी तक वे लोग आये नही ?" मुकुल, पहुँचने वाले ही होंगे पिताजी! एक घण्टे पहले प्रभाकर जी का फोन आया था | " "चलो अच्छा है अब तेरी भी जिम्मेदारी से मुक्त हो जाऊँगा |" तभी बेल बजती है, शशिकान्त के फोन के बाद से ही मुकुल का सारा ध्यान पूर्णिमा पर ही लगा था , बेल की घण्टी के साथ उसके दिल की धड़कने बढ़ गई | मुकुल दरवाज़ा खोलता है सामने एक बुजुर्ग दम्पति को देखकर, " नमस्ते अंकल! नमस्ते ऑन्टी! " खुश रहो बेटा कहते हुए वे अंदर दाखिल हो जाते हैं जहाँ पहले से ही मुकुल के पिताजी सोफे पर शायद उनका ही इंतजार कर रहे होते हैं , उन्हें देखते वे हाथ जोड़कर, आईये ! आईये ! प्रभाकरजी ! हम आपलोगों का ही इंतजार कर रहे थे , घर पर सब कुशल, मंगल? जी, सब ईश्वर की कृपा | कहते हुए दम्पति सहित मुकुल के पिता जी भी सोफे पर बैठ जाते हैं | और बताईये प्रभाकर जी? जी जरूर! आपके बेटे का हाथ अपनी बेटी के लिए माँगने आया हूँ, इसका तात्पर्य आप मुकुल को घर जमाई बनाना चाहते हैं ? अरे! नही ! नही ! यह बात तो मै कभी सपने मे भी नही सोच सकता | मै बस इतना कहना चाह रहा था कि, मै आपके बेटे से बहुत प्रभावित हूँ और उसमे अपनी बेटी के लिए एक अच्छा पति और अपने लिए दामाद देखता हूँ |और हाथ जोड़कर, स्वीकृति के लिए आपसे निवेदन करने आया हूँ | इसमे निवेदन की क्या बात है प्रभाकरजी आपसे रिश्ता जोड़ना हमारा सौभाग्य है | मुकुल नाश्ते की ट्रे मेज पर रख हाथ बाँधे एक किनारे खड़ा हो जाता है | मुकुल के पिता "चलिये मिठाई भी आ गई, प्लेट हाथ मे पकड़ प्रभाकरजी को खिलाते हुए |" प्रभाकरजी, हाँ तो फिर तारीख बतावें कब की रखी जाये ? मुकुल के पिता जब आप ठीक समझें आप ही तय करें आपकी सुविधा मे ही हमारी सहमति है | ठीक है तो पंडित से शुभमुहूर्त निकलवाकर आपको सूचित करता हूँ | प्रभाकरजी मुकुल के पिता जी को प्रणाममुद्रा में " तो अब हमें आज्ञा देवें | " तभी दरवाजे की घण्टी सबका ध्यान अपनी ओर खींच लेती है | मुकुल गेट खुलता है "अरे दी आप? " पूर्णिमा को देख प्रभाकरजी के प्रश्नसूचक भाव लिए आँखे मुकुल के पिता पर टिक जाती | "जी यह मेरी बड़ी बिटिया रानी पूर्णिमा !" प्रभाकरजी | अच्छा हुआ जाने से पहले बिटिया रानी से भी मुलाकात हो गई |" यह कहते पूर्णिमा के सिर पर हाथ फेरते है पूर्णिमा कुछ समझती इससे पहले ही उसके हाथ मे एक लिफाफा पकड़ाते है | पूर्णिमा , "नही अंकल यह क्या |" यह शगुन है बेटा मना नही करते यह कहते हुए पूर्णिमा के पिता और मुकुल के हाथ मे भी एक लिफाफा गले लगते हुए थमा देते हैं | " पूर्णिमा को इस बारे मे कुछ न पता था अत: वह आश्चर्य से मूक बनकर खड़ी देख रही थी | दोनो दम्पति के जाने के बाद पूर्णिमा जैसे ही कुछ पूँछने को होती है मुकुल उसे दूसरे कमरे मे से जाता है | क्रमश: