मौसम की आवारगी में खोई हू और आज भी मै डायरी में तुम्हारे आने की उम्मीद में लिख रही हूं , यह डायरी जिसमें तुमसे जुड़ी हर बात लिखते ही जा रही , मुझे यकीन है कि तुम आओगे जरूर ,
1946 की यह कहानी हमे आज के दौर से नब्बे साल पहले के प्रेम व्यवहार को समझने के लिए लेकर चलती है, उस सफर में जहां प्रेम के अपने स्वच्छंद मायने थे और जहां प्रेम में पवित्रता हुआ करती थी, आज के मीम और सोशल मीडिया से बेहद दूर जब खातों की जुबान से प्यार की बातें लिखी होती थी।।।।।।
5 दिसंबर 1946,
पोल्लंपलाई , मधुराई
10:00 बजे रात्रि का समय,
प्रिय डायरी,
मुझे समझ नहीं आ रहा कि मै किस तरीके से इस बात को शुरू करूं, कुछ भी समझ नहीं आता आज कल , यह सब चीजों से उलझ कर मेरा मन बेहद व्याकुल हो उठता है, आज मीनू ने पाट्टी ( तमिल में दादी को पाट्टी बोलते है) को मुझे राजराजेश्वरी मंदिर जाने के लिए मना लिया था, हम लोगो ने एक बकरी जिसका नाम हम लोगो ने चिन्नमा रखा है, उसको बंधू के पास से छुड़वा ले आए थे, और मै तुम्हे यह सब नहीं बता रही थी क्योंकि तुम्हे बकरियों से छींख आ जाती है, बचपन में याद है कि जब हम खेत में चने की फल्लियां चुराने जाया करते थे, तब एक बार एक बकरी तुम पर चढ़ गई थी और तुम दो दिन तक लगातार छींक रहे थे, तुम्हारी नाक लाल मिर्ची की तरह लाल हो गई थी, मुझे आज भी वो दिन याद है, और फिर तुमने मुझसे झगड़ा कर लिया था, आज उस बात को बीते नौ साल छह महीने और सोलह दिन हो चुके है,
मै आज भी तुम्हारी राह तकती हू, जब तुम परदेश से पढ़ कर वापस आओगे, पता नहीं तुम कैसे दिखने लगे होंगे, तुमने वो विभूति लगानी तो नहीं छोड़ी ना, क्योंकि पाट्टन (दादाजी) कहते है कि हर पारंपरिक तमिल पुरुष को विभूति लगाना ही चाहिए , ऐसा करने से हमको नटराजन स्वामी की दिव्य कृपा मिलती है, और हा मैंने सुना है कि यह अंग्रेज़ी बाबू और लॉट साहब वो सिले हुए पैंट और एक इंग्लिश कमीज़ पहनते है, हमारे गांव में भी एक मिशनरी पाठशाला खुल गई है, पाट्टन ने मेरा दाखिला वहां करवा दिया है , हालांकि उनका मानना है कि हमें अंग्रेज़ी संस्कृति को हमारे संस्कृति के ऊपर हावी नहीं होने देना चाहिए , लेकिन जमाने के साथ साथ हमे भी बदलना चाहिए, तो मीनू और मेरा दाखिला वहां करवा आए है, मुझे हर दिन तुम्हारी बहुत याद आती है, मै तिरुमल स्वामी के मंदिर भी जाती हूं, तुम जल्दी आ जाओ , पर लगता है कि वक़्त निकलने लगा है और तुम्हारी आने की उम्मीद के इंतज़ार की घड़ियां घटती जा रही है,
आज मैंने गजरे के लिए सफेद मोंगरे के फूल थल्ली बाड़ी से तोड़ लाया है , कल मै उन्हें अपने बाले में गुथूंगी, और मैंने मुंडू बॉर्डर वाली हरे रंग की साड़ी भी इतवार बाज़ार से कल ही खरीद लाई है, तुम्हे हरा रंग बेहद पसंद है ना, आज ही पट्टी कह रही थी कि मै कोलम के कुछ नए नए तरह के चित्र सीख लू ताकि पोंगल में मै उन्हें घर के चौखट और तुलसी के चौरे के पास बनाऊंगी, और तुम्हे यह बात जानकर बेहद ही हसी आएगी कि मैंने आख़िरकार भरतनाट्यम सीख ही लिया है, पट्टी इसबात से बेहद खुश थी, वह मुझे पोंगल के लिए कोई एक अच्छा बॉम्मलट्टम (कठपुतली नाच) तैयार करने पर जोर दे रही है, मुझे इस बार बॉम्मलट्टम के नाच के लिए कोई भी विषय समझ में नहीं आ रहा है, कल पाठशाला के बाद मैंने मीनू के साथ नाच के कथा के लिए मिलने का पक्का किया है,
कल मेरे पास बहुत सारे काम है , और इसलिए मुझे लगता है कि मै अपनी डायरी में आज यही तक की बात लिखती हूं , मै सिर्फ तुम्हारे बारे में ही सोचते रहती हूं , तुम कैसे दिखते होगे, क्या तुम मुझे भूल गए हो , या फिर क्या तुम मुझे बिल्कुल भी पसंद नहीं करोगे क्योंकि वहां तो तुम्हे गोरी मेम दिखेंगी, पर तुमने मुझसे नौ साल पहले लंदन जाने के टाइम कहा था कि जब तुम आओगे तो तुम मुझसे शादी करोगे, पता नहीं पर मीनू कहती है कि तुम तो कबका यह बात भूल चुके होगे, तुम्हे वहां एक से एक गोरी मेम के तरफ से दोस्ती के लिए इशारे मिलते होंगे तुम कहां एक देहतान लड़की को भाव दोगे पर मैंने उसे साफ साफ शब्दों में सुना दिया कि तुम ऐसे बिल्कुल भी नहीं हो, मै तुम्हारे लिए श्री गौरी व्रत भी रखती हूं ताकि तुम वहां स्वस्थ और हस्टपुस्ट रहो , मीनू इस पर भी हसती है और कहती है कि अब मैंने हद कर दी है, और मै तुम्हारी पत्नी जैसा व्यवहार कर रही हूं पर वो पागल क्या जाने कि प्रेम में व्यक्ति कितना बेकाबू हो जाया करता है क्या तुम वहां वेष्टी (लूंगी) पहनते हो , और फिर वो अंगवस्त्रम जो वो हमारे गांव में बड़े बुजुर्ग पहनते है, क्या तुम जनेऊ लपेटते हो , मैनें माधवी अथ्थई (काकी) से एक बार सुना था कि तुम्हे अब वो अंग्रेज़ी नाश्ते पसंद आने लगे है, पर यहां का डोसा और इडली वड़ा सचमुच में स्वादिष्ट होते है, अगर तुम पढ़ाई करके वापस पोल्लंपल्लाई आ जाओगे तो मै तुम्हे नारियल की चटनी और दही वड़ा भी खिलाऊंगी , वो अंग्रेज़ी लोग ना जाने किस किस का मांस खाते है, सूअर , गाए , औेर मैंने तो सुना है कि वो लोग केकड़ा भी खा जाते है ,
कैसे अभद्र लोग है , पर मुझे पता है कि तुम यह सब नहीं खाते होगे, और हा वो लोग सड़े हुए अंगूर के रस को भी पीते है, यह बात सच है क्या ? अगर सच है तो वो लोग सच में जंगली और दानव लोग है , क्या पता बाद में इंसान को ही खा जाए,
चलो अब मै सोने को चलती हूं बहुत देर हो चुकी है,
तुम अभी सो चुके हो या जाग रहे हो, कहते है कि जब यहां दिन होती है तो वहां रात होती है? तो क्या इसका मतलब तुम अभी जाग रहे होगे, काश ! मुझे तुम्हारा लंदन वाला पता मालूम होता तो शायद मै तुम्हे पत्र लिखती पर अफसोस यही है कि मै तो तुम्हारा पता ही नहीं जानती, पर अब जो भी है, बस अब मै हर दिन इस डायरी में अपनी सारी दिनचर्या का विवरण लिखती हूं और लिख कर सो जाती हूं,
तुम्हारी ,
शुब्बु
यह डायरी के पन्नों में अपने छुपे हुए प्रेम की भावनाओ को दबा कर मै सिरहाने में अपने मन के भाव को रख कर सो गई, मेरी साल वृक्ष के लकड़ी वाले मेज़ का दिया अब भी जल रहा था, उसके दियेसलाई की बाती अभी भी बची हुई थी, उसकी टिमटिमाती रौशनी में मैंने अपने घर की छत को टकटकी लगा कर देखा, क्या मेरा प्रेम परिचय सच मूच में मेरा अपभ्रम था? या सच में इसके कोई मायने थे, मै इंग्लिश भाषा की शिक्षा भी ले रही थी, उसके साहित्य भी कितने निराले है , मैंने अभी ही उस साहित्य की एक अदभुत लेखिका जैन ऑस्टेन का ही उपन्यास पढ़ना शुरू किया है,
प्राइड एंड प्रेजुड़ाइस , यानी कि गर्व और पक्षपात , मुझे यह समझ नहीं आता कि हमारे यहां की औरतें ऐसा कुछ क्यूं नहीं लिखती , उस किताब के एक एक अक्षर मुझे मेरे जीवन से जुड़े हुए लगते है,
मैंने मलियाम में भी कुछ कुछ काव्य और कहानी संग्रह पढ़ने की शुरुआत की है, पर मुझे ना जाने क्यूं जेन आस्टेन की वो कहानी ही निराली मालूम होती है, उस किताब की नायिका एलिज़ाबेथ बेनेट से मुझे एक हमदर्दी महसूस होती है, वो काफी उम्दा किरदार है, और फिर वो एक छुपा हुआ मर्म कि शादी बर्बादी का कारण भी है और शादी आबादी का कारण भी, मेरे मन में कुछ आधी आधी बातें साथ में चला करती है, जब मै कभी कभी कबूतरों को दाने चुगाने छत पर चढ़ती हूं तो मुझे लगता है कि अगर मुझे कबूतरों द्वारा खत भेजने का वो तरीका पता होता जिससे राजा महाराजा अपने सैनिकों और रानियों को खत भेजा करते थे, तो शायद मै भी उसी तरीके से तुम्हे खत भेजती उनके नन्हे पंखों में मेरे मन का सारा बोझ और सारी थकान को तुम्हे बांचती , पर लगता है ऐसा नहीं हो सकता,
मुझे अब इस खयाल से नींद नहीं आ रही , मै अब पट्टी के कमरे की ओर जाकर देखना चाहती हूं कि वो ठीक से सोई भी है या नहीं, शायद ! मै दबे पाव चल रही हूं, घड़ी में अब टिक टिक की आवाज़ साफ सुनाई देती है, लगता है बेहद रात हो चुकी है, तुलसी का पौधा हवा से हिलता नज़र आता है, जैसे हवा के हिलोरों के बीच गीत गा रहा हो, चार खंभो को पार करके मै दाहिने हाथ से दूर बने एक कमरे में रुक जाती हूं, इस कमरे में हल्का चंदन रंग का पर्दा लगा था, कमरे के पास ही एक भगौना रखा है ऊंचे स्टूल के ऊपर वहां बरसात का पानी इक्कठा हुआ करता है, यह घर अंबुर वास्तुकला और चेटिनाद वास्तु से बना हुआ है, हमारे घर के बीचों बीच एक खुला आंगन है , जहां पट्टी का लकड़ी वाला नक्काशीदार
ऊंजल यानी कि झूला रखा होता है, जहा पट्टी सुबह सुबह चावल के दाने साफ करने और में कभी कभी अपने लंबे बालों को सुखाने के लिए बैठा करती हूं, और कभी पट्टन वहां पर अख़बार पढ़ते है, हमारे घर के फर्श चटक लाल रंगो में है, जिसमें जब हम कोलम के नए नए आकृतियां बनाते है तो वे और ज्यादा खिलकर उभार आते है जैसे कीचड़ से उगता कमल,
पट्टी और पट्टन अभी सो रहे है, उनके कमरे के दियासलाई अभी कम रौशनी से जगमगा रहा है, लगता है मुझे भी सोने जाना चाहिए, आंगन और खंबों के पास के हरितकी के पौधे और मोंग्रे के फूलों की खुशबू से मेरे अंदर तरंगों की लहरे उठ रही थी, कासों के ऊंचे अनेक कतारों वाले दीए जिन्हें हम पाक्षी विल्लकु भी कहते है, वे या तो खड़े मिलते है या फिर मीनाक्षी विल्लकू जो लटकने वाले दीए होते है ना,के धुंधली रौशनी में मै अपने पीछे वाले बाड़ी में जाने को भागी , इस बाड़ी में इमली , शहतूत, नीलगिरी और सागौन के ऊंचे पेड़ थे, एक रीठे का पेड़ भी था, जिसके बीज से हम बालों को धोते थे, अमला का भी एक पेड़ था,
पर वहां अभी जुग्नुओं के टिमटिमाती सजीली बहार देखने को मिलेगी, पीले सुन्हले जुगनुओं को देखने में ऐसा लगता है जैसे दीवाली की कोई रात हो, खैर बारिश में यह दृश्य ज्यादा देखने को मिलता है पर हमारे बाड़ी में ठंड के मौसम में भी जुगनू देखने को मिल जाते है, ठंड से याद आया कि इस बार ठंड खासी नहीं थी, इसलिए अंगार दान में लकड़ी नहीं जलाए गए थे,
उर्लियों में पानी भरना भी जरूरी था, उर्ली यानी कि कांसे के चौकोर गमले को बड़े बड़े होते है, उनमें हम पानी या कोई पौधे भी लगाया करते है, हमारे ऊर्ली में इसबार पानी नहीं भरा गया था, और जब भी हमारे यहां मेहमान आते है तो हम इसमें गुलाब के पंखुड़ियां बिछाते है पानी के ऊपर और तैरने वाले रंगीन दीए जला कर इसे सजाते है और मेहमानों का स्वागत करते है,
अथांगुडी फर्श भी हमने अपने सामने घर के छोर में लगा रखा है, इसमें अनेक पारंपरिक कलाकृतियां बनी हुई है, पट्टी को अपना घर बेहद व्यवस्थित रखना अच्छा लगता है, हमारे घर में सब ही चीजों में पट्टी की हामी जरूरी होती है, पर पता नहीं पट्टी मेरे प्रेम को समझेगी कि नहीं, मै अभी बाड़ी में ही हूं, जूगनुओं के झिलमिलाते पीली हरी रौशनी को निहारते, और ऊपर चांदनी रात है, खुले आसमान के तले मै यह सोच में हूं कि तुम कब आओगे , इस बार तुम्हारा लंदन में आखिरी साल है, तब तो तुम भी विश्वनाथन (तंताई मामा ) काका, के जैसे बड़े वकील बन जाओगे, और उनके जैसे कई मुकदमे लड़ोगे , पर क्या तुम भी उन गोरे अंग्रेजों के नौकर बनोगे ! सुना है कि मद्रास का हाई कोर्ट इस बार नए मलियाली युवकों की नौकरियां लगवा रहा है, मैंने पट्टन को अपने दोस्त से बात करते सुना था, पता नहीं तुम कब आओगे ,