Its matter of those days - 11 in Hindi Fiction Stories by Misha books and stories PDF | ये उन दिनों की बात है - 11

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ये उन दिनों की बात है - 11

कहते है ना की ज़िन्दगी एक पल में बदल जाती है और वो पल मेरी ज़िन्दगी में आ गया था इसका अंदाज़ा मुझे बिलकुल भी नहीं था | कब, कौन, कहाँ, कैसे मिल जाए कुछ भी पता नहीं चलता | जो होना होता है वो होकर ही रहता है अन्यथा वो वहां था और मैं यहाँ थी | कोई संभावना ही नहीं थी, पर होनी को कौन टाल सकता है | समय ने हमें मिलाना शुरू कर दिया था | और मेरे साथ भी कुछ कुछ वैसा ही हुआ जैसा मैं अक्सर फिल्मों में देखा करती थी |

उस रोज़ स्कूल की छुट्टी होने के बाद पता नहीं राधिका को क्या सूझी उसने सभी से कहा | चलो रेस लगाते हैं | जो जीतेगा वो विनर और जो हारेगा उसे सभी को पूरे सप्ताह गोलगप्पे खिलाने पड़ेंगे |

रेडी 1.....2........3.............

मैं सबसे आगे निकल गई थी लेकिन ये क्या थोड़ी ही दूर जाने पर साइकिल की चैन उतर गयी और मैं सबसे पीछे रह गई | चैन जल्दी-जल्दी चढ़ाकर मैं तेजी से साइकिल के पेडल मारने लगी |

और फिर................अचानक से धड़ाम………………………………

मैं नीचे गिर गई | मेरी साइकिल सामने वाली साइकिल से टकरा गई थी |

आर यू ब्लाइंड?

जैसे ही मैंने नज़रें उठाकर देखा | मैं तो जैसे बुत ही बन गयी थी | वो कहे जा रहा था और मैं........मैं तो...........खो सी ही गयी थी | कितना सुन्दर था वो | बिलकुल किसी फिल्म के हीरो की तरह | हाय, उसके बाल, उसकी आँखें | मुझसे तो कुछ कहते ही नहीं बन रहा था बस एकटक उसे ही देख रही थी मेरी आँखें |

हैलो, ध्यान कहाँ है तुम्हारा? इडियट!

आज अगर मेरी साइकिल ख़राब ना होती तो शायद ही इससे मिल पाती क्लीन शेव, गौर वर्ण, हाथ में ब्लैक बैंड, जैकेट, पैरों में एक्शन शूज पहने हुए एकदम डैशिंग लग रहा था वो | लवस्टोरी के कुमार गौरव से भी ज्यादा चॉकलेटी |

पर जब उसने मुझे इडियट कहा तो मैं गुस्से में भर गयी |

वो आंधी की तरह आया और तूफ़ान की तरह चला गया | मैं उसे जाते हुए देखती रही |

"आर यू ब्लाइंड" मतलब "अंधी हो क्या " | कृतिका ने बताया |

क्या? उसने मुझे अंधी कहा? मुझे बहुत गुस्सा आया |

ऐसे कैसे कह सकता है वो | कहीं मिल जाए तो..............ऐसा मज़ा चखाऊँगी कि ज़िन्दगी भर याद रखेगा | लेकिन मेरी ही तो गलती थी, लेकिन वो आराम से भी तो बोल सकता था | कहीं आपको चोट तो नहीं लगी | ऐसे भी तो कह सकता था, लेकिन मैं इतनी सुंदर भी नहीं, इतनी आकर्षक भी नहीं | हाँ....अगर.....मेरी जगह कृतिका होती तो ज़रूर उसकी हेल्प करता और कृतिका की गलती होते हुए भी खुद ही सॉरी कह देता | कृतिका को देखकर उसकी धड़कनें रुक जाती | अपने नैनों के तीर उस पर चलाता | अपने होशोहवास खो बैठता वो | उसका ध्यान कृतिका के चेहरे पर ही लगा रहता और शायद उसको उसके घर तक पहुंचा भी देता |

कृतिका है ही इतनी खूबसूरत कि हर कोई उस पर लट्टू होना चाहेगा और पढाई में अव्वल भी |

मैं अपनी और कृतिका की तुलना किये जा रही थी और खुद को उससे कमतर ही आँक रही थी | मैं मन ही मन सोचे जा रही थी |

दिव्या........दिव्या.........कामिनी ने पुकारा | पर मैं तो इन्ही ख्यालों में खोये जा रही थी..............और जब उसने ज़ोर से पिंच किया.........

उई मा...........क्या है ? इतनी ज़ोर से कोई पिंच करता है भला !

हाँ तो...........किन ख्यालों में खोई हुई है | कबसे तुझे आवाज दे रही हूँ पर मैडम है कि जाने कहाँ बिजी है |

आखिर कौन है वो ? जरा हमें भी तो पता चले | कामिनी ने मुझे कोहनी से हल्का सा धक्का दिया |

कोई नहीं........मैंने मुँह बनाया|

तुझे याद तो है ना, हम सभी को गोलगप्पे खिलाने हैं |

हाँ, हाँ, याद है, चलो | मैंने चिढ़ते हुए कहा और मुझे सभी को एक हफ्ते तक गोलगप्पे खिलाने पड़े |

महीना सितम्बर का और मौसम खुशमिज़ाज होने लगा था | ठंडी ठंडी बयार भी चलने लगी थी | मम्मी और आंटियों ने मिलकर स्वेटर बुनना शुरू कर दिया था | उस समय सब हाथ का बना हुआ स्वेटर पहनना पसन्द करते थे क्योंकि उसमें माँ के हाथों खुशबू, गर्माहट और प्यार जो था | मठरी, गुड़ मूंगफली की चिक्की, गजक, पापड़, मंगोड़ी इत्यादि सब बनाने की तैयारियाँ भी सर्दियों का मौसम आते ही शुरू हो जाया करती थी | फिर धूप में बैठकर इन्हे खाने का जो मजा है, आहा......हा........अद्भुत!! इसे शब्दों में बयां करना मुश्किल है |

दो दिन बाद जन्माष्टमी आने वाली थी | सब तैयारियों में लगे थे | झांकियां सजने लगी थी | हमारी कॉलोनी में सभी त्यौहार धूमधाम से मनाते थे.....जैसे दिवाली, होली, जन्माष्टमी, तीज, गणगौर, नवरात्र और जयपुर का मकर संक्रांति तो वर्ल्ड फेमस है | बहुत धूमधाम से ये त्यौहार मनाया जाता है | हम सब सहेलियों ने इसी साल से महाशिवरात्रि और जन्माष्टमी व्रत रखने शुरू किये थे, क्योंकि इन व्रतों का बहुत क्रेज़ हुआ करता था | रात को बारह बजे तक जागकर कृष्णालीला देखना, प्रसाद लेना, भजन करना और डांस करना |

हमारे स्कूल में जन्माष्टमी के दिन छुट्टी रहती है, इसलिए प्रोग्राम एक दिन पहले रखा गया था | मैंने और कामिनी ने भी इस साल पार्टिसिपेट किया था ग्रुप डांस में | मम्मी से लहँगा सिलवाया था..... परफॉर्म करने के लिए और मम्मी ने इतना सुन्दर कली वाला लहँगा सिला था | बहुत ही सुन्दर!! कृतिका के लहँगे से भी सुन्दर लग रहा था मेरा लहँगा उस दिन |
और जब सुलक्षणा मेम, जो की हमारी हिंदी टीचर है.....उन्होंने तारीफ की तो मैं ख़ुशी से फूली नहीं समाई | क्योंकि एक वो ही मेम थी जो काफी फैशनेबल है और उनके मुँह से अपनी तारीफ सुनना किला फ़तेह करने के समान है | मेरी तारीफ सुनकर कृतिका थोड़ी चिढ़ गई थी, क्योंकि उसके चेहरे की भाव भंगिमाओं से साफ़ झलक रहा था |