Defeated Man (Part 16) in Hindi Fiction Stories by Kishanlal Sharma books and stories PDF | हारा हुआ आदमी(भाग 16)

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हारा हुआ आदमी(भाग 16)

"लौट आये"।दुर्गा साड़ी के पल्लू से हाथ पोंछती हुई आयी थी।दुर्गा मझले कद और भारी भरकम शरीर की औरत थी।
"बेटा यह तुम्हारी चाची है"।मोहन ने देवेन को बताया था।
"नमस्ते आंटी"।देवेन ने हाथ जोड़कर नमस्ते की थी।
"खुश रहो"।दुर्गा ने तिरक्षी नज़रों से देवेन को देखा था।
"हुआ क्या था?"दुर्गा ने पति से पूछा था।
"भाई साहब और भाभी गाज़ियाबाद गए थे।लौटते समय बस का एक्सीडेंट- - - -मोहन ने पत्नी को समाचार सुनाते हुए बोला,"देवेन उनका एकलौता बेटा था।अब इसके लिए दिल्ली में क्या रखा था,"इसे मैं ले आया।अब यह यही रहेगा"।
पति से पूरे समाचार सुनने के बाद दुर्गा ने कोई प्रतिक्रिया नही की।वह वापस किचिन में चली गई।
"राम कहा है?"मोहन ने दीप से पूछा था।
"भेया बाहर खेल रहा है।"
"उसे बुलाकर लाओ।"
दीप, राम को बुलाकर ले आया था।
"यह तुम्हारा भाई है,देवेन"मोहन बच्चो का परिचय कराते हुए बोला,"अब यह तुम्हारे साथ ही रहेगा।"
गांव में मोहन का छोटा सा घर था।उसका घर सड़क पर ही था।आगे के हिस्से में छोटी सी दुकान थी।देखने मे तो दुकान छोटी सी थी लेकिन उस पर दैनिक आवश्यकता की हर चीज़ मिल जाती थी।
मोहन ने देवेन का स्कूल में एड्मिसन करा दिया था।स्कूल घर से लगभग एक किलोमीटर की दूरी पर था।दिल्ली में देवेन बस से स्कूल जाता था।लेकिन गांव में उसे पैदल ही स्कूल जाना पड़ता था।
स्कूल की छुट्टी होने पर देवेन, राम और दीप के साथ ही घर आता था।राम और दीप तो खाना खाकर बच्चों के साथ खेलने के लिए चले जाते।पर देवेन बस्ता लेकर मोहन चाचा के पास दुकान में आ बैठ ता।
"अरे आराम कर लेते।थक गए होंगे।"मोहन,देवेन को देखते ही कहता।
"चाचा आप सुबह से देर रात तक अकेले लगे रहते है।थक गए होंगे।अब आप थोड़ी देर आराम कर ले।"
मोहन मना करता रहता लेकिन देवेन जिद्द करके उसे लेटने को मजबूर कर ही देता।"इस तरह देवेन ने छोटी उम्र में ही अपने चाचा के काम में हाथ बटाना शुरू कर दिया था।
देवेन के आने से मोहन को कुछ देर के लिए आराम का समय मिलने लगा था।देवेन स्कूल से आने के बाद खाना खाने के बाद बस्ता लेकर दुकान में आ जाता।वह स्कूल का काम करता।कोई ग्राहक आता तो उसे सामान भी देता रहता।
गांव में आने के कुछ समय बाद ही देवेन अपने चाचा और चाची के स्वभाव से परिचित हो गया था।
मोहन कोमल दिल का सहृदय इंसान था।हमेशा हरसिथति में खुश रहता।दुसरो के सुख दुख में हाथ बटाता।मोहन में मानवता कूट कूट कर भरी थी।वह दूसरों के दुख को अपना समझता था।मुसीबत के समय दुसरो की मदद को तैयार रहता था।
मोहन की पत्नी दुर्गा का स्वभाव पति से बिल्कुल उलट था।दुर्गा जैसा नाम वैसा ही स्वाभाव।दुर्गा उसकी चाची कठोर दिल की कर्कश औरत थी।दुर्गा के चेहरे पर हमेशा मुर्दानगी छाई रहती।देवेन ने कभी अपनी चाची को हंसते हुए नही देखा था।दुर्गा के चेहरे को देखकर लगता मानो हंसी को उनसे बेर हो।वह किसी से बाते करती तो ऐसा लगता,मानो झगड़ रही हो।गुस्सा दुर्गा की नाक पर हमेशा बैठा रहता था।
मोहन चाचा देवेन को अपने बेटे की तरह चाहता था।वह दीप, राम और देवेन में कोई फर्क नही करता था।
दुर्गा को देवेन फूटी आंख न सुहाता।दुर्गा रात दिन देवेन को कोसती रहती।बात बात पर वह देवेन के माता पिता को कोसती रहती,"खुद तो मर गए मुसीबत मेरी जान को छोड़ गए"।