How is love? - (Part 29) in Hindi Fiction Stories by Apoorva Singh books and stories PDF | कैसा ये इश्क़ है.... - (भाग 29)

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कैसा ये इश्क़ है.... - (भाग 29)

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अप्पू, क्या हुआ तुम्हे!! तुम ठीक तो हो।अप्पू।।श्रुति ने बाथ टब में बेहोश पड़ी अर्पिता से पूछा।।अप्पू क्या हुआ है तुम ठीक नही लग रही हो मुझे।।मैं भाई से ही पूछती हूँ।और उन्हें ही यहां बुलाकर लाती हूँ उन्हें ही तुम्हारे बारे में पता होगा।क्या हुआ है? भाई ..कहाँ है आप? प्रशांत भाई..! कहते हुए श्रुति वहां से बाहर निकल प्रशांत के कमरे में पहुंच जाती है।प्रशांत जो चेंज कर अपने कमरे में लैपी पर काम कर रहा है।श्रुति की आवाज सुन कर फौरन खड़ा हो जाता है।वो समझ जाता है अप्पू के साथ अवश्य ही फिर कोई घटना घटी है।वो श्रुति के साथ निकल कर बाहर आ जाता है।और सामने बने उसके कमरे की ओर लपकता है।परम जो बालकनी में खड़ा होता है उसे दौड़ कर जाने की आवाज सुनाई देती है तो वो वहां से मुड़ कर कमरों की तरफ आता है।जहां उसकी नजर श्रुति पर पड़ती है जो घबराई सी प्रशान्त के पीछे पीछे कमरे में जाति हुई दिखती है है।इधर प्रशांत जी श्रुति के कमरे में पहुंच कर देखते है तो वहां कोई नही दिखता है बाथरूम का दरवाजा खुला होता है तो वो सीधा बाथरूम में जाते है जहां अर्पिता बेहोश पड़ी हुई होती है।

अप्पू।।तुम ..कह प्रशांत जी झुक कर उसे उठाते है और बाहर ले आते हैं।बाहर लाकर श्रुति के कमरे में रखी कुर्सी पर बैठा श्रुति से कहते है तुम इसके कपड़े.... कपड़े..वो ..कह रुक जाते है।तो श्रुति आगे कहती है चेंज कर दो।।प्रशांत जी बोले हां, मैं तब तक इसकी पसंद की हॉट कॉफी बना कर लाता हूँ।परम जो कमरे के बाहर होता है वो दरबाजे से अर्पिता को देख लेता है।।

प्रशांत जी मुड़ते है तो परम को खड़ा देखते हैं।इससे पहले कि परम आगे कुछ कहता प्रशांत जी तेज कदमो से चल कर परम के पास पहुंचते है और उसके कानो से लगा फोन् कट कर देते है।

मैं सब बताता हूँ मेरे साथ चलो..!!जी कह परम और प्रशान्त दोनो रसोई में पहुंचते है।वहां जाकर प्रशांत जी कॉफी फेंटते हुए कहते है।परम् सुबह जो हादसा हुआ था उसमें अर्पिता तो बच गयी।लेकिन उसके मां पापा कहां है ये पता नही।मैं जब काम से कानपुर गया था तो ये मुझे वही सेंट्रल पर बेहोश मिली थी।जब होश में आई तो बड़बड़ा रही थी न वो यहां आती न दादी उसे घर से निकलने को कहती न उसके मां पापा को बुलाती न ये हादसा होता...! शायद उस हादसे की वजह से इनके मस्तिष्क पर गहरा असर पड़ा है।मैंने इनकी बात सुनकर किसी को नही बताया।।और तुमसे भी मैं यही कहूंगा कि जब तक ये स्वस्थ न हो तब तक नही बताना।इनका जीवन है किस तरह जीना है ये खुद से देख सकती हैं।ठीक है..!प्रशांत ने आधी हकीकत और आधा फसाना मिलाकर परम को बताया।क्या कहते वो कानपुर अर्पिता के ट्रेन की खबर सुनकर गए।और ट्रेन का पता कैसे किया..श्रुति की बाते चुपके से सुनकर।।फिर बातो को सुनने की जरूरत क्या पड़ी..! यानी घूम फिर कर बात वही आनी थी..।सो सीधा कह दिया काम के सिलसिले से गये थे।उफ्फ ये बहाने बनाना भी न कितना मुश्किल काम है।।खुद से ही कहते है।कुछ कहा आपने भाई परम ने भुनभुनाहट सुनकर कहा।

 

नही..रे छोटे।।मैने कहा कॉफी फेंट चुका हूँ।अब बस दूध तैयार कर उसमे डालना बाकी है।सो वही कर लूं।प्रशांत जी ने बात को घुमाते हुए कहा।

ठीक है भाई।मैं जाता हूँ कमरे में ओके।।परम् ने बोला।।

 

प्रशांत :- जाओ लेकिन मैंने जो कहा वो बात याद रखना।।ठीक है।

 

परम् :- ठीक है भाई।

 

परम् वहां से कमरे में चला जाता है और प्रशांत जी कॉफी का मग लेकर श्रुति के कमरे में अर्पिता के पास पहुंचते हैं।उनकी नजर अभी भी कुर्सी पर बेहोश बैठी अर्पिता पर पड़ती है।जिसे देख वो कहते है

 

प्रशान्त :- श्रुति ये लो कॉफी का मग।।मैं इन्हें बेड पर बैठा देता हूँ।जब ये होश में आ जाये तो इन्हें ये गर्मागर्म कॉफी पिला देना।इतनी ठंडी में इन्हें आराम मिलेगा।

 

श्रुति - ठीक है भाई।।कॉफी का मग ले लेती है।

प्रशांत जी अर्पिता को उठाकर बेड पर लिटा देते है और वहां से अपने कमरे में चले आते हैं।श्रुति कॉफी का मग टेबल पर रख देती है और अर्पिता को हल्का सा ब्लेंकेट उढा अपनी पढ़ाई करने लगती है।कैच देर बाद श्रुति को नींद आ जाती है तो वो अर्पिता के पास आकर लुढ़क जाती है।रात के दो बज चुके है।प्रशांत की नींद एक बार खुलती है।

 

प्रशांत ;- मुझे एक बार अर्पिता को जाकर देख लेना चाहिए।उसे होश आया कि नही।वो कैसी है।श्रुति तो बहुत गहरी नींद में सोती है अर्पिता ने अगर उससे कुछ कहा भी तो वो एक बार मे तो नही उठेगी।

 

प्रशान्त उठकर श्रुति के कमरे में जाता है।दरवाजे को हल्का सा धक्का देता है तो दरवाजा खुल जाता है।प्रशांत अंदर आ जाते है और कुछ क्षण अर्पिता को निहारते है जिसका कम्बल तो श्रुति खींच चुकी होती है।जो आधा उसके उपर और आधा नीचे जमीन पर पड़ा होता है।और अर्पिता सिमट कर दो का अक्षर बनी जा रही है।प्रशान्त जी उसे सिकुड़ा हुआ देखते है तो आगे बढ़ श्रुति का ब्लैंकेट उठा दोनो को ओढा देते है और वहां से वापस अपने कमरे में चले आते हैं।नींद नही आती है तो वो अपनी डायरी कलम उठा उसमे अपनी भावनाओं को लिखने लगते हैं।लिखते लिखते उन्हें वहीं नींद आ जाती है और वो डायरी पर हाथ रख टेबल पर सिर रखकर वहीं सो जाते हैं।

 

उधर अर्पिता के कमरे में श्रुति एक बार फिर कसमसाती है और ब्लैंकेट खींच कर ओढ़ लेती है।अर्पिता की मूर्छा टूट जाती है और वो झटके से उठ बैठती है।उसे हल्की सी भूख लगती है सो वो श्रुति की ओर देखती है जो गहरी नींद में मुस्कुराते हुए सो रही है।

 

अर्पिता :- ये तो गहरी नींद में सो रही है।अब भूख का हम क्या करे!अगर मां होती तो हमारी टेबल पर एक हॉट कॉफी बनाकर रख जाती।क्योंकि उन्हें पता था कि हमे पढाई के समय कॉफी ही पसंद है।इसिलिये तो आदत बन गयी थी।।लेकिन अब..

 

कहते हुए अर्पिता उदास हो जाती है मां पापा को याद कर उसकी आंखो में आंसू आ जाते है तभी उसकी नजर उसके बगल वाली टेबल पर रखी कॉफी मग पर पड़ती है।।अर्पिता तुरंत वो उठाती है और देखती है मग के अंदर एक और छोटा सा मग होता है जिसमे से अभी तक भाप निकल रही है।यानी कि ये पाइपिंग हॉट कॉफी है।ये यहाँ रखी किसने?

अर्पिता उठाकर कॉफी पीती है तो उसका स्वाद उसे थोड़ा अलग लेकिन अच्छा लगता है।वो कॉफी खत्म कर मग रखने के लिए कमरे से बाहर चली आती है।बाहर से गुजरते हुए उसकी नजर प्रशान्त जी पर पड़ती है जो सर्दी में भी कुर्सी पर बैठे बैठे सो रहे होते हैं।

 

अर्पिता अंदर कदम बढ़ाती है।और प्रशांत जी के पास आकर रुक जाती है।ऐसे तो सुबह तक इनकी गर्दन और कंधे दोनो अकड़ जाएंगे।इन्हें उठाना ही पड़ेगा।लेकिन उठाये कैसे।कहीं ऐसा न हो हमने कुछ कहा और इनकी नींद खुलने पर हम पर ही भड़क जाए।लेकिन उठाना भी जरूरी है क्या करे ...क्या करे..सोचते हुए वो डेस्क पर नजर घुमाती हैं।जहां खिड़की से आती हवा के कारण डायरी के पन्ने फड़फड़ा रहे होते हैं।वो डायरी उठाती है लेकिन फिर ये सोच कर रख देती है नही किसी की डायरी पढ़ना इट्स अ बेड मैनर।।

 

फिर वो वहीं पास ही में रखी छोटी सी नोटबुक उठाती है जिसके सारे पेज ब्लैंक होते है।वो उसमे से एक छोटा सा पेज निकालती है और उस पर लिखती है, " प्रशांत जी,यूँ ऐसे टेबल पर सिर रख कर नही सोना चाहिए, गर्दन और कंधे अकड़ जाते है सो जगाने के लिए माफी" और उस पर एक स्माइली वाला इमोजी बना कर डायरी के ऊपर पेपरवेट से दबा कर रख देती है।और फिर उसका फोन उठा कर उसमे एक मिनट बाद का अलार्म लगा कमरे से बाहर निकल जाती है।एक मिनट बाद बाद ही अलार्म बजता है।तो प्रशान्त जी हड़बड़ा कर उठते हैं।फोन उठा कर अलार्म बंद करते है और सोच में पड़ जाते हैं अलार्म लगाया तो लगाया किसने।।वो दरवाजे की ओर देखते है लेकिन वहां कोई नही होता।वो उठ कर अपनी टेबल सेट करते है तो उनकी नजर पेपर वेट पर पड़ती है जिसके नीचे रखी चिट को देख वो उठाते हैं।।

 

"प्रशान्त जी, यूँ टेबल पर सिर रखकर नही सोना चाहिए,गर्दन और कंधे अकड़ जाते हैं' सो जगाने के लिए माफी" ☺️देख उसके चेहरे पर मुस्कुराहट आ जाती है।और वो ये चिट अपने कबर्ड में रखे छोटे से डिब्बे में सम्हाल कर रख देते हैं।वो उठ कर बेड पर जाकर लेट जाते हैं।और सोचते हैं इसका अर्थ है अब जाकर अप्पू का दिमाग शांत हो पाया है।कल से कितना ज्यादा परेशान थी।मैं तो एक पल को डर ही गया था कि कही ये ...नही नही अब सब ठीक है।फिर भी एक बार तो देख ही लूं।।क्या कर रही हैं।

सोचते हुए प्रशान्त जी उठ कर टेबल से वो नोट बुक उठा पॉकेट में रख कमरे से बाहर निकलते है तो उनकी नजर बालकनी में खड़ी अर्पिता पर पड़ती है जो तारो को देख रही होती है।अक्टूबर के मिड में रात के लगभग ढाई बजे वो तारो को बिन स्वेटर के निहार रही है उसे सर्दी का एहसास होता है तो हाथो को बांध लेती है लेकिन वहां से हटती नही।है देख प्रशान्त जी कुछ सोच कर अपनी कुर्ते की जेब से वही छोटी सी नोटबुक निकालते हैं और उस पर कुछ लिख कर वो पेज बालकनी में टंगे फूलो के पौधों के तार में फंसा वहाँ से बाहर निकल आते है।लेकिन निकलते समय अपने जेब मे रखा एक सिक्का अर्पिता की तरफ उछाल देता है।जो ठीक उसी गमले के पास जाकर गिरता है।सिक्के की खनक से अर्पिता पीछे मुड़ देखती है तो उसकी नजर उसी नोट पर पड़ती है।वो आगे बढ़ उसे उठा कर पढ़ने लगती है।

 

जगाने के लिए शुक्रिया!!"अक्टूबर के मिड मंथ में बिन स्वेटर के बालकनी में खड़े रहना स्वास्थ्य के लिये हानिकारक है".!सो बालकनी से आगे कपड़े सुखाने वाला स्टैंड है जाइये और श्रुति की शॉल उठा कर ओढ़ कर आराम से खड़ी होइये! ☺️

 

उसे पढ़ अर्पिता के चेहरे पर मुस्कुराहट आ जाती है। वो वहां से जाती है शॉल उठा कर उसे ओढ़ कर वापस बालकनी में खड़ी हो जाती है।प्रशान्त जी जो हॉल में बैठे होते है ये देख मुस्कुराते है और अपने कमरे में चले जाते हैं।कुछ देर बाद अर्पिता भी चली आती है और वो चिट अपने हैंड बेग में सम्हाल कर रख लेती है और सो जाती है

 

दोनो की आंख अब सीधे सुबह ही खुलती है।

 

श्रुति :- गुड मॉर्निंग अर्पिता!

अर्पिता :- सुप्रभात।।कहते हुए मुस्कुराती है।

 

श्रुति -:- सुप्रभात! मतलब ! मैं समझी नही।

अर्पिता :- सुप्रभात! मतलब गुड मॉर्निंग!समझी।।

 

श्रुति :- ओह ऐसा क्या! फिर तो सुप्रभात।कहते हुए श्रुति कुछ ही देर में स्नान कर तैयार हो जाती है।और जल्दी जल्दी बाहर प्रशान्त जी के पास पहुंचती है।

गुड मॉर्निंग भाई!प्रशान्त जी को देख श्रुति बोली।

प्रशान्त ने एक नजर श्रुति को देखा और गुड मॉर्निंग कहते हुए सवाल किया, " अर्पिता कैसी है अब"?

जिसका जवाब अर्पिता आते हुए देती है हम अब ठीक है प्रशान्त जी"।आवाज सुन प्रशांत जी श्रुति को देखते है और फिर से अपने काम मे लग जाते हैं।

 

अर्पिता भी उसके पास आकर देखती है वो और परम दोनो रसोई में नाश्ता तैयार कर रहे है ये देख अर्पिता वहीं खड़ी हो दोनो को देखने लगती है।वो कुछ कहना चाहती है लेकिन शुरू कैसे करे समझ ही नही पा रही है।

 

प्रशान्त जी बीच बीच में अर्पिता को देख लेते हैं।उसके चेहरे पर उलझनों के भाव देख वो कार्य करते हुए उसकी तरफ आते है और धीरे से कहते है अगर कुछ कहने में परेशानी है तो कल रात वाला तरीका अपना सकती हो।कह वहां से वापस पीछे हट जाते हैं।अर्पिता हां में गर्दन हिला वहां से चली आती है और श्रुति के कमरे में नोटबुक देखने लगती है।लेकिन उसके पास तो सारी बड़े बड़े पन्नो वाली बुक्स होती है।ये देख बड़बड़ाते हुए कहती है अब हम अपने मन की बात प्रशान्त जी तक पहुंचाएंगे कैसे? हमे बहुत सी बातें करनी है उनसे।जानना है कल हमने बेहोशी में कुछ उल्टी सीधी हरकते तो नही की।कल जो भी बिहेव किया हमने उसके लिए हमे सॉरी कहना है और उनके व्यवहार के लिए थैंक्यू भी कहना है।और फिर हमें यहां से जाना भी है...!

 

कहाँ जाओगी?प्रशांत जी ने आते हुए पूछा।

वो हम..कहते हुए अर्पिता रुक जाती है।उसकी खामोशी सुन वो उससे कहते है अप्पू यहाँ सब तुम्हारे अपने हैं।तुम अपने मन की बात कह सकती हो।

 

हां अप्पू बताओ न क्या बात है? भाई सही कह रहे हैं तुम्हे जो कहना है वो बेझिझक कह सकती हो।श्रुति ने आते हुए हॉल में सोफे पर बैठते हुए कहा।

 

तब तक परम भी वहां आ जाता है और वो भी वही सोफे पर बैठ जाता है।तीनो उसके बोलने का इंतजार करने लगते हैं।अर्पिता तीनो की ओर देखती है और एक गहरी सांस लेकर कहना शुरू करती है -

 

अर्पिता :- वो हमें आप सबसे एक रिक्वेस्ट करनी थी हमारे बारे में किरण मौसा जी आरव दादी किसी से कोई जिक्र मत कीजियेगा।हम बहने एक दूसरे के बहुत करीब है और अगर किरण को पता लगा कि हम ठीक है तो वो हमें हर हाल में अपने पास बुला लेगी।लेकिन निजी कारणों से हम वहां नही जा सकते।हमारे रिश्तेदारो की भी लंबी फेहरिस्त है लेकिन जरूरत के समय सब मतलब से ही पूछते हैं।भाई से हम बात कर लेंगे वो शायद हमारे लिए परेशान हो रहे होंगे।बस किरण और मौसा जी के सामने हमारे बारे में कोई चर्चा नही करनी है।उन लोगो के लिए हम जैसे है वैसे ही रहने दे।हमारा आपसे यही अनुरोध है।कह अर्पिता चुप हो जाती है।उसके मन मे दादी की कही हुई बातें गूंजती है औए उसकी आंखें भर आती है।प्रशान्त जी ये देखते है तो अपनी जेब से नोट बुक निकाल कर लिखते है , " टेबल के पास ड्रॉअर में कुछ पैसे पड़े है उन्हें उठाओ और परिवर्तन चौक के पास जो पार्क है वहां आकर मिलो"।।कह वो अर्पिता के पास जाते है और उससे कहते हैं, ठीक है जैसा तुम्हे ठीक लगे हम सब तुम्हारे साथ है क्यों श्रुति, परम्।पीछे मुड़ देखते हुए कहते है और अर्पिता के हाथ मे वो नोट पकड़ा वापस पीछे हट आते हैं।

 

हां भाई दोनो एक साथ कहते है।प्रशान्त के स्पर्श से अर्पिता के मन मे गुदगुदी होती है वो अपनी मुट्ठी बंद कर लेती है और सवालिया नजरो से प्रशान्त की ओर देखती है।प्रशान्त बैठते हुए आँखों से पढ़ने का इशारा करते है और अपना फोन उठा कर उसमें अपना काम करने लगते है।

 

धन्यवाद कह अर्पिता अपने हाथ जोड़ती है तो श्रुति उसके पास आकर कहती है पगली हो दोस्ती का मतलब भी तो तुमने ही सिखाया है।।तो मैं भी वही कर रही हूं जो तुम करती हो।सो नो सॉरी और नो थैंक्स।।ओके।।

ओके कह अर्पिता हंस देती है।उसे हंसता हुआ देख श्रुति कहती है गुड!अब अगर कॉलेज चलना चाहो तो चलो और रेस्ट करना चाहो तो रेस्ट कर लो।मैं तब तक नोट्स देख लेती हूं।

 

हम आज नही आएंगे श्रुति अर्पिता कुछ सोचते हुए कहती है।ओके ठीक है मैं जाकर नोट्स बनाती हूँ।कह श्रुति अंदर चली जाती है।परम और प्रशान्त दोनो वहां से उठकर कमरे में चले जाते है।उनके जाने के बाद अर्पिता प्रशान्त का दिया नोट् पढ़ती है

और पढ़कर कहती है धन्यवाद तो बहुत छोटा शब्द है प्रशान्त जी,किसी की खामोशी में छुपे शब्दो को समझना ये हर किसी के वश की बात नही।वो कमरे में जाकर चिट उठाकर उसे फिर से अपने बैग में रख लेती है और श्रुति के पास जाती है लेकिन उससे कुछ कह नही पाती कि उसे उसके कुछ कपड़े चाहिए।वो सोचती है अगर वो कपड़ो का कहेगी तो श्रुति कहीं ये न पूछ लें कि हम कॉलेज तो जा नही रहे तो फिर ..वो अपनी ही परेशानी में उलझी होती है कि तभी प्रशान्त जी तैयार होकर श्रुति से कॉलेज जाने का बोलने के लिए आते है तो अर्पिता की परेशानी समझ श्रुति से कहते है श्रुति तुम तो इतनी व्यस्त हो गयी कि ये भी नही ध्यान दी कि कोई तुम्हारे पास भी खड़ा है।और वो अपना फोन निकाल श्रुति को संदेश लिख कर भेज देते हैं, श्रुति अपनी दोस्त को कम्फटेबल फील कराओ, उसे ये एहसास मत दिलाओ की वो यहां गेस्ट है समझी।।

 

श्रुति ऊपर देख बोली वो भाई बस ऐसे ही।थोड़ा गहराई में चली गयी थी।तो प्रशान्त जी श्रुति की तरफ मोबाइल से इशारा कर देते है।श्रुति मोबाइल उठा कर देखती है तो संदेश पढ़ सॉरी का रिप्लाय कर देती है।वो अर्पिता से कहती है अप्पू, अब से तुम्हे हमारे साथ ही रहना है सो ये रूम अब तुम्हारा भी है और इस कमरे की हर चीज भी तुम्हारी है सो कोई फॉर्मेलिटी की जरूरत नही है।जो मन हो वो करो और जो मन हो वो पहनो।।कोई बंधन नही है ओके।।

श्रुति की बात से अर्पिता तथा प्रशान्त दोनो के चेहरे पर मुस्कुराहट आ जाती है।प्रशांत जी श्रुति से कहते है मैं बीस मिनट बाद निकलूंगा और अर्पिता की ओर देख कहते है तुम भी रेडी हो कर आ जाना।ओके,और वहां से चले जाते है।अर्पिता समझ जाती है ये उसके लिए ही कहा गया है।

 

श्रुति तैयार होने लगती है एवं कुछ ही देर में तैयार हो अर्पिता से बाय कह निकल जाती है।परम भी दोनो के साथ ही निकल जाते हैं।

 

प्रशान्त जी के कहने पर श्रुति नीचे मकान मालकिन को अर्पिता के बारे में बोल देती है और चली आती है। उनके जाने के बाद अर्पिता भी श्रुति के कपड़े पहन तैयार हो जाती है।और दस मिनट बाद कमरे को लॉक कर निकल जाती है।कुछ ही देर में वो परिवर्तन चौक पर पहुंच एक पार्क में बैठ कर प्रशान्त जी का इंतज़ार करने लगती है।मन मे उसके कई ख्याल तूफान मचाये हुए है।हमे अपनी बात रखनी होगी इससे पहले कि देर हो जाये।क्या कहेंगे, कैसे शुरू करेंगे।।ओह गॉड जी बस सब सम्हाल लेना।जिस तरह अभी तक उन्होंने हमें समझा है हमें भरोसा है आगे भी समझेंगे।।मन ही मन खुद से कहते हुए अर्पिता प्रवेश द्वार की ओर देखती है।जहां उसकी नजर बाइक पार्क करते हुए प्रशान्त जी पर पड़ती है।उन्हें देख उसकी नजर वहीं ठहर जाती है।प्रशान्त जी पैदल चलकर उसके पास आते है और आकर उसके पास बैठ जाते है।

 

प्रशान्त :- तुम घर कुछ कहना चाहती थी जो शायद सबकी वजह से कह नही पाई।मैंने तुम्हें यहां इसीलिए बुलाया है अगर कोई बात है जो तुम्हे परेशान कर रही हों तो तुम कह सकती हो।हम सब मिलकर तुम्हारी परेशानी दूर करने की पूरी कोशिश करेंगे।प्रशांत की बात सुन अर्पिता अवाक हो उनकी तरफ देखती है और सोचती है क्या सच मे ऐसा रिश्ता है हमारा आपसे जो बिन कहे हमारी भावनाएं समझ जाते हैं।हमने अभी इतना समय साथ नही बिताया फिर भी आप हमें इतने अच्छे से समझ रहे हैं।।

जब कुछ क्षण अर्पिता चुप रहती है तो प्रशान्त जी उससे कहते हैं , जहां तक मैं तुम्हे समझ पाया हूँ तुम शायद इस बात को लेकर चिंतित हो कि तुम हमारे साथ कैसे रहोगी।तुम्हे अपने माँ पापा को भी ढूंढना है,उनके बारे में भी पता लगाना है।श्रुति ने तो कह दिया कि तुम अपना ही रूम समझ के रहो।तो मैं बस इतना ही कहूंगा हम लोग तुम पर कोई उपकार नही कर रहे है।बस इंसानियत के नाते मदद कर रहे हैं।अब तुम कहीं और या कहो कानपुर रहोगी किराया खर्च करोगी सब कुछ नए सिरे से सेटल करोगी।इससे अच्छा है कि तुम यहीं हम सब के साथ साझा किराया देकर रहो।कहीं और रहोगी तो अकेली रहोगी न कोई बात करने वाला होगा और न ही कोई पूछने वाला होगा।तो जब रेंट पर ही रहना है तो हमारे साथ रहने में क्या समस्या है।बाकी किराए का मैने बता दिया अपने हिस्से का किराया तुम पे करोगी फ्री में रहना ही नही है।इस तरह तुम्हारे भी मन की पूरी होगी और मुझे भी सुकून रहेगा कि तुम कहीं दूर गैरो के पास नही बल्कि अपनो के ही पास हो।

 

प्रशान्त की बात सुन अर्पिता कहती है ठीक है हमे मंजूर है।अर्पिता की बात सुन प्रशान्त जी मन ही मन कहते है शुक्र है मानी तो सही...

 

क्रमशः....