सच्चासाथी ****** साथी का क्या मतलब होता है आज सरद समझ चूका है, जिसे को बो गाँव मैं सिर्फ चाहता था, आज उसे दिलो जान से प्यार करने पर उसे कोई अफ़सोस नहीं, पूर्णिमा आज उसे के साथी, है यह बात हॉस्पिटल के बेड पर पड़ा सरद सोच ता रहे ता, तभी पूर्णिमा उसके लिए सूप घरे से लाई, उसके सर पर हात रख के कहाकीस सोच में डूबे हो जनाब सरद हसकर बोला तुम्हारे बारे मैं दोनों हसने लगे. तभी नर्स आई , और कहा डॉक्टर साहब कहे रहे थे, आप को जल्दी हॉस्पिटल से छुट्टी मिल जाएगी, हो सकता है, कल परसो तक दोनों का मन ख़ुशी से भर गया.
सरद उसके माँ बाबा का एक ही संतान था, उसके बाबा महेंद्र शर्मा जो एक गाऊँ के सरपंच थे, बहत ही सपने थे उनके आखोमें उसे लेकर, सरद बचपन से ही पढ़ाई में अच्छा था, उस की स्कूल में उसकी क्लास मेट थी पूर्णिमा जो की मन ही मन उसे चाहती थी, वोह महेंद्र जीके दोस्त कमलकांत जी की बड़ी बेटी थी.पड़ने लिख मैं ठीक ठाक थी मगर बहुत ही अच्छी ड्राइंग करतीथी कमलकांत जी की पत्नी और महेंद्र जिकी पत्नी दोनों चाहते थे उनके अच्छे सम्बन्ध हो जाए पूर्णिमा और सरद को लेकर यह बात पूर्णिमा जानती थी बचपन से, के सरद को सायद अपना जीबन साथी मान चुकी थी मान ही मान में सरद दसबी कख्या मैं गाँव में प्रथम आया इसिलए बो पढ़ाई करने केलिए शहर मैं रहने लगा, बहे पूर्णिमा गाँव के एक कॉलेज मैं सोशल साइंस मैं ग्रेजुएशन करली फिर घर मैं रहकर मा की हात बटा रहीथी काम मैं. बहुत बार सरद से उसके प्यार का इज़हार करना चा तिथि पर करने नहीं पाई. शहर मैं सरद अपनी पढ़ाई ख़त्म करली और किसी दफ्तर में नकरी करली उस की कलीग है रुपाली जो बहत ही आधुनिक टाइप की लड़की है सरद उसे थोड़ा इम्प्रेस था पर बो उसे भाव नहीं देतीथी पर एक दिन ऐसा आया के बो सरद पर जान छिड़कने लगी, दुसरो कॉलिंग सरद पर घुसा थे, के इतनी सुन्दर लड़िकी को कैसे पटा लिए, एक हादसे के चलते दोनों मैं शारीरिक सम्बन्ध बनगया. यह सारी बाते महेंद्र बाबू जो सरद के पिता हैँ उन को पता नहीं था, इसके चलते वह पूर्णिमा को सरद केलिए चुन लीआ था
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यहां शहर में रुपाली पेट से थी बिना सादी के तभी उसके मा बाबा को पता चाल तो बो रुपाली से सक्ति से पूछ ताज की, रुपाली ने बताया के बो और सरद एक दूसरे से बहुत प्यार करते हैँ, सरद को घर बुला कर रुपाली से सादी करेने कर प्रस्ताब दिआ, रुपाली एक लोती थी और उसका एक भाई भी था.धूम धाम से रुपाली और सरद की सादी होगये बिन महेन्द्र बाबू के जाने. सरद और रुपाली पहले बहुत ही खुशनुमा जीबन बिताने लगे उनकी दो जुड़ बा बच्चे हुए, पहले पहले रुपाली बहुत ही खुश थी उस ने बच्चों केलिए नौकरी भी छोड़ रखी थी, बच्चों पर ज्यादा ध्यान लगाने को सरद हामिश बोल ता था, पर बो हमेश फ़ोन पे टीवी पे लगी रहती थी उसे आपने आप पर बहुत घुसा आता था, वह चातीथी सरद उसे प्यार करें उसे घूमने लेजाए पर सरद आपने बच्चों पर धयान देता था. और अच्छी कमाई करें इसीलिए दिन रात मेहनत करता था.रुपाली ने बच्चों को केयर सेंटर मैं छोड़ न की बात पर सरद और उस के बिच कहा सुनी से तनाब और बढ़ता गया.दोनों के बिच एक नफरत की दिवार खड़ी थी. ********************************************
एक दिन ऐसा आया के रुपाली भाग गई किसी और के साथ, सरद ने बहुत ढूँढा बाद मैं पताचला. रुपाली उसके पुराने बॉय फ्रेंड के साथ भाग गई थी. उस ने उसकी तलश करना छोड़ दिआ और बच्चों के ऊपर ध्यान देने लगा, दफ्तर जाता तो उसकी बहुत ही बेज़ती होती थी लोग उसके आगे पीछे बोलती थे उस की पत्नी दुसरो के साथ भाग गई, इस बात से बो बड़ा सर्मिन्दा था, भीतर भीतर आपने आपको दोषी मान ता था उस ने काफ़ी लम्बे समय तक मा बाबा से बात नहीं की थी
सायद बो डरता था आप ने पिता से |के उसने बिन बातये सादी करली थी और उस के दो बच्चे भी हैँ. उस की मा कभी कभी उसे बात करतीथी|पर उसे के पिता से सब कुछ छिपाती रहती थी पर इस बड़ी बात को बो छुपाना सकी | एक दिन ऐसा आया महेन्द्र जी को उनके बेटे के बारे मैं सब पाता चाल गया तभी उनका हृदय को एक झटका सा लगा, बो जो सपना आपने लाडले बेटे के सादी का देख रहे थे.वह टूट के बिखर चुकता.. उनो ने बेटे की सकल ना देख ने की कसम खा ली. तो सरद की मा का रो रो के बुरा हाल हुआ.
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तभी महेंद्र जी को कमलकांत जी की बेटी पूर्णिमा की याद आया जिसे बो अपना बहु मान चुकेथे. कमल कांत जी को फोन कर के सब कुछ बताया,
और ख्यामा भी मांगा कहा के बो अपनी पूर्णिमा की सादी किसी अच्छे घर मैं करदे. जब पूर्णिमा को यह पाता चाल बो सादी से इंकार की क्यूंकि बो सरद को बचपन से प्यार कर ती थी और उसे मान ही मान मैं अपना पति मान चुकी थी |रोती बिलकति पूर्णिमा आपने रूम मैं खुदको लक कर ली आ था, बुलाने पर भी नहीं आई तभी महेंद्र बाबू की पत्नी को बुलाना पड़ा. बो जाकर पूर्णिमा के रूम का दरबाज़ खट खटाई और आवाज़ दी तो पूर्णिमा आ कर दरवाज़ा खोला रोती बिलकति उन पर लोट पड़ी सरद की मा ने बचन दिआ के उसकी सादी सरद से जरूर करबा ए गी ********************************************* शहर मैं सरद आपने आप को बहुत अकेला समझ ता था बच्चों को लेकर गाँव जानेकी उसको ख्याल आया, तभी उसने अपनी मा से इस बारे मैं बात की, मा ने कहा देखा सरद तू हमरे प्यार का नाज़ायज़ फायदा बहुत उठा चूका है, तेरे बाबा तेरा मुँह ना देख नेकी कसम खा रखे हैँ , तूने बहुत ही बड़ा कांड कीआ है गाँव आकर बाबा से माफ़ी मांग तभी बो तुझ अपनाए गे पूर्णिमा जो उनको बहुत पसंद थी तेरी पत्नी बनाने केलिए हमारे परिबार ने बहुत बुरा कीआ उसके साथ गाँव में तुझे छोड़ कर सब जानते थे के वह तुझे चाहती है तुझे बो बताने की बहुत कोशिश की थी पर तू शहर मैं किसी और के साथ सादी करली. यह तुम ने बहुत बुरा कीआ बो आज भी तारा रह देखा रही है
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सरद ने गाँव जाने की मान मैं ठा न रखी थी,, उसने अपनी बच्चों को उनके नाना के घरे मैं छोड़ा और अपने गाँव के और निकल पड़ा पर उसका मन में कैसे कैसे ख्याल आ रहे थे उसे के पिता उसे कीस नज़र से देखेंगे गाँव बाले क्या कहेँगे उसे यह सब सोच ते सोच ते उस का सर चक राया और बो गाड़ी सही त पेड़ से टकराया गाड़ी सीधे जाकर खाए मैं गिर गई. बहुत जोर की आवाज़ आया था इसीलिए पास हिके गाँव के लोगो ने उसे बचलि आ था और हॉस्पिटल लेगये थे पर स्तिति उसकी गंभीर थी, बहुत खून बेहेजाने से बो पारा लइसेंस होगया उस का पाता ठिकाना किसीके पास नहीं था पुलिस करबाई हुए तो पाता चला के वह सरपंच जीका बेटा था उस बिच छे महीने गुजर चुके थे बिस्तर पर लेटा लेटा सरद को तब होश आया जब उस की मा उस के पास आई पर उसके हात पर काम नहीं कर रहे थे रोते रोते मा से बोला यह मेरे करनी का फल है जो आज में भुगत रहा हु मा मुझे माफ करो
उसे बाबा से भी माफ़ी मांगी महेंद्र बाबू ने सबसे अच्छे डॉक्टर को देखए अच्छा इलाज के चलते आठ महीने मैं सरद उठ कर बैठा तभी बो आपने मा को आपने दो जुड़वाँ बच्चों के बारे मैं बताया और रुपाली के बारे मैं भी मा ने कहा सब ठीक होजाएगा..एक दिन सरद की मा पूर्णिमा को साथ लेगई हलके पूर्णिमा की कबसे इच्छा था सरद से मिलनेको यह बात सरद की मा जनतिथि उनोने कमलकांत जिसे इज़ाज़त ली और पूर्णिमा को साथ लाय हॉस्पिटल, पूर्णिमा सरद को देखती रही उस की आँखो से सरद के ली ए सच्चा प्यार छलक ता था सरद उसे महसूस करता था लेकिन बताता नहीं था, महीने दो महीने बीत गये सरद अब पहले से बेहतर है उसके बच्चों को शहर से लाया गया था उस मिलने बच्चों से मिलकर उसे बहुत ही ख़ुशी मिली वह आपने मा के सामने रो पड़ा कैसे पालूंगा इनको अकेला कहे कर उसे मा ने उसेके आंसू पोछ ते हु ए कहा तुझ तो हम ने इतना बड़ा कीआ फिरभी तू हमारे बारे मैं एक दिन नहीं सोचा यह तो छोटे हैँ तू दूसरी सादी करले पूर्णिमा से जो तेरी बाबा की तेरे लीए पहेली पसंद थी अभीभी है, सरद यह सब सुन कर बहुत सर्मिन्दा था ***********-************************
पूर्णिमा ने उसे की इस समय मैं बहुत साथ निभायाथा सच्चे साथी की तह एक दिन ऐसा आया के वह आपने प्यार का इज़ हर करते हुआ कहा पूर्णिमा क्या तुम मुझे माफ करोगी, पूर्णिमा रो पड़ी कहा मैं तो कब का तुम्हे माफ करचुकी हूं दोनों एक दूसरे को देखते हुए बहुत रोए .दोनों का मन अब एक दूसरे केलिए साफ हो चूका था सरद ने कहा क्या तुम मुझे से शादी करोगी पूर्णिमा मुस्कुराते हुए हाँ कीआ और दौड कर चली गई.तभी से बो हर दिन अति रही हॉस्पिता ल घर से खाना लेकर अभी सरद पूरी तरह से ठीक था डॉक्टर ने डिस्चार्ज सटिफिकेट भी दीं दी....
अब सरद अपने बच्चों के साथ घर आगया अपने बच्चोके साथ घर मैं खुशी का माहौल सा होगया सरद और पूर्णिमा की शादी की तारीख तय होगई और दोनों ने शादी करली कर सच्चे साथी और ईमानदार जीबन एक दुसरो के साथ जीने की कसम खाली................ ✍️गीतांजलि