ghuriya-mina pathak in Hindi Book Reviews by राज बोहरे books and stories PDF | घुरिया :मीना पाठक

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घुरिया :मीना पाठक

पुरुष पीड़ित स्त्रीयों की गाथाएँ

समीक्षा-राजनारायण बोहरे

कहानी संग्रह *घुरिया :

कहानीकार-मीना पाठक*

प्रकाशक-अमन प्रकाशन कानपुर

मीना पाठक एक विशिष्ट कहानीकार हैँ। उनकी कहानियों में नए शिल्पगत प्रयोग और आलतू-फालतू की शैलियां नहीं होती। उनकी कहानियां प्रायः विभिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं और ऑनलाइन पत्रिकाओं में भी प्रकाशित होने के बाद खूब चर्चित हुई हैं। उनका कहानी संग्रह घुरिया गत दिनों अमन प्रकाशन से प्रकाशित होकर आया है, इसकी कहानियां पाठकों को प्रभावित कर रही हैं

आइए इन कहानियों पर हम बारी बारी से बात करते हैं । पहली कहानी *अपना घर* वृद्ध आश्रम की निवासी लाजवंती की कहानी हैं, जिसके पति की प्रौढ़ावस्था में हार्ट अटैक से मृत्यु हो गई है तथा दोनों बेटे अपनी अपनी नौकरी पर परिवार के साथ खूब मजे में है। पिता की मृत्यु इसलिए हुई कि कर्ज के तकाजे से वे परेशान हो उठे थे, जो छोटे कि बेटे की शादी के लिए लिया गया था ,लेकिन दोनों बेटे इसकी कोई चिंता नहीं करते । दरअसल छोटे बेटे की शादी में बहू को चढ़ावे के लिए जेवर बनवाए गए थे, उसके लिए लाजवंती के पति नीलेश ने अपनी बहन से कर्ज लिया था। जिसकी वापसी के लिए बहन सख्ती से फोन करती है तो नीलेश बेटों से कहते है। पिता के कहने पर दोनों बेटे कोई मदद नहीं करते, तो पिता घबरा जाते हैं, उन्हें हार्टअटैक होता है । पिता की मृत्यु के बाद अपनी मां को वृद्धाश्रम में यह कहकर छोड़ जाते हैं कि अभी आते हैं। लाजवंती एक दिन अपना भूतकाल याद करते हुए बहुत दुखी होकर अपना घर यानि वृद्ध आश्रम छोड़ जाती है । उसका बिस्तर खाली होता है। दो दिन बाद एक दूसरी वृद्धा वृद्धआश्रम के दरवाजे पर बैठी मिलती है, जिसके बेटे यह कहकर छोड़ गए थे कि कार में पेट्रोल भरा के लौटते हैं । बिल्डिंग के दरवाजे पर बहुत देर तक बैठी वृद्धा के बेटे नहीं लौटे तो आश्रम वासी समझ जाते हैं कि उनके बेटे इनको आश्रम में ही छोड़ गए। वे लोग वृद्धा मां को समझा बुझाकर भीतर बुला लेते हैं कि जब बेटे आएंगे उन्हें भेज देंगे। उनको पता है कि आजकल विधिवत जांच करके कोई अपने मां-बाप को वृद्धाश्रम नहीं छोड़ता बल्कि बहानेबाजी से ही अपने बुजुर्गों को ऐसी जगह छोड़ कर चले जाते हैं। उन्हें पता है कि बच्चे कतई कभी नहीं लौटेंगे । वृद्धा मां को वहीं पलंग मिलता है, जो लाजवंती का था ।

दूसरी कहानी धूमिल चांद वैदर्भी की कहानी है , जिसके जीवन में दुख ही दुख रहे। महादेवी वर्मा ने लिखा है 'दुख ही जीवन की कथा रही क्या कहूं आज तक नहीं कहीं' बचपन में वैदर्भी के मां बाप का देहांत हुआ तो वह छोटी थी, किशोरावस्था में थी। उसकी मुंह बोली बुआ शन्नो अपने घर ले आती है ,पाल पास के उसका विवाह जिस अशोक नाम के व्यक्ति होता है , वह ।बहुत अत्याचारी निकलता है दरअसल जिन बुआ ने उसे अपने घर रख लिया था उनका भतीजा ही था अशोक, जो वैदर्भी का पति। पति के हर क्षण अपमान और अत्याचार से परेशान वेदरभी तब राहत पाती है जब अशोक छे महीने के लिए अपनी कंपनी की ओर से जर्मनी चला जाता है । संयोग से इसी बीच उसके घर के नीचे के कमरे में कुछ दिनों के लिए रवि रहने को आ जाता है । रवि यानी उसकी अभिभावक शनो बुआ का बेटा जिसके साथ शरारत करते बचपन बीता। बेदर्भी के पूछने पर पता लगता है कि रवि का विवाह हो चुका था लेकिन 3 साल पहले उसकी पत्नी की मृत्यु हो गई है । इधर वैदर्भी के प्रति अशोक की क्रूरता जानकर रवि उसे दिलासा देता है और सम्मानित जीवन जीने के लिए उस को एक रास्ता दिखाता है कि वेदरभी एक सामाजिक संस्था के मार्फत जेल में बंद महिला कैदियों से कलात्मक सामान बनवाकर प्रदर्शनी में बिकवाएगी और महिला बंदियों को उनकी वाजिब मदूरी देगी । अपने पति अशोक को वह तलाक दे देती है और उसके घर से बिना कोई सामान लिए नए घर में रहने चली जाती है । महिला बंदियों के लिए किये गए सामाजिक कार्य से उसकी सामाजिक प्रतिष्ठा बढ़ जाती है । वह बहुत खुश है, सैलानी जगह गोवा आदि घूमती है। क्योंकि अब रवि भी उसी का है ।

तीसरी कहानी *भूमिजा* इस संग्रह की विशिष्ट कहानी है, जिसमें 25 साल पहले की घटना है। कथा के आरम्भ में फुलमतिया नाम की सेवाकर्मी अंधेरे मिश्रित सुबह के समय दिशा मैदान में फरागत होने जाते देखती है कि दो छायाये एक गड्ढा खोद रही है, फुलमतिया समझ जाती है कि किसी के घर बेटी जन्मी है और उसे जिंदा ही गाड़ देने उसके मां-बाप आ गए । वह तुरंत ही वापस उस जगह पहुंचती है और दफनाए गए बच्चों को निकालती है तो वह जीवित निकलता है । सुबह के भूकभके के अंधेरे में ही बच्चे को लेकर गांव के बड़े किसान भूधर राय की हवेली में जब पहुँचती है और उन्हें बच्चा देती है तो उनलोगों की खुशी बढ़ जाती है क्योंकि उर्मिला देवी इलाज के बाद भी मॉन नही बन सकी थी। वे फुलमतिया के कहने पर बच्चा रख लेते हैं, यह घटना किसी को न बताने की फुलमतिया सौगंध खाती है , भूधर दम्पत्ति दिल्ली के लिए तुरंत रवाना हो जाते हैं । जहां के लिए जाने का उद्देश्य भी गांव में है फैलाते हैं कि उर्मिला देवी के बांझपन का इलाज कराने जा रहे हैं । फिर गांव में खबर आती है कि उर्मिला देवी उम्मीद से हैं और बाद में यह भी खबर आती है उनके संतान हो गई है । लड़की जन्मी है नाम दिया गया है भूमिजा। बड़ी होकर बेटी डॉक्टरी की पढ़ाई करती है । डिग्री लेने के बाद गांव लौटती है तो बड़ा जलसा होता है। उर्मिला देवी उसे लेकर फुलमतिया के पास आती है , वे बताती है कि 25 साल पहले उसने जो बच्चा उर्मिला देवी को दिया था वह लड़की नहीं थी किन्नर थी। किन्नर से लड़की बनने की गाथा इस कहानी में आई है यानी उर्मिला देवी ने सर्जरी के बाद उस खोजवा को लड़की बनाया। वह लड़की बहुत सहृदय और होशियार होती है जो गांव में ही 1 अस्पताल बनाकर फुलमतिया जैसे गरीब लोगों को हो गई असाध्य बीमारी का इलाज करना चाहती है ।

चौथी कहानी *शापित* नाम से है इसमें पति के हाथों जीवन भर पिटाई और अपमान झेलती उर्मी की कहानी है । लेनिक एक बार बुढ़ापे में जाकर विद्रोह कर उर्मि ने पीट रहे पति का हाथ पकड़ लिया तो पति को अपनी बेइज्जती महसूस हुई और जब बेटों को पता लगा तो उन्होंने मां की जिंदगी भर की पीड़ा जानते हुए भी पिता के का विरोध करने की हरकत को पसंद नहीं किया। तो जिंदगी भर से प्रताड़ित होती उर्मी बेटों की बेरुखी से टूट गई और चुप रहने लगी और बाद में उसने शरीर ही छोड़ दिया। यह कहानी पाठकों को उर्मि के पड़ोस में रहने वाली लड़की के मुंह से सुनने को मिलती है जिसको उर्मि ने बचपन में लाड लड़ाया और उसका बहुत ध्यान रखा । वह उर्मि को मा-सी यानी मौसी मानती है । स्त्री शोषण की कहानी शापित पढ़कर पाठक एक रोष से भर उठता है ।

पांचवी कहानी *और... सिद्धार्थ बैरागी हो गया* एक रोचक और बड़ी कलात्मक कहानी है. इसे संग्रह की सर्वश्रेष्ठ कहानी कहा जा सकता है । यह कहानी नायिका सुंदरी के साधु हो गए पति सिद्धार्थ और उसकी अनुपस्थिति में अनायास उसकी जगह ले लेने वाले सुंदरी के देवर मुकेश की स्मृतियों में चलती है । बहुत कलात्मक शैली में लेखिका ने कभी वर्तमान में, कभी फ्लैशबैक में जाकर, भूतकाल या निकट भूत काल के दृश्य प्रस्तुत किए हैं। प्रेम और देहानंद के गाड़े आलिंगन भी इस कहानी में हैं। शादी की रात ही भाग गए पति के बिना वैधव्य जीती सुंदरी की तकलीफ है। बचपन से ही सुंदरी के मन में बैठा यह भरम सुहागरात को उस पर हावी हो जाता है कि पत्नी के पास रात में देरी से आया पति जरूर पतुरीया के पास गया था । सुंदरी किशोरावस्था में है वह नासमझ है , वह अपने किशोर पति पर भी यही आरोप लगाकर एकाएक हमला कर देती है यानी उसे पीट देती है तो वही अबोध किशोर पति सिद्धार्थ अपमानित महसूस कर घर छोड़कर ही भाग जाता है और साधु बन जाता है। उसके साधु गुरु का आदेश है कि उसे एक बार अपनी पत्नी से "माता भिक्षा दे" कह के भिक्षा मांगना पड़ेगा, तभी सच्चा वैराग्य और जोग होगा। भटकता हुआ सिद्धार्थ अपने गांव पहुंचता है, इस बीच गांव में बहुत कुछ बदल चुका है , सुंदरी की उम्र बढ़ गई है। गांव में सिद्धार्थ को कोई नहीं पहचानता था ,यहां तक कि उसकी पत्नी भी। सिद्धार्थ अपने घर की देहरी पर पहुंचकर 'माता भिक्षा दे"कहकर भिक्षा मांगता है ।सुंदरी भिक्षा दे रही होती है कि पड़ोस की बूढ़ी दादी आ जाती है, जिसने सिद्धार्थ को बचपन मे गोद में खिलाया था और सहसा वह चमत्कारिक रूप से सिद्धार्थ को पहचान जाती है । लेकिन तब तक सुंदरी से भिक्षा ले चुका सिद्धार्थ वहां से रफूचक्कर हो जाता है। बाद में पड़ोस की बूढ़ी मौसी जब बताती है कि तुमने भिक्षा क्यों दे दी अब पक्का तू हो गया बैरागी हो गया, सुंदरी अपने भाग्य को कोसने लगती है ।इसके पहले सुंदरी जब बहुत बीमार थी तो उसकी सेवा करता कुंवारा देवर मुकेश उसके सहनशील स्वभाव, शारीरिक सौंदर्य से आसक्त होकर उसके प्रति अपना प्रेम प्रकट कर चुका है और उसके डांट देने पर वह घर से भागकर मिलिट्री की सेवा में चला गया है। मिलिट्री की नौकरी करने के बाद खुले आम देवर मुकेश अपनी भाभी से शादी करता है और उस्व अपने साथ मिलिट्री की अपनी तैनाती वाली जगह ले जाता है । कहानी की समाप्ति में सुंदरी और पति गांव आए हुए हैं और सुंदरी उस कमरे में अपने उस किशोर पति सिद्धार्थ का फोटो खोजने आई है जिसे वह इस घर में रहते हुए प्राय खोजा करती थी तब मुकेश उससे कहता है क्या खोज रही हो तो वह कहती है कुछ नही बाबू !

मुकेश कहता है की आपसे विवाह इसलिए थोड़ी किए हैं कि बाबू जी बाबू बोलती होगी कहानी इन मस्ति के क्षणों में समाप्त होती है।

छठवी कहानी *लोभित* भी वृद्ध आश्रम की कहानी है. वृद्ध आश्रम में भर्ती कुसुम नाम की ऐसी महिला की कहाणी है जो बड़ी लोभिन है। उसने अपनी कमसिन बेटी का ब्याह एक धनाढ्य परिवार में कर दिया था और बदले में बहुत सुख समृद्धि और धन मकान ले लिया था तथा अपनी घर-घर बर्तन मांजने की काम से मुक्ति भी प्राप्त कर ली थी। लेकिन उसकी बेटी सुधा को अपना बदसूरत और बीमार पति पसंद नहीं तो वह अपने पहले से देह संबंध से जुड़े जीजा मनोहर से बनाए हुए रिलेशन नहीं तोड़ती।उससे मिलने ससुराल में मनोहर भी आता रहता है और खुले आम सम्बन्ध बनाता रहता है । इस इन्हीं रिश्तो की वजह से एक दिन उसे ससुराल से निकालने का निर्णय सास द्वारा ले लिया जाता है कि ससुर शर्माजी रोक लेते हैं । उस रात अपने पति के सानिध्य से क्रोधित सुधा आत्महत्या कर लेती है तो सुबह वहां उपस्थित हुई सुधा की मां कुसुम रुप ही बदल लेती है, वह पुलिस के सामने सुधा की मृत्यु को दहेज हत्या बताने लगती है ,जिससे शर्मा परिवार परेशानी में पड़ जाता है । अंत में कुसुम की पूर्व मालकिन (जिनके यहां कुसुम बर्तन माजती थी और जिन्होंने यह संबंध कराया था )बे उसे मुंह मांगा धन देती हैं और यह पैसा लेकर कुसुम दहेज केस को वापस ले लेती है। दामाद मनोहर यानी कुसुम की बड़ी बेटी का पति बहुत लालची है । वही सुधा को बहका रहा था, वह कुसुम के हाथ अनायास आया पैसा हड़प लेता है और कुसुम को वृद्ध आश्रम में छोड़ कर चला जाता है ।

सातवीं कहानी *पश्चाताप* अमिता के जीवन में आए उतार-चढ़ाव की कहानी है । अमिता प्रेम करती थी अमित से , ओर उसका विवाह नलिन सी होता है। असमय ही नलिन का स्वर्गवास हो जाता है तो अमिता अचानक ही अपना व्यवहार बदल लेती है और असहाय सासससुर को छोड़कर तथा पेट में 4 माह का गर्भ लेकर अपने सारे जेवरात और महंगी चीजों के साथ मायके आ जाती है । वह मायके में बच्चे को जन्म देती है । बच्चे के जन्म देने के बाद घर वालों ने उसके दूसरी जगह ब्याहने की तैयारी की तो सबको चिन्ता हुई कि इस बच्चे का क्या होगा? कि सँयोग से अमिता के इस बेटे को लेने अमिता की ननंद आ जाती हैं । सब लोग खुशी-खुशी बच्चे को देते हैं । अमिता और उससे ब्याह के इच्छुक किंशुक जब एक दूसरे को देखते हैं पसंद कर लेते हैं । दोनों का यह दूसरा विवाह है । किंशुक एक कामुक व्यक्ति है उसे अब पत्नी की नहीं बल्कि बच्चों को देखने वाली दाई की जरूरत थी और खुद के लिए एक तरोताजा शरीर की भी। इस बात को लेकर अमिता कई बार किंशुक से बहस करती है तो किंशुक हिंन्सक हो जाता है, वह उसके साथ मारपीट करता है। अस्मिता को शांत होना पड़ता है। एक दिन वह पूर्व ससुराल यानी अपने ससुर के घर जाती है तो पता चलता है वह मकान बेच कर ननदें व ननदोई मां बाप व नलिन के बेटे को अपने साथ में ले गए हैं । मोहल्ले की औरतें अमिता को तीखी बातें सुनाती है कि घर बर्बाद कर गई अब क्यों आई है । वह घर लौट आती है और फिर नए घर में बेटों पर ध्यान देती है। अमिता की प्रौढ़ावस्था आ जाती है, बच्चे सही जगह सेटल होते हैं और लकवे का शिकार हुआ किनशुक एक दिन खत्म हो जाता है । अमिता एक वृद्धाश्रम बनाने का निर्णय लेकर अपने छोटे बेटे से कहती है। छोटा बेटा उदय उसका आदेश मानता है वृद्बधाश्रम बनाया जाता है जिसकी पहली वर्षगांठ

से मनाई गई है , थकी हुई अमिता आराम ही कर रही थी कि उसके जीवन का पहला पुरुष, पहला प्रेमी अमित उसके सामने अचानक उपस्थित होता है। अमिता जिसका बरसों से इंतजार कर रही थी । वे एक होब्लजाते है और वे दोनों फिर अपने प्यार में डूब जाते हैं ।

आठवीं कहानी *घुरिया*

गगांव की किशोरावस्था की उन तीन सहेलियों की कहानी है जिनमें बसंती और फुलवा तो अच्छे घरों से है पर घुरिया एक कमजोर घर से है। वहां भी घुरिया की मां के खत्म हो जाने के कारण उस मंदबुद्धि की हालत बहुत खराब हो जाती है । फुलवा और बसंती पढ़ने के लिए बाहर चली जाती हैं पर घुरिया गांव में रहकर बड़े बुरे दिन काटती है। कोई चॉकलेट देखकर उसकी अस्मत से खेलता है तो कभी उसकी भाभी उसके बाल पकड़ उसके साथ मारपीट करती है। राघवेंद्र राय जो गांव के संपन्न किसान हैं, उनका बेटा भी गुड़िया की अस्मत से खेल चुका है ,उन राघवेंद्र राय के बड़े मकान के आसपास ही बनी रहने वाली घुरिया से एक रात राघवेंद्र राय ही गलत काम करते हैं इसके कारण घुरिया को गर्भ ठहर जाता है । घुरिया का बढ़ता पेड़ पेट और दुबलाता शरीर को देखकर पता नहीं किस चिंता में आकर राघवेंद्र राय उसे एक झोपडी बनवा देते हैं। वहां घुरिया पड़ी रहती है वही उसे कुछ खाने को दे दिया जाता है, पानी का मटका रख दिया जाता है । उसी झोपड़ी में बच्चा जनते समय घुरिया का प्रांनान्त हो जाता है। बसंती जो घुरिया की बड़ी सहेली है, उन दिनों पति सहित गांव में आई हुई है ,बह नई जन्मी घुरिया की बेटी को संभालती है। बाद में घुरिया के नाम से एक संस्था बनाती है- समाजसेवी संस्था... जिसकी अध्यक्ष पहले वह बनती है बाद में करिश्मा को बनाती है। करिश्मा यानी घुरिया की लड़की जो बसंती को अपनी मां समझती है।

संग्रह की नवी कहानी *टीस महिला दिवस की* है इसमें एक ग्रामीण मेहनती सीधी महिला बुधिया है. उसका पियक्कड़ मर्द वादी सोच का पति खेलावन है जो बात बिना बात पत्नी के साथ बुरी तरह मारपीट करता है । एक दिन गांव की मास्टरनी घास काट रही बुधिया से कह देती है कि अगले दिन महिला दिवस है यानी मेहरारूओ का दिन। उस दिन महिलाओं को कोई काम नहीं करना । बुधिया घर लौट कर प्रसन्न मन से घर के काम करने लगती है और बीच-बीच में *पान खाए सैंया हमारो* वाला गीत गाते हुए मस्त रहती है ...पति अचानक पूछता है कि "आज का पा गई हो का... जो इतना खुश हो... हरदम जहर माहर उगलती तोर मुंह नही खियाता है... अउर आज तो सैया के पान खिया रही" बुधिया जवाब नहीं देती । अगले दिन वह घर के बचे कुचे धान से व्यंजन बनाना शुरु करती है और बचा के रखे ₹10 सब्जी तरकारी लाने को अपने पति को देती है और से कहती है कि आज मेहरारू का दिन है आज घास लेने हम नहीं जाएंगे तुम ही जाना ।। पियक्कड़ खिलावन समय पर नहीं लौटता, बुधिया ही घास लेने जाती है लौटकर वह गुस्से में खाना नहीं बनाती। पति को दारू के नशे में धुत होकर लौटते ही गुस्से में हो उसे बहुत कुछ सुना डालती है। गुस्से में खेलावन एकदम जानवर बन जाता है और बुधया को बहुत मारता पीटता है इतना कि वह बिस्तर पर पड़ जाती है । उसे देखने उसकी बेटी आती है तो एक दिन बाद उसे खोजती हुई मास्टरनी बुधिया के घर आती है और बुधिया की हालत देख कर बहुत दुखी हो जाती है।वह बुधिया को थाने में रपट करने का परामर्श देती है लेकिन बुधिया नहीं मानती तब खुद मास्टरनी ही पुलिस में कार्रवाई करती है तो अगले दिन ग्राम प्रधान के साथ पुलिस दरोगा उसके घर आते हैं तथा पत्नी पर जुल्म करने के लिए खिलावन की खूब मारपीट करते हैं। इस घटना के बाद मर जाता है और उन लोगों की जिंदगी सुख मय हो जाती है।

दसवीं कहानी *अहमियत* में एक स्त्री सुरो महसूस करती है कि वह एकदम हल्की हो गई है शरीर कहीं पड़ा है और वह पूरे घर में उड़ती पड़ रही है। उसे एहसास होता है कि वह मर चुकी है, घर मुहल्ला के लोग रो रहे हैं ।सारा दिन रात उसकी देह पड़ी रहती है । उसे महसूस होता है कि उसके लिए कितना रो रहे हैं कितना प्यार में जगा रहे हैं , अगले दिन चिता में लिटा कर आग लगा दी जाती है तो चिता की गर्मी से घबराहट होती है कि सुरो की नींद खुल जाती है। पसीना पसीना हो जाग जाती है । बुरा सपना था सच में सपना देख रही थी । जागकर बहु से पानी मांगती और कहती है कि इंसान के ना रहने पर ही उसको क्यों दी जाती है

ग्यारहवी कहानी *मिस यू पापा* छोटी सी कहानी है . इस कहानी में आंगन में खेल रहे गौरैया के बच्चों की मदद करते नर गौरेया बच्चे के मुँह दाना डालते हैं। गौरैया को देखकर याद आता है की इसी तरह उसके पिता भी उसे बहुत प्यार करते थे। स्कूल में चना चबेना खाने के लिए रीना को स्कूल जाने के पहले पिता की जेब से अठन्नी चवन्नी या एक रुपया चुपचाप निकालने की आदत पड़ गई थी। एक दिन पिता ने उसे पैसा निकालते देख लिया और हाथ में बेंत लेकर उसे डांटते हुए पीटने का भय दिखाया फिर पीटा तो नहीं उससे बातचीत बंद कर दी , तीन दिन बात बंद रहने पर उसे माफ कर दिया लेकिन इस घटना को रीना अजीब महसूस करती रही और अभी भी याद करती है तो रोने लगती है और अपने प्यारे बाबा को बहुत मिस करती है बोलती है मिस यू पापा।

पीतांबरी इस संग्रह की 12 वी कहानी है। राम नारायण ओझा की बेटी पीतांबरी उर्फ पीटो का रिश्ता आशुतोष से हुआ है। दुर्योग से विवाह के पहले ही रामनाराय ओझा का स्वर्गवास हो जाता है , लेकिन घरवाले नियत दिन हीं पीतो का विवाह संपन्न कराते हैं ।ससुराल पहुंच कर पीतो ननद व सांस की बहुत सेवा करती है फिर भी उसको अपशगुनी कहा जाता है।उधर आशुतोष कोलकाता में नौकरी करता है पर बहन व मां की सेवा के लिए पीतो गांव में रहना पड़ता है। बहन की शादी के बाद पीतो पति के साथ कोलकाता जाती है की एक दिन उसके पांव में फैक्चर हो जाता है । उसकी देखभाल के लिए पीतो की बुआ की कुंवारी लड़की रूपा को कोलकाता बुलाया जाता है । रूपा लंबे समय तक कोलकाता रहती है और इस लंबे प्रवास में आशुतोष कि उस से निकटता बढ़ने लगती है और एक रात उनके संबंध बन जाते हैं । इस घटना के बाद रूपा को गर्भ ठहर जाता है । गांववापसी की तैयारी कर रही रूपा और आसुतोष परेशानी में है , सोच विचार कर गांव में खबर की जाती है कि पीतो के पांव भारी हैं, इसकी देखभाल के लिए रूपा को रहना पड़ेगा । इजाजत मिलने पर रूपा कोलकाता में ही रहती है नियत समय पर रूपा एक लड़के को जन्म देती है, इसके बाद 2 महीने गुजरने पर रूपा को वापस गांव भेज दिया जाता है जहां उसका अन्यत्र विवाह होता है ।वबरसों बाद रिटायरमेंट लेकर आसुतोष गांव आते हैं तब तक बेटा अंशुमन विवाह योग्य हो गया है। आसुतोष बीमार होते हैं और दिल्ली में जाकर उनका देहांत हो जाता है । अंशुमन का विवाह होता है तो दूल्हे की माँ की सारी रस्में रूपा से कराती है। बहु का घर में आगमन होता है तो पीतम्बरी अजीब सी दुख में बैठती है जहां खोजती हुई इंदु पहुंच जाती है जो उसकी चचेरी बहन है और इंदू की ही हाथों में पी तो का प्राण अंत हो जाता है ।यह कहानी पितांबरी के जीवन में घटी दुर्घटना को पूरी तरह से रोचक बनाने का प्रयास किया गया है।

इस संग्रह की लगभग सभी कहानियों में स्त्री पात्र महत्वपूर्ण भूमिका में है । शीर्षक कहानी घुरिया और पितांबरी तथा भूमिजा तो इन कहानियों की नायिकाओं के नाम है। वहीं धूमिल चाँद, शापित , लोभित कथा नायिकाओं को दी गई उपमा के आधार पर ही शीर्षक बना दिए गए हैं । खुशी की बात है कि लेखिका ने सभी ससुराली स्त्रियों के पात्र अच्छे बनाएं है। संग्रह की सब कहानियों में अच्छी सास ननद हैं । लोभिन की कुसुम, पश्चाताप की अमिता को छोड़कर कोई भी स्त्री क्रूर या दुष्ट प्रवृत्ति की नहीं है । संग्रह की 6 कहानियां तो दांपत्य जीवन के रिश्तो का विश्लेषण करती कहानियां है । इसमें कुछ के विवाह प्रेम विवाह होते हैं कुछ विवाह मां-बाप की मर्जी से होते हैं।

पुरुष यहाँ विभन्न रूप में है, शापित और धूमिल चाँद में पत्नी को कष्ट देते पति हैं । धूमिल चाँद में छुटकारा दिलाता बचपन का दोस्त रवि है तथा "और सिद्धार्थ बैरागी हो गया " में सुहागरात के दिन बचपने में पति पर हाथ उठाने वाली पत्नी को त्यागने वाला सिद्धार्थ और उसे अपनाने वाला देवर है। पश्चाताप कहानी में स्त्री देह के लालच में अनीता से दूसरा व्याह करने वाला किंशूक है तो पितांबरी में अपनी अबोध साली से रिश्ते बनाने वाले जीजा आसुतोष है। टीस महिला दिवस की में भी दुष्ट पति रामखेलावन है तो अनेक कहानियो में दंपत्ति की दूसरे सिरे पर पति दुष्ट ही प्रकृति के हैं। इस संग्रह की तीन कहानियों में वृद्ध आश्रम आता है जहाँ कथा की नायिका एन केन प्रकारेण पहुंचाई जाती है। अपना घर, लौभिन्न और पश्चाताप। हालांकि पश्चाताप में तो नायका अमिता ने खुद ही दूसरे वृद्बंध बन्धुओं की सेवा के लिए बनाया है, जो उसने अपने सास और ससुर की स्मृति में बनाया है। लेखिका कई जगह कलात्मकता का परिचय देती है। जब वे कहानी में समय का बदलन बताती है तो उन्नति के साधन दिखा के करती है यह उनकी कलात्मकता है, पीताम्बरी का वर्णन देखिये -गांव में सड़कबन गई, बिजली आई, रेडियो के स्थान पर टीवी, अन्तर्देशीय पत्रों की जगह मोबाइल फोन, मिट्टी के चूल्हे की जगह गेस के चूल्हे ने ले लिया (पृष्ठ 185)

कहानियों में भारतीय रीति रिवाज, संस्कार और गीत प्रचरता से है। कहानी लोभिन और पीताम्बरी में यह बड़े विस्तार से है जो कहानी और पाठक को समृद्ध करते हैं तो कहानी को प्रमाणिक भी बनाते हैं । पीतांबरी के गीत को देखिए

*तेरी पायलों की लंबी आवाज बहुरानी धीरे चलो! सासु रानी सुनिहै ससुर जी से कहिहै , ससुर जी करें पर चार !!बहु रानी धीरे चलो (पृष्ठ 191) वही टीस महिला दिवस की नायिका बुधिया गाती है "पान खाए सैंया हमारो" ( पृष्ठ 143) भाषा की दृष्टि से इस संग्रह को देखने पर भी संग्रह की तारीफ करना पड़ती है। इस संग्रह की यूं तो भाषा खड़ी बोली है लेकिन इनमें कहानियों में तमाम ऐसे ग्रामीण क्षेत्र हैं जो आंचलिक भोजपुरी बोली ही बोलते हैं । कहानी भूमिजा , टीस महिला दिवस की ,पीतांबरी घुरिया , और सिद्धार्थ बैरागी हो गया ...आदि में आंचलिक बोली भोजपुरी बोलते पात्र गए। कहानी भूमिजा फुलमतिया तो यही बोलती है -"झडक के चला नाही तो अंजोर हो जाए" (पृष्ठ 45 ) "हमार मरद जानि जाइत तो हमरा एको करम नहीं छोड़े। उते काहे गइले पोखरा पर, अउर ई बचवा के जॉन हुईए तोन तो हुईवे करित" ( पृष्ठ 48)

यही नहीं इस कहानी की जमीदार उर्मिला भी यही बोली बोलती है -"नाही चिंनहले ना? ई है नू भूमिजा हई "(पृष्ठ 50) टिस महिला दिवस की में बुधिया का वाक्य देखिए -"आजो पी आया" (प्रश्ठ 147) पीतांबरी की बड़की अम्मा भी यही भाषा बोलती है -"अबहीन ले राहुर भाई नाही अहिनी, हमार जियरा डेराता जाने का भईल ओहिजा "(पृष्ठ169) रामनारायण भी यही बोलते हैं -"अपनी साथे हमरो के डेरवा दिहले रहलु उहाँ कौनो विशेष बात नाहीं ,अउर तू हमार मूडी खा गईल रहलु" (प्रष्ट 169) और सिद्धार्थ बैरागी हो गया में सुंदरी की जेठानी भी यही बोली बोलती है- "ओघायी नईखे छोड़त दुलहिन के, कुबेरी के बेर भईल ... का जाने रतिया भर का कईली"

संग्रह की तमाम कहानियां संयोग से भरी है ऐसा नहीं की दुनिया में सँयोग नहीं होते , पर इन कहानियों में संयोग बड़े बहुतायत में हैं । भूमिजा कहानी में दफनाई गई बच्ची का जीवित मिलना , किन्नर बच्चे को जमीदार द्वारा अपना लेना, किन्नर की वास्तविकता कभी ना खुलना भले संयोग ना हो परंतु अजीब बात तो है । इसी प्रकार पीतांबरी कहानी में पीतो के विवाह के पहले अचानक पिता की मृत्यु, कोलकाता में पीतो का पांव का फ्रैक्चर, पीतो की देखभाल के लिए आसुतोष की बहन या मां की जगह बुआ की लड़की रूपा का आना , रूपा से आसुतोष से जिस्मानी रिश्ते बनना और रूपा के गर्भ ठहर जाना फिर बच्चे के जन्म से लेकर किसी बाहरी या घरेलू व्यक्ति को उसके बच्चे की खबर भी ना होना आदि सँयोग बहुत है ।

वैसे लोभित और धूमिल चांद में भी बहुत से संयोग आते हैं ,धूमिल चांद में पति के द्वारा पीड़ित वेदर्भी कभी भी अपनी बुआ को अपना कष्ट नहीं बताती और ना ही कभी विरोध करती है । इसी तरह लोभत की कुसुम की किस्मत का अचानक बदल जाना यानी कि उनकी बेटी बर्तन मांजने वाली की लड़की पर एक शर्मा परिवार की नजर ब्याह के लिए पढ़ना, पैसे देकर ब्याह कराना फिर मनोहर काबिना डरे साली से उसकी ससुरालके संसर्ग करना आदि ऐसे बहुत से संयोग हैं जो इन कहानियों में दिखाई देते हैं । इस संग्रह की और सिद्धार्थ बैरागी हो गया व पीतांबरी की कथाएं विस्तार में होने के बाद भी अभी भी संभावनाओं से भरी हुई है इन्हें उपन्यास के रूप में भी लिखा जा सकता है क्योंकि इन कहानियों में विस्तार की गुंजाइश भी है और गहराई की भी।

मीना पाठक के पास कथानक तो बहुत हैं, व उन्हें कथा में डालने का हुनर भी है , पर कहानियों में कलात्मकता या भाषा शैली के सही प्रयोग को लेकर उन्हें अभी बहुत कुछ सीखना है। कथा लिखते लिखते हुए अचानक वे कहानी घटते हुये नही दिखाती ब्लिक दूसरे द्वारा सुनाते हुए लिखने लगती है-किसी वाक्य में लिख देती हैं "खेलावन उसे देखकर तंग करता है" "प्रशिक्षण वाली बाहर लाकर पीड़ा पर बैठने का कहती है "(162) "कौवे की तरफ देखकर धीरे से बु जाती है" ऐसे वाक्य जब कहानी में

घटते हुये या वर्णन के तौर पर आते हैं तो अचानक लगता है की यह कहानी कला के अनुरूप नहीं है, ऐसे वक्त तब बोले जाते हैं जब किसी कहानी को संक्षेप में दूसरा सुना रहा होता है, लेकिन इसका उसे देखकर कथा बाहर बैठा दिया यादों की तरफ देखते हुए इस तरह होता है उन्हें भी बहुत सोचना है कहानियों में एक जगह आया है उसका पेट से लाकर रहने का इशारा करती है अपना घर कहानी 18 में पीठ को बताया गया है हिंदी में लिखा जाता है इस तरह छोटी मोटी को नजरअंदाज कर दिया जाए तो यह सकता है उनकी बेहतर की उम्मीद बनती है यह कहानियां ही नहीं आगे इन कथाओं की विभिन्न में होती रहेगी ऐसी आशा है बहुत सारी शुभकामनाएं