Kaisa ye ishq hai - 24 in Hindi Fiction Stories by Apoorva Singh books and stories PDF | कैसा ये इश्क़ है.... - (भाग 24)

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कैसा ये इश्क़ है.... - (भाग 24)

अर्पिता उसे सामने देख एक पल को तो हड़बड़ा जाती है।उसके आगे कदम बढ़ाने के साथ साथ वो अपने कदम पीछे बढ़ाती जाती है।ओह गॉड, अब क्या करे कैसे यहाँ से निकले।।कुछ समझ में नही आ रहा है।कुछ समझ नही आ रहा है यो इससे अच्छा है यहां से भाग लिया जाये।सोचते हुए अर्पिता आगे पीछे दाएं बाये देखती है और वहां से एक तरफ भाग जाती है।

अरे कहां भागी जा रही हो रुको.. कहते हुए वो भी उसके पीछे दौड़ जाता है।पूरे गोडाऊन का चक्कर लगाते हुए अर्पिता एक टूटी पड़ी बेंच के पास जाकर खड़ी हो जाती है।वो बंदा दौड़ते हुए अपनी गति से उसके पास आ रहा है ये देख अर्पिता उस बेंच के सामने से एक तरफ हट जाती है।जिससे वो सीधा उस टूटी फूटी मेज के ऊपर गिरता है जिससे उसका एक कौना सीधे उस बंदे के पैर और पेट में चुभ जाता है।

अर्पिता वहां से फौरन भाग जाती है लेकिन भागते हुए सामने से आ रहे दूसरे बंदे से टकरा जाती है।

बहुत तेज हो।।लेकिन हम भी कम नही है।आज तुम बच कर यहां से नही निकल सकती।वो अर्पिता से कहता है।और उस पर हाथ उठा चमाट जड़ देता है।अर्पिता दो कदम पीछे हट जाती है।और उसे धक्का दे उसी दिशा में वहां से भाग जाती है जहां से वो अंदर आया था।उसे दरवाजा दिख जाता है।तो वह उसकी तरफ लपकती है।लेकिन दरवाजे तक पहुंचने से पहले ही जो दो बंदे और आने वाले होते है वो शिव को लेकर वहां आ जाते हैं।उन दोनो ने शिव को ड्रिंक करा कर पूरे नशे में कर दिया है।

उन दोनो को देख वो अपने कदम पीछे बढ़ाती जाती है।परेशानी और तनाव उसके चेहरे पर साफ साफ नजर आने लगता है।

उन दोनो की नजर जैसे ही अर्पिता पर पड़ती है वो लोग शिव को छोड़ उसके पीछे दौड़ आते हैं।

गॉड ..हेल्प.. कहते हुए अर्पिता वहां से दूसरी तरफ दौड़ जाती है लेकिन ज्यादा दूर नही जा पाती है।उसके पीछे वो वो दोनो भी आ जाते हैं।अर्पिता वहीं रुक जाती है।वो चारो चारो ओर से उसे घेर खड़े हो जाते हैं।

ओह नो! अब हम क्या करे।ये लोग तो चारो दिशाओ में आकर खड़े हो गये।अब क्या हम उड़ कर यहां से निकले..सोचते हुए अर्पिता ऊपर देखने लगति है।वो चारो गुस्से में उसकी ओर बढ़ते है तो अर्पिता वहीं खड़ी हो उनके पास आने का इंतज़ार करने लगती है।जैसे ही वो चारो उसके पास आते हैं वो फुर्ती से झुक कर उनके घेरे से बाहर निकलती है और दौड़ते हुए वहां से कुछ कदम दूर पुराने सड़े गले फर्नीचर पर एक पैर रखती है और दूसरा उसके आगे रखे गोल डिब्बे पर रख कबाड़ से होते हुए दरवाजे की ओर भागती है।बाहर दरवाजे के पास उसे शिव पड़ा हुआ मिल जाता है।जिसे देख वो कहती है -

सॉरी शिव हमे अभी निकलना होगा।हम चाह कर भी आपकी मदद नही कर सकते।सॉरी हां! कह अर्पिता वहां से निकल जाती है।प्रशांत जी और श्रुति अर्पिता की हरकतों से इतना तो अनुमान लगा लेते है कि वो वहां से निकल चुकी है।भागी वो पकड़ो उसे आज हम इसे नही छोड़ेंगे ...।ऐसे नही तो वैसे सही कहते हुए वो चारो उसके पीछे दौड़ते हैं।अर्पिता की चप्पल तो अंदर दौड़ते भागते ही टूट चुकी है।वो बेतहाशा भागती जाती है।ये गोडाऊन मैन रोड से बिल्कुल अलग ही होता है।कुछ दूर भागने के बाद उसे सड़क हाइवे दिख जाता है।ये देख उसकी जान में जान आती है और वो पूरी ताकत से उस तरफ दौड़ लगा देती है।वो चारो भी दौड़ते हुए उसके पीछे बाहर आ जाते है।

उधर हाइवे पर एक ऑटो आकर रुकता है।उसमे से बीना जी और किरण दोनो उतरती है वो दोनो अर्पिता को भागते हुए आते देखती है तो बिन सोचे समझे उसी की तरफ दौड़ती चली आती है।

अर्पिता भी भागती चली आती है उसके पीछे दौड़ते हुए आ रहे चारो गुस्से से पगलाये हुए रुक जाते है।उनमे जिसके चोट लगी होती है वो गुस्से में उसे देखता है और अपने पास रखी हुई रिवॉल्वर निकालता है और बिन सोचे समझे अर्पिता की ओर फायर कर देता है।अर्पिता को ठोकर लग जाती है वो गिर जाती है और उसका निशाना सामने से आ रही बीना जी बन जाती है।

माँ!! आप ठीक है किरण ने अपनी मां से कहा।वो समझ ही नही पाती कि इस बीच क्या हो चुका है।
वहीं गोली की आवाज सुन अर्पिता पीछे मुड़ कर देखती है वो चारो वही इकट्ठे खड़े होकर उस पर फिर से निशाना लगाते है लेकिन इस बार एक चमकीली रोशनी के कारण वो निशाना नही लगा पाता है।वो रोशनी शिव उनके ऊपर फेंक रहा है।उसके हाथ में बंधी घड़ी के शीशे की वजह से इस बंदे की आँखे चौंधिया जाती है।

अर्पिता उठती है और दौड़कर बीना जी के पास जाती है जो अब धीरे धीरे नीचे बैठती जा रही है।

मासी ! आप ठीक हैं।मासी अर्पिता बीना जी के पास पहुंच उनसे कहती है।बीना जी तब तक नीचे जमीन पर गिर चुकी होती है।उनके शरीर से निकलते रक्त के कारण उनके कपड़े लाल हो चुके है।किरण कुछ समझ नही पाती है वो तेज आवाज में चीखते हुए बीना जी से कहती है, मां आप को क्या हुआ आप ठीक तो हैं।मां कहते हुए किरण बीना जी को पकड़ती है तो उसके हाथ भी लाल हो जाते है ये देख वो जोर से चीख पड़ती है, माँ, ये क्या हुआ? आपको।।ये लाल खून कह किरण बड़बड़ाने लगती है।अर्पिता भी ये देख घबरा जाती है।हमे इन्हें अस्पताल लेकर जाना होगा किरण।।

प्रशांत जी भी तब तक वहां पहुंच जाते है।श्रुति प्रशांत जी फोन पर सब कुछ सुन चुके होते है वो समझ जाते है कुछ अनहोनी घटना घट चुकी है।

प्रशांत जी अपनी बाइक लेकर अर्पिता के पास आते है और उसे वहीं रोक बिना किसी से कुछ कहे बीना जी को उठाते है और बाइक पर बैठाते है अर्पिता उन्हें थामती है और एक नजर प्रशांत जी की ओर देखती है।प्रशांत जी उससे कुछ नही कहते बस अपनी पलके झपका उससे सब सही होने का आश्वासन देते हैं। किरण आकर बीना जी को सम्हालती है और बाइक पर बैठ जाती है।प्रशांत जी बाइक दौड़ा देते है और अर्पिता वहां से फौरन दौडते हुए हाइवे पर पहुंच कर ऑटो रुकवाने लगती है।

वाहन आते है निकल जाते है लेकिन कोई भी रुकता नही है।ओह गॉड मतलब जब तक टेढा तरीका न् आजमाओ कोई काम नही आता।हां कहते हुए अर्पिता बीच सड़क पर खड़ी हो जाती है।किस्मत से सामने से एक ऑटो आ रहा होता है अर्पिता को बीच सड़क पर खड़े देख ऑटो वाला चिल्लाता हुआ ऑटो रोकता है।उसकी चिल्लाहट को इग्नोर कर वो ऑटो में जाकर बैठ जाती है।

अरे ! अरे! मैडम ये क्या बदतमीजी है।ये मेरा ऑटो अभी सवारियों के लिए नही ले कर जा रहा।मुझे सामान का ऑर्डर मिला है वही लेने जा रहा हूँ आप नीचे उतरिये अभी के अभी उतरिये।।ऑटो वाले ने चिल्ला कर कहा।

उनकी बात सुन अर्पिता खुद को शांत कर कहती है भाई आपका ऑर्डर किसी की जान से ज्यादा कीमती तो नही है न।आप वो देखिये वो चार पांच लोग आपस में लड़ झगड़ रहे है न वो सभी किडनैपर है।हम इनसे ही पीछा छुड़ा कर भागे है।आप ठहरे लखनऊ वासी आप इसिलिये हमने आपका ऑटो इस तरह रुकवा लिया।काहे कि हमने सुना है लखनऊ वासी दिल से बहुत अमीर है।"अतिथि देवो भवः" हर लखनऊ वासी की रगो में लहू के साथ बहता है।प्लीज प्लीज हमारी मदद कर दीजिये।।अर्पिता ने मासुमियत से कहा।उसकी बाते सुन ऑटो ड्राइवर भावुक हो कहता है ये तो आपने बिल्कुल सही कहा।मैं जरूर आपकी मदद करूँगा कहते हुए ऑटो ड्राइवर ऑटो सड़क पर दौड़ा देता है।बाइक चलाते हुए प्रशांत जी उसकी बातो को सुन मन ही मन कहते है ओह गॉड! ये है क्या अपनी बातों में तो ये ऐसे उलझाती है कि बिन इसकी बात माने कोई रह ही न पाये।क्या पट्टी पढ़ा दी दो मिनट में इसने।।भाई मान गये सही कहा उन लड़को ने 'तीखी छुरी'।

हमारी अर्पिता मन ही मन कहती है, "गॉड जी, प्लीज! प्लीज! हमारी मासी का ध्यान रखना " प्लीज़!

उन चारो को शिव अटकाये रहता है और अर्पिता ऑटो में बैठ वहां से निकल जाती है।

दूसरी तरफ प्रशांत जी किरण बीना जी को लेकर नजदीकी हॉस्पिटल पहुंचते है।जहां डॉक्टर्स बीना जी की कंडीशन देख तुरंत ओटी में भेज देते है।किरण और प्रशांत जी वहीं खड़े हो डॉक्टर्स के जवाब का इंतजार करने लगते है।प्रशांत, किरण श्रुति अर्पिता सभी परेशान होते है।अर्पिता ऑटो से गुजरती है तो रास्ते में अस्पताल देख वहीं उतर जाती है।

भाई आप पेटीम का उपयोग करते हो अर्पिता अपना फोन निकालते हुए उससे पुछती है।तो उसकी बात सुन ड्राइवर कहता है, बहन, मैं उपयोग अवश्य करता हूँ लेकिन आपसे पैसे मैं नही लूंगा क्योंकि मैं भी इसी तरफ आ रहा था अपना ऑर्डर लेने के लिये।अब जब मेरा तनिक भी नुकसान नही हुआ तो हर्जाना का सवाल ही नही है।वैसे भी हम लखनऊ वासी है इतनी मदद तो यूँही चलते फिरते में कर देते है।चलता हूँ बाय।।

उसकी बात सुन अर्पिता अपने दोनो हाथ जोड़ लेती है ऑटो वाला वहां से चला जाता है।
अर्पिता फोन देखती है जिसमे उसकी कॉल पिछले एक घण्टे से श्रुति से कनेक्ट होती है।

ये देख वो कहती है अब हम समझे हमारे बिन बताये प्रशांत जी हम तक पहुंच कैसे गये।हम अंदर चलकर देखते है मासी कैसी है बस वो ठीक हो उन्हें कोई परेशानी नही हुई हो।

अर्पिता फोन कट कर अंदर पहुंचती है।वो जाकर किरण के पास खड़ी हो जाती है और उसे गले लगाते हुए कहती है किरण सब ठीक होगा, मासी भी जल्द ठीक हो जाएंगी तुम परेशान मत होना।कहते कहते अर्पिता भावुक हो जाती है।वही प्रशांत जी उसे परेशान देख खुद परेशान हो जाते है उन्हें खुद समझ नही आता कि वो उन दोनो से क्या कहे।

वो अर्पिता और किरण के पास आते है और उनसे कहते है, समय कठिन है हिम्मत से काम लेना होगा।सब ठीक होगा।।प्रशांत जी की बात सुन अर्पिता सहमति में सिर हिलाती है लेकिन किरण तीखी नजरो से अर्पिता की ओर देखती है और वहां से ओटी के सामने खड़ी हो जाती है।

कुछ ही पलो में उदास चेहरे लिए डॉक्टर ओटी से बाहर निकलते है।उनके चेहरे को देख अर्पिता और किरण दोनो के ह्रदय की धड़कन तेज गति से बढ़ जाती है।डॉक्टर प्रशांत जी के पास जाते हैं और न में गरदन हिला कर वहां से चले जाते हैं।किरण तो एक दम से चीख ही पड़ती है।अर्पिता उसे सम्हालने की कोशिश करती है लेकिन नाकामयाब होती है।

प्रशांत जी नीचे रिसेप्शन पर जाकर सारी औपचारिकता पूरी कर देते है।हॉस्पिटल में कार्य करने वाले सदस्य बीना जी के पार्थिव शरीर को लेकर एम्बुलेंस में रख देते है।अर्पिता जैसे तैसे किरण को बुलाकर लाती है।एम्बुलेंस बीना जी के शरीर को लेकर लखनऊ में स्थित उनके घर पहुंचा कर वापस चली जाती है।

दया जी ये दृश्य देख एक दम से चीख पड़ती हैं।उन्हें ऐसे देख किरण अर्पिता को छोड़ उनके पास दौड़ पड़ती है।और चिल्लाते हुए कहती है दादी...मां..!और फूट फूट कर रोने लगती है।अर्पिता के घर अचानक से खुशियो की जगह मातम पसर जाता है।प्रशांत जी अपने घर बांदा कॉल कर शोभा जी को इस अनहोनी की सूचना देते हैं।

हेमंत जी आरव जो काम में सिलसिले में बाहर होते है पड़ोसियों के जरिये उन तक ये खबर पहुंचती है।इस अप्रत्याशित घटना के बारे में सुन वो भी सन्न रह जाते हैं।और बेतहाशा सब काम छोड़ घर के लिये दौड़ पड़ते हैं।

अर्पिता दया जी और किरण के पास जाती है।किसी के भी आंखों से आंसू रुक नही रहे होते हैं।

किरण सिर पटक पटक वीभत्स रूप से रो रही है।उसके दुख का पार ही नही है।बच्चे के लिए मां उसकी पूरी दुनिया होती है।और आज किरण की ये दुनिया ही उससे छिन जाती है।हेमंत जी आरव भी आ जाते हैं।धीरे धीरे सभी नाते रिश्तेदारो का जमावड़ा होने लगता है।अर्पिता के परिवार से उसके माता पिता भी खबर सुन तुरंत ही निकल आते है।उधर शोभा जी शीला नृपेंद्र जी और प्रशांत जी के पिता सभी चले आते है।

रात हो जाती है और घर में चीख पुकार,क्रन्दन बदस्तूर जारी रहता है।किरण आरव तो एक पल के लिए भी बीना जी से दूर नही होते हैं।धीरे धीरे सुबह हो जाती है और बीना जी की अंतिम विदाई की तैयारी भी शुरू कर दी जाती है।अंतिम विदाई के समय उन्हें एक सुहागन की तरह तैयार किया जाता है।और सभी को अंतिम दर्शन के लिए कहा जाता है।किरण आरव हेमंत जी दया जी अर्पिता की मां सभी भीगते नेत्रो से उन्के दर्शन कर उन्हें विदाई देते है।बीना जी को हेमंत जी आरव और बाकी नाते रिश्तेदार अर्थी सजाकर ले जाते है।मां को जाता देख किरण जोर से चीखती चिल्लाती है और अपने होश खो नीचे गिर पड़ती है।अर्पिता किरण के पास ही होती है और उसे गले से लगा कर जार जार रोने लगती है।प्रशांत जी को अर्पिता का इस तरह रोना अंदर तक दुखी कर जाता है।।उनकी आंख भी नम हो जाती है और वो वहां से बाहर सबके साथ चले जाते हैं।

धीरे धीरे समय गुजरता जाता है और पास पड़ोसी नाते रिश्तेदार चले जाते हैं।कल तक जिस घर में खुशियो की किलकारी गूंजती थी अब वहां हर कौने में मातम पसर गया है।शोभा जी प्रशांत जी शीला प्रशांत के पिताजी,सभी दया जी किरण हेमंत जी आरव को सांत्वना दे वहां से निकल आते हैं।

किरण अभी भी मूर्छित अवस्था में होती है।कुछ ही क्षणों में उसकी मूर्छा टूटती है और वो मां कहते हुए एक दम उठ खड़ी होती है।उसकी मूर्छा टूटी देख अर्पिता उसके पास आकर उसे गले लगा लेती है।
अर्पिता को देख किरण उसे चिल्लाते हुए जोर का धक्का देती है।....

क्रमशः ....