सुमित विग
सुबह के नौ बजे थे। सड़क के दोनों ओर से वाहन आ-जा रहे थे। सड़क के एक किनारे से एक व्हीलचेयर पर एक 23-24 वर्ष का युवक जा रहा था। उस युवक ने सफ़ेद कमीज़ और काला कॉट पेंट पहना हुआ था। देखने में किसी कॉलेज का विद्यार्थी लग रहा था। उसकी आँखों से आँसू निकलने ही वाले थे कि उसने रुमाल से उन्हें पोंछ लिया। कालेज पीछे छूट गया था, वो कॉलेज से बहुत आगे चला गया। चलते चलते अचानक उसकी व्हीलचेयर रुकी। अब वो कालेज से बहुत दूर एक नदी के किनारे था। उसके हाथ में जो किताबें थी उन पर मनोहर नाम लिखा था। मनोहर नदी के किनारे बैठ सोचने लगा। उसके ना चाहते हुए भी उसकी आँखों से आँसू बहने लगे। सोचते सोचते मनोहर एक साल पीछे पहुँच गया।
कॉलेज का पहला दिन। मनोहर अपने घर से मोटरसाइकल लेकर कॉलेज के लिए निकला। बड़ा ख़ुश था और गीत गुनगुना रहा था। तभी उसके फ़ोन की घंटी बजी। फ़ोन मनोहर की माँ का था। जो गांव में रहती थी। मनोहर ने बात करते करते कॉलेज के अन्दर प्रवेश किया। कॉलेज के पहले ही दिन उसकी मित्रता अन्य विद्यार्थियों से हो गाई, जिन में कुछ लड़के और कुछ लडकियाँ थी। मनोहर पढ़ाई में ना ज्यादा अच्छा था ना बुरा। कक्षा से अलग पढ़ाना कक्षा से अलग रहना। मित्रों से तो बस बातें हो जाती और उन्हें किसी प्रकार की जरूरत होती तो मनोहर पुरी कर देता। मनोहर उनके लिए एक जरूर के समय काम आने वाला ही था उसके एलावा कुछ नहीं। एक दिन कॉलेज के बाद मनोहर ने माही को किसी काम से फ़ोन किया तो दूसरी तरफ से रोने की अवाज़ आ रही थी। उसने माही से पूछा क्या हुआ तो उसने बताया कि वो कॉलेज में है और उसका पर्स गुम गया। मनोहर अपने घर से फिर कॉलेज के लिए निकला और माही को घर पहुँचा कर आया।
अगले दिन से दोनों में अच्छी दोस्ती हो गई। दोनों एक दूसरे के साथ बैठने लगे। एक साथ खाना खाते और एक साथ कॉलेज से निकलते। दोनों की फ़ोन पर घंटों बातें होती। मनोहर उसे पढ़ाई में भी मद्द करता था। परीक्षा के समय मनोहर अपनी पढ़ाई छोड़कर उसके काम करता।मनोहर और माही में अच्छी मित्रता थी। मनोहर और माही की बातें कॉलेज में होने लगी तो माही ने अपनी सहेलियाँ से कहा कि मनोहर उसे तंग करता है। मनोहर इस बात से अनजान की माही ने अपनी सहेलियों को क्या कहा। जब वो अगले दिन कॉलेज पहुँचा तो सब ने उसे ऐसे देखा जैसे उसने कोई अपराध किया हो। अपने मित्रों से मिलने लगा तो वो भी बिना कुछ कहें उससे दूर हो गए। अध्यापक भी उसे अपराधी भाव से देखने लगे। उसके बाद एक हफ्ते तक किसी ने मनोहर को अच्छे से नहीं बुलाया।
एक हफ्ते बाद मनोहर को फ़ोन आया। फ़ोन एक अनजान नंबर से था। मनोहर ने फ़ोन उठाया, सामने से एक लड़की की अवाज आई। उस लड़की ने बतायाकि वो उसकी कक्षा में ही पढ़ती है और उसे कुछ बताना है। उस लड़की ने सारी बात बतायीकि सब उसे अपराधी भाव से क्यूँ देख रहे थे और बात क्यूँ नहीं कर रहे थे।उसने बतायाकि उस लड़की ने आप पर आरोप लगाया कि आप उसे फ़ोन करके परेशान करते हो। एक पल के लिए तो मनोहर सुन हो गया था। वो चाहता था कि वो माही से बात करें पर ये सोच कर फ़ोन नहीं कर पा रहा था कि कहीं दुबारा उसे गलत साबित ना कर दे। जिस लड़की ने मनोहर को बतायाकि माही ने ऐसा किया वो अगले दिन मनोहर को कॉलेज के बगीचे में मिली और उससे दोस्ती का हाथ बढ़ाया। मनोहर पहले तो कुछ नहीं बोला पर बाद में उसने अपना हाथ मिलाया।
उस लड़की ने अपना नाम माया बताया। माया ने मनोहर को कफ्फी के लिए पूछा पर मानोहर ने मनाकर दिया। मनोहर ने कोई गलती भी नहीं की फिर भी उसे सबने बुलाना बंद कर दिया। मनोहर अपनी मोटरसाइकल लेकर घर की ओर निकलने लगा। मनोहर ने उन बातों को सोचते हुए जैसे ही कॉलेज के दरवाजे से अपनी मोटरसाइकल निकाली, तभी उसके मोटरसाइकल की एक कार से तक्कर हो गई। कार के चक्के मनोहर से पैरों के उपर से निकल गए। आस-पास भीड़ जमा होने लगी, लोगों ने मनोहर को हॉस्पिटल में दाखिल करवा दिया। मनोहर के दिमाग में वोहि बातें चल रही थी। मनोहर बिहोश था पर फिर भी उसके दिमाग में सारी बातें घुम रही थी।
उसी शाम जब मनोहर को होश आया तो उसने देखा कि वो हॉस्पिटल में है और डॉक्टर उसके पास खड़े हैं। डॉक्टर ने मनोहर का हाल जानने की कोशिश की पर मनोहर धीमी सी आवाज में ठीक हूँ बोलकर चुप हो गया। अगले दिन जब मनोहर उठा तो उसके पलंग के पास एक व्हीलचेयर खड़ी थी। डॉक्टर ने उसे बताया कि तुम्हारे पैरों के उपर से गाड़ी जाने से तुम अब कभी चल नहीं पाओगे। मनोहर ने मन में एक हीन भावना ने जन्म लेना शुरुकर दिया। मनोहर की आँखों में आँसू थे और वो व्हीलचेयर पर बैठकर घर की तरफ निकल पड़ा। मनोहर ने जब घर जाकर अपना फ़ोन देखा तो फ़ोन उसके पास नहीं था। उधर दूसरी तरफ माया उसे फ़ोन पर फ़ोन कर रही थी पर कोई फ़ोन नहीं उठा रहा था। फ़ोन भीड़ में से किसी ने निकाल लिया था शायद। दो तीन दिन बाद वो नंबर भी मिलना बंद हो गया। एक हफ्ते बाद जब मनोहर कॉलेज गया तो सब उसकी हालत देखकर हैरान थे। कुछ लोगों ने तो पूछा कि क्या हुआ पर बाकि सबने मनोहर के साथ बात करना पसंद नहीं किया। जब माया को पता चलाकि मनोहर आया है तो माया दौड़कर मनोहर से मिलने आई पर जैसे ही उसने मनोहर की हालत देखी वो चुप-चाप खड़ी देखती रही और कुछ ना बोल सकी। मनोहर ने अपनी व्हीलचेयर को आगे बड़ाया और माया से बातकि। माया ने बताया कि वो बहुत दिनों से मनोहर को फ़ोनकर रही थी पर मनोहर का फ़ोन नहीं मिल रहा था। मनोहर ने माया से उसका फ़ोन लिया और अपने घर फोन किया। मनोहर ने अपने घरवालों से झूठ कहा कि उसका फ़ोन खराब हो गया था।
माया भी अपने घर से दूर उस शहर में रहती थी। माया उस दिन से मनोहर के साथ रहने लगी। माया और मनोहर एक साथ पढ़ाते, एक साथ खाना खाते, एक साथ घुमने जाते पर, रोज माया को एक फ़ोन आता और वो फ़ोन मनोहर से छिपकर सुना करती थी। जब मनोहर के साथ होती तो वो फ़ोन ना उठाती और बाद में इधर उधर का बहाना करके उस नंबर पर फ़ोन करती। मनोहर को कुछ पता ना था। जब मनोहर पूछ्ता किसका फ़ोन था तो कह देती घर से आया था। मनोहर चुप-चाप सारी बातें देखता रहता। माया हमेशा उसके सामने हँसतीं पर अकेले में रोया करती। रातों को भी उसे नींद नहीं आती। एक दिन जब माया को फ़ोन आया तो माया ने मनोहर को कहा कि वो कुछ समय में वापिस आ जाएगी। इतना कहकर वो घर से निकाल गयी। मनोहर वहा बैठा चुप-चाप माया को जाते देखता रहा। कुछ दुर माया के चले जाने पर उसके मन में फिर वोहि माही द्वारा लगाए आरोप याद आने लगे। मनोहर मानसिक तनाव में डुबता चला गया।
बहुत समय बीत गया माया वापिस नहीं आई। मनोहर को चिंता होने लगी कि माया कहा चली गई। मनोहर ने माया को फ़ोन लगाया पर फ़ोन बंद आ रहा था। देर रात तक माया घर नहीं आई तो मनोहर ने पुलिस स्टेशन में जाने का सोचा। मनोहर पुलिस स्टेशन के लिए निकलने ही वाला था कि तभी माया रोते-रोते घर में आई और अपना सामान बाँधने लगी। मनोहर बहुत कुछ कहना चाहता था पर अपनी विकलांगता के कारण कुछ ना बोल सका और चुप-चाप एक कौने में बैठा सोचता। एक बार उसके मन में विचार आयाकि वो हिम्मत कर माया को बोल दे कि वो उससे कितना प्यार करता है। पर वो हिम्मात नहीं कर पा रहा था। उसने एक पत्र लिखने की सोची। मनोहर ने एक कागज और कलम उठाई और अपने दिल में जो कुछ था वो लिख दिया। जितनी देर में उसने अपने दिल की सारी बातें कागज पर लिखी उतनी देर में माया कमरे से अपना सारा समान लिए जा चुकी थी। वही कमरे में मनोहर को एक पत्र मिला जिसमें लिखा था- “मनोहर मैं तुमसे माफी माँगती हूँ कि कभी तुम्हें सच ना बता सकी, मैं जिस लड़के से प्यार करती हूँ, तुम्हारी हालत का जिमेदार वोहि है। याद है जब हम पहली बार मिले थे तभी उसने मुझे तुम्हारे साथ बात करते देख लिया था और गुस्से की आग में अन्धे होकर तुम पर गाड़ी से वार कर दिया। मुझे माफ कर देना मैंने बहुत कोशिश की तुम्हें सच बताने कि पर कभी हिम्मात नहीं जुटा सकी। मैं जब भी तुमसे कहा कि मेरे घर से फ़ोन आ रहा है असल में वो फ़ोन उसी का था जिसे मैं प्यार करती थी। वो चाहता था कि मैं तुम्हें अकेला छोड़कर उसके पास चली जाऊँ। आज उससे मिलने के बाद मुझे पता चला कि वो किसी और से प्यार करता है और मुझे भी धोखे में रख रहा है। मैं ये शहर छोड़कर हमेशा के लिए जा रही हूँ और हो सके तो मुझे माफकर देना।
पत्र पढ़ाते ही मानो मनोहर सुन हो गया और सारी रात उस पत्र को हाथ में लिए रोता रहा। सुबह होते ही मनोहर सफेद कमीज और कॉट पेंट उस घर से निकला। उसके हाथ में वो पुस्तक थी जिसका इस्तेमाल उसने पत्र लिखने के लिए किया था। कालेज पीछे छूट गया था, वो कॉलेज से बहुत आगे चला गया। चलते चलते अचानक उसकी व्हीलचेयर रुकी। अब वो कालेज से बहुत दूर एक नदी के किनारे था। उसके हाथ में जो किताबें थी उन पर मनोहर नाम लिखा था। मनोहर नदी के किनारे बैठ सोचने लगा। उसके ना चाहते हुए भी उसकी आँखों से आँसू बहने लगे। सोचते सोचते मनोहर एक साल पीछे पहुँच गया। उसे माया की याद आने लगी, सोचने लगा काश वो थोड़ी सी हिम्मात करके माया को बोल देता, पर डर था कि जिस तरह माही ने उसे एक शन में अपराधि सिद्ध कर दिया और बिना किसी अपराध के सबकी नजरों से गिर गया कहीं। माया को ये बताकर कि वो उससे कितना प्यार करता है, उसे भी ना खो दे।
मनोहर माया को याद करता उसी नदी के किनारे बैठकर सुबह से शाम तक रोता रहा। फिर हमेशा के लिए चुप हो गया। लोगों ने देखा कि कोई व्हीलचेयर पर सुबह से बैठा था। उन्होने पुलिस को बुलाया। पुलिस के लाख सवाल करने पर भी मनोहर कुछ ना बोला। पुलिस ने मनोहर को होस्पितल में भर्ती करवा दिया जहाँ डॉक्टर ने बताया कि मनोहर कोमा में है और किसी भी समय मर सकता है। पुलिस ने जब मनोहर के घर की तलाशी ली तो उसके कॉलेज का पता चला। पुलिस ने कॉलेज में जब पूछताछ की तो ये बात आग की तरह पुरे कॉलेज में फैल गई कि मनोहर अब इस दुनियाँ में नहीं है। जब ये बात माही को पता चली तो माही के अंतर्मन में ठेस पहुँची पर फिर भी वो चुप रही और सच ना बता पाई।
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