Kaisa ye ishq hai - 23 in Hindi Fiction Stories by Apoorva Singh books and stories PDF | कैसा ये इश्क़ है.... - (भाग 23)

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कैसा ये इश्क़ है.... - (भाग 23)

वो सभी अर्पिता को लेकर निकल जाते हैं।अर्पिता वेन में बेहोश पड़ी हुई होती है।

उधर अपने ऑफिस के केबिन में बैठ कर लंच करते हुए प्रशांत जी की आंखो के सामने अचानक से अर्पिता का चेहरा आ जाता है।उनके मुंह से अचानक ही अर्पिता का नाम निकलता है और वो निवाला छोड़ कर टिफिन बंद कर रख देते हैं।

हाथ धुल कर खड़े हो मन ही मन कहते है

ये इश्क की राहें आसान नहीं है।
कही खुशी तो कही आंखो में नमी है।
उनके एक ख्याल से उड़ जाता है चैन यहां।

उधर हजरतगंज के एक रेस्टोरेंट में बैठी हुई बीना जी अर्पिता को दोबारा से फोन करती है।रिंग जाती है लेकिन अर्पिता अटैंड नहीं करती है।शायद यहीं आसपास होगी यहीं सोच वो दोबारा कॉल नहीं करती है।

वो नकाबपोश अर्पिता का बेग चेक करते है लेकिन उसमे उन्हें कुछ नहीं मिलता।यहां तक कि अर्पिता का सेल फोन भी नहीं।क्यूंकि अर्पिता ने सेलफोन अपनी कुर्ते की पॉकेट में रखा होता है।और फोन साइलेंट मोड़ पर रखने के साथ साथ नो वाइब्रेट मोड़ पर डाला हुआ है।जिस कारण उनमें से किसी को भी शक नहीं होता है।

तीस मिनट बीत जाने के बाद भी जब अर्पिता नहीं पहुंचती है तो बीना जी अर्पिता को फिर से कॉल करती हैं।लेकिन इस बार भी उनका फोन नहीं उठता है। वो परेशान हो जाती है।उन्हें परेशान देख किरण उनसे कहती है, " मां आप परेशान मत होइए हो सकता है कहीं जाम वगैरह में फंस गई हो।पता तो है आपको कितना जाम रहने लगा है आजकल।

किरण! अगर ऐसा होता भी तो अर्पिता तुरंत जवाब देती।घर से फोन है ये जान कर वो इग्नोर नहीं करती है।दो बार कॉल कर चुकी हूं।लेकिन दोनों ही बार उसने फोन नहीं उठाया है।न जाने क्यों मुझे कुछ गलत होने का अंदेशा हो रहा है।बीना जी ने परेशान होते हुए कहा।

मां आप परेशान नही होइये मैं अभी घर पर दादी को कॉल कर पूछ लेती हुं शायद अर्पिता घर पहुंच गयी हो।हो सकता कोई इमरजेंसी आ गयी हो।हो जाता है न कभी कभी।मैं घर कॉल करती हुं।

हां हां लाली तुम बात करो बीना जी ने कहा। किरण घर फोन करने लगती है तो बीना जी रेस्टॉरेंट के बैरे को बुलाकर कॉफी का पे करने के लिए उसे आवाज देती है।

किरण - हेल्लो ! दादी मैं किरण बोल रही हूँ, वो अर्पिता का कॉल नही लग रहा है।मुझे उससे पूछना था हम लोग उसके लिए क्या पैक करा लाये।हम लोग अभी रेस्टॉरेंट में ही बैठे हुए है।

दया जी - लाली ! अर्पिता तो अभी आयी नही है।तो फिर मैं कैसे उससे पूछ लूं।।

ओह ओके दादी! मैं खुद ही उसे फोन कर पूछती हूँ।उस टाइम नेटवर्क नही आ रहा था शायद अब आ गये हो।ओके दादी बाय! कह किरण फोन रख देती है।किरण के चेहरे पर परेशानी के भाव देख बीना जी समझ जाती है कि अर्पिता अभी तक घर नही पहुंची है।

किरण - माँ वो अर्पिता अभी तक घर नही पहुंची।

मैं समझ गयी लाली।मुझे अर्पिता की चिंता हो रही है।क्योंकि वो समझदार होने के साथ साथ एक जिम्मेदार लड़की है।मैं एक बार फिर से कॉल करती हूँ।कहते हुए बीना जी अर्पिता को कॉल करने लगती है।

उधर अर्पिता को होश आता है।वो चारो ओर देखती है।उसे आसपास पुराने घुने हुए लकड़ी के फर्नीचर, कहीं जंग लगा हुआ लोहा,तो कहीं टूटी फूटी प्लास्टिक की कुर्सिया मेज जिन पर धूल ऐसे ज़मी पड़ी है मानो सालों से उन पर कपड़ा ही न मारा गया हो।

इन्ही के बीच में एक पुराने से बदबूदार गद्दे पर अर्पिता पड़ी है।उसके हाथ पीछे से बांध रखे है।चारो ओर देखते हुए उसकी नजर उसके बायें एक लकड़ी की बेंच पर पड़ती है।वो खुद को रोल कर लुढ़काते हुए बेंच तक ले जाती है और जैसे तैसे कोशिश कर उठ कर बैठ जाती है।

रोल होने के कारण उसके हाथो की रस्सी की पकड़ ढीली हो जाती है।जिसे महसूस कर वो उसे खोलने की कोशिशें तेज कर देती है।

बीच बीच में उसके कानो में आवाजे भी आती जा रही है जो कुछ यूं होती हैं।

भाई, बंदी को तो हम लोग ले आये।अब आगे बताओ करना क्या है।
अर्पिता आवाज सुनती है तो उसे पहचान जाती है और मन ही मन कहती है ये तो वही है कॉलेज के गुंडो में से एक।।इसका मतलब हमारा अपहरण कॉलेज के उन्ही छात्रों ने किया है।मतलब ये लोग नही सुधरने वाले।

हमने गलती की शैव्या के भाई को एक मौका देकर।।उसी का परिणाम है जो हम यहां है।हमे यहां से निकलना होगा।यहां से निकल कर ही हम इन लोगों को सबक सिखा सकते हैं।सोचते हुए अर्पिता दुगुनी कोशिश करने लगती है।

दूसरा बंदा कहता है " पहले उन दोनो को भी तो आ जाने दो।उसके बाद जो करना है मिल कर करेंगे" शिव ने तो उसे सिर्फ डराने के लिए उस लड़की की फोटो के साथ छेड़छाड़ की।और तो और हमे फोटो देखने तक नही दी और उसकी वजह से हम भी बाकीयो की नजरो में गिर गये।

अब कारनामा हम सब करेंगे और भुगतेगा वो शिव और ये तीखी छुरी।।

हां भाई।।दाद देनी पड़ेगी तुम्हारे दिमाग को।डिट्टो शिव के गेट अप में आये हो।कपड़ो से लेकर स्टाइल सब कॉपी कर लिया है और तो और इस लड़की का अपहरण भी उसकी ही वैन से किया है।और उन दोनो से शिव को बाकी दुनिया से दूर कर यहां लाने को कहा है।ताकि तुम अपना काम कर यहां से निकल लो और सारा दोष आये शिव पर।कहते हुए वो हंसने लगते है।

ओह गॉड! मतलब इन सब में शैव्या के भाई की कोई गलती नही है।जो भी हो रहा है वो इन लोगों की साजिश है।हमे जल्द ही यहां से निकलना होगा।कहते हुए अर्पिता अपनी कलाई को हिलाना डुलाना तेज कर देती है जिससे उसकी रस्सी खुल जाती है।

थैंक गॉड अर्पिता मन ही मन कहती है और झट से खड़े हो चारो ओर घूम कर बाहर जाने का रास्ता देखने लगती है।तभी उसका हाथ उसके फोन से स्पर्श होता है जिसे महसूस कर वो खुद का सर पीटते हुए कहती है, " ओह हो हम भी न ये कैसी स्टुपिड हरकते कर रहे है हमारे पास हमारा सेलफोन है हम इससे मदद ले सकते है बाकी रास्ता हम बाद में ढूंढ लेंगे पहले किसी को बता तो दे हमारे बारे में।मासी किरण सभी चिंतित हो रहे होंगे।

सोचते हुए अर्पिता बिन देर किये अपना फोन निकालती है और उसमे उस जगह की लोकेशन किरण को भेज देती है।वो जल्दी जल्दी एक संदेश टाइप कर लिख देती है प्लीज हेल्प।

तभी वहां आसपास कदमो की आवाज सुनाई देने लगती है।और उन दोनो की आवाजे भी पास आती हुई सुनाई देती है।

अर्पिता घबराकर जल्दी जल्दी फोन को वैसा ही अपनी पॉकेट में रख लेती है।जिस कारण उसकी अंगुली कॉन्टेक्ट्स में श्रुति के नाम पर क्लिक हो जाती है और उसे कॉल लग जाती है।

अर्पिता फुर्ती से आकर रस्सी उठा उसे हाथों से पकड़ वैसे ही बेहोशी का अभिनय करते हुए लेट जाती है।
उधर श्रुति फोन रिंग होने पर उठाती है।और हेल्लो कहती है।लेकिन कोई जवाब नही आता है।
अप्पू तुम फोन पर हो क्या ? श्रुति कहती है।लेकिन उसे अर्पिता की आवाज तो नही सुनाई देती बल्कि कुछ और आवाजे सुनाई देने लगती है।

वो दोनो जब अर्पिता के पास आकर उसे देखते है तो उसे बेहोश देख एक बंदा दूसरे से कहता है शुक्र है अभी तक बेहोश है।नही तो अभी तक यहां तांडव शुरू हो चुका होता।ये इतनी एक्सट्रा ऑर्डिनरी है न कि आसानी से वश में नही आने वाली।

दूसरा जो शिव के बाद उन लोगों का बॉस होता है वो उससे कहता है हां तभी तो इसे यहां लेकर आये हैं।शहर से दूर।।

उनकी बात अर्पिता सुन रही होती है और मन ही मन कहती है हमें झुकाना हर किसी के बस का नही है।हम खामोश है क्योंकि हमें यहां से निकलने का रास्ता ढूंढना है।

उनमे से एक वहीं जमीन पर बैठ जाता है और अपना फोन नीचे रख अर्पिता के चेहरे के बिल्कुल सामने आ कहता है बहुत गलत किया तुमने उस दिन हमारे साथ! अगर वो नही करती तो तुम आज यहां इस तरह नही पड़ी होती।।अब गलती की है तो सजा तो मिलनी चाहिए न नही तो फिर कॉलेज में सब हमारा मजाक उड़ाएंगे और हम पर ताने कसेंगे .. सो मिस तीखी छुरी गलती की सजा तो तुम भुगतोगी ...

वहीं किरण के फोन पर अर्पिता का संदेश पहुंच जाता है किरण देखती है तो बीना जी से कहती है मां हमे मलिहाबाद रोड़ पर इस जगह पहुंचना है।ये देखो अर्पिता ने लोकेशन भेजी है और साथ में लिखा भी है प्लीज हेल्प!

मुझे लग ही रहा था लाली कि हमारी अर्पिता किसी मुसीबत में है।हमे उसकी मदद को जाना चाहिए।बीना जी ने किरण से कहती है और वो दोनो वहां से निकल मलिहाबाद रोड पर जाने के लिये ऑटो पकड़ती है।

वही श्रुति फोन पर सब सुन लेती है वो अर्पिता को लेकर चिंतित हो जाती है और खुद से बड़बड़ाते हुए कहती है अर्पिता किसी परेशानी में है।कुछ तो गड़बड़ हो चुकी है उसके साथ।क्या करूँ मैं कैसे उसकी मदद करूँ।मुझे तो ये भी नही पता कि वो है कहां।क्या करूँ किससे मदद लूं।ओह गॉड! भाई! हां भाई से बात करती हूँ प्रेम भाई को कॉल करती हूँ।.. नही श्रुति वो इस समय त्रिशा के साथ होंगे।प्रशांत भाई को कॉल करती हूँ उन्होंने कहा भी था कि कोई भी परेशानी मैं उनसे बिना झिझके शेयर कर सकती हूँ।

हां यही सही रहेगा! कहते हुए श्रुति अर्पिता की कॉल को होल्ड कर प्रशांत जी को कॉन्फ्रेंस कॉल पर ले लेती है।

भाई ! I need your help ? श्रुति ने प्रशांत के कॉल उठाते ही कहा।

प्रशांत जी श्रुति की बात समझ नही पाते है।वो उससे कहते है, क्या हुआ श्रुति, बताओ क्या मदद चाहिए तुम्हे?

श्रुति - मेरी एक दोस्त है न अर्पिता वो किसी परेशानी में है मुझे नही पता क्या परेशानी है लेकिन वो परेशानी में है उसका मेरे पास कॉल आया था मैंने अटैंड किया लेकिन उसने कुछ नही कहा बल्कि वहां से कुछ और ही आवाजे आ रही है मैंने आपका कॉल कॉन्फ्रेंस पर लिया हुआ है लेकिन मुझे समझ नही आ रहा है मैं कैसे उस तक पहुँचूँ।प्लीज भाई कुछ कीजिये न?? प्लीज श्रुति ने रिक्वेस्ट करते हुए प्रशांत जी से कहा।

श्रुति की बात सुन प्रशांत की के सीने में धक सी होती है ऐसे जैसे किसी ने उन्हें आसमान से नीचे उतार फेंका हो।तनाव और चिंता एकदम से चेहरे को जकड़ लेते हैं क्या.. श्रुति ? अर्पिता .. बमुश्किल ये चंद शब्द निकले।एक पल को तो उसकी आंखों के सामने अर्पिता का हंसता मुस्कुराता चेहरा आ जाता है।लेकिन अगले ही पल वो मुस्कुराता हुआ चेहरा दर्द में बदल जाता है और अंत में गायब हो जाता है।
प्रशांत जी खुद को सम्हाल कहते है तुम चिंता मत करो श्रुति।।अर्पिता ठीक होगी।वो कमजोर नही है सबसे अलग और बेहद मजबूत लड़की है।वो खुद को सम्हालना जानती है।बस हमे मदद के लिए उस तक पहुंचना है मैं कोई न कोई रास्ता निकालता हूँ तुम परेशान न होना।मैं यहां से निकलता हूँ कोशिश करता हूँ उसे ढूंढने की।कहते हुए प्रशांत जी अपनी बाइक की चाबी उठा कर केबिन से फुर्ती से निकल जाते है।।

क्या करूँ कैसे पता करूँ अर्पिता के बारे में।नंबर की लोकेशन पता करवाता हूँ इससे मुझे पता चल जायेगा।परम से कहता हूँ वो इस मामले में एक्सपर्ट है।।सोचते हुए प्रशांत जी तुरंत परम को कॉन्फ्रेंस पर लेते है।

प्रशांत जी - छोटे! मैं एक नंबर बता रहा हूँ जरा उसके बारे में पता कर के बता कि इस समय ये नंबर कहां है।वहुत बहुत अर्जेन्ट है।

परम - ठीक है भाई ! आप नंबर सेंड कर दीजिये।मैं बस दो मिनट में पता करवा के आपको बताता हूँ।

ओके।। कह प्रशांत जी ने श्रुति से नंबर बताने को कहा।
श्रुति परम को नंबर बोल देती है जिसे प्रशांत जी भी याद कर लेते हैं।

परम कॉल रख अपनी जानकारी का उपयोग करता है और कुछ ही मिनटों में पता लगाकर प्रशांत जी को कॉल कर कहता है, भाई ये नंबर तो मलिहाबाद रोड पर थोड़ी सुनसान जगह के आसपास दिखा रहा है।

ओके।।थैंक्स छोटे। मुझे अभी निकलना होगा ! बाय कहते हुए प्रशांत जी बाइक अपनी रफ्तार से दौड़ा देते हैं।

श्रुति ये भाई गये कहां है कहां जाने की बात कर रहे थे।परम ने श्रुति से पूछा।परम की बात सुन श्रुति कहती है भाई मेरी दोस्त अर्पिता की मदद के लिए गये है ये नंबर उसी का है उसके साथ कुछ तो गलत हो रहा है।वो कॉन्फ्रेंस पर है कुछ कह नही रही है लेकिन पीछे से कुछ लड़को की आवाजे आ रही है ...!

क्या .. फिर तो जरूर ही वो कोई परेशानी में होगी मैं किरण से पूछता हूँ उसे जरूर पता होगा .. कहते हुए परम फोन कट कर देता है।

उधर वो दोनो अपनी बात कह अर्पिता को बेहोश समझ वहां से वापस बाहर की ओर चले जाते हैं ।लेकिन जाते हुए अपना फोन वहीं छोड़ जाते है।उनके जाते ही अर्पिता फुर्ती से उठ खड़ी होती है।और फिर से बाहर निकलने का रास्ता ढूंढने लगती है।वो जल्दी में फोन पर ध्यान नही देती है और वहां से दरवाजा खिड़की ढूंढते हुए दूसरी तरफ निकल आती है।

तभी वहां रखा हुआ फोन रिंग होता है जिसकी आवाज अर्पिता के साथ साथ वो दोनो भी सुनते है।फोन की रिंग सुन अर्पिता मन ही मन कहती है अभी तक रास्ता मिला नही और मुसीबत बढ़ गयी है !हमे उन दोनो के आने से पहले वहां पहुंचना होगा कहते हुए वो भी सदे कदमो से उस तरफ चल देती है .
ओह नो फोन वहीं रह गया मैं अभी लेकर आता हूँ कहते हुए उनमे से एक बंदा दौडते हुए वहां आता है .. .. और वहां अर्पिता को न देख वो चिल्लाते हुए कहता है अबे बंदी यहां नही है ढूंढ उसे ...!

आवाज सुन अर्पिता हड़बड़ा जाती है और पास ही में पड़ी प्लास्टिक की कुर्सी से टकरा जाती है जिससे आवाज होती है और वो तुरंत मुड़ कर देखता है तो अर्पिता को अपने सामने खड़ा पाता है.. ओह गॉड .. अब हम क्या करे अर्पिता परेशान होते हुए चारो ओर देख कर कहती है ....

क्रमशः ....