Kaisa ye ishq hai - 22 in Hindi Fiction Stories by Apoorva Singh books and stories PDF | कैसा ये इश्क़ है.... - (भाग 22)

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कैसा ये इश्क़ है.... - (भाग 22)

अर्पिता और प्रशांत दोनों ही अपने शुरू हुए राब्ता को एहसासों के जरिए जी रहे है।अर्पिता अपने कमरे में इस गाने पर प्रशांत जी के साथ कल्पना लोक में कपल डांस कर रही है।वहीं प्रशांत जी गिटार ट्यून करते हुए गुनगुनाते है।गुनगुनाते हुए उन्हें आभास होता है जैसे अर्पिता वहीं उनके सामने ही है।छात्रों के बीच में बैठ मुस्कुराते हुए तालियों के साथ उस गाने को एंज्वॉय कर रही है।

कुछ तो है तुझसे राब्ता.. कुछ तो है तुझसे राब्ता..
कैसे हम जाने हमे क्या पता..!

गाते हुए प्रशांत जी अपना गिटार रखते है तो सभी लर्नर खड़े होते हुए तालियों के साथ प्रशांत जी से कहते है वंस मोर सर... प्लीज वस मोर...?

प्रशांत - ना! आज के लिए इतना ही।।अब आप सभी अभ्यास करो।जैसे जैसे मै गाइड करता जाऊंगा बिल्कुल वैसे ही ट्यून करते जाना।ओके गाइज! या सर सभी ने एक साथ कहा।प्रशांत जी एक बार फिर से गिटार ट्यून करते है एक एक शब्द स्पष्ट तौर पर अपने छात्रों को बताते जाते है जिससे वो आत्मसात करते जाते हैं।

उधर हमारी अर्पिता भी खुशी खुशी में डांस करने में लगी होती है कि तभी कमरे में किसी काम से किरण वापस आ जाती है और वो अर्पिता को ऐसे खुश देख दरवाजे पर ही हाथ बांध कर खड़ी हो जाती है।अर्पिता किरण को नोटिस ही नहीं करती वो तो बस बिंदास हो गुनगुनाने के साथ साथ अपने ख्यालों की दुनिया में घूम रही है।

डांस करते करते अर्पिता पीछे टर्न लेती है कि उसकी नजर किरण पर पड़ती है।किरण को देख वो हड़बड़ा कर रुक जाती है और पलट कर छुपने के लिए इधर उधर जगह ढूंढने लगती है।

अर्पिता कुछ सोच आज तो किरण को पूरे मजे लेने का मौका मिल गया.. ओह गॉड जी!! हम करे तो करे क्या कहां जाए कहां छुपे कहते हुए अर्पिता बेड से चादर उठा उसी पर मुंह ढक कर लेट जाती है।

उसकी ये हरकत देख किरण जोर से हंसने लगती है और उसके पास आते हुए कहती है अच्छा मुझे तो तुम बिल्कुल दिख ही नहीं रही हो।

किरण उसके सिरहाने आती है और अपने हाथो से उसके मुंह से चादर हटाती है।अर्पिता कसमसाते हुए कस कर चादर पकड़ लेती है।

ये देख किरण कहती है, छुपने के लिए बेड कि जगह कौन ढूंढता है अर्पिता।और तुम अभी के अभी बाहर आ रही हो कि नहीं।

अर्पिता चादर के नीचे से ही न में गर्दन हिला देती है।

देखो मै एक बात फिर से कह रही हूं बाहर आ रही हो कि नहीं।किरण ने नकली गुस्सा करते हुए अर्पिता से कहा।और मन ही मन बड़ी खुश होती है

अर्पिता जिसे अपनी ही हरकत पर शर्म आ रही है वो चादर से बाहर निकलने से मना कर देती है।
उसकी न सुनकर किरण उठती है और अर्पिता के पैरो की तरफ जाकर चुपचाप बैठ जाती है।और बैठे ही बैठे घुटनों के बल चलते हुए अर्पिता के सिर पर आकर बैठ जाती है।

जब कुछ देर तक कोई आवाज़ नहीं होती है तो अर्पिता अपने दोनो हाथो को आंखो के सामने कर चादर धीरे से हटाती है किरण इसी का तो इंतजार कर रही है।किरण झट से चादर का सिरा पकड़ती है और खींच कर उसके पैरो कि ओर फेंक देती है।

ओह नो कहते हुए हुए अर्पिता फौरन उठती है और और दो छलांग में बेड से नीचे उतरती है और सिर पर पैर रख कमरे से बाहर भाग जाती है।

अर्पिता सुनो तो.. अर्पिता कह किरण भी उसके पीछे लपकती है।लेकिन अर्पिता जो कमरे से भागी फिर तो वो हॉल में बीना जी और दया जी के पास ही जाकर रुकती है।एवम् उन्हें देख चुपचाप मासूम सा फेस बनाकर बैठ जाती है।

किरण भी अर्पिता के पीछे पीछे आकर उसके पास ही बैठ जाती है।और फुसफुसाते हुए कहती है क्या लगा तुम्हे, कि तुम यहां आकर बैठोगी तो बच जाओगी नहीं।यहां से निकल कर जैसे ही तुम कमरे से पहुंच जाओगी तब मै देखूंगी कि मेरे सवालों से तुम बचती कैसे हो।मैंने तो कुछ कहा सुना नहीं और तुम खुद से ही मुझसे भागी भागी फिर रही हो जरूर कोई न कोई बात तो है।ही ही ही करते हुए किरण हंसने लगती है।

बीना जी अर्पिता को देख कहती है अच्छा किया लाली जो तुम आ गई।मुझे बताना था कि किरण का रिश्ता तय हो गया सभी फंक्शन के मुहूर्त वगैरह देख कर विवाह की तारीख भी छंट गई है।चार महीने बाद की तारीख निर्धारित हुई है।अब सबको अपने अपने स्तर पर तैयारी शुरू कर देनी चाहिए।
वाओ मासी! क्या बात है यानी हमारी किरण चार महीने बाद पराई हो जाएगी।और किरण की ओर देख उसके गले लग नौटंकी करते हुए कहती है तुम बड़ा याद आओगी किरण!!

किरण उसकी बात सुन गुस्से का अभिनय कर कहती है बोल तो ऐसे रही हो जैसे मै व्याह कर चांद पर घर बसाऊंगी।यहीं रहूंगी इसी लखनऊ में।

और अर्पिता से कहती है वैसे मेरे जाने के बाद नम्बर तुम्हारा ही है कहो तो लगे हाथो तुम्हारी बात भी मां से कर ही देती हूं सही रहेगा न।

ऐ चुप कर यार! कितना बोलती है।हमे अभी बख्श दे।पहले तुम हमे अपना हालचाल बताना।अगर सब सही रहा तब हम सोचेंगे।दोनों बहने ऐसे ही एक दूसरे से चुहलबाज़ी करती है।

बीना जी दोनों को देख मुस्कुराती है और किरण से कहती है किरण चलो चलकर रसोई मेरी मदद करो।और अर्पिता तुम अभी जाकर पढ़ाई करो।आधे घंटे बाद नीचे आ जाना।ठीक है।

जी मासी कह अर्पिता अपने कमरे में चली जाती है।और झट से दरवाजा बंद कर कहती है।शुक्र है कुछ देर के लिए तो हमें किरण की छेड़खानी से छुटकारा मिला।अगर यहां होती तो सच में सुना सुना कर हमे शर्मसार ही कर देती।

हम भी न एक नम्बर की झल्ली है क्या जरूरत थी ऐसे मस्त मगन होकर डांस करने की।माना कि हम संगीत के विद्यार्थी है तो इसका अर्थ ये तो नहीं कि हम कहीं भी शुरू हो जाए।

एक मिनट! ये हम खुद को दिलासा दे रहे है या फिर अपने डर को छिपा रहे है कि कहीं किरण हमारे मन की बात किसी के सामने बोल न दे।अर्पिता कमरे में इधर से उधर घूमते हुए कहती है।

ओह गॉड! ये हम खुद से कुछ ज्यादा ही बातें करने लगे है।हम ऐसे तो नहीं थे!!ओह गॉड ये प्रेम का अनुभव तो सच में बड़ा ही विचित्र है।
कल हम उससे कह रहे थे कि फुसफुसाना बंद कर कोई पागल न समझ ले और आज हम खुद ही अकेले पगला रहे है।अर्पिता कुछ कर! स्टॉप दिस नॉनसेंस थिग।ओह गॉड कहते हुए वो सीधा बाथरूम में भागती है और मुंह पर ढेर सारा पानी उड़ेल लेती है।फिर टॉवल ले बाहर आ जाती है।

उधर प्रशांत जी भी अपने रूम के लिए निकल जाते है।जहां उन्हें भी इस खुश खबरी के बारे में पता चलता है।ये बात सुन कर वो सोचते है, ये तो बहुत खुशी की बात है इसी बहाने मुझे अर्पिता को और अच्छे से जानने समझने का मौका मिलेगा।

हाय मुद्दतो बाद कोई ऐसा मिला है जिसने मेरी प्रशांत द ग्रेट की अटैशन चुराई है।।कहते हुए वो मुस्कुराता है और अपने सोशल अकाउंट के पेज को ओपन करता है और कुछ लाइन लिख कर अपडेट करता है ..

यूं तो आदत नहीं मुझे मुड कर देखने की... तुम्हे देखा तो लगा .. एक बार और देख लूं..!!( गुलज़ार साहब)

मोबाइल बंद कर एक तरफ़ रख देता है और कानों में हेड फोन लगा जगजीत साहब की कुछ गजलें सुनने लगते हैं।

हमारी अर्पिता और किरण भी दोनों फ़्री होकर अपने कमरे में बिस्तर पर लेटे हुए बातें करते हुए फोन चला रही है।

किरण - अर्पिता ये देख आजकल सोशल साइट्स पर तो कहीं खुशी कहीं गम वाला मौसम छाया है।ये देख मैंने कुछ ग्रुप ज्वाइन कर रखे है नेचर, एजुकेशन से रिलेटेड वहां भी कितने सारे ऐसे पोस्ट पड़ें है जिनका उस ग्रुप के मकसद से कुछ लेना देना नहीं लेकिन फिर भी वहां है।और लोग बड़ी ही खुशी से उन्हें वहां पसंद कर रहे है।

हां किरण! इससे पता चलता है दुनिया में कितना गम कितना अकेलापन है।लोग इतने व्यस्त हो गए है कि उनके बस एक दूसरे से बात करने तक का समय नहीं है।उफ्फ..!शुक्र है हमारे पास तुम हो हमारे दोस्त है मासी है।सब मिलकर एक दूसरे की तकलीफ बांट लेते है।अर्पिता सोच कर मुस्कुराते हुए किरण से कहती है और अपना फोन बन्द कर खुद भी किरण के साथ साथ सोशल साइट के ग्रुप को देखने लगती है।

वो दोनो ही मस्त मगन फोन चला रही है कि तभी अर्पिता की नज़र कुछ लाइनों पर ठहर जाती है..!

कुछ खट्टे कुछ मीठे से
एहसासों के ये धागे कुछ उलझे से तो कुछ सुलझे से
इन्हीं एहसासों से रूबरू कराते कुछ अल्फ़ाज़ ..
शान की कलम से....।। हे किरण रुक न।इस पर क्लिक कर..? ये पेज क्या नाम है इसका ' इश्क़ द वर्ल्ड ऑफ डिवाइन फीलिंग्स '।अर्पिता ने किरण से कहा।ओके कह किरण उस पेज पर क्लिक करती है।और फोन अर्पिता को पकड़ाते हुए कहती है, तू ये पकड़ और देख मै अभी आती हूं शायद मेरा दूसरा फोन रिंग हो रहा है।

ओके समझ गए हम अर्पिता ने शरारत से कहा।जिसे सुन किरण उसके सिर पर चपत लगाते हुए उठ कर बालकनी में चली आती है।

अर्पिता उस पेज को देखती जाती है।कुछ पोस्ट पढ़ने के बाद वो कहती है सच में सही नाम दिया है ' इश्क़ द डिवाइन ऑफ फीलिंग्स ' वो अपने फोन से पेज सर्च कर उसे लाइक कर लेती है और किरण का फोन रख नींद कि आगोश में चली जाती है।

अगले दिन किरण कॉलेज जाती है जहां वो श्रुति सात्विक से मिलती है।एवम् तीनों क्लास ले बगीचे में बैठ कर आपस में बातचीत कर रहे है।अर्पिता को बार बार ये एहसास हो रहा है कि उनके आसपास कोई है जो उन पर नजर रख रहा है।वो चौकन्नी निगाहों से चारो ओर देखती है लेकिन उसे कोई नजर नहीं आता।..

शायद वहम ही है सोच कर अर्पिता अपने दोस्तो के साथ बातचीत में शामिल हो जाती है।
उसके बातो में शामिल होते ही अर्पिता की बेंच के पास खड़े झाड़ जैसे घने पौधों के पीछे से कुछ छात्र बाहर निकलते है ..और घड़ी में समय देख वहां से कॉलेज के दरवाजे की तरफ बढ़ जाते हैं।

कुछ ही देर बाद अर्पिता अपने दोस्तो को बाय कह कॉलेज से निकलती है।वो आदतन अपना फोन चेक करती है जिसमें बानी जी का संदेश एक मिस्ड कॉल के साथ पड़ा होता है।

बानी जी - अर्पिता , लाली मुझे किरण मेरे साथ काम से हजरतगंज जाना है तुम भी वहीं आ जाना।

अर्पिता संदेश देखती है तो बीना जी को कॉल करती है।

अर्पिता : हेल्लो, मासी! कहां है आप? हम कॉलेज से निकल आए है आप हमे जगह बता दीजिए हम वहीं पहुंच जाएंगे।

बीना जी - लाली हम लोग हजरतगंज के चौराहे के पास जो बड़ा सा रेस्टोरेंट है न अभी वहीं बैठ कर तेरा इंतजार कर रहे हैं।किरण ने बताया कि तेरा कॉलेज क्लास तो खतम हो गई होगी मार्केट में कहां परेशान होते फिरेंगे इसीलिए सोचा रेस्टोरेंट में ही बैठ कर इंतजार कर ले।

ठीक है मासी हम अभी चारबाग पहुंच चुके है और बस उतरने वाले है।हम अभी कुछ ही देर में आपके पास पहुंच रहे हैं।अर्पिता कहती है।
ठीक है लाली। बाय।कह बीना जी फोन रख देती है।

अर्पिता चारबाग पहुंच ऑटो से उतर जाती है।और ऑटो चेंज करने के लिए दूसरी तरफ जाने के लिए अपने कदम बढ़ाती है तभी ब्लैक रंग की एक वैन उसके सामने आकर रुकती है जिसमें से कुछ नकाबपोश दरवाजा खोलते है और फुर्ती से अर्पिता को अंदर खींच दरवाजा बंद कर गाड़ी मलिहाबाद रोड की ओर दौड़ा देते है।..

अर्पिता कुछ कहती या चिल्लाती उससे पहले ही उनमें से एक व्यक्ति उसके सर पर वार कर उसे बेहोश कर देता है ... ।

क्रमशः ...