"मैं क्या समझाऊं माँ? दीदी गलत क्या कह रही है मुंबई के बड़े आईटी कंपनी में उन्हे इंटर्नशिप करने का मौका मिला है फिर वह क्यों न जाये?"
"शिवम!?" अचानक रिया की माँ गुस्से से तमतमा उठी।
शिवम पर हाथ उठाने जाने वाले थे कि रिया ने उनका हाथ थाम लिया "बस मां बच्चा है।"
अचानक अपने ही किये जाने वाले कृत्य पर शर्मिंदा हो रोने लगी। मेरी तो किस्मत ही फूट गई मुझे लगा पिता के जाने के बाद बेटी सहारा बनेगी। बड़े पढ़ा लिखा कर इंजीनियर बनवाना चाहते थे इंजीनियर की डिग्री हाथ में आने से पहले ही अल्सर के कारण चल बसे।
अब मैं कहां जाऊं महादेव अब तू ही बता रिया कि माँ अपने फुटे किस्मत भगवान के मंदिर के सामने आसू बहाने लगी। यह सब ड्रामा संभालने की जिम्मेदारी शिवम पर थी, शिवम मां के पास गया।
भगवान की मंदिर के सामने सिर टिकाए खड़ी मां का हाथ पकड़ते हुए -"दीदी कहीं नहीं जा रही है मां" अचानक माँ की आंखे चमक उठी और रिया की आंखे बड़ी हो गई।
रिया कुछ बोलने ही जाए इससे पहले शिवम ने पीठ पीछे हाथ कर थोड़ा सब्र करने का इशारा किया रिया समझ गई और चुप हो गई।
मांँ खुशी से फूले नहीं समा रही थी। शिवम का माथा चुमते हुए और रिया को गले लगाते हुए "मेरे दो अनमोल रतन" दोनों मांँ के बगल में ही थे एक दूसरे को घूरे जा रहे थे रिया की आंँखो में शिवम के लिए गुस्सा भर चुका था पर शिवम को यह पता होने के बावजूद वह होठों में बुदबुदाया "छत पे...'"
रिया शिवम के बिना बोले ही उसके होठों की भाषा समझ गई।
कुछ देर बाद दोनों छत पर थे। छत के उतरते सीढ़ी पर बैठ आंगन में लगे आम के पेड़ की तरफ घूरे जा रहे थे। कोई किसी से बात नहीं कर रहा था।
गाड़ियों की, ठेलों की आवाज आ रही थी फिर भी उन दोनों के बीच खामोशी कांटे की तरह चुभ रही थी।
उस शांति का अंत करते हुए- "तुमने ऐसा क्यों किया शिवम?"
शिवम निसतेज होकर रिया को देखे जा रहा था अपने घुटनों से सिर को उठाते हुए बोला-"तुम्हारी कल कितने बजे की ट्रेन है'?"
'"7:00 बजे की।"
"हूँ..."
"क्या हुआ कुछ बोलते क्यों नहीं?"
"कुछ नहीं" शिवम की आंखें आंसूओ से भर चुकी थी।
पर उसके दीदी को पता ना चले इसलिए अपने आंसुओं को संभालने की कोशिश कर रहा था।
"आज रात को मां को बरामदे के बाजू वाले कमरे में सुला देगे।"
"तुम्हें पता है ना वहां कितनी ठंड होती है!?"
शिवम के चेहरे पर कोई भाव नहीं थे, मन दुख से भर चुका था गला बैठे जा रहा था, दिल अंदर से कमजोर पड़ता जा रहा था फिर भी वह यह चाहता था कि रिया अपने सपनों को पूरा करें।
"पता है। लेकिन अगर माँ वहां सोएगी तो उन्हें देर रात तक नींद नहीं आएगी फिर अगर वह देर से सोएगी तो जल्दी उठ नहीं पाएंगी तुम मौका देख कर निकल जाना; मैं तुम्हें 4:00 बजे उठा दूंगा।"
रिया इसी सोच में डूबी हुई थी कि आखिर यह सब कैसे होगा? और ऊपर से शिवम उसके बाद सब कैसे संभाल लेगा? अभी तो वह नादान है अगर उसे किसीने बहका लिया तो? एक तरफ रिया का भी मन डोलने लगा था जाऊं या ना जाऊं?
"क्या सोच रही हो?" शिवम ने रिया का ध्यान तोड़ते हुए पूछा।
"शिवम अगर मैं चली गई तो घर का क्या होगा? तू इतना सब कुछ कैसे संभालोगे? मां क्या सोचेगी ?क्या मैं गलत तो नहीं?"
शिवम एक दुःखभरी मुस्कान हंसते हुए- "अगर तुम रह भी गई तो क्या यहाँ खुश रह पाओगी?
इतने सालों से बाबा ने जो कष्ट उठाए तुम्हारे पढ़ाई के लिए वह क्या प्रदीप से शादी करने से पूरा हो जाएंगे?
प्रदीप से शादी करने के बाद क्या तुम अपने सपनों को पूरा कर पाऊंगी? अगर तुम कल प्रदीप के साथ खुश नहीं रही तो क्या मां तुम्हें संभाल लेंगी?"
"माँ, बाबा के जाने के बाद पूरी तरह बदल चुकी है। उन्हें सिर्फ आज की खुशियां आज की जिंदगी दिख रही है पर कल का क्या? आज मैं जी कर कल के बारे में सोचने में ही इंसान की भलाई है।"
हम आज प्रेजेंट में खड़े हैं जो हर एक पल के साथ बदल रहा है। हम अपने पास्ट को चाहे भी तो नहीं बदल सकते और रहा फ्यूचर जो हमे पता नहीं फिर हम पल-पल बदलते प्रेजेंट के साथ क्यों ना कोशिश करें हमारे कल को बदलने की। अचानक शिवम की यह बातें सुन रिया की आंखें चमक उठी - "तू इतना कब होशियार हो गया?"
शिवम के चेहरे पर झूठ मूठ की हंसी खिल गई - "बचपन से ही होशियार हूं।"
प्लान के मुताबिक शिवम ने माँ को यह कह के बरामदे के बाजू वाले कमरे में सुलवाया की उसकी कल सराव परीक्षा है और अगर वो वहाँ सोया तो जल्दी पढ़ाई करने नहीं उठ पाएगा। पढ़ाई की बात सुन शिवम की मां झट से मान गई।
शिवम माँ- बाबा के कमरे में सो गया और माँ उस कमरे में जहां खिड़की खुली होने के कारण दिन रात हवा आती जाती रहती है।
शिवम के प्लान के मुताबिक उसकी माँ जल्दी जाग ही नहीं पाई।
शिवम ने 4:00 बजे जाकर रिया को उठाया, सब सामान पैक करने में रिया की मदद की और आखिरकार दोनों गांव की सरहद पर पहुंच गए।
"तु मां को संभाल लेंगा ना?"
"नहीं.. "
"दसवीं में अच्छा नंबर लायेगा ना?"
" नहीं..."
"मस्ती करके सब को परेशान करेगा?"
"'हां... बहुत परेशान।"
" तु मुझे बहोत रुलाएगा?"
"हा बहोत।"
रिया की आंखों में आंसू थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे, भले ही वह अपना घर छोड़ मुंबई जा रही थी लेकिन उसे ऐसा लग रहा था मानो वो इस घड़ी के बाद ऊस घर पर सारे हक खो देने वाली हो और माँ....
माँ का तो उसने दिल तोड़ा था।
शिवम के आंखों में भी आंसू थे लेकिन बहन की खुशी के सामने उसे कुछ मायने नहीं रखता था।
रिया की आँखों में पानी भर चुका था, दवाई का असर कब का खत्म हो चुका था लेकिन किसी को पता ना चले इस वजह से बस वह बिस्तर पर लेटी थी और मन में खुद को कसूरवार मान रही थी।
I am the loser. जीवन हमेशा सही था और मैं शायद हमेशा गलत। नाहीं मैं एक अच्छी बेटी बन पाई, नाही एक अच्छी प्रेमिका, नाही एक अच्छी एम्प्लॉय।
"I am the loser...."
रिया को कुछ दिन बाद हॉस्पिटल से डिस्चार्ज मिल गया। वो घर आ गई थी लेकिन रिया कि जिंदगी में अब पहले जैसा कुछ नहीं था।
जैसे ही रिया का डिस्चार्ज हुआ उसके 2 हफ्ते बाद पुलिस ने उससे पूछताछ की यह खबर ऑफिस में पता चलते ही रिया को 6 महीने की छुट्टी पर Get Well Soon कहके भेज दिया।