Lights - 2 in Hindi Fiction Stories by Divya Sharma books and stories PDF | रोशनी - 2

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रोशनी - 2

खट खट खट ….खट खट खट…..उसके दिमाग में एक शोर सुनाई दे रहा था जैसे कोई पुकार रहा हो….रौशनी…..रौशनी… रौशनी… अचानक उसकी आँख खुल गई।दरवाजे पर कोई था।
फिर से किसी ने उसका नाम लेकर पुकारा…”रौशनी...रौशनी….!”
शब्बो आपा की आवाज थी।वह हड़बड़ा कर उठी।
“आई….आपा….!”अगले पल वह दरवाजे के बाहर थी।
“क्या हुआ आपा?”अंगडाई लेते हुए वह बोली।उनींदी सी….बाल माथे पर बिखर गए थे….आँखों का काजल रोने की वजह से गाल पर फैल गया था।इस पर कसावट लिए चोली।रुप तो गढ़कर दिया था ऊपर वाले ने।
“इतनी देर तक सो रही थी!”आश्चर्य से शब्बो ने पूछा।
“और आँखों के नीचे इतनी सूजन!क्या हुआ रौशनी?”
“कुछ नहीं आपा देर तक सोने से हुआ होगा।अच्छा हुआ जो जगा दिया।”बात बदलते हुए वह बोली।
“मुझे तो चिंता हो गई थी कि अबतक कैसे सोई हुई है ये लड़की।दस बज गए हैं।”शब्बो ने कहा।
“चलो आपा!आती हूँ मैं।”इतना कह वह बाथरूम में घुस गई।
रात को कबीर का उसके सामने खुद को रखना उसे याद आ रहा था।रोज तो सेठ के साथ….फिर क्यों इच्छा है कि कबीर….शॉवर को खोल वह उसके नीचे खड़ी हो गई।बार बार कबीर का चेहरा उसके सामने आ रहा था।

आज तीन दिन बीत गए लेकिन कबीर नहीं आया और न ही उसकी कोई खबर।पता नहीं उसकी बेटी कैसी होगी।एक बार बस पता चल जाता कि बच्ची ठीक है।तसल्ली हो जाती जी को।किसी को पूछे भी तो कैसे!कोई नहीं जानता कि उसकी एक बेटी भी है।इन बदनाम गलियों में उस बच्ची का जिक्र भी नहीं होना चाहिए।निगाहें हमेशा सड़क पर ही रहती उसकी।
आज भी ऐसे ही बैठी थी तभी सेठ आ गया और वह उसके साथ कमरे में चली गयी।
दो पैग बना कर वह सेठ के नजदीक बैठ गई और चुपचाप पीने लगी।दिमाग तो कहीं और था उसका।
“क्या बात है!आज परेशान हो?”सेठ ने उसके चेहरे को देखकर पूछा।
“हाँ..ऊँ...न.. न..सेठ!परेशान काइकू होयेगी मैं।”हँसते हुए वह बोली।
“तबीयत ठीक है ना!देख कोई परेशानी है तो बता।”ड्रिंक पीते हुए वह बोला।
“हमें क्या परेशानी हो सकती है सेठ!तू अपना टाइम क्यों खोटी करता है।वो कर जिसके लिए आया है।”इतना कह वह अपने ब्लाउज के बटन खोलने लगी।
“क्यों तू इंसान नहीं है क्या?रौशनी के हाथ को रोककर सेठ ने कहा।”तूझे क्या लगता है सिर्फ तेरे साथ सोने इधर आता हूँ!कमी है क्या मुझे लड़कियों की।पैसा देकर शराफत का नकाब पहनी औरतें भी साथ सोने आ जायेगी।”
“फिर काइकू आता है सेठ इन बदनाम गलियों में?”आश्चर्य से वह बोली।”पहली बार किसी ने अपून को इंसान बोला।वरना सब रण्डी, धंधे वाली….छिनाल..ऐसाइच बोले।तू बुरा आदमी नहीं है रे।बहुत अच्छा है तू।”

“क्या अच्छा और क्या बुरा!”कहकर वह कश खींचता हुआ खड़ा हो गया।अपने कोट को उठाते हुए बोला…”लगता है तूझे किसी से प्यार हो गया है रौशनी।”और उसके गालों को थपथपा कर बाहर निकल गया।वह चकित हो खड़ी रह गई।यह कौन सा रुप है आदमी का समझ नहीं पा रही थी।जो आदमी रोज बीवी को छोड़ उसके पास आता है वह भी मन से इतना नरम!
कुछ देर बैठी सिगरेट पीती रही फिर कमरे से बाहर निकल गई।सामने शब्बो खड़ी थी रहस्यमय भाव के साथ…
“आज सेठ जल्दी कैसे चला गया?”उसने सवाल किया।
“तबीयत ठीक नहीं थी उसकी।”इतना कह वह रेलिंग पर झुककर रास्ते को देखने लगी।
“किसे ढूंढ रही है!कबीर को?”शब्बो ने पूछा।
“क्या आपा!उसे क्यों ढूंढेगी मैं।”
“देख रौशनी तू औरो से चाहे लाख छिपा ले पर मुझसे नहीं छिपा सकती।इतने दिनों से नहीं दिखा इसलिए परेशान हैं तू,प्यार तो नहीं करने लगी उससे?”शब्बो ने उसके चेहरे को टटोलते हुए कहा।
“हा...हा….हा..धंधे वालियाँ रोज प्यार करती है।”वह हँसी।उसके दिल का दर्द उसकी हँसी में दिख रहा था। “हम रोज आशिक बदलती है फिर किसी एक से कैसा इश्क!”
“कभी हमें भी प्यार कर ले रौशनी रानी!”सीने पर हाथ मलता हुआ जहीर सामने आ गया।मुँह में पान में पान का रस टपक रहा था जैसे एक साथ ठेर सारी गिलौरियां ठूस ली हो।रौशनी ने घृणा से उसकी ओर देखा..।।
“अरे जानेमन आज हम से पैसा ले ले और चल साथ में तुझे अंग्रेजी सिनेमा दिखाऊंगा।फिर वैसे ही प्यार करूंगा।”कमीने पन से वह हँसा।
“देख जहीर!तेरे मुँह नहीं लगती मैं।निकल ले यहाँ से।”गुस्से से फुंफकारते हुए रौशनी ने कहा।
“गुस्सा काहे हो रही है मेरी जान!देख आज बहुत माल है मेरे पास।”दस दस हजार की दो गड्डियाँ निकाल कर उसनें रौशनी के चेहरे के सामने हिला दी।
“साले निकल यहाँ से…..तेरे जैसे कमीनों के कारण ही भोली भाली लड़कियाँ यहाँ बर्बाद होने आ जाती है।इस बार कहाँ से लाया तू अपना शिकार?”रौशनी का गुस्सा बढ़ता जा रहा था।
“ज्यादा दिमाग मत लगा साली।थोबड़ा अच्छा है तेरा बस इसलिए ही तेरी गाली सुन लेता हूँ।औकात में रह अपनी।आक थू.।।”
“चल निकल ले हरामी वरना तेरा मुँह नोंच लूंगी।”रौशनी उसे धकेलते हुए बोली।
“रौशनी बस कर!”शब्बो ने रौशनी को वापस खींचते हुए कहा।
“पागल है क्या तू!ऐसे झगडा करेगी तो यहाँ रह पायेगी क्या?सबसे अच्छा इलाका है यह हम धंधे वालियों के लिए।यहाँ से निकल गई तो कहीं ठिकाना नहीं मिलेगा,समझी!”
“मेरे को नहीं समझना।”कंधे उचकाते हुए रौशनी ने कहा।”अपन डरती नहीं है ज्यादा से ज्यादा मार डालेगा ना!अभी कौन सा जिंदा है हम।”पैरों को पटकते हुए वह कमरे में चली गयी।

अभी कुछ देर ही हुई थी कि दरवाजे पर फिर से दस्तक हुई।वह वैसे ही औंधी लेटी रही।पर दोबारा जोर से दस्तक हुई।वह चिढ कर उठी और चिल्लाई….”साले कौन है!”पर प्रतिउत्तर मे फिर से किसी ने दरवाजा खटखटाया।रोशनी गुस्से से उठी और फिर बोली…”कौन है बे भूतनी के?”
“मैं कबीर !”
“तू!”वह भाग कर दरवाजा खोल देती है और आँखों में प्रश्न लिए खड़ी हो जाती है।
“तू,साले पागल है क्या!”वह गुस्से में बोली
“अंदर आ जाऊं क्या?”कबीर ने कहा।
“आ।”वह दरवाजे से हटते हुए बोली।
“तू कहाँ था?कम से कम खबर तो दे जाता बच्ची कैसी है!”लेकिन अपून को क्यों बतायेगा।मैं है कौन?”वह चिढकर कबीर को बोली।
“वो ठीक है अब और रौशनी तू तो फरिश्ता है मेरे लिए।तूने उस समय मेरी मदद की जब मुझे कोई रास्ता नहीं दिख रहा था।तू उस समय अगर पैसे न देती तो!”कह कर कबीर भावुक हो गया।
“ऐ साला!मैं कोई एहसान नहीं की।पागल हो गया है क्या?ऐसा काइकू बोल रहा है रे।”
“मैं हमेशा तेरे से बुरी तरह बोलता था लेकिन तू फिर भी मेरेको पैइसा दी।तेरा पैसा जल्दी लौटा दूंगा मैं।”
“मैं तेरे से पैसा मांगी क्या?साला कर दिया ना छोटी बात।माना अपून लोगों की औकात नही है पर दिल तो है और वो तेरी बच्ची है और तू तो….।

मैं क्या रौशनी!बोल ना मैं क्या?”
“कुछ नही दिमाग खोटा मत कर।”
“तू बहुत अच्छी है रे।तेरे साथ इतना खराब बोला फिर भी तू!”कबीर एकदम रौशनी के गले लग गया।
“तो मैं कौन सा तेरी आरती उतारती थी रे।साला नौटंकी मत कर।मुझसे ये अच्छा आदमी टाइप तू अच्छा नहीं लग रहा है।अच्छे आदमी से डरती है मैं।”उसे हटाते हुए वह बोली।
“तो कैईसा आदमी बन कर बात करूँ तू बता।अपून वेसाइच बनेगा।”वह बोला।

क्रमशः




क्रमशः