What kind of me- Alka Sinha in Hindi Book Reviews by राजीव तनेजा books and stories PDF | मुझसे कैसा नेह- अलका सिन्हा

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मुझसे कैसा नेह- अलका सिन्हा

आम तौर पर जब हम नया नया पढ़ना शुरू करते हैं तो हमें पता नहीं होता कि किसे हम पढ़ें और किसे नहीं। ऐसे में रामबाण औषधि के रूप मे आँखें मूंद कर अन्य लोगों की तरह हम भी बड़े लेखकों और उनके रचनाकर्म को ही अपना मनमीत बना, उस पर अपने अध्यन के श्रद्धा रूपी पुष्प सुमन अर्पित कर खुद को कृतार्थ समझने लगते हैं। हमारी ज़्यादातर प्राथमिकता बड़े लेखकों...बड़े प्रकाशकों के नामों की रहती है और इस चक्कर में समकालीन एवं नवांगतुक नाम हमारी वरीयता की सूची में आने से बचे रह जाते हैं जबकि उनका लेखन भी कई बार अव्वल दर्जे का होता है।

इस बार अपने समकालीन रचनाकारों की बात करते हुए मैं प्रसिद्ध लेखिका अलका सिन्हा जी के कहानी संग्रह "मुझसे कैसा नेह" की बात करना चाहूँगा। धाराप्रवाह लेखनशैली में लिखी गयी उनकी कहानियाँ बेशक हमारे आसपास दिख रहे किरदारों एवं घट रही घटनाओं को ले कर ही बुनी गयी हैं मगर फिर भी अपने आप में अनूठी हैं। लीक से हट कर प्रयोग में लाया गया उनका ट्रीटमेंट ही उन्हें भीड़ से अलग एवं विशिष्ट बनाता है।

उनके इस कहानी संकलन की किसी कहानी में घरों में काम करने वाली एक युवती अपनी मालकिन की देखादेखी अपनी बेटी को भी बड़े स्कूल में पढ़ाना चाहती है और उसके लिए भरसक प्रयास भी करती है। मगर क्या अपने इस प्रयास में वो सफल हो पाती है?

एक अन्य कहानी इस बात की तस्दीक करती है कि लज़ीज़ व्यंजनों से कहीं आगे की चीज़ है भूख और उसका वजूद में होना। साथ ही नरम आरामदायक बिस्तर से ज़्यादा ज़रूरी है..चैन की नींद सोना।

उनकी कोई कहानी अगर बताती है कि बदलते वक्त के साथ पति पत्नी की आदतों और स्वभाव में परिपक्वता तो आ जाती हैं लेकिन अंदर ही अंदर हम अपने साथी में वही पुराने दिन..पुराना अल्हड़ रोमानीपन ढूँढते रह जाते हैं। तो वहीं कोई कहानी नयी और पुरानी पीढ़ी की सोच में आते फर्क को इंगित करते हुए कहती है कि..अपने अच्छे संस्कार..अच्छी बातों के लिए हम चाहते हैं कि हमारी आने वाली संताने या पीढ़ियाँ भी हमारे ही नक्शेकदम पर चलें मगर क्या असलियत में ऐसा संभव हो पाता है?

उनकी एक कहानी रिटायर होने की उम्र के ईमानदार पिता की व्यथा बताती है कि उसका होनहार बेटा जब परीक्षाओं में अव्वल आने पर भी रिश्वत ना देने की वजह से जब अपनी योग्यतानुसार कही नौकरी नहीं पा पाता। तो ऐसे में व्यथित हो, वह(उसका पिता) आत्महत्या करने तक का प्रयास करता है कि उसके ही दफ़्तर में सहानुभूति के चलते उसके बजाय उसके बेटे को नौकरी और रहने को घर मिल जाए।

कहीं किसी कहानी में किसी घर में किराए पर अकेली रहने आयी एक युवती अपने एकाकीपन से होने वाली ऊब से बचने और अपने मन के उदगारों को व्यक्त करने के लिए एक पेड़ से दोस्ती कर लेती है और उससे ही मन की व्यथा कथा कह सुन कर अपने मन को हल्का कर लेती है। तो किसी कहानी में आँखों से लाचार एक युवक अपनी हीन भावना से ग्रस्त हो कर अपने लिए आए सुन्दर युवती के रिश्ते को अपने छोटे भाई के लिए चुन तो लेता है। मगर उसके बाद उसी युवती की घर में तारीफें सुन सुन कर उससे कुड़ने..खीजने एवं जलने लगता है। तब उस युवती के प्रयासों से कुछ ऐसा होता है कि उनके आपसी रिश्ते पुनः सौहाद्रपूर्ण हो..जीवित हो उठते हैं।

कहीं किसी कहानी ताइक्वांडो में कई राष्ट्रीय पुरस्कार जीत चुका युवक चीन जा कर वहाँ की प्रतियोगिता में गोल्ड मैडल जीतना चाहता है जिसके लिए उसकी भाभी भी उसे बहुत प्रोत्साहित करती है। मगर पैसे की कमी के चलते वो चीन नहीं जा पाता और हालात से समझौता कर खुद को मोल्ड करता हुआ यहीं दुनियादारी में रम जाता है।

एक अन्य कहानी में बरसों बाद एक युवती अपने नॉस्टेल्जिया से वशीभूत हो कर जब अपने बचपन के घर..अपने मायके कुछ दिन रहने के लिए पहुँचती है तो पाती है कि घर से उसे जोड़ने वाली उसके बचपन की तमाम चीज़ें..सभी यादें हटाई या फिर बदल दी जा चुकी हैं तो व्यथित हो बुझे मन से वह तुरंत वापिस लौटने का फैसला कर लेती है।

एक अन्य कहानी में बड़े प्रेम..जतन एवं उल्लास के भाव से पहली बार अपने पति के लिए स्वैटर बुन रही युवती की बात है कि किस तरह उस स्वैटर को पति को दिखाने से पहले ही उसकी बेटी अनजाने में एक भिखारी को दे..उसे उसके एक पुराने हो..लगभग भुलाए जा चुके कर्ज़ से मुक्त कर देती है।

किसी कहानी में अभिभावकों द्वारा अपने बच्चों की सुरक्षा के लिए सशंकित एवं चौकस रहने की बात है तो किसी कहानी में लापरवाह पति की आदतों से त्रस्त पत्नी को विवाह के 18 वर्षों बाद किसी का प्रेम पत्र मिलता है। जिसमें प्रेम प्रदर्शन के अलावा बाहर उससे अकेले में मिलने का निवेदन भी है।

इसमें दो बहनों की एक कहानी है जिसमें एक बहन अपनी माँ की डांट और दूसरी बहन को ले कर अपने साथ होते पक्षपात से नाराज़ हो कर अपने घर से बाहर निकल तो जाती है मगर रात होते ही उसका अपने घर..अपने परिवार के प्रति मोह फिर से उमड़ पड़ता है और वह पुनः अपने घर जाने के लिए लालायित हो उठती है जहाँ पर सब उसे प्यार करते हैं।

एक अन्य कहानी में जहाँ एक तरफ गांव में रह रहा युवक जब अपने बड़े भाई को बरसों बाद अपने परिवार के साथ गांव लौटते देखता है तो बंटवारे के डर से संशकित हो उसकी हर बात..हर मदद..हर सहानुभूति को शक की नज़र से देखने लगता है। तो वहीं दूसरी तरफ एक अन्य कहानी में एक युवती को जब उसके चीफ द्वारा हवाई अड्डों पर विस्फोटक की जांच से संबंधित सेमिनार के लिए चुन कर भेजा तो जाता है तो वह खुद को भाग्यशाली समझती है। मगर उसकी ही लापरवाही एवं चौकस ना रहने से उसका सब ज्ञान..सब समझदारी धरी की धरी रह जाती है जब उसकी चूक से सवारियों भरे उस यात्री जहाज़ को बम से हवा में उड़ा दिया जाता है जिसमें एक बड़ा नेता भी सफर कर रहा था।

एक अन्य कहानी में गाड़ियों के शोरूम का मालिक अपने सपने में खुद को मरा हुआ पाता है और उसी सपने के फ्लैशबैक में जा कर वह देखता है कि किस तरह वह अपने गुणी छोटे भाई का हक़ मार कर खुद मालिक बने बैठा है। सपने में ही पश्चाताप करते हुए अपने भाई को उसका हक़ देने के बाद देखता है कि उसका भाई अब उसके हर किए का उससे बदला ले रहा है। ऐसे में जागने के बाद अपने छोटे भाई के लिए बीच का कोई रास्ता निकालने की वह कुछ फैसला कर लेता है कि साँप भी मर जाए और लाठी भी ना टूटे।

एक अन्य कहानी में हिंदू मुस्लिम प्रेम विवाह से गर्भवती हुई एक युवती के पति को उसके(लड़के के) पिता के खाप पंचायती आदेश के बाद, उसके अपने संबंधियों द्वारा ही मौत के घाट उतार दिया जाता है। ऐसे में अपनी वर्तमान स्थिति से निराश हो युवती नारी निकेतन में अपना आसरा खोजने की सोचती है तो संयोग से उसे अवसादग्रस्त एक ऐसा बुजुर्ग मिलता है जो अपनी बाकी की बची हुई ज़िन्दगी के लिए वृद्धाश्रम खोज रहा है। किस्मत के मारे दोनों एक साथ बाप बेटी की तरह रहने लगते हैं मगर क्या होता है जब असलियत से पर्दा हटता है?

सिद्धांतवादी प्रोफ़ेसर पिता का बेटा जब अपने पिता के कहे अनुसार उनके सिद्धांतों पर नहीं चल पाता तो एक दिन उन्हें अकेला छोड़ खुद अलग रहने लगता है। ऐसे में सहानुभूति वश उसकी मित्र जो प्रोफ़ेसर की शिष्या भी है, उनसे बेटे से समझौता कर लेने का आग्रह करती है जो हार्टअटैक झेल चुके स्वाभिमानी पिता को मंज़ूर नहीं।

उनके इस कहानी संकलन में कुल 20 कहानियाँ हैं और हर कहानी ऐसी कि बस आपके मुँह से वाह निकले।एक उम्दा कहानी संकलन पाठकों को देने के लिए लेखिका एवं प्रकाशक का आभार।

136 पृष्ठीय इस संग्रहणीय कहानी संकलन के हार्ड बाउंड संस्करण को 2012 में छापा है किताबघर प्रकाशन ने और इसका मूल्य रखा गया है 200/- रुपए जो कि क्वालिटी एवं कंटैंट की दृष्टि से बहुत ही जायज़ है। आने वाले उज्ज्वल भविष्य के लिए लेखिका तथा प्रकाशक को अनेकों अनेक शुभकामनाएं।